अभी जब हम केदारकंठा गए, तो हमारे ग्रुप में सबसे छोटा सदस्य था अभिराज... उम्र 8 साल... अपने पापा के साथ आया था... हमने 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ट्रैक पर जाना मना कर रखा था, लेकिन इन दोनों की इच्छा को देखते हुए सहमति दे दी... चूँकि बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों से ज्यादा होती है, इसलिए मुझे बच्चे को AMS वगैरा होने का कोई डर नहीं था... 10 साल से कम उम्र के बच्चों को न ले जाने का सबसे बड़ा कारण था ठंड और बर्फ... बच्चे मैच्योर नहीं होते, इसलिए हो सकता है कि छोटे बच्चे ठंड न सहन कर पाएँ... या पैदल न चल पाएँ... ऐसे में इन्हें गोद में उठाकर या कंधे पर बैठाकर भी नहीं चल सकते... कुल मिलाकर इन बातों का प्रभाव पूरे ग्रुप पर पड़ता है...
लेकिन अभिराज ने मेरी उम्मीदों से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया... पूरे ग्रुप को इस बच्चे ने मोटीवेट किया... मैं इसकी वीडियो नहीं बना पाया, क्योंकि पूरे ट्रैक में यह मुझसे बहुत आगे रहा... इसने न कभी खाने-पीने में नखरे दिखाए और न ही चलने में नखरे दिखाए...
पहले दिन हम सांकरी से चलकर 2800 मीटर की ऊँचाई पर जूड़ा लेक पर रुके... दूसरे दिन 3100 मीटर पर बेसकैंप पर रुके... बेसकैंप पर बर्फ में टैंट लगाए गए... तीसरे दिन 3800 मीटर केदारकंठा चोटी तक जाकर वापस सांकरी लौटना था... बर्फ तो पहले ही दिन से मिलने लगी थी...
केदारकंठा से सूर्योदय बड़ा अच्छा दिखता है और बेसकैंप से चोटी तक पहुँचने में 4 घंटे लग जाते हैं... इसलिए सुबह-सवेरे 3 बजे ट्रैक शुरू करना होता है... पता चला कि 2 किमी आगे 3400 मीटर की ऊँचाई पर चाय की एक दुकान है... तो तय ये हुआ कि सुबह 3 बजे सभी लोग आगे बढ़ेंगे... फिर जिन्हें चोटी तक जाना होगा, वे चोटी तक जाएँगे और बाकी लोग चाय की दुकान में बैठे रहेंगे... चोटी तक जाने वाले लोग 8-9 बजे तक वापस चाय की दुकान पर आ जाएँगे और बाकी लोग उजाला होने पर चाय की दुकान के आसपास फोटोग्राफी कर लेंगे... क्योंकि यहाँ ट्री-लाइन 3400 मीटर पर है और चाय की दुकान के बाद एक भी पेड़ नहीं है... इसलिए ट्री-लाइन के ऊपर दूर-दूर तक अथाह बर्फ दिखेगी और अच्छे फोटो आएँगे...
ग्रुप में 2 लोकल गाइड भी थे... एक गाइड सबसे आगे चलता था, ताकि तेज चलने वाले सदस्यों के साथ-साथ रहे... दूसरा गाइड धीरे चलने वाले लोगों के साथ पीछे-पीछे चलता था... या कभी-कभी मध्यम चलने वालों के साथ रहता था... और मैं हमेशा सबसे पीछे रहता था... ग्रुप में जो भी कोई सबसे पीछे रहेगा, मुझे उसके साथ रहना था... इस तरह हमारे तीन ग्रुप बने हुए थे... तेज चलने वाले, मध्यम चलने वाले और धीरे चलने वाले... और तीनों के साथ एक गाइड जरूर होता था...
