[डायरी के पन्ने हर महीने की एक व सोलह तारीख को छपते हैं।]
1-2 मार्च 2013
1. छत्तीसगढ यात्रा प्रगति पर। विवरण जल्द ही प्रकाशित।
3 मार्च 2013, दिन रविवार
1. ऑफिस में प्रदीप ने छत्तीसगढ यात्रा की शुभकामनाएं देते हुए मिष्ठान की मांग की। मांग तुरन्त पूरी हो गई, बिलासपुर की मिठाईयां अभी भी बची थीं।लेकिन सर्वांगसुन्दरी श्यामकाय श्वेतचित्त मिष्ठान देखते ही महाराज का मुंह आर्द्र होने के बजाय शुष्क हो गया। लगता है वे रंगभेद के समर्थक हैं, तभी तो इस काली कलूटी स्वादिष्ट मिठाई को नहीं खा सके।
2. मनु त्यागी का एक लेख पढा- एलेक्सा रेटिंग के बारे में। अप्रत्यक्ष रूप से मेरा व एक अन्य का उदाहरण दिया था। मुझे ‘ए’ नाम से व दूसरे को ‘बी’ नाम से सम्बोधित किया गया था। उन्होंने लिखा कि मिस्टर ए के ब्लॉग पर महीने में 27000 पेजव्यू आते हैं, चार साल से लिख रहे हैं, फिर भी 5600 पेजव्यू व मात्र चार महीने से लिखने वाले मनु त्यागी के मुकाबले एलेक्सा पर मीलों पीछे हैं। बात बिल्कुल ठीक है। मुझे लगता है कि एलेक्सा की अच्छी रेटिंग अच्छे विज्ञापनों के काम आती है।
3. एक उच्च गुणवत्ता का यात्रा-वृत्तान्त पढकर समाप्त किया- महातीर्थ के अन्तिम यात्री। बिमल दे के जज्बे को मेरा सलाम। 1956 में जब भारत-चीन के सम्बन्ध बदतर होते जा रहे थे, तिब्बत में भारतीयों का प्रवेश निषिद्ध था, दलाई लामा व लाखों तिब्बती शरणार्थी बनकर भारत आने की तैयारी कर रहे थे, उस समय बिमल का नेपाली मौनी लामा बनकर ल्हासा जाना दुःसाहस ही कहा जायेगा। इससे भी बढकर है ल्हासा से कैलाश मानसरोवर जाना। यात्रा प्रेमियों के लिये पुस्तक पठनीय है।
पुस्तक इलाहाबाद के लोकभारती प्रकाशन ने प्रकाशित की है। मूल्य हार्ड कवर 375 रुपये है। पेपरबैक संस्करण भी उपलब्ध है।
4 मार्च 2013, दिन सोमवार
1. नाइट ड्यूटी करके सात बजे घर पहुंचा। नींद आ रही थी, लेकिन भाग गई। दो लेख लिख मारे- वृन्दावन यात्रा व वृन्दावन से मथुरा मीटर गेज रेल बस यात्रा। दोपहर बारह बजे सोकर शाम साढे सात बजे उठा। फलाहार का मन था, इसलिये एक किलो अंगूर व 15 केले 100 रुपये के ले आया। आलू-सोयाबीन डालकर खिचडी बनाई। खा-पीकर रात दस बजे फिर ड्यूटी चला गया।
5 मार्च 2013, दिन मंगलवार
1. सुबह सात बजे घर पहुंचा। आज पूरे दिन खाली हूं। कल का साप्ताहिक अवकाश है, परसों प्रातःकालीन ड्यूटी है। आज मेरठ जाने का इरादा है। साढे दस वाली ट्रेन पकडूंगा।
