छोटा सा चण्डीगढ और इतिहास भी कुछ खास नहीं; लेकिन देखने लायक-घूमने लायक इतना कुछ कि मन थकता नहीं है। यहां अपने कुछ घण्टों के प्रवास में हम रॉक गार्डन में घूम आये, सुखना झील देख ली, अब चलते हैं गुलाब उद्यान (ROSE GARDEN) की तरफ। इसका पूरा नाम है ज़ाकिर गुलाब उद्यान। यह पूर्व राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन के नाम पर 1967 में बनाया गया था। यह एशिया का सबसे बडा गुलाब उद्यान है। यह तीस एकड से भी ज्यादा इलाके में फैला हुआ है। इसमें 1600 से भी ज्यादा गुलाब की किस्में हैं। इनमें से कुछ किस्में तो बहुत ही दुर्लभ हैं। यह चण्डीगढ के सेक्टर 16 में स्थित है।
एक बार फिर से अपनी बात सुनाता हूं। कल नाइट शिफ्ट की थी, फिर सीधा चण्डीगढ पहुंच गया, फिर रॉक गार्डन, उसके बाद बिना समय गंवाये सुखना झील। यहां तक मैं इतना थक चुका था कि मन कर रहा था कहीं पडकर सो जाऊं। पडकर सोने के लिये रेलवे स्टेशन व बस अड्डा सही जगह है। मुझे चूंकि आज रात को कहीं निकल जाना था, इसलिये मैने बस अड्डे को चुना। सुखना के पास ही एक चौराहे पर रिक्शावाले से पूछा कि भाई, यह सडक ‘सतारा’ ही जा रही है क्या? बोला कि हां, लेकिन पांच किलोमीटर है। आ जा, मेरी रिक्शा में बैठ जा, पहुंचा दूंगा। चण्डीगढ में पंजाबी प्रभुत्व होने की वजह से सेक्टर सत्रह वाले बस अड्डे को सतारा कहते हैं। सतारा मतलब सत्रह।
उसने पांच किलोमीटर बताया था लेकिन मुझे लगा कि यह मुझे डरा रहा है, दो-एक किलोमीटर ही होगा। पैदल निकल पडा। आधे घण्टे तक चलता रहा। कम से कम तीन किलोमीटर तो चल ही लिया हूंगा, ‘सतारा’ दा नामोनिशान नहीं। बडा सयाना बनता है, अब सारा सयानापन निकलने लगा। तभी एक कारवाला मेरी बगल में रुका और उसने पूछा-“भाई, सतारा किन्ना दूर है?” मैने हाथ से इशारा किया –“आगे से राइट।” पता तो मुझे भी नहीं था लेकिन कुछ तो सही था ही।
तभी एक बोर्ड लगा दिखा –ज़ाकिर गुलाब उद्यान। यह तो बहुत प्रसिद्ध है। चलो, चलते हैं। रविवार की शाम थी (14 मार्च 2010)। खूब चहल-पहल थी। कुछ देर के लिये मैं भी थकान भूल गया। बस अड्डा भी बगल में है। अच्छा लगा यहां जाकर। ना कोई फीस, ना लाइन, ना भीड, ना गन्दगी। एकदम खुला और गुलाब की मस्त खुशबू से महकित। घूमता रहा और फोटू खींचता रहा। फव्वारे के पास पहुंचकर एक बेंच पर बैठ गया। देखा कि सामने गुलाब की क्यारी के उस तरफ दो बन्दे घास पर लेटे हैं। मुझे भी लेटने की तलब लग गयी। इस बेन्च पर ही लेट जाऊं? ना, अच्छा सा नहीं लगेगा। पीछे गर्दन घुमाई। एक बढिया ‘लोकेशन’ मिल गयी। दो तरफ तो गुलाब की क्यारियां थीं, एक तरफ पेडों का झुण्ड था। मैं वहीं जा पडा। मुझे कौन-सा सोना था, थोडी देर आराम करके ‘सतारा’ पहुंचना था।
आंख खुली दो घण्टे बाद। पहले तो खुद पर हंसी आयी, फिर एक तसल्ली ये भी थी कि कम से कम आंख खुल तो गयी। नहीं तो जो हालत उस दिन मेरी थी, और सोने का जो आदर्श माहौल था, ठण्डी हवा चल रही थी, गुलाब की महक थी, कोई टोकने-टाकने वाला नहीं था; उससे तो दस-बारह घण्टे से पहले आंख खुलनी ही नहीं चाहिये थी। नींद भी इतनी भयंकर आयी थी कि जगने के बाद पांच मिनट तक तो यही सोचता रहा कि मामला क्या है। तू पडा कहां है? धीरे-धीरे याद आया कि ओहो! तू तो चण्डीगढ में है। तब तक अन्धेरा हो चुका था, चहल-पहल भी कम हो गयी थी।
