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डायरी के पन्ने- 9

1 जुलाई, दिन सोमवार
1. कल दैनिक जागरण के यात्रा पेज पर अपना लेख छपा- चादर ट्रेक वाला। मार्च में भेजा था, तब से प्रतीक्षा थी कि अब छपे अब छपे। पूरे पेज पर बिना कांट-छांट के छापा गया। यह थी अच्छी बात। बुरी लगने वाली बात थी कि केवल दिल्ली में ही छपा। यूपी में नहीं छपा। बाकी कहां छपा कहां नहीं, पता नहीं।
2. प्रभात खबर में 26 मई को मेरा एक यात्रा सम्बन्धी लेख छपा था। उसके ऐवज में आज 1500 रुपये का चेक और उससे भी शानदार उस पृष्ठ की एक प्रति मिली। जब कभी लेख छपा था तो मुझे देर से पता चला और मैं अखबार नहीं खरीद सका था। मेरी निराशा जब बोकारो के मित्र अमन को पता चली तो उन्होंने अपने यहां से वह पृष्ठ भेज दिया। पृष्ठ मुझ तक पहुंचता, मैं साइकिल उठाकर लद्दाख के लिये निकल चुका था। लौटने पर उन्होंने पुनः इसे भेजा। तब से प्रतीक्षा जारी थी। आज जब कोरियर आया तो सबसे पहले अमन का ही ख्याल आया कि उन्होंने भेजा होगा। लेकिन चेक देखकर यह ख्याल गडबडा गया। तुरन्त अमन को फोन करके चेक के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि उन्होंने तो कोई चेक नहीं भेजा। बाद में लिफाफे पर निगाह गई जहां प्रभात खबर की मोहर लगी थी तो पता चला कि यह प्रभात खबर की कारगुजारी है।


2 जुलाई, दिन मंगलवार
1. बडा भयंकर उमस भरा मौसम है। बादल तो हैं लेकिन बरस नहीं रहे। इधर हमारा बुरा हाल है, पसीना नहीं सूख रहा। जब तक बारिश नहीं होगी, ऐसा ही होता रहेगा।
2. रात मुसलमानों ने तंग किये रखा। वैसे तो दस बजे के बाद लाउडस्पीकर बजाने पर प्रतिबन्ध है, लेकिन जैसे ही दस बजे, लाउडस्पीकर गूंज उठा। बराबर में मस्जिद है। यहां आज दिन में भी मक्का-मदीना और पीरों के नाम के गाने बज रहे थे, लेकिन रात को भी यह जारी रहेगा, पता नहीं था। मुझे संगीत अच्छा लगता है, दिनभर अच्छा ही लगता रहा, लेकिन रात को गैर-कानूनी तरीके से अत्यधिक ऊंची आवाज में अगर कितना भी प्यारा संगीत बजाया जाये, वो संगीत नहीं, शोर हो जाता है। शोर से नफरत है। बारह बजे के आसपास भाषणों का दौर शुरू हुआ। बडे बुरे तरीके से इस्लाम के पढे-लिखों ने भाषण दिये। चीख-चीख कर बिना रुके लगातार बोलते रहे। लगता कि जंग के लिये ललकार रहे हैं। पहले तो मैंने कोई ध्यान नहीं दिया, बाद में जब ध्यान दिया तो सुनाई पडा कि वे मुसलमानों को नशे से रोकने के प्रयास कर रहे हैं। नशे के शारीरिक व कुरानाई नुकसान बता रहे हैं। धन्य हो।
कुछ देर बाद कहने लगे- अल्लाह गरीबों को कभी नहीं सताता, अमीरों को ही सताता है। अभी कुछ दिन पहले एक जगह हजारों अमीर इकट्ठा थे। अल्लाह ने रात के समय उन पर पत्थर बरसाये, पानी बरसाया, ओले बरसाये, बर्फ बरसाई। भागने के रास्ते बन्द कर दिये। सारे के सारे अमीर उस कयामत में मारे गये। वहां कोई गरीब नहीं मरा।... वो बोलता रहा लेकिन यह सुनकर मैं हैरान रह गया। यह कह क्या रहा है? पढे-लिखे मुसलमान क्या ऐसे ही होते हैं? इशारा केदारनाथ की तरफ था। धिक्कार है।

