Skip to main content

सतपुडा नैरो गेज- छिंदवाडा से नैनपुर

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
अभी पिछले दिनों अपना मूड बना सतपुडा नैरो गेज वाली लाइन देखने का। इस सिलसिले में अगर कोई और होता तो वो सीधा जबलपुर जाता। लेकिन इधर ठहरे टेढी खोपडी वाले, छिंदवाडा जा पहुंचे। छिंदवाडा से नैनपुर तक कई गाडियां चलती हैं, सारी की सारी पैसेंजर। मैं साढे बारह बजे चलने वाली गाडी (58853) में जा धरा। यह गाडी शाम को सात बजे नैनपुर पहुंचा देती है।

यह इलाका भारत का सबसे व्यस्त और घना नैरो गेज वाला इलाका है। यहां रेल लाइन की शुरूआत 1905 के आसपास हुई थी। यहां सतपुडा की पहाडियों का बोलबाला है। ये पहाडियां इस मार्ग पर सफर को और भी मजेदार बना देती है। आबादी बहुत कम है। हालांकि ट्रेन में भीड बहुत होती है। गाडी की रफ्तार भी कम ही रहती है। लोगों को तेज यातायात उपलब्ध कराने के लिये इस नैरो गेज को उखाडकर ब्रॉड गेज में बदला जायेगा। जबलपुर-बालाघाट खण्ड पर आमान-परिवर्तन का काम शुरू भी हो चुका है।


छिंदवाडा से नैनपुर तक कुल बीस स्टेशन हैं। इनमें सिवनी सबसे बडा स्टेशन है। सिवनी जिला भी है। बीस स्टेशन और उनकी समुद्र तल से ऊंचाई इस प्रकार हैं:

1. छिंदवाडा जंक्शन (670.9 मीटर)

2. उमरिया-ईसरा

3. झिलीमिली

4. मरकाहांडी

5. चौरई

6. काराबोह (639.37 मीटर)

7. कपुरधा

8. समसवाडा

9. पीपरडाही

10. मातृधाम

11. सिवनी (613.15 मीटर)

12. भोमा

13. कान्हीवाडा

14. जुरतरा

15. पलारी (458.9 मीटर)

16. खैरी

17. केवलारी (450.5 मीटर)

18. गंगाटोला

19. खैररांजी

20. नैनपुर जंक्शन (439.39 मीटर)

छिंदवाडा जंक्शन
उमरिया-ईसरा
चौरई
काराबोह
पीपरडाही
मातृधाम
सिवनी
भोमा
कान्हीवाडा
जुरतरा
पलारी
खैरी
केवलारी
गंगाटोला
खैररांजी
नैनपुर भारत का सबसे बडा नैरोगेज जंक्शन स्टेशन है। यहां से चार दिशाओं में लाइनें जाती हैं- जबलपुर, मण्डला फोर्ट, बालाघाट और छिंदवाडा।

नैनपुर से मुझे बालाघाट जाना था। ट्रेन थी रात बारह बजे के बाद (58868)। यानी पांच घण्टे बाद। सोचा कि बालाघाट तक बस से चला जाता हूं। लेकिन नैनपुर से किसी भी दिशा में बाहर जाने के लिये बस ही नहीं मिली- शाम सात बजे भी नहीं। लोगों ने बताया कि नैनपुर में बस सेवा नहीं है। छोटी जीपें चलती हैं, वो भी मण्डला तक या फिर ट्रेन। मन मारकर स्टेशन पर ही रुकना पडा बारह बजे वाली ट्रेन पकडने के लिये।

नैनपुर बडा स्टेशन है। चार प्लेटफार्म हैं। लेकिन भीड नहीं थी। इसलिये सोने के लिये बेंच आराम से मिल गई। गर्मी तो लगी नहीं, हां कुछ मच्छर जरूर लगे। उनसे बचने के लिये चादर ओढ ली। बारह बजे का अलार्म लगा लिया।

जब अलार्म बजा तो गाडी आ चुकी थी। इस गाडी में स्लीपर क्लास का डिब्बा भी है- नैरो गेज में स्लीपर क्लास। गिने-चुने लोग ही होंगे जिसने इसे देखा होगा या सफर किया होगा। टीटी ने सीट देने से मना कर दिया। मजबूर होकर जनरल डिब्बे में जाना पडा। भीड तो थी ही लेकिन दरवाजा बन्द करके प्लास्टिक शीट बिछाने की जगह मिल गई। दो घण्टे बाद बालाघाट आने तक कई बार आंख लगी और खुली।


सतपुडा नैरो गेज
1. यात्रा सतपुडा नैरो गेज की- दिल्ली से छिन्दवाडा
2. सतपुडा नैरो गेज- छिन्दवाडा से नैनपुर
3. सतपुडा नैरो गेज- बालाघाट से जबलपुर

Comments

  1. अरे वाह!!अब जबलपुर का इन्तजार है/// जबलपुर ब्लॉगर्स से मिले कि नहीं भई?

