29 सितम्बर 2015
आपको याद होगा कि हम बद्रीनाथ नहीं जाना चाहते थे क्योंकि बद्रीनाथ के साथ साथ वसुधारा, सतोपंथ, हेमकुण्ड और फूलों की घाटी को हम एक साथ देखते और पूरे आठ-दस दिनों के लिये आते। लेकिन कल करण के बद्रीनाथ प्रेम के कारण हमें भी आना पडा। हमारे पास बद्रीनाथ में बिताने को केवल एक ही दिन था। जोशीमठ से लगभग 50 किमी दूर है बद्रीनाथ। हमने जोशीमठ में ही सामान छोडकर रात होने तक वापस यहीं आ जाने का विचार किया ताकि कल वापस दिल्ली के लिये निकला जा सके और उजाले में अधिकतम दूरी तय की जा सके।
तो नहा-धोकर और गोभी के परांठे का नाश्ता करके साढे दस बजे बद्रीनाथ के लिये निकल पडे। शुरूआती दस किलोमीटर यानी अलकनन्दा पुल तक उतराई है, उसके बाद चढाई है। अलकनन्दा पुल के पास ही विष्णु प्रयाग है जहां अलकनन्दा में धौलीगंगा आकर मिलती है। धौलीगंगा घाटी बडी ही विलक्षण है। 1962 से पहले कैलाश मानसरोवर जाने का एक रास्ता यहां से भी था। वह रास्ता धौलीगंगा घाटी में ऊपर चढता था और नीति दर्रा पार करके यात्री तिब्बत में प्रवेश करते थे। अब तो नीति दर्रा इतना दुर्गम हो गया है कि कोई आम भारतीय भी वहां नहीं जा सकता। ऐसी घटनाओं का असर वहां के रहन-सहन पर भी पडता है। कैलाश मार्ग पर स्थित होने के कारण पहले धौलीगंगा घाटी में खूब चहल-पहल होती होगी, लेकिन अब कौन वहां जायेगा और क्यों जायेगा? हां, उधर जोशीमठ से निकलते ही तपोवन है और भविष्य बद्री है। इसके साथ ही ट्रेकिंग के शौकीनों के लिये नन्दा देवी बेस कैम्प और चांगबांग ग्लेशियर भी आकर्षण के केन्द्र हैं।
गोविन्द घाट से रास्ता हेमकुण्ड और फूलों की घाटी जाता है। यहां काफ़ी बडा पार्किंग मैदान है जो उस समय खाली पडा था। फिर भी सरदारों की कई गाडियां और बाइकें वहां खडी थीं। कल जब हम जोशीमठ आ रहे थे और उससे भी चार दिन पहले जब रामनगर से चमोली आ रहे थे तो हमें रास्ते में कई बार सरदार बाइक वाले मिल जाते थे जो ज्यादातर एक बाइक पर तीन-तीन बैठे होते और सभी बिना हेलमेट के होते। बाइक भी बेहद गन्दे तरीके से चलाते। निशा ने पूछा था कि इतने सरदार बद्रीनाथ क्यों जा रहे हैं? क्या वे भी बद्रीनाथ में उतनी ही आस्था रखते हैं जितनी हम। मैंने जवाब दिया- ये बद्रीनाथ वाले सरदार नहीं हैं बल्कि हेमकुण्ड साहिब जाने वाले हैं। इनमें से ज्यादातर तो हेमकुण्ड देखकर ही वापस लौट आयेंगे जबकि कुछेक बद्रीनाथ भी देखेंगे।
हमें इस यात्रा में न हेमकुण्ड जाना था और न फूलों की घाटी। इसलिये गोविन्द घाट में बिना रुके चलते रहे। इसके बाद पाण्डुकेश्वर है और फिर अच्छी सडक गायब। चढाई अच्छी-खासी है। एक बजे बद्रीनाथ पहुंचे। भूख लग आई थी। जब तक पेट-पूजा की, ढाई बज गये थे। मन्दिर में पहुंचे तो देखा कि द्वार बन्द है और चार बजे खुलेंगे। अब हमारे पास लगभग डेढ घण्टा था। मैंने सुझाव दिया कि इस दौरान माणा घूम आते हैं लेकिन करण ने कहा कि बद्री-दर्शन के बाद ही माणा जायेंगे। मैं हालांकि इसमें राजी तो नहीं था लेकिन करण की बात मान ली। मेरी यह केवल औपचारिक बद्रीनाथ यात्रा है। विस्तार से इस पूरे इलाके को देखने फिर कभी आना है। माणा इस बार नहीं देखेंगे तो अगली बार तो देखना ही है।
