Skip to main content

डोडीताल यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी

डोडीताल का तो आपने नाम सुना ही होगा। नहीं सुना होगा तो कोई बात नहीं। आप स्वयं ही गूगल पर सर्च करेंगे कि डोडीताल क्या है। इस बार मैं नहीं बताऊंगा कि यह क्या है, कहां है, कैसे जाया जाता है। बस, चलता जाऊंगा और लौट आऊंगा। आपको अन्दाजा हो जायेगा।
दिल्ली से दोनों मियां-बीवी निकल पडे सुबह छह बजे। बाइक पर सामान बांधा और चल दिये। सामान भी बहुत ज्यादा हो गया। आखिर ट्रेकिंग थी और अभी ट्रेकिंग का मौसम शुरू नहीं हुआ था इसलिये टैंट भी ले लिया, स्लीपिंग बैग भी ले लिया, ढेर सारे गर्म कपडे ले लिये और कुछ नमकीन बिस्कुट भी। दो रकसैक थे- एक मेरे लिये, एक निशा के लिये।
सुबह सवेरे निकलने का हमेशा फायदा ही होता है। दिल्ली से शीघ्र ही निकल गये और गाजियाबाद से भी आसानी से पार कर गये। सीमापुरी बॉर्डर के बाद गाजियाबाद तक मेट्रो का काम चल रहा है। यूपी की सडकें वैसे ही बदनाम होती हैं, इससे और भी ज्यादा बदनाम होने लगेंगी। छह लेन की सडक है गाजियाबाद तक लेकिन ट्रकों और टम्पुओं के कारण यह सिंगल लेन से भी ज्यादा समस्या करती है। सुबह सवेरे कोई दिक्कत नहीं हुई।
कल बारिश पडी थी और आज भी पूरे दिन बारिश पडेगी। मौसम विभाग ने कई दिन पहले ही इस बारे में बता दिया था। मेरठ बाईपास तक टूटी सडक है, उसके बाद मुजफ्फरनगर तक अच्छी है। हालांकि ऊपर बादल थे, लेकिन अभी ये बरस नहीं रहे थे।
आठ बजे तक खतौली पार कर लिया। सौ किलोमीटर आ चुके थे, खाली पेट चले थे, भूख लगने लगी थी। एक जगह रोककर वही अपने आलू के परांठे खाये। आधे घण्टे में जब तक परांठे निपटाये, तब तक ऊपर काले बादल घिर आये थे, खूब गडगडाहट होने लगी थी और तूफान भी चलने लगा था। बारिश तो होनी ही थी। एक बार तो मन में आया कि बारिश के रुकने तक यहीं रुक लेते हैं लेकिन निशा ने हौंसला बढाया कि आगे बढो।
पांच किलोमीटर भी नहीं गये कि बूंदाबांदी शुरू हो गईं। मंसूरपुर तक यह हालत हो गई कि बाइक रोककर रेनकोट पहनना पड गया। पता नहीं ऊपर वाला अब तक कैसे रुका हुआ था। चारों तरफ से भयंकर तरीके से गडगडाहट हो रही थी, अन्धकार छाया हुआ था, हवा चल रही थी; बारिश कभी की शुरू हो जानी थी। मैंने कई बार देखा है कि मेरे सुरक्षित होते ही तुरन्त तेज बारिश होने लगती है। यहां भी जैसे ही हमने रेनकोट पहना, एकदम मूसलाधार बारिश होने लगी।
इतनी भीषण बारिश कम ही देखने को मिलती है। जमकर बिजलियां गिर रही थीं। चारों तरफ क्षितिज तक कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी कि बारिश एक दो घण्टे में थम जायेगी। सडक तो खाली हो ही चुकी थी। सडक पर किसी बाइक का दिखना असम्भव ही था। कारें और ट्रक भी रुके हुए थे। इसका नतीजा हुआ कि हमेशा व्यस्त रहने वाली यह सडक अब खाली पडी थी। मुजफ्फरनगर बाईपास आरम्भ होने तक मैं पस्त होने लगा था। रुकने की इच्छा होने लगी थी। पीछे से फिर आवाज आई- चलते रहो।
चलते रहे और रामपुर चौराहे पर पहुंच गये। अब चार लेन की सडक समाप्त हो गई और बिना डिवाइडर की दो लेन की सडक आरम्भ हो गई और उस पर भी काम चल रहा है। यह सडक रुडकी और आगे हरिद्वार तक टूटी पडी है। इसे चौडा करने का काम चल रहा है। बारिश अभी भी उतनी ही तेजी से हो रही थी, सडक अभी भी खाली पडी थी; हम आगे बढते रहे। गड्ढे, पानी, कीचड, फिसलन; सबकुछ यहां था। और जैसे ही छपार के पास बारिश कम हुई, सडक पर वाहन ही वाहन दिखने लगे। छपार में जाम लग गया। गड्ढों और कीचड के बीच से यहां से कैसे निकले; बस मैं ही जानता हूं।
मंगलौर में जैसे ही नहर का पुल आया, पहला काम किया कि नहर के किनारे-किनारे हो लिया। कम से कम भारी वाहनों से तो निजात मिली। रुडकी पार करके जब उस ऐतिहासिक पुल पर पहुंचे, जिसे बनाने के लिये भारत में पहली बार ट्रेन चलाई गई थी, तो ग्यारह बज चुके थे। अब तक बारिश बिल्कुल बन्द हो गई थी। यहां पन्द्रह बीस मिनट तक रुके रहे। जूते उतारे, जुराबें निचोडीं। बारिश और कीचड में चलने से जूते जलमग्न हो गये थे।
