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डायरी के पन्ने- 2

16 फरवरी 2013
1. दिन की शुरूआत बडी ही भयंकर हुई। सुबह साढे पांच बजे उठना पड गया। आज प्रातःकालीन ड्यूटी थी- सुबह छह से दोपहर दो बजे तक। मैं इस ड्यूटी को  बिल्कुल भी पसन्द नहीं करता हूं केवल जल्दी उठने की वजह से। जब भी मेरी यह ड्यूटी होती है तो मैं किसी से बदल लेता हूं। फिर मुझे या तो सायंकालीन ड्यूटी करनी पडती है या फिर रात्रि सेवा। लगातार सायंकालीन और रात्रि सेवा करते रहने की वजह से आदत भी पड गई कि ड्यूटी से आते ही सोना है। यही आदत सुबह वाली ड्यूटी में भी बरकरार रहती है। दो बजे जैसे ही घर आया, खाना खाकर सो गया। सात बजे शाम को उठा।
2. अपने एक मित्र हैं विपिन तोमर। ऑफिस में साथ ही काम करते हैं और वे मेरे सीनियर हैं। पिछले दिनों उन्होंने मुझसे पूछा कि मई में केरल जाने के बारे में बताओ। मैंने कहा कि अगर समय निकाल सकते हो तो फरवरी या मार्च में ही चले जाओ, मई में वहां जाना बडा मुश्किल हो सकता है- गर्मी और उमस के कारण। बोले कि बच्चे की छुट्टियों की वजह से मई से पहले नहीं जा सकते। मैंने कहा कि अभी फरवरी चल रही है, ट्रेनों में चार महीने पहले बुकिंग शुरू हो जाती है। इसलिये आपको मई में किसी भी ट्रेन में केरल जाने की सीटें नहीं मिल सकतीं। बोले कि इतने दिन पहले? हां, क्योंकि मई और जून के दो महीनों में सभी लोग बाहर निकलते हैं और सरकारी नौकरी वाले ज्यादातर लोग दक्षिण की तरफ ही भागते हैं। ट्रेनों में सीटों की उपलब्धता देखी तो वही हुआ जो मैंने कहा था- तिरुवनन्तपुरम जाने वाली किसी भी ट्रेन में सीट खाली नहीं थी। वे चूंकि सरकारी खर्चे से जाना चाहते हैं तो राजधानी से ही जाना और आना पसन्द कर रहे थे। जून का भी धीरे धीरे रोजाना एक एक दिन निकल रहा है, तो उन्हें सलाह दी कि जून में हो सकता है। जल्दी योजना बना लो, देर मत करो।
आज फिर उन्होंने कहा कि केरल जाने के लिये मार्च में ट्रेनें देखो। मैंने देखा तो पाया कि जाने के लिये राजधानी में मार्च के आखिर में सीटें खाली हैं लेकिन आने के लिये कोई विकल्प नहीं है सिवाय दूसरी ट्रेनों में नॉन-एसी स्लीपर सीटों के। वे थर्ड एसी के अलावा कोई दूसरी श्रेणी लेना भी नहीं चाहते। बात भी ठीक है, जब सरकार थर्ड एसी का किराया दे रही है, तो क्यों स्लीपर में यात्रा करें? और खोजबीन की तो एर्नाकुलम से आने वाली दूरन्तो एक्सप्रेस में काफी सीटें खाली मिल गईं। अब देखना है कि वे आरक्षण कराते हैं या सोचते ही रह जाते हैं।

18 फरवरी 2013, दिन सोमवार
तीन दिनी रेल यात्रा शुरू। सराय रोहिल्ला से अहमदाबाद तक पोरबन्दर एक्सप्रेस से गया। विस्तृत विवरण बाद में।

19 फरवरी 2013, दिन मंगलवार
अहमदाबाद से उदयपुर सिटी तक मीटर गेज ट्रेन से यात्रा। साथ में कुचामन से नटवर लाल और जोधपुर से प्रशान्त। उदयपुर से रात को ट्रेन पकडकर रतलाम चले गये। विस्तृत विवरण बाद में।

20 फरवरी 2013, दिन बुधवार
रतलाम से चित्तौडगढ होते हुए कोटा तक पैसेंजर ट्रेन यात्रा। नटवर ने कोटा- जयपुर पैसेंजर पकड ली, मैंने मेवाड एक्सप्रेस और प्रशान्त ने आधी रात के बाद ढाई बजे भोपाल- जोधपुर पैसेंजर। विस्तृत विवरण बाद में।

