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Showing posts from 2020

केदारकंठा ट्रैक पर 8 साल के बच्चे को AMS हो गया...

अभी जब हम केदारकंठा गए, तो हमारे ग्रुप में सबसे छोटा सदस्य था अभिराज... उम्र 8 साल... अपने पापा के साथ आया था... हमने 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ट्रैक पर जाना मना कर रखा था, लेकिन इन दोनों की इच्छा को देखते हुए सहमति दे दी... चूँकि बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों से ज्यादा होती है, इसलिए मुझे बच्चे को AMS वगैरा होने का कोई डर नहीं था... 10 साल से कम उम्र के बच्चों को न ले जाने का सबसे बड़ा कारण था ठंड और बर्फ... बच्चे मैच्योर नहीं होते, इसलिए हो सकता है कि छोटे बच्चे ठंड न सहन कर पाएँ... या पैदल न चल पाएँ... ऐसे में इन्हें गोद में उठाकर या कंधे पर बैठाकर भी नहीं चल सकते... कुल मिलाकर इन बातों का प्रभाव पूरे ग्रुप पर पड़ता है...  लेकिन अभिराज ने मेरी उम्मीदों से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया... पूरे ग्रुप को इस बच्चे ने मोटीवेट किया... मैं इसकी वीडियो नहीं बना पाया, क्योंकि पूरे ट्रैक में यह मुझसे बहुत आगे रहा... इसने न कभी खाने-पीने में नखरे दिखाए और न ही चलने में नखरे दिखाए... पहले दिन हम सांकरी से चलकर 2800 मीटर की ऊँचाई पर जूड़ा लेक पर रुके... दूसरे दिन 3100 मीटर पर बेसकैंप पर रुके... बे

केदारकंठा ट्रैक भाग-3 (केदारकंठा चोटी तक)

केदारकंठा ट्रैक भाग-1 केदारकंठा ट्रैक भाग-2 सुबह 6 बजे ही उठ गए थे, क्योंकि आज हमें बहुत ज्यादा चलना था। आज हम 2800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित जूड़ा लेक पर थे और पहले 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदारकंठा चोटी पर जाना था और उसके बाद सांकरी भी लौटना था। जूड़ा लेक से चोटी तक पहुँचने में हमें कम से कम 5 घंटे लगने थे और चोटी से नीचे सांकरी तक उतरने में 4 घंटे लगने थे। इस प्रकार आज हमें कम से कम 9 घंटे तक ट्रैक करना था। चाय बनाने के बाद खिचड़ी बनाई। निकलते-निकलते 9 बज गए। थोड़ा लेट जरूर हो गए। सारा सामान आज यहीं टैंटों में छोड़ दिया। अपने साथ केवल थोड़ा-सा भोजन और पानी ही रखा। बारिश होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, इसलिए रेनकोट भी यहीं छोड़ दिए। कई गर्म और भारी-भरकम कपड़े भी छोड़ दिए और टैंट लगा रहने दिया। कोई चोरी-चकारी नहीं होती है। लेकिन चोरी का एक उदाहरण दूँगा। यह चोरी हमने की। हुआ ये कि कल जब हम जूड़ा लेक पर आए थे, तो एक लोकल ढाबे वाले ने अपना टैंट लगा रखा था। उसका ढाबा अभी तक तैयार नहीं हुआ था, इसलिए उसने काफी सामान अपने टैंट में रख रखा था। किसी काम से वह वापस सांकरी चला गया। वह हमारे गाइड़ अवतार

केदारकंठा ट्रैक-2 (सांकरी से जूड़ा का तालाब)

केदारकंठा ट्रैक भाग-1 सुबह सवेरे अवतार भाई उपस्थित थे। हमें इस ट्रैक के लिए एक पॉर्टर की आवश्यकता थी, तो होटल वाले ने आज सुबह अवतार भाई को बुला लिया। वे सौड़ गाँव के रहने वाले हैं, जो सांकरी से एकदम लगा हुआ है।  “कितने पैसे लोगे?” “आप कितने लोग हो?” “तीन।” “केदारकंठा ट्रैक करना है ना आपको?” “हाँ।” “6000 रुपये पर पर्सन लगेंगे।” “अरे, तुम्हें होटल वाले ने बताया नहीं क्या? हमें पूरी बुकिंग नहीं करनी है। हमें केवल एक पॉर्टर चाहिए। दो दिनों के लिए।” “आप दो दिनों में ट्रैक करोगे? यह दो दिन का ट्रैक नहीं है।” “देखो अवतार भाई, हमें दो दिनों के लिए एक पॉर्टर चाहिए। हमने होटल वाले से पॉर्टर की बात की थी।” “नहीं, पॉर्टर तो मिलने मुश्किल हैं। नेपाली लोग लॉकडाउन के कारण आए नहीं हैं।” “फिर तो तुम रहने दो। हम मार्किट में जा रहे हैं। पॉर्टर आराम से मिल जाएगा।” “अच्छा, ठीक है। कितना सामान है?” “तुम्हें केवल राशन लेकर चलना है। कैंपिंग का सारा सामान हमारे पास है और हम लेकर चलेंगे।” “दो दिनों का राशन भी बहुत हो जाएगा। फिर बर्तन-बुर्तन भी होंगे। दो पॉर्टर लगेंगे।” “कितना राशन लग जाएगा? आधा किलो चावल, आधा कि

केदारकंठा ट्रैक-1 (विकासनगर से सांकरी)

लॉकडाउन के कारण कई महीनों से घर में ही पड़े हुए थे और पहाड़ों में ट्रैकिंग तो छोड़िए, घर के आसपास पैदल चलना तक मुश्किल हो गया था। फिर सितंबर आते-आते जब माहौल सामान्य हुआ, तो सबसे पहले केदारकंठा ट्रैक ही दिमाग में आया। इसका कारण था हमारा वहम। हमें लगने लगा था कि पैरों में जंग लग गई है, इसलिए छोटे ट्रैक से ही अपनी जंग उतारनी चाहिए। उधर दीप्ति लगातार मेरे 80 किलो वजन को गूगल कर-करके देखती, तो उसे बॉडी-मास इंडेक्स ‘ओवरवेट’ बताता।  खैर, हिमाचल से और उत्तराखंड के भी कई इलाकों से खबरें आ रही थीं कि स्थानीय लोग टूरिस्टों को आने नहीं दे रहे। भले ही राज्य सरकारों ने सबकुछ खोल दिया हो, लेकिन स्थानीय लोगों को लग रहा था कि टूरिस्ट लोग अपने-अपने बैगों में कोरोना लेकर आ जाएँगे। जबकि वही स्थानीय लोग दिल्ली, देहरादून और चंडीगढ़ की मंडियों में सेब लेकर रोज आना-जाना कर रहे थे और छोटे-मोटे कामों के लिए लगातार इन शहरों में जा रहे थे। लेकिन हमारे इन सीधे-सादे पहाड़ियों को आज तक भी यही लग रहा है कि टूरिस्ट लोग अपने बैगों में कोरोना भरकर लाएँगे और उनके गाँव में फैला देंगे। तो सबसे बड़ी समस्या यही थी कि सांकरी के नि

मेरी कुछ प्रमुख ऊँचाईयाँ

बहुत दिनों से इच्छा थी एक लिस्ट बनाने की कि मैं हिमालय में कितनी ऊँचाई तक कितनी बार गया हूँ। वैसे तो इस लिस्ट को जितना चाहे उतना बढ़ा सकते हैं, एक-एक गाँव को एक-एक स्थान को इसमें जोड़ा जा सकता है, लेकिन मैंने इसमें केवल चुनिंदा स्थान ही जोड़े हैं; जैसे कि दर्रे, झील, मंदिर और कुछ अन्य प्रमुख स्थान। 

कहानी ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2’ पुस्तक की

आखिरकार 8 महीने की देरी से यह किताब छप ही गई। चलिए, अब इस किताब की पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं... ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद’ किताब प्रकाशित करने का आइडिया 2018 में आया था। इरादा था कि अपने सोशल मीडिया नेटवर्क में से अच्छा लिखने वाले कुछ मित्रों के यात्रा-वर्णन एकत्र करके उन्हें किताब के रूप में प्रकाशित करेंगे। इसकी शुरूआत 2018 में कर भी दी थी। ऐलान कर दिया कि जिन मित्रों को भी अपने यात्रा-लेख किताब में प्रकाशित कराने हैं, वे निर्धारित शब्द-सीमा में लिखकर मुझे भेज दें। उस समय लगभग 35 मित्रों ने अपने यात्रा-लेख भेजे। हमने पहले ही तय कर रखा था कि किताब में 240 से ज्यादा पेज नहीं रखेंगे। 200-240 पेज की किताब देखने में एकदम परफेक्ट लगती है। जबकि लेख इतने ज्यादा थे कि 500 पेज भी कम पड़ते। इनमें कुछ लेख तो ऐसे थे, जो पढ़ते ही मुझे पसंद आ गए; वहीं कुछ ऐसे भी लेख थे, जो बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे थे। कुल मिलाकर कुछ लेख तो छपने निश्चित थे और कुछ लेख नहीं छपने निश्चित थे। कुछ ऐसे भी लेख थे, जिनका छपना या न छपना किताब के पेजों पर निर्भर था। पेज सेटिंग और फाइनल एडिटिंग के समय अगर जगह बचेगी, तो लेख छपेंग

अगर भारत में 2 टाइम जोन हों, तो...

सीधी खड़ी लाइन भारत की स्टैंडर्ड टाइम लाइन है... धरती जब 360 डिग्री घूमती है, तो समय में 24 घंटे का परिवर्तन आ चुका होता है... यानी 1440 मिनट... 360 डिग्री में 1440 मिनट... यानी 1 डिग्री घूमने में 4 मिनट का परिवर्तन... भारत का सबसे पूर्वी सिरा अरुणाचल में किबिथू के पास है... इसके देशांतर लगभग 97 डिग्री हैं... उधर सबसे पश्चिमी सिरा गुजरात में कोटेश्वर के पास है... इसके देशांतर लगभग 68 डिग्री हैं... यानी भारत के धुर पूरब और धुर पश्चिमी बिंदुओं के बीच लगभग 30 डिग्री का अंतर है... इसे अगर 4 से गुणा करे, तो 120 मिनट आता है... यानी 2 घंटे... मतलब... जब किबिथू में सूर्योदय होता है, तो उसके 2 घंटे बाद कोटेश्वर में सूरज निकलता है... जब कोटेश्वर में सूरज निकलता है, तब तक किबिथू में सूरज बहुत ऊपर आ चुका होता है... इसी प्रकार सूर्यास्त भी पहले किबिथू में होता है और उसके 2 घंटे बाद कोटेश्वर में...  दिल्ली का देशांतर 77 डिग्री है... यानी किबिथू से 20 डिग्री और कोटेश्वर से 9 डिग्री... यानी किबिथू में सूर्योदय होने के 80 मिनट बाद दिल्ली में सूर्योदय होता है... 

भारत में नेशनल पार्क

नेशनल पार्क यानी एक ऐसा क्षेत्र जो इकोसिस्टम के लिए अत्यधिक विशेष हो, किसी जीव के लिए विशेष हो, किसी वनस्पति के लिए विशेष हो... और उसे संरक्षित करना जरूरी हो... हमारे लिए यह प्रसन्नता की बात है कि भारत में बहुत सारे नेशनल पार्क हैं, जहाँ हम उन जीवों का दीदार करने या प्रकृति को प्राकृतिक वातावरण में देखने जा सकते हैं। ज्यादातर नेशनल पार्क किसी न किसी जीव के लिए जाने जाते हैं; जैसे जिम कार्बेट बाघ के लिए, काजीरंगा गैंडों के लिए, राजाजी हाथी के लिए, गीर शेर के लिए... लेकिन इन जंगलों में इन जानवरों के अलावा और भी बहुत सारे जानवर रहते हैं... ज्यादातर नेशनल पार्कों में हिरणों की अलग-अलग प्रजातियाँ निवास करती हैं; जैसे नीलगाय, सांभर, चीतल, चिंकारा, जंगली सूअर, काकड़ आदि... इन शाकाहारी जानवरों के अलावा एक मांसाहारी जानवर भी लगभग सभी नेशनल पार्कों में मिलता है... वो है तेंदुआ... पक्षियों की अनगिनत प्रजातियाँ सभी नेशनल पार्कों में मिलती हैं.. तो इस लेख में हम भारत के ज्यादातर नेशनल पार्कों का उल्लेख करेंगे और उनमें पाए जाने वाले उस विशेष जानवर का भी नाम लिखेंगे...

जालंधर और सहारनपुर से हिमालयी चोटियों के दिखने का रहस्य

फरवरी 2015 में मैं जालंधर से पठानकोट की ट्रेन यात्रा कर रहा था। यह सुबह पौने 9 बजे वाली लोकल ट्रेन थी, जो पठानकोट तक प्रत्येक स्टेशन पर रुकती हुई जाती है। जालंधर शहर से बाहर निकलते ही मुझे उत्तर में क्षितिज में बर्फीली चोटियाँ दिखाई दीं। चूँकि मैं इस क्षेत्र के भूगोल और मौसम से अच्छी तरह परिचित हूँ, इसलिए मुझे यह देखकर बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ। मैं पूरे रास्ते इस नजारे को देखता रहा। हालाँकि मेरे पास अच्छे जूम का कैमरा था और मैं इनका फोटो ले सकता था, लेकिन मुझे लगा कि यहाँ से 4500 मीटर ऊँची धौलाधार की उन पहाड़ियों का नजारा अक्सर दिखता ही रहता होगा, इसलिए कोई फोटो नहीं लिया। फिर ये चोटियाँ एकदम क्षितिज में थीं और फोटोग्राफी के नजरिए से कैमरे को पूरा जूम करके उनका इतना शानदार फोटो भी नहीं आता कि देखने वाले वाह-वाह करें। तो मैंने उस नजारे का फोटो नहीं लिया। हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रंखला की ऊँचाई बहुत ज्यादा तो नहीं है, लेकिन इसके नीचे कांगड़ा का पठार है, जहाँ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं... और उसके नीचे पंजाब के मैदान हैं। पंजाब के बहुत सारे स्थानों से धौलाधार सा

पुस्तक चर्चा: दूर दुर्गम दुरुस्त (उमेश पंत)

पुस्तक: दूर दुर्गम दुरुस्त लेखक: उमेश पंत प्रकाशक: राजकमल ISBN: 978-93-89577-28-0 पृष्‍ठ: 224 मूल्य: 250 रुपये उमेश पंत जी की पहली किताब ‘ इनरलाइन पास ’ ने सफलता के झंडे गाड़े। इनकी वह किताब उत्तराखंड में आदि कैलाश ट्रैक पर आधारित है और प्रत्येक ट्रैक की तरह रोमांच से भरपूर है। अब जैसे ही इनकी दूसरी यात्रा किताब ‘दूर दुर्गम दुरुस्त’ आई, तो यह तो पक्का था कि यह भी रोमांच से भरपूर ही होगी। किताब पूर्वोत्तर की यात्राओं पर आधारित है। उमेश भाई ने इसके लिए दो बार पूर्वोत्तर की यात्राएँ कीं... फरवरी 2018 में और दिसंबर 2018 में। फरवरी में ये ट्रेन से गुवाहाटी पहुँचे और कुछ समय गुवाहाटी में रुककर मेघालय की ओर निकल गए। मेघालय में ये चेरापूंजी के पास डबल डेकर लिविंग रूट ब्रिज गए और डावकी भी गए। यहाँ मेरी एक शिकायत है कि इनके पास समय की कोई कमी नहीं थी, इसलिए इन्हें चेरापूंजी और डावकी में कम से कम एक-एक दिन रुकना चाहिए था। लेकिन खैर, कोई बात नहीं। सबकी अपनी-अपनी प्राथमिकताएँ और योजनाएँ होती हैं। मेघालय से वापस असम आए और सीधे पहुँचे तेजपुर। तेजपुर में इन्हें एक दिन अतिरिक्त