Skip to main content

आगरा- बरेली पैसेंजर ट्रेन यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
21 मार्च 2012 को मैं आगरा में रितेश जी के घर पर था। वे एक ब्लॉगर हैं और यात्रा वृत्तान्त लिखते हैं। आज मुझे आगरा से अछनेरा, मथुरा, कासगंज, बरेली होते हुए भोजीपुरा तक जाना था। भोजीपुरा से आगे हल्द्वानी रोड पर एक कस्बा है बहेडी जहां मेरे एक जानकार सतेन्द्र रहते हैं। मुझे आज बहेडी में रुकना था।
आगरा फोर्ट स्टेशन से एक डीएमयू भरतपुर के लिये सुबह पांच बजे के करीब चलती है। छह बजे तक यह अछनेरा पहुंच जाती है। यात्रा शुरू करने से पहले चलिये एक बार आगरा शहर के रेल यातायात पर एक नजर डाल लेते हैं। आगरा का मुख्य स्टेशन है आगरा छावनी। यह दिल्ली-झांसी लाइन पर दिल्ली से दो सौ किलोमीटर दूर है। मान लो हम आगरा छावनी से दिल्ली की तरफ चलते हैं। यहां से निकलते ही हम एक ऐसे पुल से गुजरते हैं जिसके नीचे भी रेल लाइन है। इस लाइन के बारे में थोडी देर में बताऊंगा।

