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वृन्दावन के नाम से दो स्टेशन हैं- वृन्दावन रोड और वृन्दावन। वृन्दावन रोड स्टेशन दिल्ली- मथुरा मुख्य लाइन पर स्थित है। इसके बाद भूतेश्वर आता है, तत्पश्चात मथुरा जंक्शन। जबकि वृन्दावन स्टेशन वृन्दावन शहर में स्थित है। एकदम वीराने में है यह स्टेशन। मथुरा से यहां दिन में पांच बार रेल बस आती है, इतवार को चार बार ही। यह रेल बस सैलानियों के उतना काम नहीं आती, जितना स्थानीयों के।
वृन्दावन के नाम से दो स्टेशन हैं- वृन्दावन रोड और वृन्दावन। वृन्दावन रोड स्टेशन दिल्ली- मथुरा मुख्य लाइन पर स्थित है। इसके बाद भूतेश्वर आता है, तत्पश्चात मथुरा जंक्शन। जबकि वृन्दावन स्टेशन वृन्दावन शहर में स्थित है। एकदम वीराने में है यह स्टेशन। मथुरा से यहां दिन में पांच बार रेल बस आती है, इतवार को चार बार ही। यह रेल बस सैलानियों के उतना काम नहीं आती, जितना स्थानीयों के।
तीन बजे ही हम तीनों प्राणी इस मीटर गेज के स्टेशन पर जम गये। यहां का एकमात्र काफी लम्बा प्लेटफार्म देखते ही मैं समझ गया कि मीटर गेज के यौवनकाल में यहां दूर दूर से बडी ट्रेनें आया करती होंगी। ऐसा है तो दूसरा प्लेटफार्म भी होना चाहिये। अब दूसरा प्लेटफार्म तो नहीं है, लेकिन इसकी निशानी जरूर है। अतिरिक्त रेल पटरियां उखाडकर मथुरा से यहां तक के पूरे सेक्शन को सिग्नल-रहित बना दिया गया है। बीच में दो स्टेशन पडते हैं, दोनों ही हाल्ट हैं। ये दो स्टेशन हैं- मसानी और श्रीकृष्ण जन्मस्थान।
मथुरा के तीन टिकट लेकर हमारे पास घण्टे भर तक प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई चारा नहीं था। इस समय का सदुपयोग मैंने बेंच पर सोने में किया। आंख तब खुली, जब बस के आने की सूचना पाकर पिताजी ने उठाया। हिलती-डुलती रेल बस नजदीक आती जा रही थी।
भारत में कई स्थानों पर रेल बस चलती है- पंजाब में ब्यास-गोइन्दवाल, राजस्थान में मेडता रोड-मेडता सिटी, यूपी में मुरादाबाद-सम्भल, बिहार में दुरौन्धा-महाराजगंज आदि सब ब्रॉड गेज हैं। जबकि गुजरात में महेसाना-तरंगा हिल व यहां वृन्दावन-मथुरा मीटर गेज हैं। इनके अलावा कालका-शिमला लाइन पर भी एक रेल बस चलती है जो नैरो गेज है।
रेल बस एक बस ही होती है, जो रेल की पटरियों पर चलती है। इसमें अक्सर दोनों तरफ ड्राइवर का केबिन होता है, बीच में सवारियों के बैठने का स्थान। इंजन अलग से नहीं लगाया जाता। इन्हें डीएमयू की श्रेणी में रखा गया है, इसीलिये इनका नम्बर 7 से शुरू होता है। डीएमयू की फुल फॉर्म होती है डीजल मल्टीपल यूनिट। डीएमयू में भी अलग से कोई इंजन नहीं लगाया जाता।