2. 6 दिसम्बर 2012 यानी आज से तीन महीने पहले केशकर्तन कराया था। अब तक बाल इतने बढ गये हैं कि नासिका शिखर को स्पर्श करने लगे हैं। ऐसे ही गांव चला गया तो सब ताने-उलाहने देंगे। खाना भी शायद न मिले। साढे दस वाली ट्रेन से जाना रद्द करके अब डेढ वाली से जाऊंगा। इतने समय में केशकर्तन भी हो जायेगा व स्नान भी।
3. चन्द्रेश कुमार अपने भाई के साथ आ गये। ये बनारसी हैं, आजकल अलवर रहते हैं। मेरी बनारस यात्रा पूर्णरूपेण इन्हीं के सहयोग से हुई थी। चाहता था कि ये आज मेरे साथ गांव चलें, कल हस्तिनापुर देख आते लेकिन इन्होंने मना कर दिया। डेढ वाली ट्रेन भी छोड दी।
4. चन्द्रेश के जाने के बाद गांधीनगर में केशकर्तन करा आया, पच्चीस रुपये लगे। तीन बज चुके हैं, रतजगा होने के कारण भयंकर नींद आ रही है। शाहदरा से अगली ट्रेन पांच बजे है। दो घण्टे प्रतीक्षा नहीं कर सकता, बस से ही जा रहा हूं।
5. शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंचकर मूड बदल गया और पुरानी दिल्ली स्टेशन चला गया। चार बज गये हैं, पांच बजे ट्रेन है। लम्बी लाइन लगी है, पचास मिनट लगे टिकट लेने में। पहले बारह का आता था, अब पन्द्रह का है।
6. डीएमयू ट्रेन है, सूचना है कि प्लेटफार्म नम्बर दस पर आयेगी। लेकिन बिना सूचना दिये ग्यारह पर लगाई जाने लगी। रोज वाले यात्री पटरी पार करके ग्यारह पर चले गये, मैं भी चला गया, खिडकी वाली सीट मिल गई।
7. गाजियाबाद में एक हादसा होने से बच गया। शाम का समय होने से ड्यूटी वाले लोग काम खत्म करके घर निकल पडते हैं। साहिबाबाद में ही अच्छी भीड हो गई थी। गाजियाबाद में तो और भी बुरे हालात हो गये। मेरे वाले डिब्बे में एक मुसलमान कुनबा भी घुसने लगा। तीन महिलाएं, दो बच्चे घुस गये, दो महिलाएं बाहर रह गईं, साथ में एक मुल्ला जी भी। गाडी चल पडी तो चीख-पुकार मच गई। बाहर वाली तो चढ नहीं सकी, अन्दर वाली बाहर कूदना शुरू हो गईं। डीएमयू ट्रेन जल्दी रफ्तार पकड लेती है। ज्यादातर महिलाओं को चलती गाडी से कूदने की तरकीब नहीं आती, पीछे मुंह करके कूदती हैं। कूदते ही कलाबाजी खा गई व प्लेटफार्म से नीचे गिरने व गाडी के नीचे आने से बाल बाल बच गई। हादसे की गन्ध मिलते ही गार्ड ने गाडी रुकवा दी। शेष दो महिलाएं व बच्चे भी बाहर कूद गये। पता नहीं वे चढे या नहीं।
8. दिल्ली में ही डिब्बे में कीर्तन मण्डली ने राग अलापना शुरू कर दिया। सबसे बुरी बात थी उनका ध्वनि प्रसारक यन्त्र व बेसुरा कण्ठ। सुन्दर काण्ड का पाठ चलता रहा- पूरे काण्ड के दौरान उनकी लय ही नहीं बन पाई। इससे अच्छा होता अगर वे कुछ भजन गाते। दिल्ली से दुहाई तक अटक-अटक कर गाते रहे। उसके बाद जब हनुमान चालीसा शुरू हुआ, तो सुर-लय-ताल तीनों जम गये, पूरा डिब्बा हनुमानमय हो गया। मोदीनगर में ॐ शान्ति शान्ति शान्ति कहते हुए नीचे उतरे तो वास्तव में शान्ति छा गई।