3 जुलाई 2013, बुधवार
1. रात दस बजे ड्यूटी करके थका-हारा घर आया तो होश उड गये। आज फिर मस्जिद में कार्यक्रम है। हे अल्लाह! क्या हो गया तेरी इस मस्जिद को? दिन में अजान को छोडकर यहां से कोई आवाज नहीं आती, दो दिनों से तहलका मचा हुआ है। भाई, समझा अपने इन बन्दों को कि रात को उल्लू व गीदड बोला करते हैं। खैर, आज संगीत चल रहा है। कहीं से संगीतज्ञ आये हैं, अच्छा सुर है, तबला व हारमोनियम का संयोजन भी अच्छा है लेकिन आवाज हद से ज्यादा है। मैं इनसे कुछ दूर हूं, मुझे बहुत तेज आवाज सुनाई दे रही है, पास वालों का क्या हाल हो रहा होगा? एक और अच्छी बात यह हुई कि आज किसी ने भाषण नहीं दिया। अल्लाह सब जानता है। उसे पता है कि जाटराम को अच्छा संगीत पसन्द है, बेवकूफी भरा भाषण नहीं। तो आज देर रात तक अच्छा संगीत ही बजता रहा। एक महिला ने गाना शुरू किया, मुजफ्फरपुर की थी। उसकी आवाज उतनी अच्छी नहीं थी। मैंने सोचा कि कोई काला बुत होगी, बुर्के में कैद होगी लेकिन जब बालकनी में जाकर बाहर झांका तो हैरान रह गया। हरे लिबास में थी, सिर ढका हुआ था, मुंह ढका नहीं था, हाथ भी कोहनी तक ही ढके थे। श्रोताओं की अच्छी भीड थी।
अगर लाउडस्पीकर की आवाज थोडी सी कम कर लें और पूरी रात ये लोग गाते बजाते रहे, तो यह निश्चित है कि आज शानदार नींद आ जायेगी।
सुबह शाहदरा से पौने छह वाली ट्रेन पकडनी है। अगर सो गया तो नहीं पकड सकूंगा। अगर जगने की इच्छा है तो नींद पर मेरा अच्छा नियन्त्रण है। नाइट ड्यूटी न होने के बावजूद भी पूरी रात जग लूंगा। सुबह पांच बजे तक जगना आसान है, लेकिन पांच बजे उठना बहुत मुश्किल है। लद्दाख यात्रा वृत्तान्त लिखने का काम चल रहा है। फिर बाहर संगीत भी तो है। आधी रात बीतते बीतते वहां भक्ति रस से बदलकर श्रंगार रस बहने लगा। श्रोता अवश्य कम हुए हैं लेकिन मेरी उम्मीद से बहुत ज्यादा हैं। मस्जिद अच्छी तरह सजी हुई है। श्रंगार रस में वह महिला भी अच्छा गा रही है। श्रंगार रस हो और राधा कृष्ण न आयें, यह असम्भव है। मस्जिद के इस कार्यक्रम में राधा भी आईं, कृष्ण भी आये और मटकी भी फूटी। यही है संगीत की असली ताकत।
चार बजे सो गया।

4 जुलाई 2013, गुरूवार
1. सात बजे उठा। आज गांव जाना है, दादी की तेरहवीं है। हमेशा की तरह दिलशाद गार्डन तक मेट्रो से, मोहननगर तक ऑटो से, मेरठ तक बस से व आगे गांव तक सिटी बस से। ग्यारह बजे घर पहुंचा। हमारे ही यहां खाने-पीने का कार्यक्रम था।
हमारा बडा कुनबा है, ऐसे समय पर रिश्तेदार भी जमकर आते हैं। मैं पिछले सात सालों से बाहर ही रहता रहा हूं और उससे भी पहले किसी रिश्तेदारी में आना-जाना नहीं था, तो ज्यादातर के लिये मैं अजनबी था और मेरे लिये भी ज्यादातर अजनबी। इसी तरह के एक बुजुर्ग ने कहा कि बेटा, अब बखत हो गया है ब्याह का। मैंने अपना फैसला पिताजी और भाई को सुना रखा है। किसी और से मुझे कोई मतलब नहीं। मैंने कहा हां जी, हो जायेगा जल्दी ही। कहने लगे कि दिल्ली में रहता है तू। कोई छोरी तुझे पसन्द हो तो बता देना। किसी भी बिरादरी की हो, अब तो सब चलता है। उन बुजुर्ग के मुंह से यह सुनकर मुझे अचरज हुआ। वाकई जमाना बदल रहा है। मैं इस बदलाहट का जबरदस्त प्रशंसक हूं।
2. गांव में मेरी साइकिल यात्रा के बडे चर्चे हैं। पिताजी ने बता रखा है कि अठारह हजार की साइकिल है, लद्दाख तक चली गई। जो लद्दाख को जानते हैं, वे लद्दाख जाने से हैरान हैं और जिन्हें लद्दाख का कुछ नहीं पता, वे अठारह हजार की साइकिल से हैरान हैं। सभी साइकिल को देखना चाहते हैं।

5 जुलाई 2013, शुक्रवार
1. आज पिताजी और धीरज को बिलासपुर जाना है। धीरज की ‘सेल’ की लिखित परीक्षा है। मेरठ छावनी से बिलासपुर तक उनकी पक्की बर्थ है। घर में ताला लगाकर तीनों निकल पडे। स्टेशन से मैंने जनरल टिकट लिया। इस गाडी से गाजियाबाद तक जाऊंगा और उससे आगे किसी और गाडी से।
जनरल टिकट लेकर आरक्षित डिब्बे में यात्रा नहीं करनी चाहिये। इसलिये भीड होने के बावजूद भी मैं जनरल डिब्बे में लटक लिया। घण्टे भर की ही तो बात है। नये गाजियाबाद से आगे निकलकर जहां मुरादाबाद वाली लाइन आकर साथ साथ चलने लगती है तो देखा शहीद एक्सप्रेस आ रही है। तय कर लिया कि गाजियाबाद से आगे दिल्ली तक शहीद से ही जाना है।
गाजियाबाद में उत्कल को छोड दिया और शहीद पकड ली। दोनों के जनरल डिब्बों में अच्छी भीड थी लेकिन दोनों में अन्तर साफ दिख रहा था। शहीद शाहदरा नहीं रुकती, यमुना पुल पर भी नहीं रुकी, इसलिये दिल्ली जाना पडा। हालांकि टिकट भी दिल्ली तक का था।