21 फरवरी 2013, दिन गुरूवार
राहुल सांकृत्यायन की ‘मेरी जीवन यात्रा भाग-3’ प्रगति पर। रूस से 17 अगस्त 1947 को लौटा और देश की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का विस्तृत वर्णन। मुझे एक बात पहली बार पता चली कि हैदराबाद के निजाम ने पाकिस्तान में सम्मिलित होने की सहमति दी थी। हिन्दुस्तान- पाकिस्तान का बंटवारा हो जाने पर पाकिस्तान के हिन्दू भारत आने लगे और भारत के मुसलमान पाकिस्तान जाने लगे। चूंकि हैदराबाद की सहमति पाकिस्तान की तरफ थी, इसलिये मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र से मुसलमान हैदराबाद जाने लगे, यूपी बिहार के मुसलमान वर्तमान पाकिस्तान चले गये।

22 फरवरी 2013, दिन शुक्रवार
1. रात तीन बजे तक जागने के कारण दोपहर को आंख खुली। उठते ही सायंकालीन ड्यूटी चला गया।
2. विपिन की केरल यात्रा के लिये आरक्षण करा दिया। लेकिन एक पंगा हो गया कि भुगतान के दौरान कुछ समय के लिये नेट कनेक्शन कट गया जिससे बैंक से पैसे तो कट गये लेकिन रेलवे तक नहीं पहुंचे। विपिन चिन्तित है, बात लाजिमी है।
3. कबूतरी का कपोतलाल सप्ताह भर का हो गया है। खिडकी के शीशे पर हाथ लगाते ही कबूतरी झपट पडती है।


23 फरवरी 2013, दिन शनिवार
1. छत्तीसगढ यात्रा के लिये दो दिन पहले दी गई छुट्टी की अर्जी मान्य हो गई है। यात्रा 26 फरवरी से 2 मार्च तक होगी।
2. कभी कभी बडी अजीब सी घटनाएं घट जाती हैं। घर पर मैं अकेला था। रात जैसे ही सोने के लिये लेटा, मिनट भर के अन्दर नींद ने शरीर पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया। तभी अचानक एक आवाज आई- नीरज। मैं तब तक सोया नहीं था, लगभग अच्छी तरह जगा था, आवाज बिल्कुल स्पष्ट थी। यह माताजी की आवाज थी। लग रहा था कि उन्होंने कुछ खाते हुए आवाज लगाई हो।
यह सुनकर ना तो उठकर कहीं जाने की जरुरत थी, ना हनुमान चालीसा पढने की और ना डरने, हैरान परेशान होने की। मैं निश्चल पडा रहा। हां, नींद जरूर भाग गई।
मिनट भर में पुनः वही स्थिति बनी, पुनः आवाज आई। इस बार साफ गले की आवाज थी, खाते हुए गले की नहीं। इस बार नींद नहीं भागी और मैं आठ घण्टे के लिये निद्रा लोक में चला गया।
गौरतलब है कि माताजी दो महीने पहले ही स्वर्गवासिनी हुई हैं।

24 फरवरी 2013, दिन रविवार
1. राहुल सांकृत्यायन की ‘मेरी जीवन यात्रा भाग-3’ का अध्ययन जारी। आजादी के बाद राजाओं पर विलय के लिये दबाव। इन्दौर व मारवाड के राजा विलय के लिये आनाकानी कर रहे हैं। उधर मेवाड के राजा ने सर्वप्रथम भारत में विलय होकर अपना कद बढा दिया।
2. शाकुम्भरी देवी- यानी शाक सब्जी देने वाली। यह एक आम मान्यता है जबकि यह नाम शाक सब्जी से नहीं उपजा बल्कि शक जाति से सम्बन्धित है। शाकुम्भरी यानी शकों का भरण करने वाली।

25 फरवरी 2013, दिन सोमवार
1. कल छत्तीसगढ के लिये निकल पडना है। सिर के बाल बहुत बडे हो गये हैं। लेकिन आलस इतना भर गया है कि कटाने की फुरसत ही नहीं। छत्तीसगढ से वापस लौटकर कोशिश करूंगा।

