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पहली जुलाई को अमरनाथ यात्रा शुरू होने से पहले ही श्रीनगर में कर्फ्यू लग गया था। 16 जुलाई को जुम्मे की नमाज के समय शान्ति रही तो कर्फ्यू हटा लिया गया। उस दिन हम सोनमर्ग में थे। खबर हम तक भी पहुंची। हमने तय किया कि आज की रात श्रीनगर में रुकेंगे। और शाम होते-होते श्रीनगर पहुंच गये। डल झील का तीन चौथाई चक्कर काटते हुए शंकराचार्य पहाडी के नीचे गगरीबल इलाके में पहुंचे। यहां अनगिनत हाउसबोट और शिकारे हैं।
पहली जुलाई को अमरनाथ यात्रा शुरू होने से पहले ही श्रीनगर में कर्फ्यू लग गया था। 16 जुलाई को जुम्मे की नमाज के समय शान्ति रही तो कर्फ्यू हटा लिया गया। उस दिन हम सोनमर्ग में थे। खबर हम तक भी पहुंची। हमने तय किया कि आज की रात श्रीनगर में रुकेंगे। और शाम होते-होते श्रीनगर पहुंच गये। डल झील का तीन चौथाई चक्कर काटते हुए शंकराचार्य पहाडी के नीचे गगरीबल इलाके में पहुंचे। यहां अनगिनत हाउसबोट और शिकारे हैं।
यहां पहुंचते ही मनदीप और शहंशाह हाउसबोट की तरफ निकल गये। यहां झील का एक हिस्सा नहर की शक्ल में है। उस पार हाउसबोट हैं। वहां तक जाने के लिये नावें हैं- फ्री में। वापस आकर उन्होनें बताया कि 2500 रुपये में सौदा पट गया है। यह रकम खजानची कालू को बहुत ज्यादा लगी। कहने लगा कि हाउसबोट में रुकना जरूरी नहीं है, होटल में रुकेंगे। एक होटल में पता किया तो वो 1500 में मान गया- दो बडे-बडे कमरे, टीवी व गर्म पानी सहित। हालांकि वो होटल भी हाउसबोटों से ही घिरा था, जाने का रास्ता सिर्फ नाव से था। वो हाउसबोट तो नहीं था, लेकिन उससे कम भी नहीं था। उसका नाम भूल गया हूं।
मैं भी सस्ते के ही पक्ष में था। रात को सोना ही तो था। लेकिन मनदीप और बिल्लू हाउसबोट ही चाहते थे। असल में हमने से तीन तो पियक्कड थे, तीन थे नॉन पियक्कड। हो सकता है कि पियक्कडों को हाउसबोट में होटल के मुकाबले ज्यादा मजा आता हो। कालू नॉन पियक्कड था, इसलिये उसकी पियक्कडों से बहसबाजी भी हो गयी। लेकिन सबसे प्रभावशाली होने के कारण सबको उसकी माननी पडी।
होटल में कमरा बुक करने शुरू में मैं और कालू गये। जब मैने रजिस्टर में विवरण भरना शुरू किया तो देखा कि पिछली बार यहां कोई 25 जून को आया था। यानी बीस दिन पहले। होटल वाला कहने लगा कि शाब, बहुत बुरे दिन चल रहे हैं। होटल का खर्चा भी नहीं निकल रहा है। अगर नॉर्मल दिन होता तो मैं 1500 रुपये में हरगिज भी नहीं देता, आज बहुत दिन बाद हमारे यहां कोई आया है, इसलिये आपकी खुशी-मेरी खुशी। (अमरनाथ) बाबा की इच्छा हुई तो रात होने तक पूरा होटल भर जायेगा। और हुआ भी ऐसा ही। जब रात को नौ बजे हम खाना खा रहे थे, तब तक उस होटल में खूब चहल-पहल होने लगी थी। सुबह उसने बताया कि होटल इस समय हाउसफुल है, रात कई मुसाफिरों को खाली वापस जाना पडा। सभी अमरनाथ यात्री ही थे, या तो बालटाल से वापस आने वाले या फिर बालटाल जाने वाले। जाने वाले ज्यादा थे।
दिन छिपते समय हम शिकारे पर चल पडे। छह जनों ने दो शिकारे लिये। एक में पियक्कड मनदीप, धर्मबीर, बिल्लू और ड्राइवर तथा दूसरे में नॉन पियक्कड मैं, कालू और शहंशाह। जब झील में निकले तो उस शाम नजारा ही अलग था। पूरा श्रीनगर झील में था। सब हाउसबोट पूरे रोनक में थी। झील में शिकारे में घूमते रहो, और तरह तरह का सामान बेचने वाले आपके पास आते रहेंगे। मनदीप को एक मयखाना दिखा, तो उन्होनें उसे बुलाकर मय खरीद ली। हमें एक कोल्ड ड्रिंक वाली नाव दिखी, तो कोका कोला ले ली। चाट की नाव दिखी तो चाट भी ले ली। तभी फोटोग्राफर वाली नाव आ गयी। कालू मुझसे कहने लगा कि कश्मीरी परिधान में फोटो खिंचवा लो। नहीं खिंचवाये।