9. रात साढे आठ बजे गांव पहुंचा। जाते ही खान साहब का फोन आया- नीरज... जे है... कल इवनिंग में आ जाओ। ‘जे है’ उनका तकिया कलाम है। चूंकि कल मेरा अवकाश है, फिर भी मैं ऐसे मौकों की तलाश में रहता हूं कि अवकाश वाले दिन ड्यूटी करनी पडे। इसके बदले एक महीने के अन्दर कभी भी छुट्टी ले सकते हैं। होली वाले दिन भी मेरा अवकाश है। पूरी उम्मीद है कि उस दिन भी ड्यूटी करनी होगी। उधर विपिन दस दिनों के लिये केरल भ्रमण पर जा रहे हैं, रणजीत का स्थानान्तरण हो गया है, इसलिये मार्च में मेरी जबरदस्त मांग रहेगी। अप्रैल के पहले ही सप्ताह में पांच छह दिन की छुट्टी लेने की मजबूरी बनने के आसार हैं। किन्नौर दिमाग में आ रहा है।
6 मार्च 2013, दिन बुधवार
1. ग्यारह बजे घर से निकल पडा। सात किलोमीटर दूर बाइपास है, दिल्ली की बस आसानी से मिल जाती है। एक बजे तक मोहननगर पहुंच गया। पांच रुपये प्राइवेट बस में देकर सीधे दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन। दो बजे ऑफिस में। देखा कि अभी रणजीत भी यहीं है। आज यहां उनका आखिरी दिन है। अब वे सुल्तानपुर डिपो में ड्यूटी बजाया करेंगे। उनका घर भी सुल्तानपुर के आसपास ही है, उन्हें इस स्थानान्तरण से बडा लाभ हुआ है।
रणजीत की बडी याद आया करेगी। उन्हें यहां आये सालभर भी नहीं हुआ और इतने अल्प समय में वे सभी कर्मचारियों के चहेते बन गये। हमें उनको विदाई भोज देना चाहिये था, लेकिन मुझ जैसे कुछ लोग उल्टे उनसे ही विदाई भोज ले बैठे। रणजीत के स्थान पर कमर रहमानी आये हैं, लेकिन अभी उन्हें जिम्मेदारी लेने में समय लगेगा।
2. विपिन की रात्रि ड्यूटी थी, लेकिन मैंने उनसे यह ड्यूटी हडप ली। अब वे कल मेरी इवनिंग ड्यूटी करेंगे।
7 मार्च 2013, दिन गुरूवार
1. सात बजे ड्यूटी से घर आया और आते ही सो गया। दो बजे आंख खुली। मैंगो शेक की इच्छा थी, लेकिन आम का मौसम न होने के कारण केला शेक ही सही। इसलिये पन्द्रह केले लाया और सभी को घोट-घोटकर दूध मिलाकर स्वादिष्ट शेक बनाई।
8 मार्च 2013, दिन शुक्रवार
1. पूरी रात मच्छरों ने परेशान किये रखा। यहां शास्त्री पार्क में यमुना किनारा होने व स्लम की अधिकता के कारण गर्मियों भर ऐसे ही मच्छर खून पीते रहेंगे। रजाई ओढता तो पसीना आने लगता, चादर में कहीं ना कहीं से अन्दर घुस जाते। कईयों ने तो चादर के ऊपर से ही रक्त शोषण कर डाला।
कोई शक्तिशाली इलाज है क्या इन रक्तपिपासु कीटों का?
2. सुबह सात बजे के बाद जब अच्छा उजाला हो गया, तो दूसरे कमरे में जाकर सो गया। इस कमरे में धूप आ रही थी, मच्छर नहीं थे। एक बजे तक सोया रहा। उसके बाद ड्यूटी चला गया। दस बजे लौटा।
9 मार्च 2013, दिन शनिवार
1. रात ड्यूटी से आकर कुछ देर तक लिखा-पढी की, तत्पश्चात सो गया। लेकिन रक्त-चूषकों ने सोने नहीं दिया। तंग आकर बारह बजे के करीब इनके खिलाफ अभियान छेड दिया। घर में न तो मच्छरदानी है, न ही इन्हें भगाने का धुआं। तय हुआ कि इन्हें एक-एक को पकडकर मारा जाये। सौ रक्त-चूषकों को मारने का लक्ष्य रखा गया। मक्खी के मुकाबले मच्छर को मारना आसान रहता है। शुरू शुरू में बडी तेजी से गिनती बढी, घण्टे भर में ही चालीस पार हो गये।
नींद तो उजड ही चुकी थी। जब मच्छर मिलने बन्द हो गये, तो बिस्तर पर किताब लेकर बैठ गया। बैठते ही एक-एक दो-दो मच्छर आने लगे। चार बजे तक सत्तर मच्छर मारे जा चुके थे। जब दुर्लभ हो गये तो सो गया। ग्यारह बजे उठा।
12 मार्च 2013, दिन मंगलवार
1. जेएनयू से एक फोन आया। रात्रि सेवा करके आया था, सो रहा था। अधकच्ची नींद में बात हुई। कह रहे थे कि पन्द्रह मार्च को वे मुझे सम्मानित करेंगे। मैंने कहा कि सम्मान का कार्यक्रम मुझे मेल पर या फेसबुक पर भेज दें, तो मैं आऊंगा; नहीं तो नहीं आऊंगा। वे सहमत हो गये। देखते हैं कि किस बात के लिये मुझे सम्मानित करेंगे।
2. मोबाइल पर एक चिट्ठी आई नये नम्बर से- जाटराम जी, सुना था कि जाटों की बुद्धि घुटनों में होती है पर आपके ब्लॉग पढकर लगा कि नहीं, जाटों में भी बुद्धि खोपडी में ही होती है बल्कि हमसे ज्यादा होती है।
वैसे मेरा उद्देश्य जाटगर्दी को बढावा देना नहीं है, फिर भी नाम के साथ जाट लगा है तो यह टिप्पणी अच्छी लगी।
13 मार्च 2013, दिन बुधवार
1. पता चला कि गंगा- यमुना के बीच हिमालय की तराई से यानी हरिद्वार से बुलन्दशहर तक का भूभाग कुरुक्षेत्र कहलाता था। यमुनापार यानी वर्तमान हरियाणा को कुरुजांगल कहते थे। क्या महाभारत के समय सेनाओं के यमुना पार करने का उल्लेख है?
2. फेसबुक पर रोहताश चौधरी से मुठभेड हो गई। मैंने महानदी उद्गम का फोटो लगाया, जो धान के खेतों से जाती हुई नाली सरीखी दिख रही थी। कहने लगे कि फेसबुक पर झूठ बोलने पर कोई केस वगैरा नहीं होता, इसलिये साधारण सी नाली को भी महानदी बता रहे हो।
अभी तक मैंने हिमालयी नदियों के उद्गम ही देखे हैं। उद्गम पर वे कैसी प्रचण्ड होती हैं, यह भी मुझे पता है। किसी मैदानी नदी के उद्गम को देखने का मेरा पहला मौका था। जिन मित्रों ने अमरकण्टक में नर्मदा व सोन के उद्गम देख रखे हैं, वे मुझसे सहमत थे, बाकियों के लिये यह नाली साधारण नाली थी। रोहताश साहब जिद पर अड गये कि महानदी भी अमरकंटक से ही निकलती है- ऐसा उन्होंने कहीं पढा था।
जिन व्यक्तियों ने नदी के नाम पर विशाल जलवाहिनियों को ही देखा है, वे कभी नहीं समझ सकते कि नदी शुरूआत में बडी ही मासूम होती है। इस बात को कोई किताब कभी नहीं समझा सकती। रोहताश साहब की किताबी जानकारी पर तरस आ गया व मैंने यह कहकर मामला बन्द कर दिया कि हां, महानदी अमरकंटक से ही निकलती है।
14 मार्च 2013, दिन गुरूवार
1. मनदीप हिमाचल की यात्रा पर है। पता चला कि वहां मूसलाधार बारिश हो रही है। इस बारिश से दिल्ली का मौसम भी ठण्डा हो गया। मनदीप कुछ मित्रों के साथ छितकुल जाने वाला था, लेकिन बारिश की वजह से सराहन से ही लौट आया।
15 मार्च 2013, दिन शुक्रवार
1. आज जवाहर लाल विश्वविद्यालय में एक सम्मान समारोह में जाना है। शाम पांच बजे साइकिल से जेएनयू पहुंच गया। डेढ घण्टे लगे। जब साढे नौ बजे वापस लौटने लगा तो थोडी ही दूर चलने में ठण्ड लगने लगी। मात्र एक शर्ट ही पहने हुए था मैं। इस कारण शास्त्री पार्क आने के बजाय वसन्त विहार स्थित तेजपाल सिंह जी के यहां पहुंच गया।
डायरी के पन्ने-2 । डायरी के पन्ने-4
मैंगो शेक की इच्छा थी, इसलिये पन्द्रह केले लाया और सभी को घोट-घोटकर दूध मिलाकर स्वादिष्ट शेक बनाई।?????????????????????
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद। त्रुटि सुधार कर लिया गया है।
Deletebadhaai ....
ReplyDelete8. दिल्ली में ही डिब्बे में कीर्तन मण्डली ने राग अलापना शुरू कर दिया। सबसे बुरी बात थी उनका ध्वनि प्रसारक यन्त्र व बेसुरा कण्ठ। सुन्दर काण्ड का पाठ चलता रहा- पूरे काण्ड के दौरान उनकी लय ही नहीं बन पाई। इससे अच्छा होता अगर वे कुछ भजन गाते। दिल्ली से दुहाई तक अटक-अटक कर गाते रहे। उसके बाद जब हनुमान चालीसा शुरू हुआ, तो सुर-लय-ताल तीनों जम गये, पूरा डिब्बा हनुमानमय हो गया। मोदीनगर में ॐ शान्ति शान्ति शान्ति कहते हुए नीचे उतरे तो वास्तव में शान्ति छा गई। kafi acchi diary likh de aapne to jatt ji
ReplyDeleteवाह, बहुत बधाई हो, डायरी स्मृतियों को सलीके से सहेजने का उत्तम साधन है।
ReplyDeleteसही डायरी लिख रहे हो नीरज जी.... केले का मैंगो शेक.... सही है भूख लगे तो सब चलता है...
ReplyDeleteमजेदार वर्णन ...घूमते रहो और मज़े करो ...
ReplyDeleteलिखते रहो
ReplyDeleteमजा आता है ये डायरी पढने में
Jaat ji aur darpok! ye to himalaya ki wadiyo se puchna parega? keep it on bhai. good luck.
ReplyDeleteKindly tell me which font you use to write in hindi?
इस तकनीक की मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। मैं baraha के प्रयोग से यूनीकोड में लिखता हू।
Deleteनीरज भाई, आप शाकाहारी हो या मांसाहारी ! बस यूँ ही पूछ लिया कोई खास कारण नहीं! डायरी लेखन अच्छा चल रहा है थोडा और विस्तार से लिखे तो अच्छा रहेगा!
ReplyDeleteमैं अभी तक शाकाहारी हूं लेकिन अक्सर विवादास्पद पदार्थ मुर्गी का अण्डा भी खा लेता हूं।
Deleteविस्तार से लिख दूंगा लेकिन पढना तो आप लोगों को ही है।
Neeraj Bhai told in his blogs what he ate. I request to Neeraj Bhai buy a Macchardani or can take from any Miltory person it will good in Delhi.
ReplyDeleteमच्छरदानी तो अभी तक नहीं ली लेकिन कुछ रासायनिक पदार्थों के छिडकाव से मच्छर समस्या पर काबू पा लिया गया है।
Deletebahut badia.....keep up it .........
ReplyDeletegood job .......
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