मैंने तय कर रखा था कि मैं चोटी तक नहीं जाऊँगा, बल्कि उजाला होने तक चाय की दुकान में बैठूँगा और उसके बाद एक-आध किलोमीटर आगे तक चला जाऊँगा...
...
15 दिसंबर 2020... रात के 2 बजे सबको उठा दिया गया... नाश्ते में दलिया था... अभिराज को दलिया पसंद नहीं था, लेकिन मेरे कहने पर उसने आधा कटोरी दलिया खा लिया... सभी को एक-एक लीटर गर्म पानी, फ्रूटी, बिस्कुट दे दिए गए और 3 बजे तक सभी लोग निकल पड़े...
डेढ़ घंटे बाद जब 3400 मीटर पर स्थित चाय की दुकान पर पहुँचे, तब भी अंधेरा था... हवा बहुत तेज चल रही थी, लेकिन दुकान के अंदर न हवा लग रही थी और न ही ठंड लग रही थी, क्योंकि वहाँ चूल्हे में आग जल रही थीं...
कुछ लोग आगे चोटी की ओर चले गए और कुछ लोग उजाला होने की प्रतीक्षा में यहीं बैठ गए... मुझे भी यहीं बैठना था... दोनों गाइड भी चोटी की ओर चले गए...
तभी अभिराज को उल्टी हुई... मैं तुरंत समझ गया कि इसे AMS हो गया है... एक्यूट माउंटेन सिकनेस... इसके पापा अरुण कौशिक भी यहीं थे... उनका घबराना लाजिमी था...
अब आप कहेंगे कि AMS होने पर तुरंत बच्चे को लेकर नीचे बेसकैंप चले जाना चाहिए था... लेकिन कुछ बातें ऐसी थीं, जिसकी वजह से हम तुरंत बेसकैंप नहीं गए...
पहली बात तो ये है कि AMS जानलेवा नहीं है... जब आप पहाड़ों में ऊँचाई पर जाते हैं, तो हवा की डेंसिटी कम होती जाती है... इसका मतलब ये हुआ कि ऑक्सीजन की डेंसिटी भी कम होती जाएगी... यानी शरीर को कम ऑक्सीजन मिलेगी... ऐसे में शरीर थोड़ा-सा सुस्त हो जाता है... लेकिन जल्दी ही एक्लीमेटाइज भी हो जाता है... एक्लीमेटाइजेशन एक ऑटोमेटिक प्रक्रिया है, जिसमें हमें-आपको कुछ नहीं करना पड़ता... सुस्ती आना, आलस आना बिल्कुल भी गंभीर बात नहीं है... आप पानी पीकर, थोड़ा भोजन करके या आधा घंटा आराम करके आगे बढ़ सकते हो...
जब AMS और बढ़ जाता है, तो सिरदर्द होने लगता है और उल्टी भी हो जाती है... यह स्टेज भी जानलेवा नहीं है, लेकिन इसमें एलर्ट होना पड़ता है... आगे बढ़ना एवोइड करना चाहिए और यदि संभव हो, तो नीचे उतर जाना चाहिए... अगर नीचे उतरना संभव न हो, तो भरपूर आराम करना चाहिए और मन न होने के बावजूद भी भोजन-पानी लेते रहना चाहिए... कुछ ही घंटों में शरीर अपने-आप एक्लीमेटाइज हो जाएगा...
AMS होने के बाद शरीर ये सब लक्षण देता ही है... अगर आप इन्हें नजरअंदाज करते रहे और ऊपर चढ़ते ही रहे, तब तेज सिरदर्द होता है... मूर्च्छा आ जाती है... नाक से खून भी बह सकता है... दिमाग और शरीर का संतुलन कम होने लगता है... चलने में लड़खड़ाहट होने लगती है... चिड़चिड़ापन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है... और रेयर केस में मृत्यु भी हो सकती है...