घण्टे भर बाद शिकारे को बाजार की तरफ मोड दिया। झील के अन्दर ही बाजार!! पानी पर ही हाउसबोटों में दुकानें। परचून से लेकर टीवी-कम्प्यूटर तक की दुकानें। नाव और शिकारे ही जाने का एकमात्र रास्ता। इसी तरह एक चौराहे पर शिकारा जाम में फंस गया।
मन में फिर विचार आने शुरू हो गये। कश्मीर क्या से क्या हो गया। बेरोजगारी और गरीबी तो भारत के और हिस्सों में भी है। हिमालयी राज्य की ही बात करें तो उत्तराखण्ड क्या कम है। ढंग की सडकें भी नहीं हैं। लेकिन कश्मीर का सबसे बडा कारण है कि वो मुसलमान है। मुसलमान कभी भी शान्ति से नहीं रह सकते। कोई चाहे उनसे कितनी भी हमदर्दी जता ले। आज जो नाव चला रहा है, होटल चला रहा है, आलीशान हाउसबोट चला रहा है, मौका मिलते ही वो पत्थर बरसाने लगता है। कश्मीर में बदहाली के पीछे कश्मीरी ही जिम्मेदार है। वे ना तो भारत में रहना चाहते हैं, ना ही पाकिस्तान में। वे अलग देश चाहते हैं। क्या वे इतने बेवकूफ़ हैं कि इस बात के नतीजे को नहीं जानते।
असल में उन्हें अलग देश में भी नुकसान ही है क्योंकि फिर उन्हें अपना जन्मजात हुनर दिखाने का मौका खत्म हो जायेगा- हिंसा का हुनर। तब वे किस पर पत्थर बरसायेंगे, किस को मारेंगे। सोचो, कश्मीरियों, इस बात को भी सोचो।
छोडो इन बातों को। वापस घुमक्कडी पर आते हैं। श्रीनगर के फोटू देखिये:
अमरनाथ जाने वालों को मेरी यही सलाह है कि अपने मुंह का इंतजाम करके चलें। मैनें नहीं किया था। नतीजा सामने है- जल गया है। |
अगला भाग: पटनीटॉप में एक घंटा
अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. डल झील की सैर हमने भी कर ली. यहाँ एक विडियो है. कृपया देखना. शायद आपने अनुभव किया हो.
ReplyDeletehttp://www.tiny9.com/u/2734
अच्छा संसमरण
ReplyDeleteबहुत सूंदर चित्र ओर सुंदर विवरण, काशमीर सिर्फ़ मुसलमानो का नही पुरे भारत का हे, लेकिन नेहरु ओर शेख अब्दुला के कारण काशमीर का यह हाल हे, फ़िर आने वाली सरकारो ने सत्या नाश कर दिया, अपने स्वार्थ के लिये, अब यह बात इन कशमीरियो को भी पता हे कि यह अलग हो कर भीसुखी नही रह सकते ओर पाकिस्तान के संग रह कर भी सुखी नही रह सकते, सिर्फ़ यह भारत के संग ही सुखी रह सकते हे, लेकिन नेता इन्हे ऎसा करने नही देते, जो हिस्सा काशमीर का पाकिस्तान से जुडा हे वो नर्क के समान हे.
ReplyDeleteएक भुखे नंगे देश से जुड कर इन्हे क्या मिलेगा, इस लिये यह पाकिस्तान से भी नही जुडना चाहते, ओर पाकिस्तान इसे भारत से अलग करना चाहता हे
सूंदर चित्र ओर सुंदर विवरण
ReplyDeleteBEST PHOTOGRAFY
ReplyDeleteवाह देख कर आनन्द आ गया, पर वहाँ तो सबने मिल कर आग लगा रखी है।
ReplyDeleteनीरज भाई, मैं तो ललचा के रह जाता हूँ। इस शानदार पोस्ट और फोओग्राफ के लिए बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteआज की मेरी टिप्पणी सिर्फ आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनायें देने के लिए है. मेरी तरफ से ये दिवाली आपको मंगलमय हो.
ReplyDeleteफोटो और वर्णन दोनों टाप क्लास...
ReplyDeleteदीवाली की शुभकामनाएं.
नीरज
bhut ache
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