सुबह 6 बजे ही उठ गए थे, क्योंकि आज हमें बहुत ज्यादा चलना था। आज हम 2800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित जूड़ा लेक पर थे और पहले 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदारकंठा चोटी पर जाना था और उसके बाद सांकरी भी लौटना था। जूड़ा लेक से चोटी तक पहुँचने में हमें कम से कम 5 घंटे लगने थे और चोटी से नीचे सांकरी तक उतरने में 4 घंटे लगने थे। इस प्रकार आज हमें कम से कम 9 घंटे तक ट्रैक करना था।
चाय बनाने के बाद खिचड़ी बनाई। निकलते-निकलते 9 बज गए। थोड़ा लेट जरूर हो गए। सारा सामान आज यहीं टैंटों में छोड़ दिया। अपने साथ केवल थोड़ा-सा भोजन और पानी ही रखा। बारिश होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, इसलिए रेनकोट भी यहीं छोड़ दिए। कई गर्म और भारी-भरकम कपड़े भी छोड़ दिए और टैंट लगा रहने दिया। कोई चोरी-चकारी नहीं होती है।
लेकिन चोरी का एक उदाहरण दूँगा। यह चोरी हमने की। हुआ ये कि कल जब हम जूड़ा लेक पर आए थे, तो एक लोकल ढाबे वाले ने अपना टैंट लगा रखा था। उसका ढाबा अभी तक तैयार नहीं हुआ था, इसलिए उसने काफी सामान अपने टैंट में रख रखा था। किसी काम से वह वापस सांकरी चला गया। वह हमारे गाइड़ अवतार का मित्र था।
खाना बनाते समय पता चला कि हम सब्जी छौंकने के लिए तेल लाना भूल गए। तब अवतार ने अपने मित्र के टैंट की चेन खोली और तेल की बोतल निकाल ली। यह तेल कल भी काम आया और आज भी काम आया।
वे 5 लड़के जो कल देर रात यहाँ आए थे और आज सुबह सवेरे 2 बजे केदारकंठा के लिए निकलने वाले थे, अभी भी यहीं थे। उनकी कहानी थोड़ी लंबी है, इसलिए अलग पोस्ट में लिखूँगा।
जूड़ा लेक (2800 मीटर) से 3100 मीटर तक काफी तेज चढ़ाई है। 3100 से 3400 तक चढ़ाई कुछ कम है। यानी ग्रेडियेंट काफी कम है। कई बार तो आधे-आधे किलोमीटर तक सीधा सपाट रास्ता भी है। इसी हिस्से में कुछ कैंपसाइट हैं, जैसे बेसकैंप, हरगाँव कैंपसाइट आदि। केदारकंठा का ट्रैक कराने वाली एजेंसियाँ जूड़ा लेक के बाद इसी हिस्से में अपनी दूसरी कैंपसाइट लगाती हैं। ज्यादातर एजेंसियाँ इस ट्रैक को 4 दिनों में कराती हैं।
पहले दिन सांकरी (2000 मीटर) से जूड़ा लेक (2800 मीटर)
दूसरे दिन जूड़ा लेक (2800 मीटर) से बेसकैंप (3400 मीटर)
तीसरे दिन बेसकैंप (3400 मीटर) से केदारकंठा और वापस जूड़ा लेक (2800 मीटर)
और चौथे दिन जूड़ा लेक से सांकरी।
इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि हमारा शरीर ऊँचाई के अनुसार खुद को ढालता हुआ चलता है। रोज औसतन 4 घंटे की ट्रैकिंग होती है, इसलिए थकान भी उतनी नहीं होती और नजारे देखने का समय भी खूब मिल जाता है। इसी वजह से यह ट्रैक उन लोगों के लिए भी अच्छा है, जिन्होंने पहले कभी ट्रैकिंग नहीं की।
3400 मीटर पर ट्री-लाइन समाप्त हो जाती है और बुग्याल शुरू हो जाता है। यहीं एक खुले मैदान को बेसकैंप कहते हैं। लेकिन जब सर्दियों में बर्फ ज्यादा हो जाती है, तो बेसकैंप खिसककर नीचे 3200 मीटर पर आ जाता है। ज्यादा बर्फ होने पर 3400 मीटर पर कैंप नहीं लगाए जाते।
3400 मीटर की ऊँचाई से केदारकंठा एकदम सामने दिखती है। ऐसा लगता है, जैसे आधे घंटे में पहुँच जाएँगे। यहाँ तक आते-आते हमें थकान होने लगी थी और भूख भी लगने लगी थी। आधा घंटा रुककर चाय पी और कुछ बन व बिस्कुट खाए। चाय हम जूड़ा लेक से ही थर्मस में लेकर आए थे।
इस आधा घंटे रुकने का बड़ा लाभ मिला। आज हम अभी तक 600 मीटर चढ़ चुके थे और हमें AMS का असर शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस आधे घंटे रुकने में ही शरीर ने तेजी से स्वयं को ढाल लिया और केदारकंठा चोटी पर पहुँचने तक भी हमें कुछ खास असर नहीं हुआ। अगर हम यहाँ आधा घंटा न रुकते, तो AMS का असर काफी ज्यादा हो जाता।
AMS खतरनाक नहीं होता, लेकिन इसकी अनदेखी खतरनाक हो सकती है। खाते-पीते रहने से और एक दिन में अधिकतम 700-800 मीटर ऊपर चढ़ने से AMS नहीं होता। 700-800 मीटर चढ़कर एक रात रुकने में ही शरीर अपने आप ही उस ऊँचाई के अनुसार ढल जाता है और अगले दिन आप फिर से 700-800 मीटर चढ़ने के लिए फिट हो जाते हैं।
बुग्याल अर्थात ऊपर वाले की बनाई हुई सबसे खूबसूरत जगह। हिमालय की ऊँचाइयों पर ट्री-लाइन से ऊपर घास के विशाल मैदान व विशाल ढलान होते हैं, जिन्हें बुग्याल कहा जाता है। इन बुग्यालों के पीछे बर्फीली चोटियाँ होती हैं, जो बुग्यालों की खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। दूर-दूर तक की घाटियाँ व पहाड़ दिखाई देते हैं। केदारकंठा से हिमाचल में स्थित चांशल पास, रूपिन वैली, सूपिन वैली साफ दिख रहे थे। मौसम ज्यादा साफ होता, तो चूड़धार भी दिख जाती। इनके अलावा उत्तराखंड में हर की दून वैली, पुरोला वैली, यमुना वैली, स्वर्गारोहिणी चोटी, बंदरपूँछ व कालानाग चोटियाँ समेत बहुत कुछ दिखाई दे रहा था। बहुत सारे जाने-अनजाने बुग्याल भी दिख रहे थे, जिनमें कभी न कभी हम ट्रैकिंग करने जाएँगे।
केदारकंठा पर सर्दियों में खूब बर्फ पड़ती है। इसके बावजूद भी यह ट्रैक विंटर ट्रैक के रूप में बहुत प्रसिद्ध है। फिर भी कई बार इतनी ज्यादा बर्फ पड़ जाती है कि केदारकंठा चोटी तक पहुँचना असंभव हो जाता है।
सांकरी से केदारकंठा का रास्ता गोविंद नेशनल पार्क से होकर जाता है, इसलिए वन विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक होती है। इसके अलावा एक रास्ता कोटगाँव से और एक रास्ता नेतवार से भी जाता है। ये सभी रास्ते नेशनल पार्क से गुजरते हैं। लेकिन एक रास्ता ऐसा भी है, जो नेशनल पार्क से होकर नहीं गुजरता।
मोरी के पास एक गाँव है खरसाड़ी। खरसाड़ी से एक सड़क निकलती है, जो 15-16 किलोमीटर दूर जीवाणु गाँव में पहुँचती है। जीवाणु भी लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई पर है। यह केदारकंठा की तलहटी में स्थित है और यहाँ से भी केदारकंठा का ट्रैक किया जा सकता है। यह ट्रैक जंगल से होकर तो गुजरता है, लेकिन नेशनल पार्क से होकर नहीं गुजरता। लेकिन यह रास्ता सर्दियों में बंद रहता है।
मेरी दिलचस्पी बर्फ में ट्रैक करने में नहीं होती, क्योंकि इसमें मेहनत बहुत ज्यादा लगती है। ठंड तो हम बर्दाश्त कर लेते हैं, लेकिन बर्फ में चलना बहुत ज्यादा थकाऊ काम होता है। इसलिए मैं मानसून में ट्रैक करना ज्यादा पसंद करता हूँ, जब बर्फ के कोई चांस नहीं होते। हम मानसून में फिर से केदारकंठा आएँगे और इससे लगते हुए खुलारा बुग्याल व अन्य बुग्यालों में कई दिन बिताएँगे - भेड़पालकों व भैंसपालकों के साथ।
स्वर्गारोहिणी चोटी |
स्वर्गारोहिणी चोटी |
केदारकंठा से दिखतीं दूर-दूर तक की पहाड़ियाँ |
जूड़ा लेक |
सुन्दर वर्णन और चित्र।
ReplyDeleteबेहतरीन फ़ोटोज़ ! एक नंबर
ReplyDelete