उठा और बाहर निकलकर सडक पार करके ‘सतारा’ आईएसबीटी पहुंचा। मेरे पास अभी भी कल का पूरा दिन पडा था। अब यहां से एक बस पकडनी थी। पता चला कि वहां जाने वाली बस ‘तिरताली’ आईएसबीटी से मिलेगी। तिरताली मतलब सेक्टर तितालिस।
एक बार फिर से अपनी बात सुनाता हूं। कल नाइट शिफ्ट की थी, फिर सीधा चण्डीगढ पहुंच गया, फिर रॉक गार्डन, उसके बाद बिना समय गंवाये सुखना झील। यहां तक मैं इतना थक चुका था कि मन कर रहा था कहीं पडकर सो जाऊं। पडकर सोने के लिये रेलवे स्टेशन व बस अड्डा सही जगह है। मुझे चूंकि आज रात को कहीं निकल जाना था, इसलिये मैने बस अड्डे को चुना। सुखना के पास ही एक चौराहे पर रिक्शावाले से पूछा कि भाई, यह सडक ‘सतारा’ ही जा रही है क्या? बोला कि हां, लेकिन पांच किलोमीटर है। आ जा, मेरी रिक्शा में बैठ जा, पहुंचा दूंगा। चण्डीगढ में पंजाबी प्रभुत्व होने की वजह से सेक्टर सत्रह वाले बस अड्डे को सतारा कहते हैं। सतारा मतलब सत्रह।
उसने पांच किलोमीटर बताया था लेकिन मुझे लगा कि यह मुझे डरा रहा है, दो-एक किलोमीटर ही होगा। पैदल निकल पडा। आधे घण्टे तक चलता रहा। कम से कम तीन किलोमीटर तो चल ही लिया हूंगा, ‘सतारा’ दा नामोनिशान नहीं। बडा सयाना बनता है, अब सारा सयानापन निकलने लगा। तभी एक कारवाला मेरी बगल में रुका और उसने पूछा-“भाई, सतारा किन्ना दूर है?” मैने हाथ से इशारा किया –“आगे से राइट।” पता तो मुझे भी नहीं था लेकिन कुछ तो सही था ही।
तभी एक बोर्ड लगा दिखा –ज़ाकिर गुलाब उद्यान। यह तो बहुत प्रसिद्ध है। चलो, चलते हैं। रविवार की शाम थी (14 मार्च 2010)। खूब चहल-पहल थी। कुछ देर के लिये मैं भी थकान भूल गया। बस अड्डा भी बगल में है। अच्छा लगा यहां जाकर। ना कोई फीस, ना लाइन, ना भीड, ना गन्दगी। एकदम खुला और गुलाब की मस्त खुशबू से महकित। घूमता रहा और फोटू खींचता रहा। फव्वारे के पास पहुंचकर एक बेंच पर बैठ गया। देखा कि सामने गुलाब की क्यारी के उस तरफ दो बन्दे घास पर लेटे हैं। मुझे भी लेटने की तलब लग गयी। इस बेन्च पर ही लेट जाऊं? ना, अच्छा सा नहीं लगेगा। पीछे गर्दन घुमाई। एक बढिया ‘लोकेशन’ मिल गयी। दो तरफ तो गुलाब की क्यारियां थीं, एक तरफ पेडों का झुण्ड था। मैं वहीं जा पडा। मुझे कौन-सा सोना था, थोडी देर आराम करके ‘सतारा’ पहुंचना था।
आंख खुली दो घण्टे बाद। पहले तो खुद पर हंसी आयी, फिर एक तसल्ली ये भी थी कि कम से कम आंख खुल तो गयी। नहीं तो जो हालत उस दिन मेरी थी, और सोने का जो आदर्श माहौल था, ठण्डी हवा चल रही थी, गुलाब की महक थी, कोई टोकने-टाकने वाला नहीं था; उससे तो दस-बारह घण्टे से पहले आंख खुलनी ही नहीं चाहिये थी। नींद भी इतनी भयंकर आयी थी कि जगने के बाद पांच मिनट तक तो यही सोचता रहा कि मामला क्या है। तू पडा कहां है? धीरे-धीरे याद आया कि ओहो! तू तो चण्डीगढ में है। तब तक अन्धेरा हो चुका था, चहल-पहल भी कम हो गयी थी।
उठा और बाहर निकलकर सडक पार करके ‘सतारा’ आईएसबीटी पहुंचा। मेरे पास अभी भी कल का पूरा दिन पडा था। अब यहां से एक बस पकडनी थी। पता चला कि वहां जाने वाली बस ‘तिरताली’ आईएसबीटी से मिलेगी। तिरताली मतलब सेक्टर तितालिस।
अगला भाग: तीन धर्मों की त्रिवेणी - रिवालसर झील
चण्डीगढ यात्रा श्रंखला
1. रॉक गार्डन, चण्डीगढ
2. चण्डीगढ की शान- सुखना झील
3. चण्डीगढ का गुलाब उद्यान
4. तीन धर्मों की त्रिवेणी- रिवालसर झील
वाह नीरज भाई...रोज गार्डेन तो मस्त दिख रहा है...देखिये शायद कुछ दिनों में मेरा भी चंडीगढ़ जाने का प्लान बने तो जरूर देखेंगे ये रोज गार्डेन..
