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मलाणा समुद्र तल से 2685 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक काफी बडा गांव है। यहां आने से पहले मैं इसकी बडी इज्जत करता था लेकिन अब मेरे विचार पूरी तरह बदल गये हैं। मलाणा के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां प्राचीन काल से ही प्रजातन्त्र चलता आ रहा है। कहते हैं कि जब सिकन्दर भारत से वापस जाने लगा तो उसके सैनिक लम्बे समय से युद्ध करते-करते थक चुके थे। सिकन्दर के मरने पर या मरने से पहले कुछ सैनिक इधर आ गये और यहीं बस गये। इनकी भाषा भी आसपास के अन्य गांवों से बिल्कुल अलग है।
एक और कथा है कि जमलू ऋषि ने इस गांव की स्थापना की और रहन-सहन के नियम-कायदे बनाये। प्रजातन्त्र भी इन्हीं के द्वारा बनाया गया है। आप गूगल पर Malana या मलाणा या मलाना ढूंढो, आपको जितने भी लेख मिलेंगे, इस गांव की तारीफ करते हुए ही मिलेंगे। लेकिन मैं यहां की तारीफ कतई नहीं करूंगा। इसमें हिमालयी तहजीब बिल्कुल भी नहीं है। कश्मीर जो सुलग रहा है, वहां आप कश्मीरी आतंकवादियों से मिलोगे तो भी आपको मेहमान नवाजी देखने को मिलेगी लेकिन हिमाचल के कुल्लू जिले के इस दुर्गम गांव में मेहमान नवाजी नाम की कोई प्रथा दूर-दूर तक नहीं है। ग्रामीणों की निगाह केवल आपकी हरकतों पर रहेंगी और मामूली सी लापरवाही आपकी जेब पर भारी पड जायेगी।
कुल्लू के अन्य गांवों की तरह यहां भी घर लकडी के बनाये जाते हैं। गांव के बीच में जमलू का मन्दिर है। और भी कई दूसरे मन्दिर हैं। यहां गैर-मलाणियों को अछूत माना जाता है। उन्हें गांव में केवल निर्धारित पथ पर ही चलना होता है। यदि आपने किसी देवस्थान या घर को स्पर्श कर लिया तो आपकी खैर नहीं। पूरा गांव एक नम्बर का निकम्मा है। निकम्मों की जमात हर घर के सामने बैठी रहती है और आने-जाने वालों पर निगाह रखती है। आपके किसी इमारत को छूने भर से ही आप पर प्रथम दृश्ट्या 2500 रुपये का जुर्माना लग जायेगा। वो तो अच्छा है कि हर घर पर तख्ती टंगी है कि छूना मना है, छूने पर 2500 रुपये का जुर्माना लगेगा। जमलू मन्दिर के बाहर तो फोटो खींचने की भी मनाही लिखी दिखी।
यह छुआछूत की बुराई तो कुछ भी नहीं। असल बुराई तो कुछ और है। यहां चरस और अफीम की खेती होती है। चरस की कीमत बाजार में कितनी है, इसे हर मलाणी जानता है। इसे यहां मलाणा क्रीम कहते हैं। आपको कदम कदम पर टोका जायेगा कि क्रीम चाहिये क्या। यहां चरस उगाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। हालांकि मलाणा से बाहर ले जाने पर प्रतिबन्ध है। लेकिन मलाणा क्रीम आसानी से अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में पहुंच जाती है। यहां की चरस अच्छी गुणवत्ता वाली मानी जाती है, इसलिये ज्यादा महंगी भी है।
अच्छी खासी खेती होती है और हर खेत में नशा ही उगाया जाता है। जिसके पास जमीन ज्यादा, उसकी आमदनी भी ज्यादा। लालच का आलम यह है कि अभी जिस खतरनाक रास्ते से हम आये हैं, जहां खडे होने की भी जगह नहीं मिलती है, वहां भी फुट फुट भर के खेत बना रखे हैं। हालांकि सरकार चरस की खेती को हतोत्साहित कर रही है और मलाणियों को फ्री में गेहूं आदि के बीज बांट रही है लेकिन कौन अपने लाखों के कारोबार को छोडकर गेहूं उगायेगा?
