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1 अप्रैल 2015
अगोडा की समुद्र तल से ऊंचाई 2100 मीटर है जबकि डोडीताल 3200 मीटर पर। दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। आजकल डोडीताल तक आवाजाही तो है लेकिन उतनी नहीं है। अगोडा में होटल वाले ने पहले ही बता दिया था कि मांझी के बाद बहुत ज्यादा बर्फ है, रास्ता मुश्किल है। फिर खाने का भी भरोसा नहीं था। इसलिये यहीं से आलू के चार परांठे भी पैक करा लिये। पेटभर खा तो लिये ही थे।
पौने नौ बजे यहां से चल पडे। गांव से निकलते ही एक पगडण्डी दाहिने नीचे की तरफ उतर जाती है। यह आगे नदी पार करके उस तरफ ऊपर चढती है। उधर गुज्जरों के कुछ ठिकाने दिख रहे थे, यह उन्हीं ठिकानों पर जाती होगी। अगर उधर ऊपर चढते जायें तो आखिरकार दयारा बुग्याल पर पहुंच जायेंगे। दयारा पर आजकल खूब बर्फ थी।
बुरांश के पेडों ने तो समां बांध रखा था। यह ऐसे ही उत्तराखण्ड का राजकीय वृक्ष नहीं है। आप इसके पेडों के नीचे से गुजरोगे तो महसूस होगा कि प्रकृति ने आपके लिये ही फूल बिछा रखे हैं। यह पेड खूब फूलता है और फूल झडते हैं। बार-बार रुकने को मन करता है।
कुछ दूर तक हल्की चढाई थी, फिर एक उतराई आई और सामने एक नाला बहता दिखा। नाले के उस पार खूब सारे घर थे। चहल-पहल भी दिख रही थी। पास गये तो देखा कि ट्रैकरों का एक बडा ग्रुप है जिसमें बच्चे भी थे और महिलाएं भी। ये सभी बंगाली थे। लेकिन उधर जाने के लिये तेज बहाव वाले इस नाले पर कोई पुल नहीं था। मुझसे पहले निशा ने अपने जूते उतार लिये। पानी से होकर ही जाना पडेगा। बंगाली पास ही नाले के आरपार पडे एक तने की तरफ इशारा कर रहे थे लेकिन मुझसे तने से होकर इस तरह की धाराएं पार नहीं होतीं। पहले निशा पानी में उतरी, फिर मैं। पार करने के बाद बडी देर तक पैर सुन्न रहे; मेरे भी और निशा के भी। बडा ठण्डा पानी था।
यह बेबरा चट्टी थी। बेबरा तो रोमन में लिखा था, इसलिये मैंने भी लिख दिया। असल में यह बेवडा है। यहां कभी कोई गांव रहा होगा। उजडे घर और खेत बोल रहे थे। अब कोई नहीं रहता। डोडीताल का सीजन शुरू हो जाता है तो लोगबाग आकर यहां दुकानें खोल लेते हैं और ठहरने के लिये कमरे देने लगते हैं।
बंगाली भी डोडीताल ही जा रहे थे। लेकिन उनसे उनके गाइड ने बता दिया था कि मांझी के बाद पांच फीट तक बर्फ है इसलिये मांझी तक ही जा सकेंगे। कल शाम जब वे आये थे तो बारिश होने लगी और नाले को पेड के तने से पार करने के चक्कर में सभी भीग गये। सारा सामान भी भीग गया। अब धूप निकली थी तो सामान को सुखाने के लिये डाल रखा था। एक बडे बंगाली ने हमें पैदल ही नाला पार करते देख कहा- यह तो कल हमारे दिमाग में ही नहीं आया। नहीं तो हम क्यों बारिश में धीरे धीरे पेड के तने से इसे पार करते? जूते उतारते और फटाक से पार हो जाते।
यहां हम दस मिनट रुके और आगे बढ चले। अब चढाई काफी तेज है। बेवडा 2170 मीटर पर है और चार किलोमीटर आगे धारकोट 2600 मीटर की ऊंचाई पर है। रास्ता बहुत अच्छा बना है। धारकोट में आराम करने के लिये एक शेड बना है। इसके अलावा यहां कुछ नहीं है, कोई दुकान भी नहीं है। स्थानीय लोग धारकोट को शेड की वजह से छतरी कहते हैं। यहां हम बडी देर तक रुके रहे। भूख लगने लगी थी, कुछ नमकीन खाई, कुछ बिस्कुट खाये और कुछ किशमिश।
रास्ते में डोडीताल से लौटते कुछ यात्री मिले। इनमें सबसे आगे एक महिला थी। मैंने सबसे पहले यही पूछा कि क्या आप लोग डोडीताल झील तक गये थे? उन्होंने हां कहा। मैंने कहा- तब तो हम भी चले जायेंगे। क्योंकि हर कोई यही कहता आ रहा था कि मांझी के बाद बहुत बर्फ है, रास्ता खतरनाक है। बंगालियों के गाइड ने तो पांच फीट तक बर्फ बता दी थी। पांच फीट बर्फ बहुत ज्यादा होती है। इसी ग्रुप में राजेश जाखड भी मिले। हम फेसबुक पर मित्र हैं। लेकिन कभी कोई बातचीत नहीं हुई थी, न ही मिले थे, न उन्हें मेरे कार्यक्रम की जानकारी थी, न ही मुझे। दूर से देखते ही बोले- नीरज? फिर कुछ उन्होंने हिदायतें भी दीं- मांझी के बाद बर्फ है। कई स्थानों पर काफी खतरनाक है। अभी दोपहर बाद बर्फ नरम हो जाती है, पैर उसमें धंसते हैं तो हमारी सलाह है कि आप कल सुबह सवेरे निकलना। तुम तो अनुभवी हो, अभी भी निकल जाओगे लेकिन आपकी पत्नी को परेशानी हो सकती है।