    ReplyDelete
  2. यायावरी पर हिन्दी का सर्वोत्तम ब्लॉग!

    और, आप तो रेलवे के बारे में मुझसे कहीं ज्यादा जान गये होंगे बन्धु! निश्चय ही।

    ReplyDelete
  3. डाकी, स्टेशन के बोर्ड तो दिखा दिये सारे, रस्ते की फ़ोटू भी चेप देता। हम भी सतपुड़ा की पहाडियां देखकर पचमढ़ी भ्रमण याद कर लेते।
    ईर्ष्या होती है यार तुमसे बहुत बार, अपने मन की कर पा रहे हो:))

    ReplyDelete
  4. वाह...सबसे अच्छी बात है की मस्ती के साथ साथ जानकारी भी मिलती रहती है यहाँ :)

    ReplyDelete
  5. जबलपुर से गोंदिया रूट पर मैं भी दो-तीन बार गया हूँ. तब स्टीम इंजिन भी लगते थे. चढ़ाई पर इंजिन के पहियों के नीचे खलासी रेत डालते चलते थे - सो ट्रेन की गति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
    एक बार इस रूट की सिंगल लाइन पर इंजिन 2 बार फेल हो गया. 12 घंटे की यात्रा 36 घंटे की हो गई थी. तब से तौबा कर लिया था. बाकी प्राकृतिक दृश्य तो लाजवाब है इस रूट में.

    ReplyDelete
  6. लगता है हम भी ट्रेन में चल रहे हैं।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही अच्छे जानकारी नीरज जी

    ReplyDelete
  8. आप जैसा कोई नहीं...आप महान हैं...भारतीय रेलवे को आप पर गर्व है...

    नीरज

    ReplyDelete
  9. जाट महाराज की जय
    भटकते, ढूंढते, खोजते, घूमने वाले जाटों की जय,
    लगता है, कि घूमने का ठेका जन्म से ही लेकर आये हो,
    अब ये बताने का कष्ट करो कि ये नैरो व मीटर गेज वाली कितनी लाईन अभी बाकि है।

    ReplyDelete
  10. बहुत ही अच्छे जानकारी| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  11. महोदय आपने अपने यात्रा व्रतांत मे खूब लिखा है| उसमे थोड़ी बहुत त्रुटियाँ भी हैं, आपके बताए अनुसार नैनपुर मे बसें नहीं चलती, परंतु यहाँ रात्री कालीन बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं, और छोटी जीप टेक्सी आदि तो केवल नैनपुर के आस पास के गाँव तक ही चलती है| महोदय जी नैनपुर और इसके आस पास के दूसरे छोटे बड़े गाँव तहसील ज़िलो की लो बखूबी स्लीपर कोच को जानते पहचानते है और इसमे सफर भी करते है|

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैंने नहीं कहा कि नैनपुर में बसें नहीं चलतीं। मुझे बालाघाट जाना था बस से। खूब पूछताछ की, बहुत लोगों से पूछा, सडक पर काफी चहलकदमी भी की लेकिन कोई साधन नहीं मिला।
      मैं ठहरा दिल्ली वासी, मुझे क्या पता नैनपुर का? जैसा स्थानीय लोग बतायेंगे, मानना पडेगा।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 10 मई 2014 हरिपुरधार के बारे में सबसे पहले दैनिक जागरण के यात्रा पृष्ठ पर पढा था। तभी से यहां जाने की प्रबल इच्छा थी। आज जब मैं तराहां में था और मुझे नोहराधार व कहीं भी जाने के लिये हरिपुरधार होकर ही जाना पडेगा तो वो इच्छा फिर जाग उठी। सोच लिया कि कुछ समय के लिये यहां जरूर उतरूंगा। तराहां से हरिपुरधार की दूरी 21 किलोमीटर है। यहां देखने के लिये मुख्य एक ही स्थान है- भंगायणी माता का मन्दिर जो हरिपुरधार से दो किलोमीटर पहले है। बस ने ठीक मन्दिर के सामने उतार दिया। कुछ और यात्री भी यहां उतरे। कंडक्टर ने मुझे एक रुपया दिया कि ये लो, मेरी तरफ से मन्दिर में चढा देना। इससे पता चलता है कि माता का यहां कितना प्रभाव है।