मलाणा से कुछ दूर एक और गांव है रसोल। पता नहीं चरस वहां भी पैदा होती है या नहीं। मुझे यकीन है कि होती होगी। मलाणी केवल रसोल में ही विवाह सम्बन्ध बनाते हैं और रसोल वाले केवल मलाणा में। हजारों सालों से ऐसा ही होता आ रहा है। आपस में ही शादी-ब्याह। निश्चित रूप से आनुवांशिक बीमारियां पैदा हो गई होंगी।
गांव के बाहर कुछ रेस्ट हाउस बने हैं, जो निःसन्देह मलाणियों के ही हैं। यहां कोल्ड ड्रिंक से लेकर भारतीय, चाईनीज, इटैलियन, कॉंटिनेंटल, ये, वो, सब तरह का खाना मिलता है। रुकने को कमरे भी। भारतीयों से ज्यादा विदेशी यहां आते हैं। 99 प्रतिशत लोग नशेडी होते हैं। चरस को देश से बाहर ले जाने का सारा काम भी विदेशियों पर ही है। इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं कसोल के इजराइली। कसोल पूरी तरह इजराइलियों की बस्ती है। जी हां, वही कसोल जो मणिकर्ण से तीन-चार किलोमीटर पहले पडता है। कसोल मलाणा क्रीम की मण्डी है।
मलाणा से मलाणा नाला ज्यादा दूर नहीं है। उस तरफ सडक है। गांव से सडक की दूरी करीब ढाई-तीन किलोमीटर है। ये ढाई-तीन किलोमीटर जबरदस्त चढाई भरे हैं। नशेडियों को यहां पहुंचने के लिये खूब पसीना बहाना पडता है लेकिन उसके बाद जो उन्हें मिलता है, वो उनके लिये ज्यादा कीमती है। मलाणा नशेडियों का मक्का है। ये नशेडी जब मलाणा घूमकर वापस लौटते हैं तो इसके गुण तो गायेंगे ही। इंटरनेट पर जो भी कुछ इसकी शान में लिखा गया है, सब नशेडियों ने ही लिखा है।
भयंकर गन्दगी है यहां। न लोग साफ, न ही उनके घर व गलियां। जरुरत भी क्या है? बैठे बिठाये लाखों में खेलते हैं। अब प्रशासन को चाहिये कि मलाणा के साथ सख्ती से पेश आये। अब इन्हें गेहूं के बीज बांटना बन्द करके इनकी चरस पर ही चोट करनी चाहिये। खडी फसल को बर्बाद करते रहना चाहिये। आने-जाने वालों पर कडी नजर रखी जाये और उनकी नियमित कठोर जांच की जाये। जमलू मन्दिर को अपने नियन्त्रण में ले लेना चाहिये। हालांकि कोई हिमाचली ऐसा नहीं कर सकेगा, इसके लिये बाहर से भी बुलाया जा सकता है। इससे मलाणियों में छुआछूत की भावना कम होगी। क्रोधित होकर जमलू अगर तांडव कर दे तो उसे भी सबक सिखाया जा सकता है।
मलाणा वास्तव में हिमाचल और आखिरकार भारत पर एक कलंक है। अपनी विलक्षण संस्कृति होना ठीक है लेकिन नशा किसी भी हालत में ठीक नहीं है।
कुल्लू से रोज यहां एक बस आती है। बाकी सारा आवागमन टैक्सियों से होता है। जरी जाने के लिये 800 रुपये में एक गाडी बुक की। ड्राइवर जरी का रहने वाला था। खफा था वो भी मलाणियों से। पूरे रास्ते इनकी आलोचना ही करता रहा।
मलाणा नाले पर एक बांध बना है और उसका पानी सुरंगों से होकर जरी के पास पावर प्लांट में जाता है। एक और बांध और भी आगे बनाया जा रहा है। यह सडक उस नये बांध तक सामान ले जाने के लिये ही बनाई गई है। लेकिन सडक बनने से पहले पुराने बांध से नये बांध तक सामान पहुंचाने के लिये रज्जु-मार्ग का प्रयोग किया जाता था। यह रज्जु मार्ग अब भी है और इसकी तारों पर जगह-जगह ट्रालियां लटकी हैं। अब यह रज्जु-मार्ग बन्द है।