इसमें लगभग सभी सवारियां स्थानीय थीं, एकाध साधु भी थे। ड्राइवर के केबिन का दरवाजा पूरे समय खुला रहा, जिससे सामने का दृश्य दिखता रहा। बस में ड्राइवर के अलावा एक गेटमैन व एक कंडक्टर भी रहा। जी हां, कंडक्टर। पांच पांच रुपये लेकर सभी को टिकट देना इसका काम था। रोजाना आने-जाने वाले स्टेशन से टिकट नहीं लेते, बल्कि बस में कंडक्टर से ही टिकट लेते हैं। हमारे पास चूंकि पहले से ही टिकट था, इसलिये हमें कंडक्टर से टिकट लेने की कोई जरुरत नहीं थी।
जहां भी फाटक मिलता, फाटक से पहले बस रुक जाती। गेटमैन बस से उतरता, फाटक बन्द करता, बस आगे बढकर सडक को पार करके खडी हो जाती, गेटमैन फाटक खोलकर पुनः बस में चढ जाता। कई स्थानों पर गेटमैन को हाथ से इशारा करके सडक का ट्रैफिक रोकना पडता। यह चूंकि रोज का काम था, इसलिये फाटकों पर सवारियां चढती भी और उतरती भी।
बीच में मसानी और श्रीकृष्ण जन्मस्थली स्टेशन भी हैं, उनकी समय सारणी भी है लेकिन फाटकों की वजह से इनका कोई महत्व नहीं था। जन्मस्थली स्टेशन पर तो ट्रेन रुकी भी नहीं, हालांकि उससे सौ मीटर पहले फाटक पर जरूर रुकी। जन्मस्थली स्टेशन के नाम-पट्ट के एंगल पर बच्चे झूला डालकर झूल रहे थे।
मथुरा जंक्शन से कुछ दूर वृन्दावन वाली मीटर गेज का स्टेशन है। यह स्टेशन कम बल्कि यार्ड ज्यादा लगता है। मीटर गेज के जमाने में ये रेल बसें मुख्य स्टेशन से ही संचालित होती होंगी। अब मथुरा में मात्र यही बारह किलोमीटर की लाइन मीटर गेज रह गई है।
मुख्य स्टेशन पर पहुंचे। आगरा-मथुरा के विशेषज्ञ रीतेश गुप्ता से फोन करके पूछा कि अब कहां जायें। अभी पांच ही बजे थे। उन्होंने बता दिया कि द्वारकाधीश मन्दिर चले जाओ। साथ ही वहां जाने का रास्ता भी बता दिया।
दस रुपये प्रति सवारी के हिसाब से टम्पू ने हमें उस चौराहे पर छोड दिया जहां से द्वारकाधीश मन्दिर लगभग आधा किलोमीटर पैदल दूरी पर है। मन्दिर पहुंचकर पता चला कि यहां वाले कृष्ण और भी महान हैं। अभी तक सोये हैं, छह बजे उठेंगे।
असल में कृष्ण भी अपने पुजारियों से परेशान रहते होंगे। दिनभर में पांच छह बार उन्हें ‘कारागार’ में बन्द हो जाना पडता है। कहां तो वो कृष्ण जो मथुरा की कारागार तोडते हुए पैदा हुआ था और कारागार ही तोडने पुनः मथुरा आया था, कहां बेचारा यह कृष्ण जो आज धनलोलुप पुजारियों की कारागार में उनकी ही इच्छानुसार कभी प्रकट होता है, कभी कारा-द्वार के पीछे छिप जाता है। थकान पुजारियों को होती है, भुगतना कृष्ण को पडता है। दर्शन तो चौबीस घण्टे होते रहने चाहिये, लेकिन पुजारी चूंकि लगातार काम नहीं कर सकते इसलिये नियम बना दिया कि भगवान का ब्रेकफास्ट का समय है, लंच का समय है, डिनर का समय है या शयन का समय है। बेचारा कृष्ण!