जब हम धारकोट में ही थे तो ऊपर से कुछ स्थानीय लोग आये। इनमें से एक डोडीताल रेस्ट हाउस के केयरटेकर भी थे। जंगल में प्रवेश करने की पर्ची कटती है, वो कटी। इन्होंने बताया कि अब ऊपर कोई नहीं है। रेस्ट हाउस बन्द है क्योंकि अगली बुकिंग चार तारीख की है, इसलिये हम वापस जा रहे हैं। अगर आप आगे जाओगे तो पूरे जंगल में बस आप ही रहोगे। और कोई नहीं होगा।
धारकोट के दो ढाई किलोमीटर बाद फिर एक नाला मिला। इसमें थोडा सा ही पानी था लेकिन चूंकि हम प्यासे मर रहे थे तो यह बहुत था। यह नाला घने जंगल में है। यहां थोडी सी कैम्पिंग ग्राउण्ड भी है, लेकिन कोई नहीं था। यहां से आधा किलोमीटर बाद एक पगडण्डी और आकर इसमें मिल जाती है। यह पगडण्डी दयारा बुग्याल से आती है। दयारा यहां से पन्द्रह किलोमीटर है। पांच किलोमीटर बाद नदी किनारे सतगडी नामक कैम्पिंग ग्राउण्ड है, उसके बाद दस किलोमीटर की चढाई चढने पर दयारा बुग्याल है।
यहां से एक किलोमीटर आगे छोटी मांझी है। यह भी जंगल में एक कैम्पिंग ग्राउण्ड है। यहां भी कोई नहीं था। छोटी मांझी से एक किलोमीटर आगे मांझी है। दूर से ही मांझी की झोंपडियां दिखने लगी थीं। ऊपर मौसम खराब हो रहा था, जैसा कि हिमालय में दोपहर बाद हो जाता है। साढे तीन बजे जब 2870 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मांझी हम पहुंचे तो हल्की बूंदाबांदी होने लगी थीं। यहां बहुत सारी झोंपडियां थीं जो सभी गुज्जरों की थीं। गुज्जर अपनी गाय-भैंसों को लेकर कुछ दिन बाद यहां आने लगेंगे तो मांझी आबाद हो जायेगी। अभी उजाड थी। जो भी आबादी थी, वो बस हम दोनों मियां-बीवी ही थे।
भूख चरम पर थी, मुझे भी और निशा को भी। आगे बढने से पहले कुछ खाना जरूरी था। फिर ऊपर मौसम खराब हो गया था, कभी भी मूसलाधार बारिश हो सकती थी। यहां से डोडीताल पांच किलोमीटर रह जाता है। ज्यादा से ज्यादा तीन घण्टे लगते। मौसम खराब न होता तो कुछ खाकर आज ही हम डोडीताल पहुंच सकते थे। टैंट यहां भी लगाना है और वहां भी लगाना था। जब बारिश तेज होने लगी तो एक खुली झोंपडी में बैठ गये और यहीं टैंट लगा लिया। कुछ तो मौसम ही बहुत ठण्डा था, फिर हम पसीने से भी भीगे थे, इसलिये ठण्ड लगने लगी। यह ठण्ड स्लीपिंग बैग में घुसने के बाद और चार परांठे खाने के बाद ही कुछ कम हुई।
निशा ने पूछा- यह बारिश कब तक होती रहेगी? मैंने बताया- वही जब तक कल हुई थी। या फिर आधी रात तक भी। लेकिन अगर सुबह भी हमें बारिश होती मिली तो समझना कि गडबड है। फिर पूछा- अगर कोई जानवर आ जाये, भालू आ जाये तो हम क्या करेंगे? मैंने कहा- हमें कुछ भी करने की जरुरत नहीं है; जो भी करेगा, वही करेगा।
आज हम 12 किलोमीटर ही चले थे और लगभग 700 मीटर ऊपर चढे थे, फिर भी बहुत थकान हो रही थी। इसका कारण खाना हो सकता है। हम भूखे थे और रास्ते में एक जगह बैठकर थोडे से नमकीन बिस्कुट खाये थे। ऐसे में आगे बढने का मन तो कतई नहीं करता बल्कि हम चाहते हैं कि कल यहीं से वापस लौट जायेंगे। लेकिन यह भी पता था कि सुबह जब सोकर उठेंगे तो फिर से तरोताजा होंगे और डोडीताल से पहले नहीं रुकेंगे।
रास्ता बहुत अच्छा बना है। |
बुरांश की यही बात मुझे अच्छी लगती है। |
बेवडा चट्टी |
प्यास लगी है, पानी पीना है, मुंह तो भीगेगा ही... तो हाथ क्यों भिगोने? |
वीरान मांझी |
अगला भाग: डोडीताल यात्रा- मांझी से उत्तरकाशी
डोडीताल यात्रा
1. डोडीताल यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. डोडीताल यात्रा- उत्तरकाशी से अगोडा
3. डोडीताल यात्रा- अगोडा से मांझी
4. डोडीताल यात्रा- मांझी से उत्तरकाशी
5. उत्तरकाशी से दिल्ली वाया मसूरी
Brilliant series as usual so far Neeraj Bhai.
