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चन्द्रखनी दर्रा- बेपनाह खूबसूरती

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अगले दिन यानी 19 जून को सुबह आठ बजे चल पडे। आज जहां हम रुके थे, यहां हमें कल ही आ जाना था और आज दर्रा पार करके मलाणा गांव में रुकना था लेकिन हम पूरे एक दिन की देरी से चल रहे थे। इसका मतलब था कि आज शाम तक हमें दर्रा पार करके मलाणा होते हुए जरी पहुंच जाना है। जरी से कुल्लू की बस मिलेगी और कुल्लू से दिल्ली की।
अब चढाई ज्यादा नहीं थी। दर्रा सामने दिख रहा था। वे दम्पत्ति भी हमारे साथ ही चल रहे थे। कुछ आगे जाने पर थोडी बर्फ भी मिली। अक्सर जून के दिनों में 3600 मीटर की किसी भी ऊंचाई पर बर्फ नहीं होती। चन्द्रखनी दर्रा 3640 मीटर की ऊंचाई पर है जहां हम दस बजे पहुंचे। मलाणा घाटी की तरफ देखा तो अत्यधिक ढलान ने होश उडा दिये।
चन्द्रखनी दर्रा बेहद खूबसूरत दर्रा है। यह एक काफी लम्बा और अपेक्षाकृत कम चौडा मैदान है। जून में जब बर्फ पिघल जाती है तो फूल खिलने लगते हैं। जमीन पर ये रंग-बिरंगे फूल और चारों ओर बर्फीली चोटियां... सोचिये कैसा लगता होगा? और हां, आज मौसम बिल्कुल साफ था। जितनी दूर तक निगाह जा सकती थी, जा रही थी। धूप में हाथ फैलाकर घास पर लेटना और आसमान की तरफ देखना... आहाहाहा! अनुभव करने के लिये तो आपको वहां जाना ही पडेगा।