पास में ही यमुना बहती है, हम यमुना किनारे जा बैठे। सामने कासगंज वाली रेलवे लाइन का पुल दिख रहा था, एक ट्रेन भी निकली। पहले यह मीटर गेज थी, अब बडी हो गई है। मुझे नदी किनारे बैठे रहना बहुत अच्छा लगता है, गन्दगी होने के बावजूद भी यहां मन लग गया। पण्डे लोगों को समझा रहे थे इसलिये मुझे भी समझ में आ गया कि सामने यमुना पार कदम्ब वन है।
सवा छह बजे द्वारकाधीश महाराज के दर्शन किये और वापस चल पडे।
अब हमें रात रुकने का कोई ठिकाना ढूंढना था। मैंने पिताजी से कहा कि हम मथुरा स्टेशन पर रुकेंगे, वहां से सुबह सात बजे गोवर्धन जाने वाली ट्रेन पकडने में आसानी रहेगी। पिताजी घबरा गये। उन्हें मालूम है कि मैं स्टेशनों पर किस तरह रुका करता हूं- प्रतीक्षालय में अखबार बिछाया और सो गये। भाई इस प्रस्ताव से खुश था। पिताजी ने मना भी किया लेकिन हमारे आगे उनकी कुछ न चली। यहां तक भी उन्हें लग रहा था कि हम मजाक कर रहे हैं लेकिन जब स्टेशन जाने वाले टम्पू में बैठे तो वे समझ गये कि अब हलाल होना ही होना है।
जब स्टेशन में घुस रहे थे, तब तक उन्होंने पूरी तरह समर्पण कर दिया था। मैं उन्हें लेकर पहुंचा प्लेटफार्म नम्बर एक पर स्थित विश्रामगृह में। एक वातानुकूलित कमरा ही खाली थी- चार सौ का। एक अतिरिक्त आदमी हो तो सौ रुपये और लगते थे। यानी पांच सौ रुपये में वातानुकूलित कमरा मिल गया। मौसम अच्छा था, वातानुकूलन की कोई आवश्यकता नहीं थी, फिर भी हमने दोनों एसी चलाकर देखे। दोनों ठीक काम कर रहे थे। अगर ये काम न कर रहे होते तो हम एसी खराब होने का हवाला देकर पैसे वापसी की मांग करते। इसके बाद पूरी रात एसी नहीं चलाये गये।
सुबह सात बजे तो निकलना मुश्किल है, लेकिन दस बजे चलने वाली अलवर पैसेंजर जरूर पकडनी है गोवर्धन जाने के लिये।
मथुरा-वृन्दावन मीटर गेज रेल बस |
वृन्दावन रेलवे स्टेशन |
एक फाटक पर रुकी बस |
मसानी स्टेशन |
कृष्ण जन्मस्थली स्टेशन |
पिताजी के साथ जाटराम |
द्वारकाधीश के पास यमुना |
यमुना और कासगंज लाइन का रेलवे पुल |
मथुरा गोवर्धन यात्रा
1. वृन्दावन यात्रा
2. वृन्दावन से मथुरा मीटर गेज रेल बस यात्रा
3. गोवर्धन परिक्रमा
Interesting to see rail car....Mast trip hai...
ReplyDeleteMaja Nahin aaya Jaat Ji, Aap ki pichli post ke jaisa adventure nahin hai ismey. Rajnikanta ki film sab action ke liye dekhtey hain, Art movie ke liye nahin. We expect something chilling, adventures like your old post.
ReplyDeletethank you.
मैं बेचारा एक डरपोक इंसान..... हमेशा एडवेंचर नहीं कर सकता। और हां, रेलयात्राएं भी तो एडवेंचर ही होती हैं।
DeleteJaat ji aur darpok! ye to himalaya ki wadiyo se puchna parega? keep it on bhai. good luck.
DeleteKindly tell me which font you use to write in hindi?
रेलबस में परिचालन ख़र्चा कम होता है। कम यात्रियों और अधिक फेरों के लिये यह बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteबहुत अच्छे..
ReplyDeleteपहली फोटो में टेग लाइन सही है क्या?? मथुरा - वृन्दावन होना चाहिए था शायद....
उसे मथुरा-वृन्दावन कर दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteकलकत्ता की तरह ही लग रही है यह बस ,,,,बुढ़ापे में भी तेरे पापा तुझसे ज्यादा फिट लग रहे है नीरज
ReplyDeleteयही तो फर्क है एक शहरी और ग्रामीण में।
Deleteश्रीराम.............
ReplyDeleteश्री राधे -राधे .
शुभ -यात्रा ...........मुकुल -धुळे-MH -18
oye hoye pitaji k sath jaatji ki ankho ki chamak to dekho....
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