रुडकी के बाद भी गंगनहर के साथ साथ ही चलते रहे। सीधे बहादराबाद पहुंच गये। यहां तो हमेशा जाम मिलता ही है। बीएचईएल और सिडकुल के ट्रकों का काफिला यहां देर-देर तक जाम लगा देता है। ज्वालापुर से तो हरिद्वार शुरू हो ही जाता है। हम भारी ट्रैफिक में रुकते हुए चलते रहे और आखिरकार भीमगोडा बैराज वाली सडक आते ही रुक गये। सडक के इस तरफ हम थे और सामने दूसरी तरफ हर की पैडी थी। निशा कभी बचपन में ही यहां आई होगी। मेरी इच्छा उसे हर की पैडी दिखाने की थी लेकिन दूर से ही प्रणाम करवा दिया।
अब आफत खत्म हो गई थी। राहत आ गई थी। ट्रैफिक अब हमें नहीं मिलेगा। बैराज पार करके चीला रोड पर चल पडे। मैं हरिद्वार से ऋषिकेश जाने के लिये हमेशा इसी चीला रोड का प्रयोग करता हूं। बिल्कुल खाली मिलती है और ऋषिकेश में बस अड्डे के पास जाकर निकलते हैं। ऋषिकेश में भी कोई ज्यादा ट्रैफिक नहीं था। शीघ्र ही हम उत्तरकाशी रोड पर थे। ऋषिकेश से निकलते ही पहाडी मार्ग आरम्भ हो जाता है। सडक शानदार बनी है, ट्रैफिक है नहीं। डेढ बजे नरेन्द्रनगर बाईपास पर पहुंच गये।
कुछ ही महीने पहले जब पहली बाइक यात्रा में इधर आये थे तो बडी देर तक यहां बाईपास पर रुके रहे थे। इस बार भी आधा घण्टे तक रुके रहे। ढाई सौ किलोमीटर आ चुके थे। नाइट ड्यूटी की थी, थकान होना स्वाभाविक था। तय कर लिया कि अब आराम से चलेंगे और चम्बा रात रुकेंगे। अगर रात का जगा न होता तो आज ही उत्तरकाशी पहुंच सकते थे।
आगराखाल के पास फिर आधे घण्टे रुक गये। भूख लगने लगी थी, खतौली के परांठे हजम हो चुके थे। समोसे खाये। यहां से चम्बा तीस किलोमीटर रह जाता है। घण्टे भर में पहुंच सकते हैं। अभी तीन ही बजे थे, समय खूब था अपने पास; जल्दबाजी नहीं की।
चम्बा से सात-आठ किलोमीटर पहले फिर रुक गये। इस बार डेढ दो घण्टे तक रुके रहे। यहां सडक किनारे कुछ खाली जगह थी, धूप निकली हुई थी। हमारे दोनों के जूते भीगे हुए थे, इन्हें सुखा लिया। मैं घास पर लेट गया और अविलम्ब नींद ने आ घेरा। तब तक निशा फोटो खींचती रही। बाद में जब मैंने उसके फोटो देखे तो हैरान रह गया। एक पीली चिडिया का फोटो लिया था उसने। हालांकि इसमें चिडिया कैमरे के ऑटो फोकस की वजह से आउट ऑफ फोकस हो गई थी लेकिन फिर भी अच्छी लग रही थी। मुझे कभी भी ये चिडियां नहीं दिखाई देतीं। ये क्या, कोई भी पक्षी नहीं दिखता। जंगल में रहूंगा, सैंकडों पक्षियों के चहचहाने की आवाजें आती रहेंगीं लेकिन दिखेगा कोई नहीं।
शाम पांच बजे चम्बा पहुंच गये। यहां से एक मार्ग धनोल्टी होते हुए मसूरी जाता है, एक उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री जाता है और एक नई टिहरी जाता है। नई टिहरी यहां से 18 किलोमीटर है। निशा ने एक बार तो टिहरी बांध देखने की इच्छा जताई लेकिन मैंने मना कर दिया। थकान बहुत हो रही थी।
अगले दिन सात बजे उठे और साढे आठ बजे तक चलने को तैयार हो चुके थे। मौसम विभाग के अनुसार आज मौसम साफ रहने वाला था, कल भी साफ रहेगा लेकिन परसों बारिश पडेगी। इसलिये आज को लेकर हम निश्चिन्त थे। हालांकि सुबह के समय चम्बा में बादल थे लेकिन धीरे धीरे सब छंट गये।
चम्बा के बाद पतली सडक है। पहले जो सडक थी, वो टिहरी होते हुए जाती थी, कुछ छोटी थी। टिहरी बांध बना तो वह उसमें डूब गई। वर्तमान सडक कुछ लम्बी है। कहीं कहीं तो दस दस किलोमीटर तक घूमकर आ जाओ और पता चलता है कि आधे किलोमीटर का एक पुल होता तो यह दस किलोमीटर की दूरी बच जाती।
खैर, चिन्यालीसौड से कुछ पहले एक सडक मसूरी की ओर गई है। यहां से मसूरी 75 किलोमीटर दर्शाई गई है। यह सडक नई बनी है, मैदान में जाने के लिये सबसे छोटी है। अन्यथा यहां से नजदीकी मैदानी शहर ऋषिकेश 130 किलोमीटर है, जबकि देहरादून 100 किलोमीटर। वापसी में इसी रास्ते से लौटेंगे।
चिन्यालीसौड से धरासू और उससे आगे धरासू बैंड। धरासू बैंड से एक सडक बडकोट जाती है अर्थात गंगोत्री, यमुनोत्री की सडकें यहां से अलग होती हैं। यहां कुछ ढाबे हैं। हमने आलू के परांठे खाये। वाकई बेहद स्वादिष्ट परांठे बने थे। बडे बडे परांठे और आटा कम आलू ज्यादा।
धरासू बैंड के बाद ज्यादातर सडक तो ठीक है लेकिन अगर ठीक नहीं है तो बहुत खराब है। इसे चौडा करने का काम चल रहा है और कहीं कहीं तो इतनी खराब है कि डेढ सौ सीसी की बाइक पहले गियर में चलानी पडी।
दोपहर बाद डेढ बजे उत्तरकाशी पहुंचे और बिना रुके पार हो गये।

