नाथद्वारा राजस्थान के राजसमन्द जिले में उदयपुर जाने वाली रोड पर स्थित है। इसकी उदयपुर से दूरी लगभग 48 किलोमीटर है। कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के काल में मथुरा-वृन्दावन में भयंकर तबाही मचाई जाती थी। उस तबाई से मूर्तियों की पवित्रता को बचाने के लिये श्रीनाथ जी की मूर्ति यहां लायी गई। यह काम मेवाड के राजा राजसिंह ने किया। जिस बैलगाडी में श्रीनाथजी लाये जा रहे थे, इस स्थान पर आकर गाडी के पहिये मिट्टी में धंस गये और लाख कोशिशों के बाद भी हिले नहीं। तब पुजारियों ने श्रीनाथजी को यही स्थापित कर दिया कि जब उनकी यहीं पर रहने की इच्छा है तो उन्हें यही रखा जाये।
यहां श्रीनाथजी के दर्शनों का समय निर्धारित है। आठ दर्शन होते हैं: मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थपन, भोग, आरती और शयन।
यहां की प्रसाद प्रणाली मुझे उत्तम लगी। प्रसाद अत्यधिक विशाल मात्रा में मन्दिर में ही बनाया जाता है। श्रीनाथजी को भोग लगाने के बाद प्रसाद को आसपास की दुकानों में भेज दिया जाता है जहां से श्रूद्धालु खरीद कर ले जाते हैं। यानी पहले नाथजी के दर्शन करो, फिर प्रसाद खरीदो और घर जाओ। यह प्रसाद चूंकि पहले से ही मन्दिर में चढ चुका होता है, इसलिये किसी को भी दोबारा प्रसाद चढाने की जरुरत नहीं है। इससे मन्दिर में गन्दगी भी नहीं होती।
18 अगस्त 2010 को जब मैं उदयपुर गया तो अजीत गुप्ता जी के यहां ठहरा। मेरे पास दो दिन थे, इसलिये उन्होनें कहा कि पहले नाथद्वारा और हल्दीघाटी देखकर आओ। कल उदयपुर घूमना। मैंने ऐसा ही किया।
नाथद्वारा मन्दिर प्रांगण में कैमरा मोबाइल ले जाना मना है। इसलिये दो-चार फोटो हैं, बाहर से ही खींचे हैं।
मोती महल दरवाजा
नाथद्वारा का बाजार
अगला भाग: हल्दीघाटी - जहाँ इतिहास जीवित है
उदयपुर यात्रा
1. नाथद्वारा
2. हल्दीघाटी- जहां इतिहास जीवित है
3. उदयपुर- मोती मगरी और सहेलियों की बाडी
4. उदयपुर- पिछौला झील
Jai ho SriNath Ki aur Jai Sri Jat Ki
ReplyDeleteआभार. आपके सौजन्य से नाथद्वारा भी देख ही लिया.
ReplyDeleteजय श्री नाथद्वारा जी
ReplyDeleteचित्रों के माध्यम से जीवन्त अभिव्यक्ति, यह तीर्थ पुनः याद आ गया।
ReplyDeleteअभी हम यहाँ नहीं पहुँचे।
ReplyDeleteनीरज भाई यह बात अजीब लगती है कि मंदिर में मोबाइल लेकर जाना मना है|कैमरा लेकर जाना मना हो सकता है |और भगवान को इससे कोइ एतराज़ हो भी नहीं सकता है ये सब अपना कद(पावर ) दिखाने की ज़िद है और कुछ नहीं है |
ReplyDeleteआपकी घुमक्कड़ी एकदम मस्त
ReplyDeleteमनभावन चलो इसी बहाने हम भी घूम आते हैं ......
ReplyDeleteखुमकडी जिन्दावाद है हमने भी नाथ दुआरा देख लिया। शुभकामनायें।
ReplyDeleteमुझे अब समझ आ गया है कि उस दिन रोहतक ब्लागर मिलन में आप के ब्लॉग की इतनी प्रशंसा क्यों हो रही थी और आप इसे इतनी विनम्रता से स्वीकार कर रहे थे. अरे यार, कैसे घूम लेते हो इतना ---अगर हो सके तो थोड़ा हमें भी पहले से सूचित कर दिया करो,हम भी आप के साथ कभी कभार हो लिया करेंगे।
ReplyDeleteनीरज, सच में यह नाथद्वारे के बारे में पढ़ कर मुझे भी पुरानी यादें ताज़ा हो आईं -- मैं भी दो साल पहले वहां हो कर आया हूं। धन्यवाद, नीरज भाई, आगे का क्या प्रोग्राम है लिखना।
खुश रहो और ऐसे ही घुमक्कड़ी करते रहो...
bahut hi mast
ReplyDeleteachha laga
aabhar
aapka blog par aane ko aabhar
yuhi margdarsan karte rahe
dhanyvad
Jai ho ! khoob!
ReplyDeleteMain do saal pahle SriNathdwaraJi gaya tha .. aapki post pad kar yaad taaja ho gayi ...
ReplyDeleteTahey dil se dhanyawaad.
MATHURESH CHITTORA KOTA
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