6 जुलाई 2013, शनिवार
1. धीरज ने बताया कि ठीक समय पर उत्कल एक्सप्रेस बिलासपुर पहुंच गई। स्टेशन पर उन्हें कोई कमरा नहीं मिला और आसपास बाजार में भी नहीं। परीक्षार्थियों की बहुत ज्यादा भीड थी। कुछ देर बाद बताया कि स्टेशन पर हंगामा हो गया है। स्थानीय किसी यूनियन के कुछ लोग आये और परीक्षार्थियों को वापस लौटने व परीक्षा न देने के नारे लगाने लगे। आरपीएफ वालों ने परीक्षार्थियों को जबरदस्ती प्लेटफार्मों पर भेज दिया व कल तक वहां से न निकलने को कहा। धीरज व पिताजी उस समय प्रतीक्षालय में थे। मैंने हिदायत दी कि तुम बिल्कुल सुरक्षित हो, यहां से बाहर निकलने की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर कल तक भी मामला गर्म रहा तो परीक्षा देने की कोई जरुरत नहीं। अफवाह भी फैलने लगी थी कि ये नक्सली हैं। मैंने उन्हें निश्चिन्त किया कि बिलासपुर शहर में कोई डर नहीं है।
2. आज उन्हें बिलासपुर से चल देना है और सुबह जबलपुर पहुंचना है। बिलासपुर से सीधे दिल्ली की किसी भी गाडी में जगह नहीं मिली थी तो मैंने उन्हें पहले अमरकंटक एक्सप्रेस से जबलपुर पहुंचाया और पूरे दिन वहां मटरगश्ती करने के बाद शाम को महाकौशल से दिल्ली। जबलपुर में वे नैरो गेज की गाडी का मजा लेंगे और ग्वारीघाट में नर्मदे हर करेंगे।

7 जुलाई 2013, रविवार
1. एक पैसेंजर ट्रेन यात्रा करने का मन है। मेरा नये नये रूटों पर पैसेंजर ट्रेनों में घूमने का शौक है। साथ ही साथ मैं उस रूट पर पडने वाले सभी स्टेशनों के नाम व ऊंचाई नोट कर लेता हूं। उत्तर भारत का बहुत बडा हिस्सा मेरे इस नक्शे पर आ चुका है। दिल्ली से भोपाल के रास्ते मुम्बई भी जुड चुकी है। अब कोलकाता को जोडने का विचार है। इलाहाबाद तक पहुंच चुका हूं। समस्या इसके बाद आ रही है। इलाहाबाद से मुगलसराय के लिये एक पैसेंजर ट्रेन सुबह सात बजे चलती है। ग्यारह बजे मुगलसराय पहुंचती है। उसके बाद अगर गया रूट पर चलें तो पौने चार बजे पैसेंजर है, जो साढे छह बजे देहरी ऑन सोन तथा रात नौ बजे गया पहुंचती है। इसी तरह अगर पटना रूट पर जायें तो एक बजे बक्सर पैसेंजर है जो साढे चार बजे बक्सर पहुंचती है। फिर वहां से साढे छह बजे ट्रेन है जो रात ग्यारह बजे पटना पहुंचेगी। गया व पटना दोनों जगहों पर काफी रात होने पर पहुंचूंगा।
अब इसका विपरीत मामला देखा। गया से कोई खास मजा नहीं आ रहा जबकि पटना से इलाहाबाद तक ट्रेन यात्रा मिल रही है। सुबह पटना से चलकर बक्सर और मुगलसराय में ट्रेन बदलकर शाम आठ बजे तक इलाहाबाद पहुंचा जा सकता है। यही यात्रा पसन्द आ गई। आनन्द विहार से पटना तक 23 जुलाई का आरक्षण नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस से व इलाहाबाद से नई दिल्ली तक 24 जुलाई का आरक्षण शिवगंगा एक्सप्रेस से करा लिया। दोनों में बर्थ पक्की है।

9 जुलाई 2013, मंगलवार
1. महाकौशल एक्सप्रेस दो घण्टे विलम्ब से निजामुद्दीन पहुंची। पिताजी व धीरज सीधे शास्त्री पार्क आ गये। मेरी नाइट ड्यूटी थी। ज्यादातर तो उनके आने से पहले सो लिया, कुछ बाद में सोया।

