पिछले साल दिसम्बर के महीने में अचानक जयपुर का कार्यक्रम बना। यहां मैं अकेला नहीं गया बल्कि एक मित्र के साथ गया। सबसे पहले पहुंचे आमेर जो जयपुर से सात-आठ किलोमीटर पहले है। पहुंचते ही एक गाइड सिर हो गया कि मैं सरकारी गाइड हूं, सौ रुपये में आपको सबकुछ दिखा और घुमा दूंगा। मैं तो सहमत नहीं था लेकिन मित्र साहब नहीं माने। गाइड भी हमारे साथ ही हो लिया।
आमेर किला इतनी प्रसिद्ध जगह है कि कोई भी पर्यटक अपना जयपुर भ्रमण यही से शुरू करता है। अगर सभी अपना-अपना यात्रा वृत्तान्त लिखने बैठे तो शुरूआत करेंगे कि इसका नाम भगवती अम्बा के नाम पर आम्बेर (Amber) पडा जो बाद में आमेर हो गया। अकबर के सेनापति और नवरत्नों में से एक मानसिंह का नाम भी लिया जायेगा। लेकिन आज इससे ज्यादा नहीं बताऊंगा।
उस गाइड का नाम अब भूल गया हूं। लेकिन उसने मुझे बहुत प्रभावित किया। पहली बात तो ये कि बन्दा हमारे साथ पूरे किले में घूमता रहा। किले से बाहर निकले तो पास ही एक बाजार है, हाथ के बने सामान मिलते हैं। मित्र साहब घण्टे भर तक खरीदारी करते रहे। जयपुरी रजाई खरीदी। उनकी देखादेखी मैंने भी एक जयपुरी रजाई खरीद डाली, आज तक काम दे रही है। हल्की-फुल्की सौ ग्राम की और गर्म इतनी कि दिसम्बर में एक चक्कर हरिद्वार का लगा आई है। जिसने भी ओढी, बन्दा खुश नजर आया।
हां, मैं बात कर रहा था गाइड की। हमने उससे कहा कि यार, कहीं बढिया सस्ता सा कमरा दिला दो। सीधा लेक पैलेस होटल ले गया। आठ सौ का कमरा छह सौ में मिल गया। तब हमने उससे पूछा कि यार एक बात बता। तू दोपहर से हमारे साथ-साथ है। आमेर किले से लेकर बाजार में खरीदारी भी करवाई और अब अंधेरा हो गया है, अभी भी साथ ही है, मात्र सौ रुपये में। वो भी तब जबकि हमने तुझे किले में गाइडगिरी करने के लिये लिया था। बोला कि सुनो, आप दिल्ली से आये हैं। यह जयपुर है। यहां ऐसा ही होता है। जब तक सामने वाले को फुल तसल्ली नहीं मिल जाती, हम उसका पिण्ड नहीं छोडते।
अगला भाग: जयपुर की शान हवामहल
जयपुर यात्रा
1. जयपुर यात्रा-आमेर किला
2. जयपुर की शान हवामहल
3. जयपुर का जन्तर मन्तर
4. सिटी पैलेस, जयपुर
5. नाहरगढ किला, जयपुर
नीरज भाई ,बचपन में जब आठवी में पढ़ती थी तब स्कुल की पिकनिक से जयपुर गई थी चित्रों के जरिए याद ताजा हो गई | भाई नीरज अब यह शर्ट पुराना हो चला हे ?
ReplyDeleteनीरज भाई
ReplyDeleteमै तेरह साल पहले( आमेर गया था , वहाँ मैंने करीब एक महीने गुजारे थे .तब शायद अगस्त का महीना था . जो उजाड और सुखी हुई पहाडिया आपने दिखाई है वो उस समय बिलकुल हरी भरी थी . पहाडियो की दुर्दशा देखकर दुःख हुआ . आमेर किला के जिक्र में हाथियो का जिक्र नहीं पाकर हैरानी हुई . हाथी ही तो उस किले को राजसी लुक देते है . यार एक तस्वीर तो लगा ही देनी थी हाथियो की .
हां जयगढ़ और महरान गढ़ किलों का भ्रमण भी करना चाहिए था . जय गढ़ से तो पूरा जयपुर दिखाई देता है . जय गढ़ किले में मक्के की रोटी और सरसों का साग भी मिलता है .
एक बात और ,यात्रा में गाइड ले लिया कर यार, गाइड जरुर कुछ नया बताते है जिन्हें हम नहीं जानते .
आपने मेरी 1995 की यादों को ताजा कर दिया। शुक्रिया।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
गाइड तो बहुत सही मिल गया आपको. तसवीरें अच्छी आई हैं.
