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पूरी रात मुझे नींद नहीं आई। इसके कई कारण थे। पहला तो कारण था वो सस्ते वाला स्लीपिंग बैग जो मैं कुछ दिन पहले पठानकोट से लाया था। पठानकोट जब हम गये थे, तो स्टेशन के बाहर बाजार में गर्म कपडों की बहुत सारी दुकानें हैं। उनमें स्लीपिंग बैग बाहर ही रखे थे। मैंने देखना शुरू किया तो एक स्लीपिंग बैग पसन्द आ गया। इसका साइज बहुत छोटा था, बहुत हल्का था और 1200 रुपये का था। इसमें पंख भरे थे। ले लिया। इसका परीक्षण करने को इसे मैंने ही इस्तेमाल किया। लेकिन यह मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। गौरतलब है कि मुझे सर्दी कम लगती है। फिर भी मैं ठण्ड से कांपता रहा। पैर बर्फ से हुए रहे। दूसरा कारण था कि मेरे नीचे मैट्रेस नहीं थी। हमारे पास एक ही मैट्रेस थी और वो निशा को दे रखी थी। मुझे नीचे से भी बहुत ठण्ड लगी। पहले तो लगा था कि शरीर की गर्मी से जमीन का वो टुकडा भी गर्म हो जायेगा और ठण्ड नहीं लगेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुल मिलाकर नींद नहीं आई।
बाहर पूरी रात बारिश होती रही और तूफान चलता रहा। सामान्यतः आधी रात तक या उसके आसपास तक बारिश होती है, फिर बन्द हो जाती है लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ। सुबह जब हम उठे तब भी बारिश हो रही थी और हवा तो जोरों की चल ही रही थी। बाहर झांककर देखा तो होश उड गये। सामने के पहाडों पर बर्फबारी हो रही थी और पेड भी सफेद हो गये थे। डोडीताल की दिशा में देखा तो उधर भी पेडों पर बर्फ की सफेदी दिखी। ऊपर आसमान की तरफ देखा तो मौसम खुलने के आसार नहीं लगे।
हमारे आसपास कोई आदमी नहीं था। न मांझी में और न ही डोडीताल पर। पीछे नौ किलोमीटर दूर बेवडा में ही कोई हो सकता था। हम अकेले थे। अगर कोई आयेगा भी तो शाम तक ही आयेगा। यहां से डोडीताल तक जो पगडण्डी थी, उस पर काफी बर्फ थी; यह बात हमें कल ही पता चल गई थी। अब ताजी बर्फ पडने से वह पगडण्डी गायब हो गई होगी। पहले जा चुके यात्रियों के निशान भी गायब हो गये होंगे। फिर नौकरी का भी बन्धन होता है। कल शाम तक दिल्ली पहुंचना है। यानी आज कम से कम उत्तरकाशी तक पहुंचना ही पहुंचना है। यहां से 18 किलोमीटर दूर संगमचट्टी है जहां हमारी बाइक खडी है। 18 किलोमीटर पैदल ही जाना है। अगर डोडीताल जाते हैं तो आज किसी भी हालत में उत्तरकाशी नहीं जा सकते और कल तक दिल्ली भी नहीं पहुंच सकते।
और आखिरकार फैसला लिया कि डोडीताल नहीं जायेंगे। साढे नौ बजे टैंट बांध दिया। अभी भी तूफान मचा पडा था और बारिश हो रही थी। हमने रेनकोट तो पहन ही रखे थे लेकिन फिर भी इंतजार में थे कि बारिश कुछ कम हो जाये। भीगना तो है ही, यह जानने के बावजूद भी हम बारिश में शुरूआत नहीं करना चाहते थे। दस बजे बारिश बूंदाबांदी में बदल गई तो हम निकल पडे। रास्ता ढलान का था तो चलने में तेजी आई।
आधे घण्टे में ही ढाई किलोमीटर दूर एक नाले पर पहुंचे। अब तक बारिश लगभग थम चुकी थी लेकिन ऊपर मौसम पूरी तरह खराब था। कुछ देर यहां बैठकर फिर चल पडे और छतरी पर पहुंच गये। यहां कुछ विदेशी यात्री थे और उनके साथ स्थानीय सहायक। ये लोग डोडीताल जा रहे थे। हमने स्थानीयों से पूछा तो बताया कि मांझी तक ही जायेंगे, उसके बाद बर्फ है। ये लोग बर्फ में नहीं चलेंगे।