खतौली के पास

रुडकी में ऊपर गंगनहर और नीचे सोलानी नदी।


हरिद्वार में भीमगोडा बैराज के पास

नरेन्द्रनगर बाईपास से दिखता ऋषिकेश, गंगा और उससे परे राजाजी नेशनल पार्क का जंगल।


चम्बा के पास





खर्च लेखन





धरासू बैंड




अगला भाग: डोडीताल यात्रा- उत्तरकाशी से अगोडा


डोडीताल यात्रा
1. डोडीताल यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. डोडीताल यात्रा- उत्तरकाशी से अगोडा
3. डोडीताल यात्रा- अगोडा से मांझी
4. डोडीताल यात्रा- मांझी से उत्तरकाशी
5. उत्तरकाशी से दिल्ली वाया मसूरी




Comments

  1. बहुत बढ़िया नीरज भाई
    निशा को भी घुमक्कड़ी सिखा दी..

    ReplyDelete
  2. शानदार फोटोग्राफी।
    इसको कहते हैं बेहतरीन पहाड़ी घुमक्कड़ी।

    ReplyDelete
  3. मोटरसाईकल चलाने मे अब तो आप मास्टर हो गए हो,धुप,रण,पहाड,बारिश व कीचड सब झेल लिया आपने इन दो महिनो में..
    निशा जी की भी तारिफ करनी होगी जो आपको आगे चलने का हौसला देती रही.
    सुन्दर पोस्ट....