जरी से हमें कुल्लू की बस मिल गई। लेकिन भून्तर के पास इसमें पंक्चर हो गया। पंक्चर ठीक कराकर आगे बढे तो जाम लगा मिला। ड्राइवर ने बस तुरन्त वापस मोड ली और ब्यास के बायें किनारे पर बनी सडक से कुल्लू पहुंच गया। भून्तर से मनाली तक ब्यास के दोनों तरफ सडकें हैं। मुख्य सडक दाहिनी तरफ वाली है। बायीं तरफ वाली मुख्य नहीं है इसलिये ट्रैफिक नहीं होता।
हम तीन दिनों से पैदल चल रहे थे, थक गये थे। इसलिये हम चाहते थे कि दिल्ली किसी वोल्वो बस से ही जायेंगे। लेकिन जब काउंटर पर जाकर पता किया तो वोल्वो तो क्या, साधारण बस के भी लाले पड गये। अगले एक सप्ताह तक सभी बसें पूरी तरह भरी हैं। यह जून का महीना था और सभी लोग छुट्टियां मनाने मनाली जाते हैं। हिमाचल की बसों में ऑनलाइन बुकिंग होती है तो बसें पहले ही भर जाती हैं।
अब क्या करें? काउंटर वाले ने बताया कि कोई हरियाणा की बस आयेगी तो उसमें चले जाना। हरियाणा की बसों में पहले से बुकिंग नहीं होती। जाओ और किसी भी खाली सीट पर बैठ जाओ। थोडा घूमे-फिर तो पता चला कि कम से कम सौ सवा सौ यात्री किसी हरियाणा की बस की प्रतीक्षा में हैं। बढिया भीड थी। अशोक ने कहा कि हममें से जो भी कोई पहले बस में चढेगा, वो बाकियों के लिये सीट घेर लेगा। लेकिन मैंने कहा- मनाली में भी ऐसा ही हाल हो रहा होगा भीड का। यहां जो भी बस आयेगी, वो मनाली से ही आयेगी। जाहिर है कि भरी ही होगी। अगर बस कुल्लू से पहले ही पूरी भर गई तो हरियाणा वाले बस को यहां नहीं लायेंगे, बाईपास से निकाल ले जायेंगे। फिर भी अगर कोई बस अगर आ भी गई तो उसमें इक्का-दुक्का सीटें ही होंगी या फिर एक सीट यहां, एक सीट वहां। एक आदमी चार सीटें नहीं घेर सकता। सभी अपनी-अपनी सीटों के लिये स्वयं जिम्मेदार होंगे।
तभी हरियाणा की एक बस आती दिखी। भीड टूट पडी। कुछ ही सीटें खाली थीं। हमने हालात का सटीक पूर्वानुमान लगाया था और प्रवेश द्वार के पास ही खडे हो गये थे, इसलिये चारों को सीटें मिल गईं।
समाप्त।
चन्द्रखनी ट्रेक
1. चन्द्रखनी दर्रे की ओर- दिल्ली से नग्गर
2. रोरिक आर्ट गैलरी, नग्गर
3. चन्द्रखनी ट्रेक- रूमसू गांव
4. चन्द्रखनी ट्रेक- पहली रात
5. चन्द्रखनी दर्रे के और नजदीक
6. चन्द्रखनी दर्रा- बेपनाह खूबसूरती
7. मलाणा- नशेडियों का गांव
pahli bar aap se himalay k kisi jagah ki burai suni h to jahir h vo jagah mtlb vanha k log kitne gye gujre honge jo itni khubsurat jagah ka satyanash kr rkha h,
ReplyDeleteand wish u a vry happy diwali
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ReplyDeleteमैं खुद इस कसोल क्षेत्र में कई सालों से घूमता रहा हूँ. कसोल में पड़े रहने वाले विदेशी यहूदी ज्यादा हैं, ये मुख्यतः इसराइली, यूरोपियन और रशियन हैं. इन्ही ने गोवा के रस्ते हिमालयी चरस का अंतरराष्ट्रीय कारोबार संभाला हुआ है. इन यहूदियों ने और भी उंचाई पर चरस के सबसे बेहतरीन खेत कब्ज़ा किये हुए हैं. करोड़ों डॉलर का नशा गोवा के रस्ते दुनिया भर में पहुंचाया जाता है. गोवा ड्रग्स की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय मंडी है, जो कसोल घाटी की तरह यहूदी माफिया के कब्ज़े में है.