और आगे चलते हैं तो राजा की मण्डी स्टेशन पर पहुंच जाते हैं। इसी स्टेशन से ही दिल्ली वाली लाइन सीधी चली जाती है जबकि एक लाइन दाहिने मुड जाती है। अगर हम दिल्ली वाली को छोड दें और इस दाहिने वाली लाइन पर चलें तो एक लम्बी सुरंग से होते हुए आगरा सिटी स्टेशन पहुंचते हैं। असल में इस सुरंग के ऊपर आगरा शहर बसा हुआ है। अंग्रेजी समय में जब यह लाइन बिछ रही होगी तो उस समय भी यहां आबादी का घनत्व काफी ज्यादा रहा होगा जिसके कारण यहां भूमिगत लाइन बिछानी पडी। आगरा सिटी से आगे यमुना नदी पर बने एक लम्बे पुल को पार करके हम यमुना ब्रिज स्टेशन पर पहुंचते हैं। जब हम पुल पार कर रहे होते हैं, तो हमारे दाहिनी तरफ भी एक पुल है और वो भी रेलवे का ही है। आपको याद होगा कि आगरा छावनी से जब हम चले थे तो हमने रेलवे के ही एक पुल को पार किया था। यह वही लाइन है। पुराने समय में यमुना पर वो दूसरा पुल नहीं रहा होगा। यमुना ब्रिज स्टेशन पर दोनों पुलों से आने वाली लाइनें मिल जाती हैं और आगे टूण्डला चली जाती हैं। टूण्डला दिल्ली-कानपुर लाइन पर दिल्ली से दो सौ किलोमीटर दूर है।
यह तो हुई एक लाइन की बात यानी आगरा छावनी-राजा की मण्डी-आगरा शहर-यमुना ब्रिज वाली लाइन की। यह लाइन प्राचीन काल से ही ब्रॉड गेज है। अब चलते हैं यमुना ब्रिज से वापस दूसरी लाइन पकडकर। यमुना पर बना दूसरा पुल पार करके हम आगरा फोर्ट स्टेशन पहुंचते हैं। यहां आकर हमें फ्लैश बैक में जाना होगा क्योंकि आगे की लाइन प्राचीन काल से ब्रॉड गेज नहीं है। मेरा अन्दाजा है कि यमुना ब्रिज से आगरा फोर्ट को जोडने वाला यमुना का पुल भी बाद में गेज परिवर्तन के समय ही बना होगा। मीटर गेज के जमाने में आगरा फोर्ट एक टर्मिनल स्टेशन रहा होगा। यहां से आगे ईदगाह आगरा स्टेशन है। यहां से निकलते ही एक लूप लाइन डालकर इसे आगरा छावनी से जोडा गया है जिसपर दिन भर में बहुत थोडी गाडियां ही चलती हैं- खासकर आगरा छावनी से जयपुर या बयाना की दिशा में जाने वाली गाडियां। नहीं तो टूण्डला की तरफ जाने वाली सभी गाडियां राजा की मण्डी से निकलती हैं। ईदगाह से आगे वही पुल मिलेगा जिसे हमने अभी थोडी देर पहले पार किया था- आगरा-दिल्ली वाला। इस पुल को पार करते ही सीधी लाइन भरतपुर होते हुए जयपुर चली जाती है जबकि एक लाइन बायें मुड जाती है जो बयाना जाती है। बयाना मथुरा-कोटा के बीच में है। आगरा में सभी लाइनें विद्युतीकृत हैं केवल भरतपुर वाली लाइन को छोडकर।
इससे एक बात समझ में आती है कि आगरा से पूर्वोत्तर भारत, पश्चिमी भारत और दक्षिणी भारत के लिये मीटर गेज की ट्रेनें चला करती थीं। राजस्थान और गुजरात के ज्यादातर हिस्सों में उन दिनों मीटर गेज ही थी। रतलाम से अकोला, पूर्ना के रास्ते सिकन्दराबाद और यहां तक कि रामेश्वरम तक मीटर गेज थी। आगरा-भरतपुर के बीच में अछनेरा है। यहां से मथुरा, बरेली होते हुए मीटर गेज से गोण्डा, गोरखपुर पहुंचना आसान था। गोरखपुर से आगे पूरे उत्तर बिहार और बंगाल में मीटर गेज ही होती थी तो जाहिर है कि मुजफ्फरपुर, दरभंगा, न्यूजलपाईगुडी, गुवाहाटी और डिब्रुगढ, सिल्चर तक आगरा से सीधी मीटर गेज लाइन थी। मुझे पूरा यकीन है कि आगरा से गुवाहाटी तक मीटर गेज की ट्रेन जरूर चला करती होगी। खैर, अब तो सब बडी हो गई हैं।
घण्टे भर बाद छह बजे मैं अछनेरा पहुंच गया। पिछले साल ही अछनेरा से मथुरा वाली लाइन का गेज परिवर्तन का काम खत्म हुआ है तो अब यहां बडी गाडियां चलने लगी हैं। भरतपुर-कासगंज पैसेंजर सुबह सात बजे अछनेरा से चलती है। मैंने कभी भी अछनेरा से बरेली तक इस रूट से सफर नहीं किया था तो मेरे लिये यह नई लाइन थी।
अछनेरा से चलकर खेडा सांधन, परखम, भैंसा और मथुरा जंक्शन। भैंसा के बाद यह लाइन मथुरा-आगरा मुख्य लाइन के नीचे से गुजरती है। मथुरा से वृन्दावन तक अभी भी मीटर गेज की लाइन है और उस पर रेल बस चलती है। यहां से आगे मथुरा छावनी, राया, सोनाई, मुरसान, हाथरस सिटी, मेण्डू और हाथरस रोड। हाथरस रोड एक अलग तरह का स्टेशन है। यह स्टेशन हाथरस जंक्शन के ऊपर बना है। दिल्ली-कानपुर लाइन पर हाथरस जंक्शन नाम का एक स्टेशन है। यह जंक्शन इसलिये है क्योंकि यहां से एक तीसरी लाइन हाथरस किला स्टेशन की तरफ चली जाती है।
कुछ समय पहले मथुरा-बरेली लाइन यानी जिस पर आज मैं यात्रा कर रहा था, मीटर गेज थी। इस मीटर गेज को दिल्ली-कानपुर वाली ब्रॉड गेज के ऊपर पुल बनाकर गुजारा गया था। पुल के नीचे बडी लाइन वाला हाथरस जंक्शन स्टेशन है जबकि पुल के ऊपर मीटर गेज वाला हाथरस रोड। जंक्शन से कुछ सीढियां चढो और रोड पर पहुंच जाओ। जरा सोचिये कि अगर कोई जंक्शन से उचित टिकट लेकर रोड पर पहुंचे तो उसे कितनी दूरी तय करनी पडेगी। कम से कम डेढ सौ किलोमीटर- टूण्डला, आगरा, मथुरा होते हुए। इसी तरह का एक और जोडा मेरे ध्यान में आ रहा है- दिल्ली सराय रोहिल्ला और विवेकानन्द पुरी। सराय रोहिल्ला दिल्ली-रेवाडी लाइन पर है जबकि विवेकानन्द पुरी दिल्ली-रोहतक लाइन पर। लेकिन दोनों स्टेशनों के बीच में मात्र एक दीवार ही है। मान लो हम किसी ट्रेन से सराय रोहिल्ला पर उतरते हैं और हमें प्रतापनगर मेट्रो स्टेशन जाना है तो फुट ओवर ब्रिज से बाहर निकलते समय हमें विवेकानन्द पुरी भी पार करना पडेगा।