ReplyDeleteI absolutely loved the 11th pic from the top; wish some day I'll also do this trek.
और हाँ , आप दोनों को फिर से होने वाली शादी की फिर से शुभकामनाये :-)
फिर से होने वाली शादी
Deleteye kya chakkar hai Neeraj bhai
धन्यवाद सर जी...
DeleteExcellent post good photos. Thanks for sharing.
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
DeleteBhai jo photo khud kheechi usper tho apna naam theek hai.. lekin kya abhi bhi apni photos TIMER laga ke he kheechte ho???
ReplyDeletematlab jisne kheechi usae credit milna chahiye.. :-)
सर जी, मिलना चाहिये लेकिन एडिटिंग करते समय ध्यान नहीं रहता। सभी फोटो पर नाम कॉपी-पेस्ट करता जाता हूं और सब पर अपना ही नाम छप जाता है। वैसे इस बार ऐसा एक ही फोटो है।
DeleteGreat journey & good experience
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई...
Deleteनीरज भाई
ReplyDeleteहमेश की तरह बहुत अच्छी पोस्ट दिल खुश हो गया
और जहा तक बात है हमारी बहु की वो आने वाले समय की आपसे बेहतर फोटोग्राफर है
ईश्वर आप दोनों पर अपना आशीर्वाद बनाये रखे
हां जी, बिल्कुल।
Deleteनीरज भाई जी आपकी यात्रा के ब्लॉग पढ़कर अपनी किस्मत पर नाराज़गी होती लेकिन बहुत अच्छा लगता है आपके ब्लॉग से हम घर बैठे ही घूम लेते है
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश जी...
Deleteburansh ke phol aap dono ke
ReplyDeleteswagat me bikhre hai aur photo ka to
kya khana
हमारे स्वागत में बिखरे हैं, वो तो ठीक है। लेकिन हम न होते, तब भी बिखरते। इस मौसम में पूरा हिमालय बुरांश से ढका होता है।
Deleteen phoolo ki chatni bhi banti hai, bahut tasty
Deleteअरे वाह!!गज़ब! मज़ा आ गया भाई !
ReplyDeleteधन्यवाद भाई...
Deletegood job
ReplyDeleteथैंक्स...
Deleteनिशा की स्माईल देखकर लगता है उसे अच्छा लग रहा है घुमक्कड के साथ घुमक्कडी करना
ReplyDeleteलगता है वो भी हमेशा से ही ऐसा ही चाहती थी
शुभकामनायें आप दोनों को
हां अमित भाई... वो भी यही चाहती थी...
Deleteआप दोनों की घुमक्कडी आगे चलकर इतिहास का पन्ना नही कीताब बनेगी
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteसचमुच अद्भुत है हिमालय . पिछले साल सिक्किम जाने का अवसर मिला था तब पहाड़ी मनोरम लेकिन संकरे और ऊँचे घुमावदार रास्तों में मन चकरा गया था लेकिन इनके मुकाबले वे कुछ नहीं . आप दोनों का उत्साह और साहस ऐसा ही बना रहे .आप न केवल खुद आनंद ले रहे है ( कठिनाइयां भी है ) बल्कि हमें भी उस आनंद को बाँट रहे हैं .
ReplyDeleteधन्यवाद गिरिजा जी... आपका आशीर्वाद यूं ही बना रहे...
DeleteNew Series Start here and the name is
ReplyDeleteMAN WOMEN GUMMAKRI
जितना आनन्द तुम दोनों को घूमने में आता है उससे ज्यादा हमको पढ़ने में आता है। क्योकि हम वो परेशानियो से मुक्त रहते है जिससे तुम लोग दो चार होते हो ।जेसे भूखे यात्रा करना ....
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