ReplyDeleteइन यहूदियों के कारण सरकार चाह कर भी कोई कडा एक्शन नहीं ले पाती. क्योंकि यहूदी इतने ताकतवर और कमीने हैं की उन्हे नाराज करने का मतलब अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी मोल लेना है, वर्ना मलानियों की कोई औकात है? आप JEWISH RUSSIAN MAFIA इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो इनके खतरनाक यहूदी नेटवर्क के बारे में हैरतअंगेज़ जानकारियां मिलेंगी.
नीरज भाई नमस्कार ,आपको और आपके सभी पाठको को दीपवली की हार्दिक शुभकामनाए ,मलाणा के बारे मे आपने एक पुरानी पोस्ट मे भी जिक्र किया था, लेकिन वहाँ इतनी विस्तृत जानकारी नही थी। आपकी इस पोस्ट को पढ़कर दुःख और आश्चर्य दोनों को अनुभव कर रहा हु ,कि आज के आधुनिक और सभ्य समाज मे भी रूढ़िवादी विचारधारा वाला गांव भारत मे है। मै ये नही समझ पा रहा हु कि इस गांव को नशे का कारोबार करने की छूट सरकार ने क्यों दी हुई है। अगर भारत सरकार यहूदी स्मगलरो के दबाव मे कुछ नही करती तो ये तो और भी अधिक दुर्भाग्य की बात है।
ReplyDeleteGood one , Neeraj bhai aapke blog se yuva O ko nasha nahi karne ki prerna milti he . Aaj fir aap hamare dil me MODI ban gaye .
ReplyDeleteNeeraj bhai.....
ReplyDeleteEk baat samaj me nahi aati hai..aakir sarkar ine itni riyayat keo de rahi hai...jabki india me iski kheti pratibandhit hai.....waise malana k bare me behtar jankari mili ....thanks..
Happy diwali...
Ranjit..
Neeraj bhai.....
ReplyDeleteEk baat samaj me nahi aati hai..aakir sarkar ine itni riyayat keo de rahi hai...jabki india me iski kheti pratibandhit hai.....waise malana k bare me behtar jankari mili ....thanks..
Happy diwali...
Ranjit..