26 फरवरी 2013, दिन मंगलवार
1. पता चला कि 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद ने सैनिक कारवाही के बाद अधीनता स्वीकार कर ली। अच्छा हुआ कि मामला संयुक्त राष्ट्र में नहीं पहुंचा, नहीं तो भारत के पेट में रोज कश्मीर वाला कांड हुआ करता।
2. मार्च आने वाला है, फिर भी दिल्ली में जनवरी वाले कपडे पहनने पड रहे हैं। रात तापमान ग्यारह डिग्री तक पहुंच गया था। बढिया है, गर्मी से ठण्ड भली। ठण्ड से बचाव हो जाता है, लेकिन गर्मी से बचाव भारी भी पडता है और अगर बचाव ना हो तब भी भारी पडता है।
3. छत्तीसगढ यात्रा शुरू। तीन मार्च की सुबह तक दिल्ली लौटूंगा। विस्तृत विवरण

27 फरवरी 2013, दिन बुधवार
1. सुबह आठ बजे दुर्ग आगमन। राजेश तिवारी जी के साथ मोटरसाइकिल से डोंगरगढ भ्रमण


डायरी के पन्ने-1डायरी के पन्ने-3

Comments

  1. खबर तो मिली थी, शायद संजीव तिवारी जी या पाबला जी से. रायपुर आने का कोई इरादा...

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  2. बहुत सुन्दर..विवरण की प्रतीक्षा है..

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  3. Ye to Sardar Patel the varna ye Hydrabad ka mamla bhi UN me chala jata

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डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।

अदभुत फुकताल गोम्पा

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें ।    जब भी विधान खुश होता था, तो कहता था- चौधरी, पैसे वसूल हो गये। फुकताल गोम्पा को देखकर भी उसने यही कहा और कई बार कहा। गेस्ट हाउस से इसकी दूरी करीब एक किलोमीटर है और यहां से यह विचित्र ढंग से ऊपर टंगा हुआ दिखता है। इसकी आकृति ऐसी है कि घण्टों निहारते रहो, थकोगे नहीं। फिर जैसे जैसे हम आगे बढते गये, हर कदम के साथ लगता कि यह और भी ज्यादा विचित्र होता जा रहा है।    गोम्पाओं के केन्द्र में एक मन्दिर होता है और उसके चारों तरफ भिक्षुओं के कमरे होते हैं। आप पूरे गोम्पा में कहीं भी घूम सकते हैं, कहीं भी फोटो ले सकते हैं, कोई मनाही व रोक-टोक नहीं है। बस, मन्दिर के अन्दर फोटो लेने की मनाही होती है। यह मन्दिर असल में एक गुफा के अन्दर बना है। कभी जिसने भी इसकी स्थापना की होगी, उसी ने इस गुफा में इस मन्दिर की नींव रखी होगी। बाद में धीरे-धीरे यह विस्तृत होता चला गया। भिक्षु आने लगे और उन्होंने अपने लिये कमरे बनाये तो यह और भी बढा। आज इसकी संरचना पहाड पर मधुमक्खी के बहुत बडे छत्ते जैसी है। पूरा गोम्पा मिट्टी, लकडी व प...

चूडधार की जानकारी व नक्शा

चूडधार की यात्रा कथा तो पढ ही ली होगी। ट्रेकिंग पर जाते हुए मैं जीपीएस से कुछ डाटा अपने पास नोट करता हुआ चलता हूं। यह अक्षांस, देशान्तर व ऊंचाई होती है ताकि बाद में इससे दूरी-ऊंचाई नक्शा बनाया जा सके। आज ज्यादा कुछ नहीं है, बस यही डाटा है। अक्षांस व देशान्तर पृथ्वी पर हमारी सटीक स्थिति बताते हैं। मैं हर दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद अपनी स्थिति नोट कर लेता था। अपने पास जीपीएस युक्त साधारण सा मोबाइल है जिसमें मैं अपना यात्रा-पथ रिकार्ड नहीं कर सकता। हर बार रुककर एक कागज पर यह सब नोट करना होता था। इससे पता नहीं चलता कि दो बिन्दुओं के बीच में कितनी दूरी तय की। बाद में गूगल मैप पर देखा तो उसने भी बताने से मना कर दिया। कहने लगा कि जहां सडक बनी है, केवल वहीं की दूरी बताऊंगा। अब गूगल मैप को कैसे समझाऊं कि सडक तो चूडधार के आसपास भी नहीं फटकती। हां, गूगल अर्थ बता सकता है लेकिन अपने नन्हे से लैपटॉप में यह कभी इंस्टाल नहीं हो पाया।