10 जुलाई 2013, बुधवार
1. कुछ दिन पहले एक मित्र का लैपटॉप खराब हो गया था। मैंने देखा तो पाया कि हार्ड डिस्क काम नहीं कर रही है। उससे पहले मेरे लैपटॉप में भी यही समस्या आई थी। मैंने हार्ड डिस्क निकालकर कनेक्टर की साफ सफाई करके दोबारा लगाई तो आज तक चल रही है। सोचा कि वही थैरेपी इस पर भी आजमा लूं। लेकिन मित्र राजी नहीं हुए। कहने लगे कि तू बावला है। इसकी विण्डो में गडबड है, हार्ड डिस्क बिल्कुल ठीक है। उसने अपने घनिष्ठों को दिखाया। घनिष्ठ भी मित्र के अनुसार लैपटॉप के विशेषज्ञ हैं। घनिष्ठों ने घोषणा कर दी कि हार्ड डिस्क बिल्कुल ठीक है, विण्डो में गडबडी है। उन्होंने विण्डो रिपेयर करने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। आखिर में जब घनिष्ठों ने हाथ खडे कर दिये तो मित्र साहब पुनः मेरी शरण में आये। जब लैपटॉप के विशेषज्ञों ने ही मना कर दिया तो हथौडा-छाप मैकेनिकल इंजीनियर की क्या औकात? इधर तो एक ही काम आता है, हार्ड डिस्क निकालकर दोबारा लगाना। चल गई तो ठीक है, नहीं तो खर्चा करना पडेगा।
काफी मुश्किल था लैपटॉप का कवर खोलना। हार्ड डिस्क निकाली, फूंक मारी, मन्तर पढा और दोबारा लगा दी। कोई असर नहीं। अब इंजीनियर साहब कुछ नहीं कर सकते। लेकिन सलाह तो दे ही सकते हैं- नई हार्ड डिस्क खरीदो, पुनः विण्डो डालो और पुरानी हार्ड डिस्क में पडे डाटा को खोने के लिये तैयार रहो। जो काम लैपटॉप के कथित विशेषज्ञ नहीं कर सके, वो काम एक साधारण सा मैकेनिकल इंजीनियर कर रहा है। हिम्मत बंधा रहा है कि लैपटॉप ठीक हो जायेगा।
तो आज नेहरू प्लेस गये दोनों। उसे इंटरनल व पॉर्टेबल हार्ड डिस्क लेनी थी जबकि मुझे केवल पॉर्टेबल। एक टीबी की पॉर्टेबल हार्ड डिस्क 4600 रुपये की मिली। वापस आकर नई हार्ड डिस्क उसके लैपटॉप में डाली और विण्डो भी इंस्टाल करके चलाया तो तुरन्त चल गई। हालांकि इस काम के लिये पार्टी बनती है लेकिन बेशर्म मित्र ने उसके बाद फोन करके हाल-चाल तक नहीं पूछा। सोच रहा हूं कि अब के बाद इस तरह की समाज-सेवा करने से पहले पार्टी पक्की कर लिया करूंगा।
2. जामनगर के अपने मित्र उमेश जोशी दिल्ली आये। वे काफी दिनों पर जिद पर अडे थे कि श्रीखण्ड महादेव की यात्रा करनी है। इसी यात्रा के सिलसिले में उनका आना हुआ। यहां ठीक समय पर शाम पौने आठ बजे उनकी ट्रेन सराय रोहिल्ला पहुंची। सवा नौ बजे पुरानी दिल्ली से हावडा-कालका मेल पकडेंगे और आगे के लिये प्रस्थान कर जायेंगे। कुछ देर पहले मैंने कालका मेल की स्थिति देखी थी तो वो डेढ घण्टे की देरी से चल रही थी। यानी अब उमेश के पास मुझसे बतियाने को दो घण्टे हो गये। उन्हें सीधा अपने ठिकाने शास्त्री पार्क ले आया।
खाना बनाने की तैयारी करते करते बस ऐसे ही देख बैठा कि ट्रेन कहां पहुंची तो होश उड गये। उसने समय कवर कर लिया था, ठीक समय पर चल रही थी और यमुना पुल पार करके पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुंचने को तैयार थी। अब खाना बनाना रद्द और फलाहार करके सब्जी मण्डी स्टेशन के लिये निकल पडे। सब्जी मण्डी जाने का अर्थ है आपको आधा घण्टा और मिल गया। जैसे ही हम स्टेशन पहुंचे, उसके आने की घोषणा हो गई।
उमेश कभी भी हिमालय में नहीं गये हैं। ऐसे में उनका 5200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्रीखण्ड महादेव पहुंचना मुझे उचित नहीं लग रहा। मैं उन्हें पहले ही दिन से समझाता आ रहा हूं कि पहली बार में श्रीखण्ड मत जाओ, भले ही अमरनाथ चले जाओ। एक तो अमरनाथ कम ऊंचाई पर है, फिर किसी भी शारीरिक परेशानी की हालत में सारी सुविधाएं भी तुरन्त मिलती हैं। लेकिन वे जिद पर अडे हैं। नहीं, श्रीखण्ड ही जाऊंगा। भोलेनाथ मुझे बुला रहे हैं। वे इस यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा करवायेंगे। आज पता चला कि वे श्रीखण्ड के बाद अमरनाथ भी जायेंगे। मैंने माथा पीट लिया। श्रीखण्ड के बाद अमरनाथ! श्रीखण्ड में अगर ऊर्जा बचेगी तो अमरनाथ की सोची जा सकती है। उनके स्थान पर मैं होता तो कभी भी दोनों का एक ही बार में कार्यक्रम नहीं बनाता।