मन्दिर के सामने ही गर्म पानी का कुण्ड है। हाथ डाला तो होश उड गये। पानी भयंकर गर्म था। मैं पहले भी कई स्थानों पर प्राकृतिक गर्म पानी के कुण्डों में नहाया हूं। पता था कि शुरू में पानी गर्म लगता है लेकिन जब उसमें घुस जाते हैं तो सामान्य लगने लगता है। लेकिन यहां वो बात नहीं थी। यह सामान्य होने वाला पानी नहीं था। इसमें हाथ भी नहीं डाला जा रहा था। एक लडके से बाल्टी और मग लिये और थोडा पानी बाल्टी में भरा। फिर उसे हिला-हिलाकर, फूंक मार-मारकर कुछ ठण्डा किया, उसके बावजूद भी जब सिर पर डाला तो लगा कि सिर फट जायेगा। लेकिन हमारे पास एक घण्टा था, तब तक यहीं पानी-पानी खेलते रहे।
चार बजे द्वार खुले और भीड न होने के कारण तुरन्त ही दर्शन करके, प्रसाद चढाकर बाहर आ गये। जिस लडके से हमने नहाने के लिये बाल्टी और मग लिये थे, उसकी इच्छा थी कि हम प्रसाद भी उसी से लें। लेकिन तब तक हम प्रसाद ले चुके थे। हमने उसे पैसे देने चाहे लेकिन उसने मना कर दिया। एक घण्टे तक बाल्टी-मग हमारे पास रहे, वो यह कहकर बिना पैसे लिये चला गया कि आप जब प्रसाद ले ही चुके तो कोई बात नहीं, मैं नकद पैसे नहीं लूंगा।
कुछ राजस्थानी लोग एक पण्डे से अपने पूर्वजों की बद्रीनाथ यात्रा के बारे में जानने को उत्सुक थे। पण्डों के पास प्राचीन पोथियां होती हैं जिनमें ये लोग यात्रियों का हिसाब किताब रखते हैं। उत्सुकतावश हम भी उन्हें देखने लगे। पण्डे ने थोडी ही देर में उनके पूर्वजों को उनसे मिला दिया। सभी बडे खुश हुए। अब इस पोथी में नाम लिखाने की बारी इनकी थी ताकि इनके बाद कोई उस गांव का या उस परिवार का सदस्य आये तो वो भी देख सके।
निशा ने अपने घर पर बता दिया कि हम बद्रीनाथ में हैं। वे लोग धार्मिक किस्म के लोग हैं। तुरन्त आदेश आया कि दो-मुखी रुद्राक्ष लाना है। हम एक दुकान में गये तो दो-मुखी रुद्राक्ष 450 रुपये का मिला। यहां 14-मुखी रुद्राक्ष भी देखने को मिला जो पचास हजार रुपये का था। भारत में रुद्राक्ष नेपाल से आता है। कुछ लोग मशीन से इसके मुख बढा देते हैं और ऊंचे दामों पर बेचते हैं। दूसरा आदेश आया- बद्रीनाथ में एक ऐसी जगह है जहां ऊपर से पानी गिरता है। उसके नीचे जायेंगे तो पापियों पर पानी नहीं गिरता जबकि पुण्यात्माओं पर कुछ बूंदें गिर जाती हैं। वहां भी जरूर जाना। निशा ने मुझसे ऐसी जगह के बारे में पूछा। मैंने बताया कि 3 किलोमीटर आगे माणा है और उससे 6 किमी आगे पैदल चलने पर वसुधारा प्रपात है। वह इतनी ऊंचाई से गिरता है कि पतली सी जलधारा नीचे तक आते-आते वायु में विलीन हो जाती है और पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदें ही नीचे पहुंचती हैं। 6 किलोमीटर पैदल जाना है और हमारे पास समय नहीं है- निशा ने मना कर दिया।
साढे चार बज चुके थे। वापस जोशीमठ जाने में दो घण्टे लगेंगे यानी अगर अभी चलते हैं तो जोशीमठ पहुंचते-पहुंचते अन्धेरा हो जायेगा। माणा जाना स्थगित कर दिया। माणा यहां से केवल तीन किलोमीटर दूर ही है लेकिन ऐसी जगहों पर जाकर तुरन्त वापस मुडना मुझे पसन्द नहीं। कभी फुरसत से जायेंगे।
सात बजे जोशीमठ पहुंचे। इससे पहले गोविन्दघाट में रुककर चाय भी पी। इसी दौरान दो पंजाबी गाडियां बडी तेजी से जोशीमठ की तरफ से आईं और सर्र से पार्किंग में घुस गईं। यह देखकर हमारे भी और दुकान वाले के भी होश उड गये। दुकान वाले ने बताया- पंजाबी ऐसे ही होते हैं। ये लोग इसी तरह गाडियां चलाते हैं। यहां अगर कोई दुर्घटना होती है या कोई गाडी नीचे खाई में गिरती है तो उसकी वजह ये पंजाबी ही होते हैं। या तो पंजाबी मरते हैं या फिर हम लोग।
बद्रीनाथ |
चौदह मुखी रुद्राक्ष |
वापस जोशीमठ |
अगला भाग: जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
Ghaziabad 524 km. Bahut dilchasp.
ReplyDeleteतो इसके पीछे वाला बोर्ड नहीं पढ़ा आपने... दिल्ली 525
Deleteजाटराम ने पर्साद लिया यकिन नही होता
ReplyDeleteहमारे पहाड़ के सबसे बड़े तीर्थों में से एक है, प्रसाद तो लेना बनता था...
Deleteविवाह के बाद जिंदगी में बदलाव जरूर आता है. प्रसाद तो लेना ही था। रुद्राक्ष बेचने वाले दिल्ली , हरिद्वार से वहां जाते हैं।
ReplyDeleteवहां पर नकली रुद्राक्ष ज्यादा मिलता है। अच्छा हुआ वसुधारा की परीक्षा से बच गए।
बदलाव आवश्यक हैं... चाहे विवाह के बाद हो या कभी भी हो...
Deleteनीरज जी आपके लेख मे हमे १४ मुखी रूद्राक्ष की कीमत के बारे मे जनकर अचछा लाग ।
ReplyDeleteधन्यवाद जसवंत जी...
DeleteJai Badri Vishal...
ReplyDeleteजय हो...
Deletechalo karan ne badri vishal ke dershan kara hi deya.vase aap balti me phunk kyo mar rehe ho.
ReplyDeleteसचिन भाई... पानी ठण्डा कर रहा हूँ...
Delete"तब तक यहीं पानी पानी खेलते रहे" अद्भुत:')
ReplyDeleteआपकी लेखन शैली ऐसी छोटी छोटी बातों की वजह से अतुलनीय बन जाती है।
तीन-चार साल हो गए आपको पढ़ते को पर आज भी आपकी ये कला आश्चर्यचकित कर जाती है।
धन्यवाद अंशुल जी...
DeleteParivartan sansar ka niyam he ye bat mene aapko 4 Year pahale batayi thi .Thanks to Nisha jo hamare hero me badlav aaya . Great Niraj & Nisha
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश भाई...
Deleteबहुत अच्छे नीरज भाई। आपके यात्रा विवरण और चित्रों से हमारी भी घूमने की ईच्छा की कुछ पूर्ति तो हो ही जाती है। दिल खुश हो जाता है। जानकारी भी मिल जाती है। आपकी हर यात्रा शुभ हो।
ReplyDeleteधन्यवाद कुलवंत जी...
Deleteइस बार पोस्ट पढ़ने में थोड़ी देर हो गयी पर जब पढ़ा दिल खुश हो गया। घर बैठे बद्रीनाथ के दर्शन करवाने के लिए धन्यवाद। मन्दिर के द्वार पे बैठा जोड़ा सुन्दर लग रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद निशांत जी...
Deleteराम राम जी, आपके द्वारा एक बार और बदरीनाथ जी की यात्रा करली, धन्यवाद......
ReplyDeleteनीरज भाई , ये शायद पहली ऐसी जगह है बद्रीनाथ जहां मैं आपसे पहले दो बार होकर आया ! हाहाहा , अन्यथा तो मैं हमेशा आपको ही फॉलो करता हूँ और आपके द्वारा लिखी गयी कहानियों और वृतान्तों के आधार पर अपना schedule तय करता हूँ ! जय बद्रीनाथ
ReplyDeleteथोड़ी अक्ल से काम लेता और पास की नदी से ठंडा पानी लाता फिर मिलकर मस्त नहाता , मैंने ऐसे ही किया था
ReplyDeleteJahan badri narayan rehte hain..us bhumi ko vaikunth kehte hain..
ReplyDeleteSach me bahut acha lagta hai vahan.har waqt bhagwan ka ehsas hota hai.
खूबसूरत यात्रा वर्णन।
ReplyDeleteभाई ४ बार बद्रीनाथ व केदारनाथ की यात्रा की है किंतु बस द्वारा जाने के कारण रास्ते के सभी दर्शनीय स्थल छूट जाते है है इस बार जून माह में फिर इरादा है क्या हम बाईक से यात्रा कर सकते है या क्या क्या परेसानी हमारे आ सकती हैं । थोड़ा सा मार्ग दर्शन करें।
ReplyDeleteहाँ जी, बाइक से जा सकते हैं। और कोई खास परेशानी नहीं आएगी।
Deleteधन्यवाद बंधु ....!! वैसे पिछवाडे की दुखन के अलावा सायद ओर कोई ना आये। या कुछ तिव्र ढलान पर उतरते समय आ सकती हैं।
Deleteआभार आपका!!