बच्चे को उल्टी हुई... इसका मतलब है कि आगे तो किसी भी हालत में बढ़ना ही नहीं है... वैसे भी हम तय कर चुके थे कि उजाला होने तक इसी दुकान में बैठे रहेंगे... अभी इसी समय नीचे उतरना भी संभव नहीं था... क्योंकि हमारे दोनों गाइड आगे चोटी की ओर जा चुके थे और वे कम से कम 3 घंटे बाद लौटेंगे... मुझे बर्फ में नीचे उतरने में बहुत परेशानी होती है, इसलिए अगर मैं बच्चे को लेकर नीचे उतरता, तो हम दोनों के लिए बहुत ज्यादा खतरा होता...
इसका एक समाधान ये होता कि हम चाय की दुकान में बैठे किसी स्थानीय व्यक्ति से बच्चे को लेकर जाने को कह सकते थे... लेकिन यह भी प्रैक्टिकली संभव नहीं था... क्योंकि नीचे बेसकैंप पर सैकड़ों टैंट लगे थे... उनमें से हमारा टैंट कौन-सा है, यह पता करना बड़ा कठिन होता... हम उन स्थानीय लोगों से बच्चे को लेकर सांकरी जाने को भी कह सकते थे, लेकिन हम घंटों बाद पहुँचते... हालाँकि पहाड़ के लोग बहुत अच्छे होते हैं... लेकिन अनफिट बच्चा पता नहीं किस हालत में है, यह चिंता हमें शाम तक सताए रखती... वहाँ फोन नेटवर्क नहीं है, इसलिए किसी भी तरह से लोकल बंदे से संपर्क भी नहीं हो पाता...
इसलिए अगले 3 घंटों तक बच्चा किसी भी हालत में नीचे नहीं पहुँचाया जा सकता था... तो अब क्या किया जाए..??
यहीं पर मेरा अनुभव काम आया... ऐसा किसी के साथ भी हो सकता था... मेरे साथ भी हो सकता था... हल्का AMS मुझे पहले भी अनगिनत बार हुआ है... ग्रुप के किसी अन्य सदस्य के साथ भी हो सकता था... बड़े लोग AMS के बारे में जानते हैं, इसलिए घबरा जाते हैं... घबराने से समस्या और ज्यादा बढ़ जाती है... लेकिन बच्चा तो AMS के बारे में जानता ही नहीं है... इसलिए वह घबराएगा नहीं... उसे लगेगा कि बस यूँ ही उल्टी हो रही है...
दूसरा पॉइंट... AMS तभी होता है, जब शरीर को ऑक्सीजन की कमी हो रही हो... हालाँकि शरीर कम ऑक्सीजन मिलने पर अपने-आप एक्लीमेटाइज होने लगता है और कुछ ही देर में एकदम ठीक भी हो जाता है... लेकिन अभी तात्कालिक रूप से शरीर को कम ऑक्सीजन मिल रही है... चाय की दुकान के अंदर लकड़ी जल रही थी और धुआँ भी था... यानी बाहर के मुकाबले अंदर ऑक्सीजन और भी कम थी... तो अगर बच्चे को बाहर खुले में बैठाया जाता, तो उसे जल्दी आराम मिलता...
लेकिन बाहर तापमान था माइनस 8 डिग्री... अंधेरा भी था... हवा भी तेज चल रही थी... इसलिए बाहर नहीं बैठाया जा सकता था... 8 बजे जब धूप निकलेगी, तभी बाहर बैठने लायक माहौल होगा... यानी अगले 3 घंटों तक सभी को दुकान के अंदर ही बैठना है...
और मैंने सोच लिया था कि अगर बच्चे की हालत और बिगड़ती है, तो मैं इसे स्लीपिंग बैग में लपेटकर बाहर बैठा दूँगा... मुझे 100% विश्वास था कि बाहर बैठते ही बच्चा एकदम ठीक हो जाएगा...
धुआँ उठता है ऊपर... नीचे जमीन के आसपास न्यूनतम धुआँ होता है... फिर दुकान के मालिक का टैंट भी दुकान में ही एक कोने में लगा हुआ था... हमने बच्चे को टैंट में घुसाकर स्लीपिंग बैगों में लपेट दिया... उसे धुआँ भी मिनिमम लगा और नींद भी ले ली...
फिर भी उसे दो-तीन बार उल्टियाँ हुईं... जब भी उल्टी आती, वह टैंट से बाहर निकलकर मुझे आवाज लगाता... मैं उसे उठाकर दुकान से बाहर ले जाता और उल्टियाँ करा देता... और फिर स्लीपिंग बैगों में लपेट देता...
“देखो सर जी, इसे AMS हुआ है... हालात पूरी तरह काबू में हैं... धूप निकलेगी, तो इसे बाहर बैठा देंगे... बाहर बैठते ही यह एकदम ठीक हो जाएगा... घबराने वाली कोई बात नहीं है...” बच्चे के पापा का भी हौसला बढ़ाना जरूरी था... इस दौरान कौशिक साहब ने पूरा साथ दिया और एक मिनट के लिए भी पैनिक नहीं हुए...
हमारे पास डायमोक्स और उल्टियाँ रोकने की गोलियाँ भी थीं... लेकिन डायमोक्स 24 घंटे पहले ली जाती है, तभी ठीक रहती है और उल्टी रोकने की गोलियाँ सामान्य उल्टी में काम करती हैं... इसलिए हमने कोई भी गोली नहीं दी... हम डॉक्टर नहीं हैं और ऐसे में हमारे द्वारा दी गई साधारण गोली भी कोई साइड इफेक्ट दिखा सकती थी...
इस पूरे प्रकरण में बच्चे ने बस खाने-पीने से मना किया, बाकी पूरा साथ दिया... हमने भी उससे खाने-पीने की जिद नहीं की...
“नीरज अंकल, मुझे उल्टियाँ क्यों रही हैं?”
“बेटा, तुम्हें AMS हो गया है... तुम्हें पता है ना, कि जब पहाड़ों में ऊपर जाते हैं तो एयर की डेंसिटी कम होती जाती है...”
“हाँ, पता है...”
“बस, उसी वजह से हुआ है...”
“तो बाकी लोगों को क्यों नहीं हुआ...”
“क्योंकि उन्होंने सुबह दो-दो कटोरी दलिया खाया था और तुमने केवल आधा कटोरी ही खाया था...”
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8 बजे धूप निकली... बच्चे को बाहर बैठा दिया गया... कुछ ही देर में चोटी पर गए लोग व हमारा गाइड भी आ गया... बच्चे को गाइड के हवाले कर दिया गया...
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10 बजे, नीचे बेसकैंप पर...
“नीरज अंकल, नीरज अंकल... पता है मैं बर्फ पर स्लाइड होकर नीचे आया हूँ... गाइड अंकल ने मेरे फोटो भी खींचे और वीडियो भी बनाई...” अभिराज अपने उसी चिर-परिचित अंदाज में लौट आया था... और अपने दोस्त 10 वर्षीय सार्थक के साथ मिलकर मेरी फटी पैंट की मजाक बनाने लगा था...
...
अब आप कहोगे कि इतने छोटे बच्चे को नहीं ले जाना चाहिए था... लेकिन भई, AMS तो किसी को भी हो सकता है... मुझे पहाड़ों का इतना अनुभव है, इसके बावजूद भी ट्रैकिंग में हमेशा हल्का AMS होता है... हो सकता है कि कल मुझे और ज्यादा AMS हो जाए... हो सकता है कि कल मुझे भी उल्टियाँ होने लगें...
मैटर ये करता है कि ऐसी सिचुएशन में आप किस तरह की रिएक्शन देते हो और किस तरह चीजों को हैंडल करते हो... AMS होने पर घबराना नहीं है, पैनिक नहीं होना है... It's just a shortage of Oxygen... इसे समझना है और शरीर को अपने-आप एक्लीमेटाइज होने देना है... छोटी-मोटी AMS तो आधा घंटा आराम करने पर ही ठीक हो जाती है... यह बिल्कुल भी जानलेवा नहीं है... शरीर संकेत देता है... उन्हें पहचानना है, आराम करना है और मस्त रहना है...
सफर में समय पर अनुभव बड़ा काम आता है
ReplyDeleteचलिए सब अच्छा होने पर सफर भी सुहावना लगता है, यादगार बन जाता है
बहुत अच्छी जानकारी के साथ यात्रा संस्मरण अच्छी लगी
आपने बिल्कुल सही ट्रीटमेंट किया। उसी वज़ह से बच्चा भी नाॅर्मल भी हों गया।
ReplyDelete👍
ReplyDeleteइस पूरे प्रकरण में लगभग ढाई घंटे बीतने के बाद सबसे डरावना पल वह था जब सभी स्थानीय लोगों ने बार-बार मुझे कहा कि आप बच्चे को तत्काल नीचे लेकर जाइए अन्यथा कुछ भी हो सकता है, ठीक उसी समय जब मैं बाहर आया तो उस श्री नीरज जाट बिना किसी गंदगी का भाव मन में लिए बच्चों को अपनी गोद में उठाकर उल्टियां करा रहे थे जब इन्होंने बच्चे को वापस सुलाया (क्योंकि पूरे प्रकरण में बच्चे ने केवल नीरज अंकल की बात सुनी) तो इसके बाद नीरज जी ने भरोसा दिया कि स्थिति ठीक है बस धूप आ जाने दो सब ठीक हो जाएगा।
ReplyDeleteइस पूरे प्रकरण में श्री नीरज जाट का मानवीय पक्ष बहुत ही शानदार रूप से उभर कर सामने आया और जिस प्रकार की देखभाल बच्चे की की गई वह केवल परिवार के सदस्य के द्वारा ही की जा सकती है।
हमारा परिवार आपके द्वारा दी गई सलाह और और लगभग 3:30 घंटे निरंतर की गई देखभाल को विशेष रूप से याद रखे हुए हैं।
बाकी अभिराज को उसके मिस्टर बीन के साथ फिर से जाना है।
जब मैं अपने मित्रों के साथ रुद्रनाथ (11800 फुट) गया तो आपके और दूसरे ट्रैकरों के संस्मरण पढ़कर AMS की चिन्ता दिमाग में बैठी हुयी थी। हालाँकि मेरा गृहराज्य उत्तराखण्ड होने से मैं पहले भी खूब पहाड़ों पर चढ़ा हुआ था पर यह हमारी पहली विधिवत ट्रैकिंग थी, बाकी तीन मित्र तो ऐसे पहाड़ों पर कभी चढ़े ही न थे।
ReplyDeleteपूरे ट्रैक के दौरान कभी AMS जैसा कुछ अनुभव नहीं हुआ। मैंने सोचा कि मेरा जन्म ही पहाड़ का है, शायद इसलिये मैं नैचुरली एडजस्ट हो गया पर बाकी तीनों को भी कुछ विशेष अनुभव न हुआ।
हेलंग (लगभग 4500 फुट) से हमने पैदल यात्रा शुरु की थी और तीसरे दिन रुद्रनाथ (11800 फुट) पहुँचे। इस हिसाब से हमने प्रतिदिन औसत 2000 फुट से ऊपर ऊँचाई तय की। इस हिसाब से हमारा अनुकूलन का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा।
Neeraj bhai - Ondem MD 4 MG is a mouth dissolving tablet.
ReplyDeleteIt is the most potent anti emetic and can control Any type of vomitting in 30 mins.
Gadi se pahado par travel karte hue jo vomit hoti hai kya usko bhi ams kahenge
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