मलाणा घाटी में मलाणा गांव से भी आगे एक जगह है नगरोणी। यह कोई गांव नहीं है, बस जगह का नाम है। वहां जाने के लिये राशन और टैंट-स्लीपिंग बैग साथ ले जाने पडते हैं। खूबसूरत जगह ही होगी। उसका एक रास्ता यहां चन्द्रखनी से भी जाता है। मलाणा के लिये नीचे उतरना शुरू कर दो, नगरोणी के लिये सीधे चलते जाओ। उस दिल्ली वाले परिवार को आज नगरोणी ही जाना था। हमारे पास समय नहीं था, इसलिये हमें मलाणा जाना पडेगा।
दर्रे से करीब एक किलोमीटर दूर वो जगह आती है जहां पगडण्डियों का तिराहा है। नगरोणी का रास्ता यहीं से अलग होता है। मलाणा की तरफ भयंकर ढलान शुरू हो जाती है। यह ढलान धीरे धीरे भयंकरतर और भयंकरतम होती जाती है। खडे खडे ही बजरियों पर नीचे फिसलने लगते हैं। नीचे बिल्कुल पाताल लोक तक देखने पर भी ढलान का अन्त नहीं दिख रहा था। बहुत नीचे मलाणा नाला नन्हीं सी लकीर की तरह दिखाई देता है। यह वाकई रोंगटे खडे कर देने वाला नजारा था।
मधुर चीखने में माहिर था। जब कभी किसी को आवाज लगानी होती थी तो हम मधुर को ही कहते थे। वह ज्यादा फ्रीक्वेंसी वाली आवाज में बडा तेज चीखता था। यहां ढलान पर उसने चीखना शुरू कर दिया- हेलो... हेलो...। उसकी देखा-देखी अशोक व सुरेन्द्र भी शुरू हो गये। आगे नीचे कुछ स्थानीय लोग जा रहे थे। आवाज सुनकर उन्होंने पीछे मुडकर देखा। मैंने मना किया तो बोले कि हम एंजोय कर रहे हैं। मैंने कहा कि ऐसी खतरनाक जगह पर हेलो, हेलो चीखने का एक ही मतलब होता है कि तुम किसी मुसीबत में हो और बचाव के लिये किसी को बुला रहे हो। आगे कुछ लोग जा रहे हैं, अगर वे आ गये तो क्या कहोगे? मधुर ने कहा कि कह देंगे कि हमने तुम्हें बुलाया ही नहीं।
यह एक नम्बर की घटिया हरकत थी। आनन्द ही मनाना था तो ऊपर दर्रे पर मनाते, चीखते, नाचते, गाते। यहां क्या तुक है? और वो भी हेलो, हेलो बोलना। फिर भी नहीं माने तो मैंने चेतावनी दी- देखो, मैं क्रोधित हो जाऊंगा। बस, समझदार थे, मान गये। नहीं तो नासमझ लोग आनन्द मनाने के बहाने चीखना और शोर-शराबा करना ही जानते हैं।
यह बडी जानलेवा उतराई थी। मुझे नहीं पता था कि मलाणा गांव कितनी ऊंचाई पर है, इसलिये दूरी का अन्दाजा लगाना असम्भव था। नीचे नदी भी दिख रही थी लेकिन एक घण्टे बाद, दो घण्टे बाद भी वह उतनी ही नीचे थी। रास्ता एक बरसाती नाले से होकर था जिसमें अब बिल्कुल भी पानी नहीं था। बडे बडे पत्थर और झाडियां ही बस। बरसात में जब इसमें पानी आता होगा तो कई बार लोगों के बिल्कुल सिर पर भी गिर जाता होगा। हम यह सोचकर हैरान थे कि इसमें पानी कितनी तेजी से बहता होगा।
लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान तब हुए जब नीचे से दो लोगों को आते देखा। जहां उतरना ही इतना खतरनाक है, वहां ऊपर चढना तो और भी खतरनाक था। ये दोनों विदेशी थे- एक महिला, एक पुरुष। पसीने से लथपथ और आंखें-मुंह लाल। पता नहीं यह लाल चढाई व गर्मी की वजह से थी या ये मलाणा से चरस का सुट्टा मारकर आये हैं। कुछ देर बाद एक लडकी और मिली। बुरी हालत थी। यह मुम्बई की थी। मेरे मुंह से एकदम निकला- किसी ने मना नहीं किया इधर से आने को? बोली कि क्या कोई और भी रास्ता है चन्द्रखनी जाने का? हमने बताया कि उधर मनाली की तरफ से है। बिल्कुल प्लेन है, सीधा रास्ता, ज्यादा चढाई नहीं है। बेचारी गालियां देने लगी अपने ‘गाइड’ को जो अभी बहुत नीचे था। मैंने पूछा कि मलाणा में चरस का सुट्टा नहीं लगाया? उसने मना कर दिया।
दो घण्टे तक अनवरत उतरने के बाद एक छोटी सी समतल जगह मिली। यह चट्टान की आड में एक गुफा थी। यहां बकरियों की खूब लीद पडी थी। यहां हमें वे दिल्ली वाले दम्पत्ति मिले। हमसे कुछ ही आगे आगे वे उतर रहे थे। उनकी भी हालत बडी खराब थी। जब पूछा कि आप तो उधर नगरोणी की तरफ जाने वाले थे तो बोले कि इधर ही आ गये। भूख लग आई थी और अभी भी मलाणा का कोई नामो निशान नहीं दिख रहा था। बिस्कुट का एक पैकेट बचा था। मन तो था कि निगाह बचाकर अकेला ही खा जाऊं लेकिन मिल-बांटकर खाना पडा। पानी सभी के पास समाप्त हो गया था।
पन्द्रह मिनट रुककर फिर चल पडे। यहां से निकलते ही इतनी तीखी ढलान पर छोटे छोटे खेत दिखने लगे। आस बंधी कि मलाणा आने ही वाला है लेकिन जालिम ने फिर भी पौन घण्टा लगा दिया आने में।