11 जुलाई 2013, गुरूवार
1. ‘आजाद हिन्द फौज की कहानी’ पढी। मूल रूप से अंग्रेजी में एस ए अय्यर ने लिखी और हिन्दी अनुवाद किया प्रेम चन्द आर्य ने। नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित की और मूल्य है पेपरबैक का पचास रुपये। अच्छी लगी। सुभाष चन्द्र बोस और आजाद हिन्द फौज की पूरी जीवनी है इसमें।

12 जुलाई 2013, शुक्रवार
1. एक पडोसी मिले- मोहम्मद इश्तियाक। उन्हें गियर वाली साइकिल लेनी है। मुझे चलाते देख पूछने लगे और चांदनी चौक चलने की गुजारिश करने लगे। मैं प्रातःकालीन ड्यूटी करके आया था, सोना जरूरी था, मना भी किया लेकिन उनकी अति व्यग्रता के आगे जाना पडा। मैंने पूछा किस मकसद के लिये चाहिये। बोले कुछ व्यायाम और कभी कभी पहाडों पर ले जाने के लिये। पहले कभी पहाडों पर गये हो? बोले नहीं गया। मैं समझ गया कि मुख्य मकसद व्यायाम ही है। पहाडों पर गये नहीं हैं और जायेंगे भी नहीं। सलाह दी कि मुख्य मकसद व्यायाम ही है, इसलिये सस्ती साइकिल ले लो बिना गियर वाली। नहीं माने।
चांदनी चौक पहुंचे हरक्यूलस के शोरूम में। काफी नापजोख करने के बाद मुझे उनके लिये एक साइकिल पसन्द आयी- 6800 की थी। इसमें स्टील बॉडी, स्टील रिम, दोनों तरफ सस्पेंशन, पावर ब्रेक यानी डिस्क ब्रेक नहीं, अठारह गियर अनुपात और बॉडी में ही इन-बिल्ट कैरियर थे। ले ली। पांच बजे घर लौटा, तब सोया।
2. एक फेसबुक मित्र रणजीत सिंह से चैट हुई। पूछ रहे थे कि अपाहिज लोगों के घूमने के लिये कौन सी जगह अच्छी है। मैंने काफी सोच विचार किया। बाद में उत्तर दिया- अपाहिज लोग माउण्ट एवरेस्ट पर भी चले जाया करते हैं। फिर कहने लगे- वो तो ठीक है। आप सारे भारत में घूमे हो, तो कुछेक पर्यटन स्थल ऐसे होंगे जो आपको कम सीढियों वाले लगे होंगे या रैम्प की सुविधा अच्छी होगी। मुझे भी घूमने का बहुत शौक है, मैं आगरा तो जा चुका हूं लेकिन ताजमहल के अन्दर नहीं जा सका क्योंकि वहां ज्यादा सीढियां थीं।
मैंने कहा- अपाहिज होना कोई कमजोरी नहीं है। अच्छे खासे लोग भी देखे हैं जो सीढियों पर नहीं चढ पाते। अपने रास्ते खुद बनाने होते हैं, चाहे आप अपंग हों या चंगे। कुछ लोगों में जज्बा होता है, वे एवरेस्ट तक जा पहुंचते हैं और कुछ लोग छोटी छोटी सीढियों पर चढने में थक जाते हैं। अपनी अपनी सोच है।

13 जुलाई 2013, शनिवार
1. चेन्नई से शंकर राजाराम दिल्ली आये। वे 63 साल के हैं, सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं और अब घुमक्कडी में समय लगाते हैं। अब वे श्रीखण्ड महादेव जायेंगे। कैलाश मानसरोवर जा चुके हैं, अमरनाथ भी गये हैं। और तो और, गंगोत्री से सीधे बद्रीनाथ जाने वाला महाभयंकर जानलेवा कालिन्दीखाल ट्रेक भी उन्होंने कर रखा है। भारतीय, नेपाली व भूटानी हिमालय में कई ट्रेक किये हैं उन्होंने। उनके श्रीखण्ड पहुंचने में मुझे कोई सन्देह नहीं। मुझे मेरे ब्लॉग से जानते हैं, जाहिर है हिन्दी भी जानते हैं। एक बार मैंने उनसे पूछा कि आप हिन्दी कैसे समझ लेते हैं, दक्षिण में हिन्दी का रिवाज नहीं है। बोले कि अगर भारत में घुमक्कडी करनी है तो हिन्दी के बिना नहीं कर सकते।
आज हमारे यहां ही रुकेंगे, सुबह कालका शताब्दी पकडेंगे।