धूप निकल आई थी। यहां हम करीब घण्टे भर तक रुके रहे। विदेशियों के जाने के बाद यहीं लेट गये। जिसने भी ऐसे इलाकों में यात्रा कर रखी है, वही जानता है कि थकने के बाद लेटने में कितना आनन्द आता है।
फिर चले तो सीधे बेवडा जाकर रुके। दोनों ने एक-एक कप चाय पी। यह बिना दूध की चाय थी जो निशा को पसन्द नहीं आई। बस, इसमें दूध नहीं था; बाकी चाय अच्छी लग रही थी। मैंने समझाया कि कई बार ऐसी भी चाय पीनी पडती है। बेवडा में एक तेज बहता नाला है जिसे हमने कल जूते उतारकर पानी में घुसकर पार किया था। पास ही नाले के आरपार एक पेड का मोटा तना पडा था। आज इस तने पर रेलिंग की तरह मजबूत रस्सी पूरी मजबूती से बंधी मिली। आसानी से रस्सी पकडकर नाला पार हो गये।
तीन बजे अगोडा पहुंचे। सीधे उसी होटल में गये जहां दो दिन पहले रुके थे। खाना उपलब्ध नहीं था, आमलेट बनवा लिये। हम आज लगभग 12 किलोमीटर आ चुके थे, अभी भी 6 किलोमीटर चलना था। उसके बाद बाइक मिल जायेगी और थोडी ही देर में उत्तरकाशी पहुंच जायेंगे।
निशा की बडी खराब हालत थी। नीचे उतरने में उसकी यह हालत हुई। असल में यह उसकी पहली ट्रैकिंग थी। पहाड पर चढ तो गई लेकिन अभ्यास न होने के कारण नीचे उतरते समय अनियन्त्रित होकर उतरती रही। इसे मैंने लुढकना नाम दिया। पहले तो वह दौड पडती थी, लेकिन मैंने सख्त हिदायत दी कि दौडना नहीं है। एक एक कदम उतरना है। पहाड पर उतरते समय दौडना बडा घातक हो जाता है। एक एक कदम उतरने में पसीने छूटने लगे। लेकिन कुछ भी हो, चलना तो उसे ही था।
पांच बजे हम संगमचट्टी पहुंच गये। बाइक सही सलामत खडी थी। दोनों ने एक-एक कप चाय पी, सामान बांधा और पौने छह बजे तक यहां से निकल लिये।
निशा भी बाइक चलाना जानती है। मैंने तो अभी कुछ ही महीने पहले इसे चलाना सीखा है लेकिन निशा ‘प्राचीन’ काल से इसकी अभ्यस्त है, वो भी यूपी की सडकों पर। जाहिर है कि मुझसे बहुत ज्यादा अनुभवी है। दिल्ली से यहां आते समय भी उसने बाइक चलाने को कहा था लेकिन मैंने नहीं चलाने दिया। पहली बात तो यह है कि उसके पास लाइसेंस नहीं है। दूसरी बात मैं पहाडी मार्गों पर उसे बाइक देने से हिचकिचा रहा था। बडी मुश्किल से उसे समझाया था कि तेरे पास लाइसेंस नहीं है, इसलिये तुझे नहीं चलाने दूंगा। बोली कि यहां पहाड में कौन चेक करेगा लाइसेंस? मैंने कहा कि बात चेक करने की नहीं है। मान लो... झूठ-मूठ ही मान लो... खुदा न खास्ता कोई दुर्घटना हो गई तो इसका इंश्योरेंस भी नहीं मिलेगा। इंश्योरेंस वाले पैसे लेकर तैयार नहीं बैठे हैं कि दुर्घटना होगी और वे पैसे दे देंगे। वे लोग पहले गहन जांच पडताल करते हैं। उन्हें पता चल ही जायेगा कि तू बाइक चला रही थी। और तेरे पास लाइसेंस नहीं है, इसलिये कोई क्लेम नहीं मिलेगा। इस दलील से वह मान गई।
यहां संगमचट्टी में भी उसने कहा। अब मुझे उसे चुप करने की एक दूसरी तरकीब सूझी। मैंने बाइक चलाने की इजाजत दे दी। मुझे मालूम था और उसे भी मालूम था कि यहां से पचास मीटर आगे ही रास्ता कीचडयुक्त है और बाइक फिसलेगी। परसों जब हम आये थे तो उस कीचड को पार करने में मेरे भी पसीने छूट गये थे। मैंने शर्त लगा दी कि अगर सन्तोषजनक ढंग से चलाई तो आगे भी चलाने दूंगा अन्यथा फिर कभी मत कहना। उसने शर्त मंजूर कर ली।
कीचड आने पर मैं उतर गया। वह अपनी साइड में बाइक ले जाने लगी तो मैंने रोका कि रोंग साइड में चल, उधर पहाड था। अगर सन्तुलन बिगडा तो चट्टान में ही टकरा जायेगी, नीचे खाई में नहीं गिरेगी। ऐसे कीचड में सन्तुलन बिगडना बडा आसान है। लेकिन इसके बावजूद मुझे यकीन भी था कि बाइक यहां से निकले या न निकले, यह गिरेगी नहीं।