ReplyDeleteगुलाब तो ऐसे भी सबसे खूबसूरत और रोमांटिक फूलों के केटगरी में आता है....बहुत सुन्दर फोटू है गुलाबों के ..
चलिए हम भी गुलाब गार्डेन घूम लिए. सुन्दर चित्र. गनीमत है आपकी नींद खुल गयी!
ReplyDeleteचण्डीगढ़ का रोज़ गार्डन कभी घूमने लायक नहीं लगा पर आज पहली बार पाया कि ये वाक़ई इतनी खूबसूरत जगह है !
ReplyDeleteSundar, lovely, exotically charming !
ReplyDeleteवाह नीरज भाई...रोज गार्डेन तो मस्त दिख रहा है.
ReplyDeleteसभी चित्र मोहक है.
ReplyDeleteनीरज भाई मज़ा आ गया...खोपोली बैठे बैठे ही चंडीगढ़ का रोज़ गार्डन देख लिया...आँखों को ठंडक मिल गयी...गज़ब की पोस्ट...आज मैंने भी एक पोस्ट आपकी घुमक्कड़ी को समर्पित की है...
ReplyDeleteनीरज
चण्डीगढ़ के नजारों ने मन मोह लिया!
ReplyDeleteमस्त जगह है नीरज भाई.. हम जा चुके है..
ReplyDeleteभई, इसे कहते हैं मस्त फकीरी । आपका अल्हड़ अंदाज तो प्रभावित कर गया ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा भाई आप का यग गुलाब का बाग, लेकिन आप के सवाल का जबाब किसी ने नही दिया... तो आप या तो नंगल भाखडा गये होंगे या फ़िर विलास पुर की तरफ़
ReplyDeleteनीरज, कई दिन में आई भाई ये पोस्ट, चंडीगढ़ में सतारा और तराली तो देख लिये, तेरा दिख्या अक नहीं।
ReplyDeleteरोज़ गार्डन की फ़ोटू बढ़िया हैं, दुबारा जान का जी कर गया हमारा तो।
अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
वाह, मजा आ गया। आपने भी चन्डीगढ़ को वैसे ही नापा जैसे मैं नापती थी। मुझे भी वहाँ पैदल चलना बहुत पसंद था। और सैक्टर सोलह में तो मेरा स्कूल था। रोज़ गार्डन के १७ याने सतारा की तरफ लगते किनारे पर ही खड़ी होकर मैं अपनी स्कूल बस की प्रतीक्षा करती थी।
ReplyDeleteकहीं आप परमानु तो नहीं चल दिए थे या फिर ढली? या ऐसा ही कुछ नाम है। बताइए। उत्सुकता हो रही है।
घुघूती बासूती
bhaut hi acchi tarah se ghumaya aapne to...
ReplyDeletemain chandigarh me rehta hoon lekin abhi tak itna maza nahi aaya...
yun hi desh bhraman karte hain....
regards
http://i555.blogspot.com/
idhar ka bhi rukh rahein...
पठानकोट की बस पकडी क्या पट्ठे ने
ReplyDeleteया देहरादून की
राम-राम
मस्त तस्वीरें...और जय हो घुम्मकड़ी की.
ReplyDeleteवाह, मजा आ गया।
ReplyDeletesundar chitran tatha vivran
ReplyDeleteyaar bhai aap kushinagar to gye hi nahi !! vaha bhi jaate ! vaha bhi mahatma budh ke baare main dekhne ki cheje hai.
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