मुझे याद आया, इस नाम का उल्लेख किसी हॉलीवुड फ़िल्म में था
ReplyDeleteजानकारी सचमुच पहली बार पढी
आभार आपका
नीरज भाई दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं,
ReplyDeleteहिमाचल का एक अलग ही रूप के दर्शन हुए,नशेडियो की दुनियां
महत्वपूर्ण जानकारी।प्रशाशन न जाने क्यों आँख कान बंद किये रहता है।
ReplyDeleteसरकार की जानकारी में नहीं हो ऐसा तो सम्भव नहीं लगता,मगर हो सकता है किसी तरह की मजबूरी हो। आपका वर्णन बहुत सुन्दर और सराहनीय है। आपको और आपके समस्त पाठकों को दीपावली की बधाई और शुभ कामनीऐं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन तथा चित्रण नीरज जी,
ReplyDeleteनिश्चित रूप से शासन को सारी जानकारी होगी, लेकिन सरकारी कामकाज के हाल हर जगह एक जैसे हैं। हमारे करीब ही राजस्थान की सीमा से लगे शहर हैं नीमच तथा मन्दसौर जिनके आसपास के गावों में अफीम की बेतहाशा खेती गैरकानूनी ढंग से होती है लेकिन शासन कुछ नहीं कर पाता। मंदसौर के पास एक ढोढर नाम का गांव है जहाँ बांछड़ा नामक एक जाति की बहुलता है, इस गांव का मुख्य रोजगार वेश्यावृत्ति है तथा इस यहाँ की बेटियाँ, बहुएँ तथा औरतें सदियों से वेश्यावृति का ही काम करती हैं. गांव के आदमी कोई काम नहीं करते, अपनी बहनों तथा बीवियों के लिए ग्राहक तलाश करके लाना तथा बाकी समय दारू पीकर पड़े रहना ही इनकी रोजमर्रा की जिंदगी है. शादियाँ सिर्फ घर के लड़कों की होती है लड़कियों की नहीं, लड़कियों को तो बचपन से ही (१२-१३ वर्ष की उम्र से) जीवन भर के लिए पुरुषों का बोझ उठाने के लिए पुश्तैनी धंधे में धकेल दिया जाता है. स्थानीय पुलिस इनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाती क्योंकी पुलिस के ज्यादातर बाशिंदे खुद ही इनके मुफ्त के ग्राहक होते हैं।
नीरज जी आपके लेख महज यात्रा वृत्तांत ना होकर कई बार अति महत्वपूर्ना सामाजिक संदेश भी दे जाते हैं.....मुझे कई बार लगता है आपकी प्रेरक तथा साहसिक यात्राओं के लिए भारत शासन के द्वारा आपको सम्मानित करना चाहिए. मैं तो चाहता हूँ की विकिपीडिया पर भी आपका एक पेज हो. मैं आपको भारत का एक विशिष्ट व्यक्तित्व मानता हूँ........देखता हूँ कब मेरा ये सपना पूरा होता है ?
धन्यवाद.
मुकेशजी आपने सही कहा --- मैं खुद मन्दसौर ,मनासा और नीमच रही हूँ --वहां अफीम की खेती जोरदार होती है और उसके लिए सरकार ही पट्टे वितरीत करती है वहाँ के किसान सरकार के लिए ही अफीम पैदा करते है -- पर वहाँ अफ़ीम के अलावा दूसरी खेती भी होती है --
DeleteNeeraj ji......
ReplyDeleteDiwali ki hardik shubkamnaye.........
Akshat.....
घटिया गाँव की बढ़िया जानकारी। :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ---सारी जानकारी एक ही शब्द में निहित कर दी ---
DeleteVERY VERY INTERESTING ARTICLE AND BEAUTIFUL PHOTOS.
ReplyDeleteआश्चर्य गाँव है मलाणा --- आनुवांशिक बीमारियां क्या बला है ? क्यों घर छूने नहीं देते ? क्या तुमने उनमें से किसी से पूछा था ? क्या वहाँ हमारे देश का कानून नहीं चलता ? हमारे देश को वहां सख्ती से काम करना --मैंने टी वी पर एक सीरियल देखा था "पॉवडर " वहाँ की ही स्टोरी थी गाँव का नाम नहीं लिया था --पर आज तुम्हारी स्टोरी पढ़कर याद आया क्राईम ब्रॉन्च वाले मनाली से ही वहां जाते है उनकी जडे दिल्ली तक फैली हुई बताई गई थी --इस गाँव से नशे को ख़तम करना मामूली बात नहीं फिर भारत सरकार को विदेशी मुद्रा भी तो मिलती है ---पर मोदी सरकार को कुछ तो करना ही चाहिए ---
ReplyDeleteनीरज जी तुमने अपने शब्दों से मलाना कुरूपता को जीवंत कर दिया. एक अच्छा और सारगर्भित लेख पढ़कर मजा आ गया. एक बात समझ नहीं आई आपको प्रकृति का रसास्वादन करना पसंद है उसपर आप इतना अच्छा लिखते भी हो कहाँ इंजीनियरिंग लाइन में फंस गए................ :D
ReplyDeleteकहाँ गए भाई
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