वह ठीकठाक बाइक निकाल ले गई लेकिन जब आखिरी दो-चार मीटर रह गया तो चढाई और कीचड की वजह से रुक गई। बस, रुकते ही बाइक हल्की-हल्की धंसने लगी। आखिरकार मुझे पीछे से धक्का लगाना पडा, तब यहां से निकले। मेरी योजना काम कर गई थी। मैंने कहा- अभी तुझे इस मोटरसाइकिल पर बहुत हाथ आजमाना है, इसकी आदत बनानी है, तब यह तुझसे ऐसे रास्तों पर चलेगी। अब तू रहन दे। वह मुझसे सहमत थी।
गंगोरी पहुंचे और उत्तरकाशी से तीन किलोमीटर पहले एक होटल में कमरा ले लिया, गर्म पानी में नहाये और सो गये। आज 18 किलोमीटर पैदल और दस किलोमीटर बाइक से चले थे। कल भी बडी दूर जाना है।
डोडीताल की तरफ पहाडों और पेडों पर पडी ताजी बर्फ |
खराब मौसम |
फोटो आभार: निशा |
आज इस पेड के तने पर रस्सी बंधी मिली और छोटी छोटी लकडियां भी सीढी की तरह लगी मिलीं। |
बेवडा |
अगोडा गांव |
संगमचट्टी |
एक वीडियो भी है इस रास्ते पर निशा द्वारा बाइक चलाने की। अगर वीडियो नहीं चल रही है तो यहां क्लिक करें।
अगला भाग: उत्तरकाशी से दिल्ली वाया मसूरी
डोडीताल यात्रा
1. डोडीताल यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. डोडीताल यात्रा- उत्तरकाशी से अगोडा
3. डोडीताल यात्रा- अगोडा से मांझी
4. डोडीताल यात्रा- मांझी से उत्तरकाशी
5. उत्तरकाशी से दिल्ली वाया मसूरी
nice post :)
ReplyDeletenice comment...
Deleteek panth do kaaj bhai aap dono to
ReplyDeletegummakari ke aadarsh bano ge
एक पंथ दो काज??? कौन से दो काज?
Deleteआखिर में video लगाने के लिए धन्यवाद , वीडियो देख कर रास्ते की कठनाई का ज़्यादा पता लगा, खासकर इतने सामान के साथ.
ReplyDeleteआप दोनों को बहुत बहुत शुभकामनाये!!
धन्यवाद सर जी...
Deleteआपको तो बहुत बार सैल्यूट किया है , आज एक सैल्यूट निशा के लिये
ReplyDeleteप्रणाम
धन्यवाद भाई...
Deletepahad me bike chalana bahut khatarnak hota hai...dheere chale surkshit pahunche... nice trip....
ReplyDeleteHmmm... "फोटो आभार"
ReplyDeleteBadhiya hai..
नीरज भाई आपके लेख पढ़कर बड़ा मज़ा आता है,ऐसा लगता है जैसे आप के साथ ही यात्रा कर रहा हु!.. आपकी मिजोरम सायकिल यात्रा तो मेने २ दिन में ही पूरी पढ़ लीथी...पिछले २-३ सालो से बाइक से भूतान या मिजोरम जाने के लिए सोचता रहता हु...अगर आप उस रूट पर जाते है तो आप के साथ जुड़ने की अभिलाष रहेगी....धन्यवाद
ReplyDeleteनीरज भाई राम राम...!
ReplyDeleteभाई पिछे बैठे बैठे निशा जी परेशान हो गई होगी शायद इसलिए उन्होने बाईक चलाने की सोची होगी..
साहस भरी यात्रा। विशेष कर निशा के लिए। पहाड़ पर गाडी चलना बहुत मुश्किल काम है । निशा की किस्मत पर ईर्षा हो रही है जिसे तुझ जैसा पति मिला। वाह ! ऐसे रास्तो पर घूमने की मेरी बहुत इच्छा होती थी जवानी पर पति का सहयोग न मिलने से ये ख्वाब ही बन कर रह गया और फिर गृहस्थी में फसती गई । खेर, आज की अधूरी यात्रा भी जोरदार थी । नुझे पहाड़ों पर वारिस बिलकुल पसन्द नहीं। सारा मज़ा खराब हो जाता है।
ReplyDeleteजा तू जा
ReplyDeleteकोई ना...
भाई अगर कोई होता तो..???
Jai ho jaat D
ReplyDeleteBike ke peeshe baithna bahut he boring and thkaa dene waala hota hai
ReplyDeleteEse main har koi chahta hai k vo bhi thori bahut bike chlaa le........ Sulb yatra