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15 जुलाई 2010 की सुबह थी। हम छह अमरनाथ यात्री शेषनाग झील के किनारे तम्बू में सोये पडे थे। यह झील समुद्र तल से 3352 मीटर की ऊंचाई पर है। चारों ओर ग्लेशियरों से घिरी है यह। सुबह को बाकी सब तो उठ गये लेकिन मैं पडा रहा। पूरी रात तो मैं पेट गैस लीकेज की वजह से परेशान रहा, अब नींद आ रही थी। सभी फ्रेश हो आये, तब उन्होनें मुझे आवाज लगाई। दिन निकल गया था। आज का लक्ष्य था 12 किलोमीटर चलकर दोपहर दो बजे से पहले पंचतरणी को पार कर लेना। नहीं तो उसके बाद पंचतरणी में बैरियर लगा दिया जाता है। वहां भी तम्बू नगरी है। वहां से गुफा छह किलोमीटर रह जाती है।
15 जुलाई 2010 की सुबह थी। हम छह अमरनाथ यात्री शेषनाग झील के किनारे तम्बू में सोये पडे थे। यह झील समुद्र तल से 3352 मीटर की ऊंचाई पर है। चारों ओर ग्लेशियरों से घिरी है यह। सुबह को बाकी सब तो उठ गये लेकिन मैं पडा रहा। पूरी रात तो मैं पेट गैस लीकेज की वजह से परेशान रहा, अब नींद आ रही थी। सभी फ्रेश हो आये, तब उन्होनें मुझे आवाज लगाई। दिन निकल गया था। आज का लक्ष्य था 12 किलोमीटर चलकर दोपहर दो बजे से पहले पंचतरणी को पार कर लेना। नहीं तो उसके बाद पंचतरणी में बैरियर लगा दिया जाता है। वहां भी तम्बू नगरी है। वहां से गुफा छह किलोमीटर रह जाती है।
कालू और मनदीप ने इतनी जल्दबाजी मचाई कि मेरी आंख एक किलोमीटर चलने के बाद ढंग से खुली। उठते ही मैने कहा कि भाई, मामला फिनिश तो कर लूं। बोले कि नहीं, रास्ते में कर लेना। खाने के लिये भण्डारे में दो गिलास चाय पी और बिस्कुट खाये। मनदीप मेरे उठते ही खच्चर पर बैठा और चला गया। महागुनस पार करके पौषपत्री में मिलना तय हुआ। कोल्ड क्रीम उसी के पास थी। सभी ने तो लगा ली थी लेकिन देर तक सोने के कारण मैं रह गया।
सामने महागुनस चोटी दिख रही थी। इसे महागणेश भी कहते हैं। कहते हैं कि शंकर जी ने यहां पर गणेश जी को छोडा था। यह चोटी 4200 मीटर से भी ज्यादा ऊंची है। असल में यह दर्रा है। इस दर्रे को पार करके एक दूसरी दुनिया में ही पहुंच जाते हैं। यहां केवल बरफ ही बरफ है। बरफ पर ही रास्ते बने हैं और बरफ पर ही चलना पडता है। कोल्ड क्रीम ना लगने की वजह से शरीर के नंगे हिस्से जैसे चेहरे, गर्दन, हथेली के पीछे के भाग बरफ से जल गये थे। बुरी तरह लाल हो गये थे। बडी भयंकर जलन होने लगी थी। यह मेरे लिये पहाडों का नया अनुभव था। यह इलाका एक तो समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर है, फिर प्रदूषण आदि ना होने के कारण सूर्य की किरणें बिल्कुल सीधी पडती हैं और त्वचा को जला देती हैं। रही-सही कसर बरफ पूरी कर देती है। सूर्य किरणें परावर्तित होकर और ज्यादा आक्रामक हो जाती हैं।
मेरे पास पहनने को ऊपरी मोटे कपडे नहीं थे। हां, अन्दर दो गर्म इनर जरूर पहन रखे हैं। दोनों हाथों में दस्ताने भी हैं। |
सामने एक भण्डारा है। पूरी तरह बरफ के ऊपर। यहां बरफ के कई फीट नीचे पानी बह रहा है। इसलिये यह जगह बडी खतरनाक है। कभी भी दरार पड सकती है। |
यहां तापने के लिये आग जला रखी है। आग जलने से बरफ में गड्ढा बन गया है। अभी दो ढाई फीट गहरा तो बन ही गया है। |
सेना के जवान इस कठिन परिस्थिति में गैस से पानी गरम करने की कोशिश कर रहे हैं। नहाने के लिये नहीं बल्कि पीने के लिये। |
दोनों तरफ पहाड हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि बरफ के नीचे पानी बह रहा है। सबसे बडा खतरा है दरार पडने का। पता नहीं कहां दरार में पैर पड जाये। |
ले कालू, मैं तेरा लठ पकडता हूं, तू मेरा फ़ोटू खींच। हम ये लठ दिल्ली से ही ले गये थे। बिल्कुल ठोस बेंत के बने हैं। नीचे दो इंच लम्बी कील ठुकवा रखी थी ताकि बरफ में अच्छी तरह गड जाये और ना फिसले। |
अगला भाग: पौषपत्री का शानदार भंड़ारा
अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा
मेरे एक मुवक्किल हैं। वे हर साल अमरनाथ जाते हैं। किसी भंडारा चलाने वाले दल के सदस्य हैं। यह रोमांच ही शायद उन्हें हर साल खींच ले जाता है।
ReplyDeleteसुंदर यात्रा सुंदर चित्रों के साथ।
सुन्दर वृत्तांत. इस बार के चित्र उतने शार्प नहीं लग रहे है.
ReplyDeletekhoob ! ghazab ! mast mahaul!
ReplyDeleteजीवन धन्य हुआ भाई ये फोटू देख के...वाह...अमरनाथ यात्रा इंसान के अदम्य साहस और श्रधा की कसौटी है...
ReplyDeleteनीरज
laajbaab
ReplyDeleteवाह हमारी श्राद्धा हमे कहां कहां तक ले जाती है, बहुत सुंदर विवरण , ओर अति सुंदर चित्र, बाकी अगर बर्फ़ मै आप की तव्चा को नुकसान पहुचा है तो एक बार जरु किसी डा० से सलाह ले, किसी अच्छॆ डा० से, कभी कभी यह खतरनाक भी हो जाता है, लेकिन सब मिला कर मै आप की हिम्मत को सलाम करता हुं. ध्न्यवाद
ReplyDeleteऐसा यात्रावृत्तान्त पहले नहीं देखा।
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर यात्रा वृत्तांत...सजीव दर्शन करवा दिए .... धन्यवाद
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
http://oshotheone.blogspot.com/
वाह भाई छा गया तू तो इतनी गजब की यात्रा करके, लगता है पिछले जन्म की भटकती आत्मा है जो घूमने का कोई मौका छोडना ही नही चाहती.:) बहुत शुभकामनाएं और जन्माष्टमी कि रामराम.
ReplyDeleteरामराम
रोमांचकारी वर्णन और दर्शन.
ReplyDeleteसभी फोटो बहुत अच्छी हैं. मुझे अमरनाथ 26 सबसे बढीया फोटो लगी है. बहुत बढिया मुसाफिर जी.
ReplyDeleteभोले की कृपा से कश्मीरी नागों और सर्पों की घाटी paar करके जब भक्त गुफा तक जाते हैं तो उन्हें कश्मीर को सर्प-मुक्त करने की प्रार्थना भी करनी चाहिए . देखो कैसे सरेआम ये सांप हमारे जवानों पर पत्थर फेंक रहे हैं .
ReplyDeleteएक एडवेंचर से कम नहीं लग रहा है |
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