    ReplyDelete
  4. अच्छा विवरन : एक से भले दो

    ReplyDelete
  5. भाई ! शादी के बाद ज्यादा स्मार्ट लगने लगे हो.
    सुन्दर फोटोज, चिड़िया वाकई बहुत अच्छी लग रही है .
    बढ़िया पोस्ट :)

    ReplyDelete
  6. प्यारे नीरज भाई
    मैं इस साल मई में डोडिताल और यमुनोत्री कि ट्रेक कर रहा हूँ. आपका वृतांत मददगार साबित होगा. विवाह कि शुभकामनाएं. जान कर प्रसन्नता हुई कि अब दोनों मियां बीवी साथ में ट्रेक करेंगे.

    शैलेन्द्र मोदी

    ReplyDelete
  7. वाह।।

    लगता है कुछ तस्वीरें जो निशा ने ली हैं उनपर भी वाटरमार्क नीरज का ही है... वक्त आ गया क्रेडिट शेयर करने का। :)
    कामना है कि आप हिन्दी के पहले युगल घुमक्कड़ बनें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां जी, पोस्ट में लिख दिया है कि फोटो निशा ने लिये हैं। बस, फोटो एडिटिंग करते समय ध्यान ही नहीं रहता नाम बदलना। अब ध्यान रखा करूंगा।

      Delete
    2. मसिजीवी की राय से इत्तफाक रखते हुए मैं आगे की बात कहना चाहूंगा कि निशा जी से भी कहें कि वे अपनी भाषा-शैली में भी इन यात्रा वृत्तांत को लिखें. अनोखा प्रयोग होगा यह. एक ही यात्रा के दो (अलग चश्मों से) संस्मरण!

      Delete
    3. निशा मना कर रही है।

      Delete
  8. बहुत सुंदर एवं सजीव वर्णन ........आपका यात्रा वर्णन पढते समय लगता है कि हम भी वहीं घूम रहे है......;;बहुत खूब .....आपकी जोड़ी भी परफेक्‍ट है .....एक दूजे के लिए.बने ........ घूमते रहिए और इसी तरह लिखते रहिए

    ReplyDelete
  9. "साथ अगर हो साथी दिल का .." ,तो फिर यात्रा और भी मनोहर हो जाती है . चिडिया का फोटो सचमुच बहुत सुन्दर है . आपके यात्रा वृत्तान्त में पूरा परिवेश ,वहां का इतिहास और भूगोल भी होता है किसी सुन्दर कविता जैसा सरस . यही कारण है कि इतने रोचक और स्तरीय वृत्तान्त अन्यत्र न के बराबर हैं .

    ReplyDelete
  10. वाकई शादी के बाद काफी निखर गए हो ,यात्रा वृतांत हमेशा की तरह बढ़िया नीरज ,खूब घुमो भाई

    ReplyDelete
  11. अब जाकर एक युगल यात्रा की विधिवत शुरुवात हुई है. उम्मीद करता हूँ की ये पति-पत्नी की घुमक्कड़ी जोड़ी नित नए आयाम स्थापित करेगी . और हमें कुछ बेहतरीन जगहों पर ले जाएगी. ढेर सारी शुभकामनायें. लगे रहिये.......

    ReplyDelete
  12. वाह................बढ़िया चित्र

    ReplyDelete
  13. .... दो हंसो का जोडा निकल पडा है....घुमक्कडी करने...बहुत खूब....

    ReplyDelete
  14. जोड़े से घुमक्कड़ी.... वाह भई क्या बात है ...... बहुत खूब....
    यात्रा वृतांत हमेशा की शानदार ....आप दोनों (पत्नी -पत्नी ) के लिए गये फोटो बहुत शानदार लगे....
    निशा जी.... को भी सिखाते रहिये ....फोटोग्राफी के गुण....

    www.safarhainsuhana.blogspot.in

    ReplyDelete
  15. चलते रहो, चलते रहो, बस इब यो ही आवाज आती रहवैगी जिन्दगी भर पीच्छे से। समझा के नहीं। :)

    ReplyDelete
  16. शादी के बाद इतनी जल्दी धुमक्कड़ी कर लोगो विश्वस बही था। खेर बधाई।

    ReplyDelete
  17. Kam se kam ek post to Nisha ji ke dwaara likhi is blog par honi chahiye. By the way thoroughly enjoyed the post.

    Thanks,
    Mukesh

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब...