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केदारकंठा ट्रैक-1 (विकासनगर से सांकरी)

लॉकडाउन के कारण कई महीनों से घर में ही पड़े हुए थे और पहाड़ों में ट्रैकिंग तो छोड़िए, घर के आसपास पैदल चलना तक मुश्किल हो गया था। फिर सितंबर आते-आते जब माहौल सामान्य हुआ, तो सबसे पहले केदारकंठा ट्रैक ही दिमाग में आया। इसका कारण था हमारा वहम। हमें लगने लगा था कि पैरों में जंग लग गई है, इसलिए छोटे ट्रैक से ही अपनी जंग उतारनी चाहिए। उधर दीप्ति लगातार मेरे 80 किलो वजन को गूगल कर-करके देखती, तो उसे बॉडी-मास इंडेक्स ‘ओवरवेट’ बताता। 

खैर, हिमाचल से और उत्तराखंड के भी कई इलाकों से खबरें आ रही थीं कि स्थानीय लोग टूरिस्टों को आने नहीं दे रहे। भले ही राज्य सरकारों ने सबकुछ खोल दिया हो, लेकिन स्थानीय लोगों को लग रहा था कि टूरिस्ट लोग अपने-अपने बैगों में कोरोना लेकर आ जाएँगे। जबकि वही स्थानीय लोग दिल्ली, देहरादून और चंडीगढ़ की मंडियों में सेब लेकर रोज आना-जाना कर रहे थे और छोटे-मोटे कामों के लिए लगातार इन शहरों में जा रहे थे। लेकिन हमारे इन सीधे-सादे पहाड़ियों को आज तक भी यही लग रहा है कि टूरिस्ट लोग अपने बैगों में कोरोना भरकर लाएँगे और उनके गाँव में फैला देंगे।

तो सबसे बड़ी समस्या यही थी कि सांकरी के निवासी हमें आने देंगे या नहीं। केदारकंठा का ट्रैक सांकरी से ही शुरू होता है। कई जगहों पर फोन किया, तो पता चला कि सांकरी में किसी के आने-जाने पर कोई रोक नहीं है। 

मैंने आज तक ज्यादातर वे ट्रैक किए हैं, जहाँ रुकने और खाने की सुविधा मिल जाती है। ज्यादातर ट्रैकों में यह सुविधा बुग्यालों में रहने वाले भेड़पालक लोग प्रदान कर देते हैं, लेकिन अक्टूबर तक ये लोग नीचे आ जाते हैं, इसलिए मैं चिंतित भी था। केदारकंठा जाने वाले ज्यादातर लोग विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से ही जाते हैं। ये एजेंसियाँ रास्ते में रुकने और खाने-पीने की व्यवस्था करती हैं। लेकिन हम किसी भी एजेंसी के माध्यम से नहीं जाना चाहते थे। 

हिसाब लगाया... सांकरी 2000 मीटर की ऊँचाई पर है और केदारकंठा 3800 मीटर पर। यानी 1800 मीटर का अंतर। हमारी क्षमता एक दिन में 1000 मीटर चढ़ने की है। हद से हद 1200-1300 मीटर। 1800 मीटर तो कतई नहीं। यानी एक रात बीच में कहीं रुकना पड़ेगा। अगर हम बीच में 3000 मीटर पर रुकते हैं, तो दूसरे दिन आसानी से 3800 मीटर तक जाकर वापस सांकरी लौट सकते हैं। यानी हम 2 दिन में इस ट्रैक को कर लेंगे। 

तो अगर हम अपना टैंट लेकर चलें और कुछ मिठाई, ड्राई फ्रूट व पराँठे आदि लेकर चलें, तो रास्ते में खाना बनाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। 

लेकिन तभी पता चला कि सांकरी से केदारकंठा का रास्ता गोविंद नेशनल पार्क के अंदर से होकर जाता है और फोरेस्ट वाले बिना परमिशन के नहीं जाने देंगे। और यह भी पता चला कि परमिशन तभी मिलेगी, जब आपके साथ कोई स्थानीय निवासी हो यानी गाइड हो। 

गाइड और पॉर्टर दोनों अलग-अलग होते हैं। गाइड ग्रुप का लीडर होता है और सभी सदस्यों को उसका कहा मानना होता है। गाइड अमूमन सामान नहीं उठाता है। सामान उठाने की जिम्मेदारी पॉर्टर की होती है। गाइड का शुल्क ज्यादा होता है और पॉर्टर का शुल्क कम होता है। तो समस्या ये आई कि गाइड के बिना फोरेस्ट वाले जाने नहीं देंगे। और गाइड अपने साथ पॉर्टर जरूर रखेगा। मतलब हम पर दोगुना खर्चा पड़ेगा। अगर गाइड 1000 रुपये प्रतिदिन और पॉर्टर 800 रुपये प्रतिदिन में मिलेंगे, तो 2 दिन में 3600 रुपये खर्च हो जाएँगे, जो हमारे लिए ज्यादा भी थे और गैर-जरूरी भी।

केदारकंठा है बहुत पॉपुलर ट्रैक और वहाँ रास्ता बना हुआ है। यह मैंने कई वीडियो में पहले ही देख लिया था। फिर हमें ट्रैकिंग का काफी अनुभव भी है और हम जंगल में रास्ता ढूँढ भी सकते हैं। जी हाँ, हम नेटवर्क न होने के बावजूद भी जंगल में रास्ता ढूँढ़ सकते हैं... हम तारे और आकाशगंगा देखकर दिशाओं का पता लगा सकते हैं... जंगली जानवरों की आवाजें सुनकर उन्हें पहचान सकते हैं और उनसे बच भी सकते हैं... और एक-दो दिन तक टॉफी-चॉकलेट पर भी जिंदा रह सकते हैं... 1800 मीटर चढ़ने व उतरने में कितना समय लगेगा और कितनी दूरी व कितनी ऊँचाई पर हमारी हालत कैसी रहेगी, यह भी हमें पता था। तो हम गाइड-पॉर्टर लेना गैर-जरूरी मान रहे थे।

सारे संदेहों को एक तरफ रखकर हम 13 अक्टूबर को निकल पड़े। दीप्ति बस से गई और मैं व हर्षित बाइक से। हर्षित दीप्ति का भाई है और आजकल हमारे साथ ही रहता है। देहरादून से सांकरी के लिए रोज 3 बसें जाती हैं, जो विकासनगर से ही निकलती हैं। सुबह 7 बजे विकासनगर से दीप्ति ने बस पकड़ ली।

मैं और हर्षित टैंट, स्लीपिंग बैग आदि बाइक पर लादकर चल दिए। नौगाँव तक रास्ता यमुना नदी के साथ-साथ है। उसके बाद पुरोला की घाटी है और जरमोला की धार पार करके हम मोरी पहुँच जाते हैं। मोरी से सांकरी तक रास्ता टोंस नदी के साथ-साथ है। देहरादून से सांकरी 200 किलोमीटर है और विकासनगर से 160 किलोमीटर। दोपहर 11 बजे चले और शाम 7 बजे पहुँचे। अंधेरा हो चुका था और फोन नेटवर्क नहीं था। हमें नहीं पता था कि दीप्ति कहाँ है और किस होटल में उसने कमरा लिया है। 

लेकिन हमें इतना पता था कि उसने हमारे लिए कोई न कोई सबूत जरूर छोड़ा होगा। हो सकता है कि उसने होटल के बाहर बैग रख दिया हो या कोई कपड़ा टांग दिया हो, जिसे हम देखते ही पहचान जाएँ... लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला। हमने पूरा सांकरी पार कर लिया, कुछ पता नहीं चला। फिर वापस मुड़कर आए और धीरे-धीरे बाइक चलाते हुए फिर से आरपार हो गए। जब मुड़कर फिर से बाजार पार कर रहे थे, तो बसों के पीछे से एक महिला चिल्लाई - “रुको, रुको... वे वहाँ उस होटल में हैं।”

ये महिला यहाँ बस अड्डे पर एक ढाबा चलाती हैं और दीप्ति ने यहाँ भोजन किया था और महिला को बता भी दिया था। महिला सावधान थीं, लेकिन अंधेरा होने और ढाबे के बाहर बसें खड़ी होने के कारण हमें देर से पहचान सकीं। 

इसी ढाबे में देहरादून और उत्तरकाशी से आने वाली बसों के स्टाफ रात रुकते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ों में रात में बसें नहीं चलतीं, इसलिए देहरादून व उत्तरकाशी से सुबह बसें चलती हैं और शाम तक सांकरी पहुँचती हैं। तो रात को स्टाफ को सांकरी में रुकना होता है। सुबह ये लोग अपनी-अपनी बसों को वापस देहरादून व उत्तरकाशी ले जाएँगे। 

दीप्ति ने बस स्टैंड के पास हिमालयन व्यू होटल में 700 रुपये में कमरा ले लिया था। कमरे में तीन बिस्तर थे और अटैच्ड बाथरूम था और गीजर भी था। कमरे साफ-सुथरे थे। आजकल ऑफ-सीजन था, इसलिए सस्ते मिल गए, अन्यथा दिसंबर और जनवरी में ये खूब महंगे हो जाएँगे।

होटल वाले से एक पॉर्टर की बात की। मुझे भरोसा था कि वन विभाग वालों को स्थानीय निवासी से मतलब है, न कि गाइड या पॉर्टर से। होटल वाले ने आश्वासन दे दिया कि सुबह आपके उठने से पहले एक बंदा यहाँ उपस्थित हो जाएगा।

“बंदा कितने पैसे लेगा??”

“मुझे नहीं पता... कल उसी से पूछ लेना।”


रात को जब डिनर करने उसी ढाबे में पहुँचे, तो अलग ही माहौल था। पाँचों बसें आ चुकी थीं और इन बसों के स्टाफ आज के अपने-अपने अनुभव सुना रहे थे। ये सभी प्राइवेट बस वाले थे और उत्तराखंड के पहाड़ों में लंबी दूरी की प्राइवेट बसों के ड्राइवर-कंडक्टर अत्यधिक कस्टमर-फ्रेंडली होते हैं। ये सवारियों को लेने उनके घरों तक भी पहुँच जाते हैं और रास्ते में शॉपिंग भी करा देते हैं। चाय ब्रेक व सू-सू ब्रेक तो कहते ही हो जाता है। 












Video

अगला भाग: केदारकंठा ट्रैक-2 (सांकरी से जूड़ा का तालाब)



Comments

  1. ब्लॉग तो नया नवेला बना दिया, आज बड़े दिनों बाद आया हूं आपके ब्लॉग पर

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  2. अच्छा लगा काफी दिनों बाद आपका ब्लॉग लेखन पढ़कर!

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  3. बंदा परवर थाम लो जिगर
    फिर वही ब्लॉग लाया हूँ..........
    कुछ यूँ ही आपका ब्लॉग है
    बहुत दिन बाद आपका ब्लॉग ओर वही पुराना मुसाफ़िर दिखा
    इंतज़ार रहेगा अगली किश्त का
    निर्ज🌹

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  4. मज़ा आ गया भाई साब

    ReplyDelete

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