हाथरस रोड से आगे चलते हैं- रति का नगला, बस्तोई, सिकंदरा राव, अगसौली, मारहरा और कासगंज जंक्शन। यहां से एक लाइन फर्रुखाबाद होते हुए कानपुर चली जाती है। पहले यह कानपुर वाली लाइन भी मीटर गेज थी, हालांकि अब नहीं है। कासगंज से एक लाइन बरेली भी जाती है जो अभी भी मीटर गेज है। मुझे अब इसी मीटर गेज पर यात्रा करनी थी।
कासगंज अब जिला भी है। पहले यह एटा के अन्तर्गत आता था लेकिन करीब दो साल पहले मायावती से इसे कांशीराम नगर के नाम से जिले का दर्जा दे दिया और यह उत्तर प्रदेश का 71वां जिला बना था। हालांकि उसके बाद तीन जिले और भी बने, इसलिये अब यूपी में 74 जिले हैं।
डेढ बजे के करीब यहां से पीलीभीत के लिये मीटर गेज की पैसेंजर चली। असल में बात यह है कि इस साल रेल बजट में घोषित हुई अमृतसर-कानपुर एक्सप्रेस इसी रूट से चला करेगी। बरेली से आगे लालकुआ तक लाइन गेज परिवर्तन के लिये बन्द है, तो पूरी उम्मीद है कि वहां बडी ट्रेन चलते ही इस लाइन को भी बन्द कर दिया जायेगा। मेरे एक दोस्त हैं बरेली के रहने वाले- अभिषेक कश्यप। उन्होंने बताया कि गंगा पर पुल बनाने का काम जोर-शोर से चल रहा है। जिस दिन भी वो पुल बनकर पूरा हो जायेगा, यह लाइन बन्द कर दी जायेगी। इसलिये मेरे लिये जरूरी हो गया था कि बन्द होने से पहले इस लाइन पर भी यात्रा की जाये। हालांकि मेरी पहली मीटर गेज यात्रा बरेली-लालकुआ रही है जो अब बन्द है।
कासगंज से चले तो काफी लम्बा गोल चक्कर काटकर कासगंज सिटी पहुंचते हैं। यह स्टेशन एकदम वीराने में बना हुआ है और यहां सिटी जैसी कोई बात नहीं दिखती। आगे चलते हैं- गंगागढ आता है। गंगा के नाम से बहुत सारे स्टेशन हैं- गंगाधाम, गंगासहाय, गंगाधारा, गंगाधरा, गंगाधरपुर, गंगागंज, गंगाझरी, गंगाखेड, गंगानिया, गंगापुर सिटी, गंगारामपुर आदि। गंगागढ के बाद आता है सोरों शूकर क्षेत्र।
जब हम छठी कक्षा में पढते थे तो मुझे कुछ कुछ ऐसा याद है कि हम रटते रटते थक जाते थे कि कबीरदास जी सोरों में पैदा हुए थे और मगहर में मरे थे। लेकिन हम उन्हें हमेशा मगहर में पैदा करके सोरों में मारने जैसा चमत्कार करते रहे। एक बार गया था मैं गोण्डा से गोरखपुर पैसेंजर ट्रेन से तो अपनी ट्रेन मगहर में काफी देर तक रुकी रही। वो स्टेशन पूरी तरह कबीरमय है। कबीर की मूर्तियां और उनके दोहे पूरे स्टेशन पर छाये हुए हैं। जबकि यहां सोरों में कुछ भी नहीं मिला। और मिलेगा भी कैसे? असल में कबीरदास जी यहां पैदा ही नहीं हुए थे, सोरों तुलसीदास जी का जन्मस्थान है।
सोरों के बाद मानपुर नगरिया, कछला ब्रिज...। यहां गंगा नदी पार करनी होती है। गंगा पार करते ही स्टेशन है। इसके बराबर में ही एक पुल का निर्माण कार्य और चल रहा है। उसपर बडी लाइन बिछेगी। कछला ब्रिज से आगे कछला हाल्ट, बितरोई, उझानी, शेखूपुर हाल्ट, बदायूं। बदायूं से सम्बन्धित एक घटना याद आ रही है। मुझे बचपन से ही नक्शे पढने का शौक है। एक बार उन्हीं दिनों मेरे हाथ लगा उत्तर प्रदेश का राजनैतिक नक्शा। बस फिर क्या था, मैंने उसका अध्ययन करना शुरू कर दिया। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत,... ये क्या है? BARAUT (बडौत) लिखा हुआ था मोटे मोटे अक्षरों में यानी कि तहसील। मैंने इसे बराऊत पढा। मैं चक्कर में पड गया कि बागपत में यह बराऊत नाम की तहसील कहां से आ गई? खैर, होगी। आगे पढते हैं। इसी तरह एक जगह और अटक गया बडाऊन (BADAUN-बदायूं) पर। नक्शे में इसे जिला बताया गया था। मैं उन दिनों उत्तर प्रदेश और आधुनिक उत्तराखण्ड के सभी जिलों के नामों से अच्छी तरह परिचित था। फिर यह बडाऊन नाम कुछ नया सा लगा। इस पर भी काफी देर तक माथापच्ची की लेकिन कुछ भी हाथ नहीं आया। बराऊत और बडाऊन दोनों की समस्याओं का समाधान हुआ, जब मुझे उत्तर प्रदेश का हिन्दी नक्शा मिला। तब पता चला कि ये तो बडौत और बदायूं हैं।
बदायूं से आगे घटपुरी, मकरन्दपुर, बमियाना, रामगंगा ब्रिज और बरेली जंक्शन। रामगंगा ब्रिज स्टेशन से पहले ही हमें रामगंगा नदी पार करनी होती है और नदी का पुल पार करने से पहले अलीगढ और मुरादाबाद से चन्दौसी के रास्ते आने वाली बडी लाइन भी मिल जाती है। यहां बडी लाइन और छोटी लाइन दोनों एक दूसरे में समा जाती हैं और साथ साथ ही रामगंगा पुल पार करती हैं। दोनों के लिये अलग अलग पुल नहीं है।
बरेली पहुंचकर मेरी आज की यात्रा का अन्त हो जाता है। अब मुझे बहेडी जाना था। बहेडी बरेली-हल्द्वानी के बीच में है। वैसे तो बहेडी में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन गेज परिवर्तन के कारण वहां ट्रेनें नहीं चलतीं। भोजीपुरा तक ट्रेनें मिलती हैं, इसलिये मैं इसी मीटर गेज की ट्रेन से भोजीपुरा तक पहुंच गया। भोजीपुरा से बहेडी के पास कनमन पहुंचना कोई मुश्किल नहीं था।