ReplyDeleteआपके चित्रों से अपनी यात्रा की यादे ताजा हो गयीं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर जाट भाई, अब जब भी जयपुर गये तो सब से पहले किसी गाईड को ही पकडेगे, होटल का कमरा भी ओर खाना भी उसी के कहने से खयेगे, वेसे हमे एक मुस्लिम गाईड आगरा मे फ़तेपुरी मे मिला था, उस ने भी हमे खुब घुमाया था, फ़िर हम ने उसे कुछ ज्यादा ही दिये थे, जबकि वो नही ले रहा था, लेकिन हम ने बेटा कह कर उस की जेब मे डाल दिये थे,सच मे यह बहुत काम के होते हे ओर मेहनत भी इन की खुब होती हे
ReplyDeleteकाफी पुरानी यादें ताजा हुईं.
ReplyDeleteबढ़िया तस्वीरें.
सुंदर चित्र, यादें ताजा हो गईं.
ReplyDeleteनीरज भाई जयपुर में गाईड लोगो का होटल वालो से दूकान वालो से कमीशन बंधा हुआ होता है | कई बार पर्यटकों को लेकर इनके बीच खूनी गैंगवार भी चलती है | इनके बीच कोडवर्ड का इस्तेमाल भी होता है जिसका अर्थ दुकानवालो के शिवाय कोइ नहीं समझता है |हमेशा की तरह सुंदर सचित्र जानकारी |
ReplyDeleteभाई फोटू देख के घर की याद घणी जोर से आण लाग री है...बचपन अर जवानी में भाई खूब घूमें इस किले में...और क्या क्या देखा ये भी तो बता दे...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुंदर जाट भाई, अब जब भी जयपुर गये तो सब से पहले किसी गाईड को ही पकडेगे
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुंदर चित्र
ReplyDeleteआमेर वाक़ई दिल्ली के सबसे नज़दीकी बढ़ियों किलों में से एक है.
ReplyDeleteनरेश सिह राठौड़ जी ने एक दम सही से बताया है 100 रूपये में ढेर सारी सेवा का राज़, यही सच है, इस बीच tourist को केवल दुकान में घुसेड़ने तक के भी रूपये बंधे होते हैं. 600 रूपये का होटल आपको 400 सौ में भी मिल भी सकता था अगर अपने—आप जाकर कुछ बार्गेन या डिसकांउट बाजी की होती तो. आमतौर से जो रिक्षा/स्कूटर/टैक्सी बगैहरा आपको होटल तक छोड़ कर जाती है उसका भी आपके होटल के भाड़े में कट तय रहता है. भविष्य में इसका भी ध्यान रखना :)
@ दर्शन कौर जी,
ReplyDeleteमैं एक नम्बर का आलसी इंसान हूं। कपडे तभी धोता हूं, जब अगले दिन के लिये सुथरे कपडे ना बचे हों। यह शर्ट मैलखोर है, इसलिये हर टूर पर मेरा साथ देती है।
@ मृत्युंजय जी,
अगर उस दिन आमेर किले में हाथी होते तो मेरे हाथ से नहीं बच सकते थे। हाथी थे ही नहीं।
और जयपुर में मेहरानगढ किला किस साइड में है। हां, जयगढ का पडोसी नाहरगढ तो है। हम अगले दिन वहां गये थे, थोडा इंतजार कीजिये, सबकुछ दिखाऊंगा।
@ नरेश राठौड जी,
मैं गाइडों के व्यवहार से ज्यादा परिचित नहीं हूं। वह हमारे मित्र साहब की देन था।
@ काजल कुमार जी,
अगर मैं अकेला होता तो ना तो किसी गाइड के चक्कर में पडता और ना ही होटल के। सीधा रेलवे स्टेशन जाता और बेफिक्री भरी नींद सोता।
वो गाइड हमारे मित्र साहब की देन था।
शानदार चित्रों को देखकर मजा आ गया
ReplyDeleteNEERAJ JI JAT DEVTA KA RAM RAM APKI RAJAI ALMORA ME BHI KAAM AYEGI JARUR LE KE JAANA
ReplyDeletebehtrin chitrankn ! aapki Almora yatra shubh ho, wahan ke chitron ka intezaar rahega someshwer Kausani or Baijnaath jarur jaiyega...........
ReplyDeleteabhaar......
कब तक आ जाओगे मै भी २५ को जा रहा हुं फोटो का साइज ज्यादा कम मत किया करो १०० kb से कम नहीं होना चाहिये clearity पर असर आता है
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