14 जुलाई 2013, रविवार
1. लगातार चौथी मॉर्निंग ड्यूटी। मैं शरीर के साथ अत्याचार बिल्कुल भी पसन्द नहीं करता। सोना जरूर मेरे हाथ में होता है लेकिन उठना कतई नहीं। जब नींद खूब पक जाती है, तो शरीर स्वयमेव कहने लगता है कि उठ जा। इस नामुराद ड्यूटी में सुबह पांच बजे का अलार्म लगाना पडता है। भले ही रात आठ बजे सोओ, लेकिन अलार्म से जगने का अर्थ है कम नींद लेना। इसी एक वजह से मैं इस ड्यूटी को करना पसन्द नहीं करता। जब भी मेरी यह ड्यूटी होती थी तो मैं किसी से बदल लेता था। या तो शाम की करता था या रात की। शाम के और रात के करने वाले कम हैं, इसलिये आसानी से बदली जाती थी। पिछले कुछ दिनों से मैंने यह काम बन्द कर दिया है। इससे पहले लगातार चार प्रातः ड्यूटी अक्टूबर 2010 में की थी यानी पौने तीन साल पहले।
2. एक बडी झन्नाटेदार खबर मिली कि उमेश ने श्रीखण्ड यात्रा सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। अभी वे वापस लौट रहा है और थाचडू से फोन करके उन्होंने यह खबर दी। मैं हैरान रह गया। वे अपने भगवान के भरोसे गये थे। कहते थे कि मैं कुछ भी नहीं करूंगा, सब मेरे भगवान जी करेंगे। वे मुझे अवश्य वहां पहुंचायेंगे। वास्तव में उनके भगवान ने हिमालय के सारे नियमों को ताक पर रखकर उमेश को सफलतापूर्वक यात्रा कराई। जिन्दगी में पहली बार वे हिमालय में गये थे और दूसरे ही दिन 5200 मीटर की महा-ऊंचाई पर चढ जाना किसी भगवान के ही बस में है, इंसान के नहीं। जब मैं गया था तो उस समय तक मुझे हिमालय का अच्छा अनुभव हो चुका था, लेकिन नैन सरोवर तक पहुंचने में ही मेरी जो हालत हुई थी, आज भी अच्छी तरह याद है।
उमेश ने बताया कि वो अब अमरनाथ नहीं जायेगा और कल मेरे पास दिल्ली आ जायेगा। उनके पास काफी समय है, अमरनाथ आसानी से जा सकते थे लेकिन थकान बहुत हो जाती है एक ही यात्रा में इसलिये अमरनाथ रद्द कर दिया होगा। विस्तार से उनके दिल्ली आने पर पता चलेगा।
3. एक पिक्चर देखी- रांझणा। कई दृश्य हैं जो वास्तविकता से दूर हैं। इसी तरह का एक दृश्य बताता हूं। जब जोया को उसके घरवाले वाराणसी से अलीगढ भेजते हैं तो ट्रेन में उसे छोडते समय हिदायत देते हैं कि रास्ते में कहीं उतर मत जाना। यानी यह ट्रेन वाराणसी से सीधे अलीगढ जा रही थी। इतना तो ठीक है। लेकिन अगला ही दृश्य काशी स्टेशन का था। वाराणसी से अलीगढ जाने वाली ट्रेन काशी कैसे जा सकती है? मण्डुवाडीह के रास्ते निकालनी चाहिये थी या फिर लखनऊ या जंघई के रास्ते। इसी तरह के एक अन्य दृश्य में दिखाया कि वाराणसी से जालंधर जाने वाली ट्रेन राजघाट पुल पार कर रही है। सरासर गलत।
इस पिक्चर से एक सीख तो मिली कि आपको किसी लडकी के पीछे नहीं पडना चाहिये। लेकिन हां, अगर कोई लडकी आपके पीछे पडी है तो झट से उसे स्वीकार कर लेना चाहिये। कुंदन जोया के पीछे पडा तो तडप-तडप कर मरा। अगर वो बिन्दिया को स्वीकार कर लेता तो आज अच्छी-खासी जिन्दगी जी रहा होता। इसे देखकर सोच रहा हूं कि आज के बाद से लडकियों के पीछे पडना बन्द। कोई अपने पीछे पडेगी तो तब की तब देखेंगे।

15 जुलाई 2013, सोमवार
1. अगस्त में एक ट्रेन यात्रा प्रस्तावित है। 6 से 16 अगस्त तक होने वाली इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य महाराष्ट्र, गोवा व कर्नाटक की पश्चिमी घाट पहाडियों के इर्द गिर्द चलने वाली ट्रेनों में भ्रमण करना है। इनमें मुख्य कोंकण रेलवे है। इसके अलावा पाचोरा-जामनेर नैरो गेज लाइन, वास्को-मडगांव-हुबली, मिरज-लोंडा, हुबली-हासन-मंगलौर व विरूर-शिमोगा-तालगुप्पा लाइनों में पैसेंजर ट्रेनों में यात्रा करनी है। ट्रेन यात्रा के अतिरिक्त अजन्ता गुफाएं, गोवा, दूधसागर जलप्रपात व जोग प्रपात भी इसमें शामिल हैं। यात्रा में जोधपुर के रहने वाले प्रशान्त भी साथ देंगे। उन्हें भी पैसेंजर ट्रेनों में यात्रा करने का कीडा है। आवश्यक आरक्षण हो गये हैं।
2. उमेश जोशी सफलतापूर्वक श्रीखण्ड यात्रा पूरी करके दिल्ली लौट आये। मैंने भविष्यवाणी कर रखी थी कि वे इस यात्रा को पूरा नहीं कर सकेंगे व इस सन्दर्भ में चेतावनी भी उन्हें समय-समय पर देता रहता था। वे हमेशा कहते- शिवजी ही मुझे वहां ले जायेंगे। अब मैं उनके शिवजी के इस दुस्साहस पर हैरान हूं। उमेश ने कभी हिमालय नहीं देखा था और पहली ही बार में 5200 मीटर ऊंचे श्रीखण्ड तक चढ जाना वाकई हैरानी भरा है। उमेश के अनुसार -“मुझे मनाली के कुछ लडके मिले। वे न होते तो मैं नहीं जा पाता। उन्होंने ही मुझे ‘ग्लेशियर’ पार कराये। ... मुझे भूख नहीं लगी, प्यास भी नहीं। टैण्ट वाले ने खूब कहा कि तुमने कुछ नहीं खाया। मुझे ठण्ड लग रही थी और मैं सोता रहा। अगले दिन सुबह भी कुछ नहीं खाया और खाली पेट ही आगे चल पडा। ... असली चीज है नैन सरोवर। बिल्कुल अलौकिक। श्रीखण्ड उतना आकर्षक नहीं है, जितना नैन सरोवर। ... मैंने यात्रा की जिम्मेदारी शिव भगवान व गायत्री माता पर छोड रखी थी। शिवजी का काम था श्रीखण्ड तक ले जाना और वापस लाने का काम माता गायत्री का था। दोनों ने अपने-अपने हिस्से का काम बखूबी किया।”
“फिर अमरनाथ क्यों नहीं गये? तुम्हारा तो रजिस्ट्रेशन भी हो रखा था।”
“बच्चों की याद आने लगी थी। दूसरी बात कि थक भी बहुत गया था। अमरनाथ जाने की हिम्मत नहीं बची थी।”
खैर, मुझे पक्का यकीन था कि जोशीजी यात्रा पूरी नहीं कर पायेंगे और मैंने उनके उन भगवानों का बैण्ड बजाने की अच्छी तैयारी कर रखी थी जिनके भरोसे वे जा रहे थे। सारी तैयारी धरी रह गई। फिर भी, मैं अभी भी अपनी बात पर कायम हूं कि श्रीखण्ड जैसी जगहों पर बिना तैयारी किये ऐसे ही मुंह उठाकर नहीं जाना चाहिये। हिमालय में पैदल भ्रमण का अनुभव भी आवश्यक है। जोशीजी को भयानक शारीरिक कठिनाईयों का सामना करना करना पडा होगा, जिनका उन्होंने ज्यादा जिक्र नहीं किया। दूसरी बात, भगवान के नाम पर ही सही, उनका जज्बा काबिलेतारीफ है। फिर उन्होंने अपने स्तर पर भी अच्छी तैयारी की होगी। नहीं तो चार दिनों के भीतर 200 मीटर से 5200 मीटर तक जाना व पुनः 200 मीटर पर लौट आना शरीर के लिये बडा जबरदस्त झटका है। हर शरीर इस झटके को नहीं झेल सकता।
जोशीजी 8-9 दिन पहले ही वापस आ गये। रेल के आरक्षण रद्द कराने पडे व आज का जम्मू-हापा एक्सप्रेस में आरक्षण कराया। वेटिंग थी जो शाम को चार्ट बनने तक कन्फर्म हो गई।
3. लैपटॉप खराब। ऑन तो हो जाता है, अन्दर पंखे भी चलते हैं लेकिन स्क्रीन काली-कलूटी ही बनी रहती है। कुछ नहीं आता, यहां तक कि लप-डप करता कर्सर भी नहीं। रैम की समस्या बताई है मित्रों ने। और बेचारे की गलती भी क्या है? चार साल का हो गया। अब इसके रिटायरमेण्ट का समय हो गया है। सोच रहा हूं रिटायर कर दूं लेकिन निकट भविष्य में नई भर्ती की कोई सम्भावना नहीं है। आर्थिक हालत अगले दो महीनों तक कमजोर रहने वाली है।
कल उस मित्र के उसी लैपटॉप पर काम करने की कोशिश की जिसे ठीक करने की कोशिशों में दिन-रात एक कर दिया था व ठीक होने पर उन्होंने हाल-चाल तक नहीं पूछा। लेकिन इण्टरनेट की वजह से उस पर काम नहीं हो सका। बाद में सहकर्मी आशीष के यहां घण्टा भर लगाकर यह डायरी पोस्ट की। अगर लैपटॉप ठीक हो गया तो ठीक, नहीं तो लद्दाख यात्रा का शेष प्रकाशन बन्द करना पडेगा।

डायरी के पन्ने-8 | डायरी के पन्ने-10




Comments

  1. Bhai laptop mera le lo par likhna band mat karo... please

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  2. मजा आता है नीरज जी आपकी डायरी पढने में. ऐसा लगता है कि पिछले 15 दिन आपके साथ ही गुजारे हों. रांझणा मैने भी देखी टेंशन देने वाली फिल्म है... हीरो भी मार दिया जिंदगी भर के लिये डायरैक्टर ने टेंशन दे दी....

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  3. I am in this profession only..Bahut saare resources hai Nehru Place may... Dont worry contact me at my email or on FB .. ghar baithe theek kara doonga aur woh bhi aise cost pay ki soca na hoga kabhi ...

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  4. Khali hota hun to tumhara lekh khalipan dur karta hai

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  5. इसे देखकर सोच रहा हूं कि आज के बाद से लडकियों के पीछे पडना बन्द। कोई अपने पीछे पडेगी तो तब की तब देखेंगे

    kahna kya chahte ho neeraj babu ki ( ladkiyon ke peeche jaate ho )

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    1. साहब जी, कहना नहीं चाह रहा है बल्कि कह रहा है ! कोई जाट राम पे ध्यान ही नहीं दे रहा है !

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  6. लिखना मत छोडना नीरज , कहो तो मै अपना लैपटाप भेज दूँ ।

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  7. बेहतरीन लिखा है वाकई लिखने के जादूगर हो भाई.

    रामराम.

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  8. लदाख यात्रा के शेष वृतान्त के लेखन में लैपटॉप, खलनायक की भूमिका निभा रहा है। हमें आगे की यात्रा के विवरण का बेसब्री से इन्तेजार रहेगा।
    - Anilkv

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  9. neeraj ji i like your site.i read every post many 2 times.thanks

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  10. भाई इतनी प्रतीक्षा क्यूँ की... online ही देख लेते अपना लेख... और लिंक भी शेयर कर देते ... ये रहा लिंक
    http://epaper.jagran.com/epaper/30-jun-2013-4-delhi-archive-edition-delhi-city-Page-29.html

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  11. और "प्रभात खबर" का पेज न. भी बता देते ... लिंक तो ये रहा....
    http://epaper.prabhatkhabar.com/epapermain.aspx?pppp=1&queryed=9&eddate=5/26/2013%2012:00:00%20AM

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  12. nahiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiin.............. ye laptop kambakth kharab nahin ho sakta. use juice pilao, tablet khilao, injection dilawo, doctor ko dikhawo, icu main admit karao but 1 din main thik karo................ kambakth ek laptop hajaro reader par bhari nahin par sakta. democracy hai bahi.................

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  13. वाह, गतिमय जीवन पढ़कर भी अच्छा लगता है।

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  14. Dear sir
    we are interested to give advertisement on your blog..we are financial service provider like insurance equity,commodity..our ad is regard to TRAVEL INSURANCE..you can communicate to me by mail- kushfinservices@hotmail.com

    Thanks&regards
    Vikash avasthi
    Brand manager
    kush finanacial services pvt ltd
    New delhi ..

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  15. 1. हमें अपने गाल पर थप्पड़ से ज्यादा उसके गाल पर पप्पी का शौक था...!!!!1
    2. अबे ओ रिक्शे वाले! पैसा मत लेना मैडम से। भाभी है तुम्हारी...!!!!2
    3. गली के लौंडों का प्यार अक्सर डॉक्टर और इंजिनियर ले जाते हैं...
    4. हम खून बहाएं, तुम आंसू बहाओ। साला आशिकी न हो गई, लाठीचार्ज हो गया।!!
    5. लंका दहन होना बाकी था, क्योंकि हमारा जवान होना अभी बाकी था।
    6. एक बात मैं समझ गया हूं। लड़की और रॉकेट आपको कहीं भी ले जा सकते हैं।!!
    7. तुम्हारा प्यार न हो गया,यूपीएससी का एग्ज़ाम हो गया। 10 साल से क्लियर ही नहीं हो रहा।
    8. नमाज में वो थी, पर ऐसा लगा कि दुआ हमारी कबूल हो गई।
    और सबसे जबरदस्त!!
    9. साढ़े सात साल में तो शनीचर भी छोड़ देता है, पता नहीं ये कब छोड़ेगी
    10-ये बनारस है और लौंडों साला यहा भी हार गया तो जीतिगा कहा??
    11-दिन न साला लेफ्ट मे होता है ना राइट मे सेन्टर मे होता है !!
    12- -कुन्दन के पैजामे का नाडा इतना ढीला नही,जो तुम्हारे ब्लाउज के हुक सा खुल जाये!!!
    13- विटामिन हमसे खावो,आशिकी इनसे लडावो!!
    14- मिया आशिक की तब नही फटती जब महबुबा की शादी होती है उसकी तब फटती है जब खुद की शादी होती है
    15- लगता है भोले नाथ अपने साथ है, अबे भोले तो हमेशा अपने साथ रहते है इस बार गुरु जी का स्पार्क प्लग भी अपने साथ है!!""

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