ब्यास घाटी की ओर का नजारा




चन्द्रखनी दर्रा हिमालय के सुन्दरतम दर्रों में से एक है।














दर्रों पर स्थानीय लोग झण्डियां व पत्थर रख देते हैं।




चन्द्रखनी के बाद ढलान है।


यहां से सीधे नीचे उतरना है। कल्पना कीजिये एक बार।




ऊपर बायें कोने में मेरे तीनों साथी धीरे धीरे नीचे उतरते दिख रहे हैं।


टिप्पणियां करने में कंजूसी ठीक नहीं।


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Comments

  1. Great adventure.Very beautiful pics.Keep it up.

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. चंद्रखनी दर्रा "सही में स्वर्ग का एहसास"

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  3. कितनी सुन्दरता पर कैसी-कैसी भयावह स्थितियों को पार करने का बाद !आप लोग सुरक्षित रहें और यों ही दुर्लभ घाटियों और वन्य-प्रान्तों के अपने अनुभव बाँटते रहें - इन यात्राओं का सरस -विस्मित वर्णन और सुरम्य प्रकृति का प्रस्तुतीकरण (चित्रों में ) आनन्दित कर देता हैं - आपका आभार !

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    1. उत्साहवर्द्धन के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  4. malana dekhen k liye utsuk

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  5. भाई जगह तो शानदार,जानदार है ही पर आपके फोटो लेने के नजरीये भी काबिलेतारिफ है..बहुत सुन्दर,बढिया,जितने ओर तारिफ के शब्द है वो सब इस पोस्ट के फोटो के लिए...

    वैसे भाई पानी पीने के लिए ही खत्म हुआ था या सुबह के नित्यक्रम के लिए भी..

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    1. कौन सा सुबह का नित्यक्रम भाई? अच्छा वो...? उसके लिये पत्थर और घास काफी थी। :D

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  6. नीरज जी , ईश्वर आपके साहस और शक्ति को ऐसे ही अक्षुण्ण बनाए रखे । गज़ब की जगह है यह । उतने ही खूबसूरत चित्र । आपके वृत्तान्त पढ़ते हुए अद्भुत रस का सा अनुभव होता है । इन जगहों पर इस जन्म में तो जाने की कल्पना भी नही हो सकती पर आपके माध्यम से बखूबी देख सकते हैं ..।आभार ..

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    1. गिरिजा जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  7. Neeraj bhai...
    Wakai me hum v romanch mehsus kar rahe hai is bepnaha khaubsurti ko dekh kar...behad umda pic....
    Ranjit...

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    1. रणजीत जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  8. बहुत सुन्दर है दर्रा। आप को सैर करवाने के लिये धन्यवाद

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    1. ज्ञानी जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  9. itni sunder jagah shayad hi kabhi dekhi hai. aap aakhir malana pahunchne hi wale hain ,jaisa ki apne manikaran yatra me socha tha.

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  10. Unbelievable. Great tour. Koi shabd nahii hain kahne ke liyee. Thanx neeraj bhai. Agar aap na hote to hum log kabhi is darre tak pahunch nahi paate thanx

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  11. बेहतरीन और खूबसूरत नजारे, आपका धन्यवाद इन नजारों के दर्शन कराने के लिये| इस ढ़लान पर चलने के बाद आपको अब रुद्रनाथ से अनुसूइया की ढ़लान बस मजाक लगेगी | ऐसी खूबसूरत जगह ही तो असल शांती की प्राप्ती होती है और यहाँ पे चीखना गलत बात, इसपे तो नाराज होना बनता ही है |

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  12. NEERAJ BABU............BAHUT SUNDAR ...........

    KEEP IT UP..................

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  13. खूसबूरत।।

    फूलों की तसवीरें यकीनन शानदार आई हैं। लगता है कैमरे तथा फोटोग्राफी पर आपकी कोई पोस्‍ट मुझसे छूट गई है और अगर आपने लिखी ही नहीं है तो लिखें क्‍योंकि तस्‍वीरों के तकनीकी पेरामीटर क्‍या हैं पता लगेगा। ये इसलिए कि तस्‍वीर वाकई पेशेवर गुणवत्‍ता की हैं।

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  14. Bahut khoobsurat jagah hai Neeraj bhai.sachmuch swarg ke saman.Aisi jagah ghumane ke liye bahut bahut dhanyawad.

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  15. नागरौनी बहुत ही idyllic spot है. यूथ होस्टल का कैम्प वहां लगता है. मलाना गाँव से थोडा ही ऊपर है.

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  16. हमेशा की तरह बहुत ही बढ़िया। 6 नंबर का फोटो काफी शानदार है।
    घूमते रहिए घुमाते रहिए।

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  17. ज़िन्दगी का भरपूर लुत्फ़ इसी तरह उठाते रहो भाई। मन में हौंसला और पैरों में ताकत हमेशा बनी रहे और ऐसे नायाब चित्र मय वर्णन हमें आनंदित करते रहें।

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  18. और मैं तो चाहता हूँ कि आपको जीवन साथी भी ऐसा घनघोर घुमक्कड़ मिले … वो मुंबई वाली आपने मिस कर दी। ... खैर क्या पता कि कब और कौन ऐसी चढ़ाइयों और उतराईयों में आपसे सहारे के लिए हाथ मांग ले … :)

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  19. Aapke sath hum bhi ghoom lete hai

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  20. जाट जी आपका श्रीखंड महादेव वृत्तान्त पढ़कर मैंने भी इस वर्ष अकेले श्रीखंड यात्रा करने का मन बनाया. खैर रोते रोते दर्शन तो हो गए पर मौसम इतना खराब हो गया था की भिमबही ग्लेशियर के पास मेरे सामने ही दो मौतें हो गई, और खुद मेरी जान के लाले पड़ गए-- बारिश बर्फीला तूफ़ान, कोहरा. कुछ लोग भीमबही के पास बीमार भी पड़ गए, जिन्हें नेपाली पोर्टर कंधे पर उठा कर निचे भीमद्वार ले गए. गनीमत यह रही की मुझे किसी की सहायता नहीं लेनी पड़ी. वैसे प्रशासन लोगों को आगे जाने से रोकने के लिए एनाउंस करवा रहा था पर कौन मनाता है? उस दिन से इस वर्ष की यात्रा वहीँ समाप्त कर दी गई. लोमहर्षक अनुभव रहा.

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  21. VERY VERY INTERESTING ARTICLE AND BEAUTIFUL PHOTOS.

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  22. आश्चर्य जनक और रोंगटे खड़े होने वाली तो तेरी यात्रा होती ही है नीरज -- और थलान भी ऐसी कई गुजारी है तूने --- पर यह यात्रा बहुत ही सुन्दर है-- स्पेशल हिमालय के सुन्दर नज़ारे देखने काबिल है -- ये नज़ारे तो नंगी आँखों से देखो तो कमाल के साथ -साथ जीवन सार्थक हो जाता है --पर कैमरे की आँख ने भी खूबसूरती बरक़रार रखी है --क्या मलाणा अब भी दुनियाँ की नजरो में एक पहेली है ---वहां के बारे में विस्तार से बताना --

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  23. नीरज भाई तुम्हारी जीवटता से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ. जिस तरह बेखौफ होकर ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्राये करते हो वाकई तारीफ़ के काबिल है. बस यही शुभकामनाये है कि खुद भी ऐसे ही घूमते रहिये और हमें भी घुमाते रहिये......... एक बात और जॉब करते हुए आप इन सब यात्राओं के लिए इतना समय कैसे निकाल पाते हो.

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  24. शानदार चित्रों के साथ रोमांचक यात्रा से भरी पोस्ट... :)

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  25. अति सुंदर यात्रा वृत्तांत....मनोहारी तस्वीरें...वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्

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