भैंसा रेलवे स्टेशन। है ना अजीब?? अच्छा, मैंने एक स्टेशन भैसलाना भी देखा है।

मथुरा जंक्शन स्टेशन



हाथरस सिटी स्टेशन। हाथरस के नाम से कई स्टेशन हैं- हाथरस सिटी, हाथरस जंक्शन, हाथरस रोड, हाथरस किला।

हाथरस रोड स्टेशन। इसके पास ही कुछ सीढियां नीचे उतरकर हाथरस जंक्शन है।

कासगंज जंक्शन। यहां से एक लाइन कानपुर जाती है, एक बरेली और तीसरी मथुरा। बरेली वाली मीटर गेज है, बाकी दोनों बडी बन चुकी हैं।

गंगागढ स्टेशन

सोरों शूकर क्षेत्र। यहां कबीरदास जी पैदा हुए थे।

गंगा पर बना पुल

गंगा पर एक पुल और भी बन रहा है। वह बडी लाइन के लिये बन रहा है।



गंगा और उसके किनारे पर रेत

गंगा नदी

कछला ब्रिज स्टेशन। इसे ब्रिज नाम इसीलिये दिया गया है कि यह गंगा के पुल के पास ही है। गढमुक्तेश्वर पुल स्टेशन भी इसी तरह का है।

ब्रॉड गेज लाइन बनाने का काम शुरू हो चुका है। प्राचीन मीटर गेज लाइन अब कुछ ही दिनों की मेहमान है।

रामगंगा पुल से पहले बडी लाइन और मीटर गेज की लाइन आपस में मिल जाती हैं और रामगंगा नदी को पार करती हैं। यह है एक ट्रॉली जो ट्रैक जांच के काम आती है।

ब्रॉड गेज और मीटर गेज दोनों लाइनों को एक ही पुल से रामगंगा पार कराई जाती है। दोनों लाइनों के लिये अलग अलग पुल बनाने का झंझट खत्म।

नदियां हमेशा से आस्था का केन्द्र रही हैं। पुल से गुजरते समय लोगबाग नदियों में पैसे फेंकते हैं। रामगंगा नदी भी अपवाद नहीं है। नीचे नदी से पैसे इकट्ठे करते बच्चे।

