चण्डीगढ जाना तो कई बार हुआ; शिमला गया, तो चण्डीगढ; धर्मशाला गया, तो चण्डीगढ; सोलन गया, तो चण्डीगढ; एकाध बार ऐसे-वैसे भी चला गया था। लेकिन चण्डीगढ ही नहीं देख पाया। इस बार पक्का मूड बना लिया चण्डीगढ जाने का। अपनी नौकरी भी तो ऐसी है कि तीन शिफ्ट की ड्यूटी लगती है, लेकिन मजेदार ये है कि रात की शिफ्ट पहली शिफ्ट मानी जाती है। इसके बाद पूरे दिन खाली। तो जी, हुआ ये था कि चौदह मार्च को अपनी रात की ही ड्यूटी थी; पन्द्रह मार्च, सोमवार को मेरा साप्ताहिक अवकाश था। मंगलवार को शाम की ड्यूटी थी, दोपहर बाद दो बजे से। मेरे पास थे दो दिन और दो रातें। इनका बंटवारा मैने इस प्रकार किया कि इतवार को सुबह छह बजे तक ड्यूटी करके, हिमालयन क्वीन पकडके, दस-ग्यारह बजे तक चण्डीगढ पहुंचा जाये। दोपहर से शाम तक चण्डीगढ में घूम-घाम के फिर एक रात का सफर किया जाये और अगले दिन किसी नयी जगह पर पहुंचा जाये।
चले, दिल्ली से ही चलते हैं। मैने सब्जी मण्डी रेलवे स्टेशन से चण्डीगढ का टिकट लिया। यहां से सुबह छह बजे कालका जाने वाली हिमालयन क्वीन जाती है। सब्जी मण्डी रेलवे स्टेशन प्रतापनगर मेट्रो स्टेशन के बिल्कुल पास में पडता है। मैं प्रतापनगर तक गया मेट्रो से। अब आपको ये बताना है कि मैने मेट्रो कैसे पकड ली? दिलशान गार्डन से पहली मेट्रो सुबह छह बजे चलती है, प्रतापनगर पहुंचती होगी कम से कम पच्चीस मिनट में। उधर रिठाला से भी पहली मेट्रो छह बजे ही चलती है, वो भी प्रतापनगर पहुंचती होगी कम से कम बीस-पच्चीस मिनट में। तो ख़ासतौर से दिल्ली वालों, बताओ कि मैं सुबह छह बजे प्रतापनगर कैसे पहुंच गया, वो भी मेट्रो से?
खैर, चण्डीगढ पहुंचे। ऑटो वाले को पचास रुपये में रॉक गार्डन के लिये तैयार किया। गार्डन परिसर में घुसा, देखा कि एक जगह दीवार के पास भीड लगी हुई है। मैने सोचा कि दोपहर का समय है, यहां नल-वल होगा, लोगबाग पानी पी रहे होंगे। मुझे भी प्यास लग आयी, चलो मैं भी पी लूं। भीड में सिर घुसा कर गया तो देखा कि वहां तो टिकट मिल रहे हैं। रॉक गार्डन में घूमने के लिये पहले दस रुपये का टिकट लेना होता है।
यह गार्डन श्री नेकचन्द सैनी का बनाया हुआ है। कहते हैं कि उन्होने अपना शौक पूरा करने के लिये चुपचाप इसे बनाना शुरू कर दिया। बाद में किसी अधिकारी ने इस कई एकड में फैले गार्डन की ’खोज’ की। लेकिन मेहनत नेकचन्द की थी, श्रेय नेकचन्द को मिलना चाहिये था और मिल भी गया। अगर आप यहां गये होंगे तो आपको तो मालूम ही है; अगर नहीं गये तो प्रतिज्ञा करो कि निकट भविष्य में जायेंगे, नेकचन्द के ’किले’ और उसकी ’फौज’ को देखेंगे। किला और फौज? ये क्या है? बताता हूं। नहीं, दिखाता हूं। वैसे भी यहां ज्यादा बताने का कुछ नहीं है, जो बताना था, बता दिया। कमी-बेसी रह गयी हो तो जी फोटू हाजिर हैं-
चले, दिल्ली से ही चलते हैं। मैने सब्जी मण्डी रेलवे स्टेशन से चण्डीगढ का टिकट लिया। यहां से सुबह छह बजे कालका जाने वाली हिमालयन क्वीन जाती है। सब्जी मण्डी रेलवे स्टेशन प्रतापनगर मेट्रो स्टेशन के बिल्कुल पास में पडता है। मैं प्रतापनगर तक गया मेट्रो से। अब आपको ये बताना है कि मैने मेट्रो कैसे पकड ली? दिलशान गार्डन से पहली मेट्रो सुबह छह बजे चलती है, प्रतापनगर पहुंचती होगी कम से कम पच्चीस मिनट में। उधर रिठाला से भी पहली मेट्रो छह बजे ही चलती है, वो भी प्रतापनगर पहुंचती होगी कम से कम बीस-पच्चीस मिनट में। तो ख़ासतौर से दिल्ली वालों, बताओ कि मैं सुबह छह बजे प्रतापनगर कैसे पहुंच गया, वो भी मेट्रो से?
खैर, चण्डीगढ पहुंचे। ऑटो वाले को पचास रुपये में रॉक गार्डन के लिये तैयार किया। गार्डन परिसर में घुसा, देखा कि एक जगह दीवार के पास भीड लगी हुई है। मैने सोचा कि दोपहर का समय है, यहां नल-वल होगा, लोगबाग पानी पी रहे होंगे। मुझे भी प्यास लग आयी, चलो मैं भी पी लूं। भीड में सिर घुसा कर गया तो देखा कि वहां तो टिकट मिल रहे हैं। रॉक गार्डन में घूमने के लिये पहले दस रुपये का टिकट लेना होता है।
यह गार्डन श्री नेकचन्द सैनी का बनाया हुआ है। कहते हैं कि उन्होने अपना शौक पूरा करने के लिये चुपचाप इसे बनाना शुरू कर दिया। बाद में किसी अधिकारी ने इस कई एकड में फैले गार्डन की ’खोज’ की। लेकिन मेहनत नेकचन्द की थी, श्रेय नेकचन्द को मिलना चाहिये था और मिल भी गया। अगर आप यहां गये होंगे तो आपको तो मालूम ही है; अगर नहीं गये तो प्रतिज्ञा करो कि निकट भविष्य में जायेंगे, नेकचन्द के ’किले’ और उसकी ’फौज’ को देखेंगे। किला और फौज? ये क्या है? बताता हूं। नहीं, दिखाता हूं। वैसे भी यहां ज्यादा बताने का कुछ नहीं है, जो बताना था, बता दिया। कमी-बेसी रह गयी हो तो जी फोटू हाजिर हैं-
(नेकचन्द की मेहनत, नेकचन्द को समर्पित)
(घुसने पर लगता है कि इसका नाम रॉक गार्डन बिल्कुल सही रखा है।)
(घुसने पर लगता है कि इसका नाम रॉक गार्डन बिल्कुल सही रखा है।)
अगला भाग: चंडीगढ़ की शान - सुखना झील
चण्डीगढ यात्रा श्रंखला
1. रॉक गार्डन, चण्डीगढ
2. चण्डीगढ की शान- सुखना झील
3. चण्डीगढ का गुलाब उद्यान
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeletechandigarh bahut hi sunder hai
ReplyDeleteaur safai ke mamle me to iska bahut hai naam hai........
plus haryana & Punjab ki rajdhani hai...
ReplyDeleteyahan par kafi kuch dekhne layak hai...
akhi aa hi gaye changardh
ReplyDeletedhanyawaad sunder tasvero ke liya humne ghar baithe hi garden dekh liya...
ReplyDeletekabi humare blog par bhi aaiye neeraj ji...
ReplyDeletesanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
घुमक्कडी जिन्दाबाद!
ReplyDeleteआनन्द आ गया!
फ़ोटू तो घणीए जोरदार पाडकै ल्याया भाई. मजा आगया फ़ॊटू देखके. एक बर हम भी पहुंच लिये थे उत.
ReplyDeleteरामराम.
मुसाफिर जी,
ReplyDeleteभई तुम्हारी मैट्रो है जल्दी निकलवाली होगी 6 बजे प्रताप नगर पहुंचेने के लिये.
प्रयास
bahut mazedar pictures.....Chandigarh jana to hua hei...par rock garden nahi ghuma abhi tak....apne ghuma diya chitro se...dhanyawad
ReplyDeleteराक गार्डन मैंने सन 1982 में देखा था , आपकी तस्वीरें देख कर लग रहा है की आज इसकी दशा बहुत अच्छी नहीं तो बहुत बुरी भी नहीं है...तब नेक चन्द जी से भी मुलाकात भी हुई थी, भीड़ नहीं थी सो उनके साथ चाय भी पी और इसी दौरान उन्होंने इस के बनने के पीछे की पूरी कहानी भी सुनाई थी...ये गार्डन एक साधारण इंसान द्वारा किया गये असाधारण काम का जीवंत उधाहरण है...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुंदर जी, मै चण्डी गढ मै एक नही हजारो बार गया, लेकिन कभी वहा घुमा नही, कई बार तो १० १५ दिन भी रहा, लेकिन कही भी जा नही पाया, ओर यह रांक गार्डन तो बाद मै नाम पडा है, जब हम छोटे थे तो वहा के लोगो इसे देखने तो जाते थे, लेकिन इसे किसी खास जगह का नाम नही दिया गया था, बात बहुत पुरानी है,
ReplyDeleteओर छ बजे केसे पहुचे?? भाई रात को ही निकल लिये होगे, ओर किसी जान पहचान वाले के घर डेरा लगा लिया होगा......या फ़िर खुदी के कर चल दिये मेट्रो:)
Sundar varnan..ye to maine kaii baar dekha hai...Neek Chand ji ke kary ko naman hai !!
ReplyDeleteमज़ा आ गया नीरज तुमने तो बढिया सैर करा दी।
ReplyDeleteविगत में कई बार रॉक गार्डेन देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ पर अब तो बहुत साल बीत गए हैं. आपने सुंदर चित्र दिखा कर पुराणी यादों को भी ताज़ा किया और इसके वर्तमान स्वरुप से भी परिचय करवाया. आभार ! जिस अधिकारी का आपने ज़िक्र किया है वह स्व. एम. एस . रंधावा .
ReplyDeleteविगत में कई बार रॉक गार्डेन देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ पर अब तो बहुत साल बीत गए हैं. आपने सुंदर चित्र दिखा कर पुराणी यादों को भी ताज़ा किया और इसके वर्तमान स्वरुप से भी परिचय करवाया. आभार ! जिस अधिकारी का आपने ज़िक्र किया है वह स्व. एम. एस . रंधावा .
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पे रोज़-गार्डन और आपके यहाँ रॉक-गार्डन और हाल में 'उन्मुक्त' के ब्लौग पे देखा 'चंडीगढ़ के पास स्थित पिंजौर गार्डन . चंडीगढ़ छाया हुआ है !
ReplyDeleteVery nice travelogue......!
ReplyDeleteवाह जी वाह...मजा आ गया....हमें भी चंडीगढ़ जाने का दिल हो रहा है अब तो...
ReplyDeleteअति सुन्दर. मजा आ गया. आभार.
ReplyDeleteकमाल! सबसे पहले रोक गार्डन देखा,मजा आ गया.यहाँ तो दोनों पति पत्नी जॉब में है गर्मी की छुट्टियों में हर साल प्रोग्राम बनाते हैं और आग बरसती देख फूस्स्स हो जाते हैं.आपके ब्लॉग पर आकर जोश आ गया है.
ReplyDeleteये कोई अच्छा किया आपने?
गोस्वामीजी ढूढ़ रहे हैं 'आपको' 'कौन है ऐसा ब्लोगर जिसने सीधे मेरी जेब पर हमला करवा दिया?'
मैंने कहा-'' चिन्ता न करिये बंदे ने चित्तोड की तरफ रूख किया ही नही आज तक. अपनी राजस्थान यात्रा के दौरान भी नही.'' है न?
हा हा हा
मजा आ गया। मेरा शहर, सुन्दर शहर!
ReplyDeleteघुघूती बासूती