रामगंगा नदी

रामगंगा नदी

रामगंगा ब्रिज रेलवे स्टेशन

और आखिर में बरेली जंक्शन
अगला भाग: सातताल और नल दमयन्ती ताल

आगरा नैनीताल यात्रा वृत्तान्त
1. ताजमहल
2. आगरा का किला
3. आगरा- बरेली पैसेंजर ट्रेन यात्रा
4. सातताल और नल दमयन्ती ताल
5. कार्बेट म्यूजियम और कार्बेट फाल

Comments

  1. हो सकता है वे इसका सही नाम 'बड़ा ऊत' ही लि‍खना चाह रहो हों जबकि‍ बराउत/बड़ौत BARAUT उन्‍हें ग़लत नाम लगता रहा हो ☺

    ReplyDelete
  2. घटपुरी की गुझिया, कछला के गंगाघात, सोरों के पंडे और बरेली में हाशिम का सुर्मा दिखा कि नहीं?

    ReplyDelete
    Replies
    1. कछला के गंगाघाट दिखे बस। और ना दिखा कुछ भी।

      Delete
  3. बहुत सुंदर ....आपकी यात्रा वृतांत पढकर और फोटो देखकर मज़ा आ गया
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. रेलवे वालों से बात कर तुझे ब्रांड एम्बेसेडर बना देंगे !!!

    ReplyDelete
  5. काफी विस्तृत में जानकारी दी इस रेल रास्ते के बारे में.....

    ReplyDelete
  6. नीरजजी, कछला ब्रिज के बारे में आप एक दिलचस्प बात का जिक्र करना भूल गए। पुराना कछला ब्रिज डबल सिस्टम है यानि कि ट्रेन की पटरी और सड़क एक साथ एक ही पुल पर हैं। ट्रेन की पटरी सड़क के बीचोंबीच बनी है। जब ट्रेन पुल पार करती है तो दोनों ओर का सड़क यातायात फाटक बन्द कर रोक दिया जाता है। ट्रेन के निकलते ही फाटक खोल दिया जाता है और फिर उसी पुल पर से बसें-कारें-ट्रक आदि गुजरते हैं।

    - शलभ सक्सेना, आगरा
    Shalabh310@yahoo.com

    ReplyDelete
  7. neeraj bhai ji finally aapne hamara bareilly bhi dekh liya...maine mathura se bareilly 4 year travel kiya hai isi route se..2006 se 2010...aajkal allahabaad me hu to apni pyari cute chhoti line ki bahut miss karta hu...anyway Facebook par ek group bana rakha hai kewal chhoti line k liye...
    https://www.facebook.com/groups/irfcamgng/
    mera ghar Izzatnagar me hai waise to...
    aapne ghatpuri ki uniquly tasty gujiya miss kar di...and shayad kasganj ki puri-sabji bhi..i miss both..
    waise bareilly se aapko jo bhi chahiye ho jab bhi bata dijiyega haazir ho jaayega :)
    facebook par hamari request accept kar lijiyega.
    kabhi agar time mile to bataiyega aapko Meter Gauge k Loco YDM4 (mera fav loco in this world) me baitha k yatra bhi kara denge...
    aapka swagat hai hjamesha bareilly aur iske aas paas areas me....
    tk ur care..

    ReplyDelete
  8. aur bhai ji SORON me kabir das ji nahi....apne RamChrit Mans k rachaita Shri Tulsi Das ji ka janam hua tha...plz correct it... :)
    i love soron...
    so cool n quiet...

    ReplyDelete
  9. Neeraj ji aapne jis bhisha station ka jikr kiya hai or bheslana station ka bhi main waha ka hi rahne wala rajasthan dist. jaipur lakin aap waha kab yatra ki thi mera bhi maan karta hai ki kabhi aapke sath yatra karu !!!kya ye ho sakta hai hai kya ....abhi maine jaipur mine rahta hu kabhi jaipur aao to anpne blog par update kar dena....sayad milna ho jaye ..

    ReplyDelete
  10. भैंसा रेलवे स्टेशन। है ना अजीब?? अच्छा, मैंने एक स्टेशन भैसलाना bihi dekha. kyo sali satation nahi dekha ya bhagege nahi dekha

    ReplyDelete
  11. Soron sukar kshetra mein tulsedas ka janm hua tha kabeer dass ka nhe

    ReplyDelete
  12. Soron sukar kshetra ek pracheen teerth h or yahan sant tulsee dass ka janm sthan bhi hai

    ReplyDelete
  13. Soron sukar kshetra mein tulsedas ka janm hua tha kabeer dass ka nhe

    ReplyDelete
  14. बहुत खूब कभी इनमें से कुछ जगह का सफर मे कर चुका हूं ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब