फरवरी 2015 में मैं जालंधर से पठानकोट की ट्रेन यात्रा कर रहा था। यह सुबह पौने 9
बजे वाली लोकल ट्रेन थी, जो पठानकोट तक प्रत्येक स्टेशन पर रुकती हुई जाती है।
जालंधर शहर से बाहर निकलते ही मुझे उत्तर में क्षितिज में बर्फीली चोटियाँ दिखाई
दीं। चूँकि मैं इस क्षेत्र के भूगोल और मौसम से अच्छी तरह परिचित हूँ, इसलिए मुझे
यह देखकर बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ। मैं पूरे रास्ते इस नजारे को देखता रहा।
हालाँकि मेरे पास अच्छे जूम का कैमरा था और मैं इनका फोटो ले सकता था, लेकिन मुझे
लगा कि यहाँ से 4500 मीटर ऊँची धौलाधार की उन पहाड़ियों का नजारा अक्सर दिखता ही
रहता होगा, इसलिए कोई फोटो नहीं लिया। फिर ये चोटियाँ एकदम क्षितिज में थीं और
फोटोग्राफी के नजरिए से कैमरे को पूरा जूम करके उनका इतना शानदार फोटो भी नहीं
आता कि देखने वाले वाह-वाह करें। तो मैंने उस नजारे का फोटो नहीं लिया।
हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रंखला की ऊँचाई बहुत ज्यादा तो नहीं है, लेकिन इसके
नीचे कांगड़ा का पठार है, जहाँ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं... और उसके नीचे पंजाब के
मैदान हैं। पंजाब के बहुत सारे स्थानों से धौलाधार सालभर दिखती रहती है, जिनमें
पठानकोट प्रमुख है। लेकिन अगर मौसम ज्यादा साफ हुआ, तो ये चोटियाँ पंजाब में
सतलुज के उत्तर में स्थित किसी भी स्थान से देखी जा सकती हैं। यानी मंझा और दोआबा
से धौलाधार दिख सकती है।
कई साल पहले मैंने एक फोटो देखा था, जिसमें रुड़की में नहर दिख रही थी और दूर
सुदूर उत्तर में बर्फीली चोटियाँ भी दिख रही थीं। मैं कई बार रुड़की गया हूँ... हर
मौसम में गया हूँ, तो यह जानता हूँ कि वहाँ से हिमालय की निचली पहाड़ियाँ भी
कभी-कभार ही दिखाई देती हैं। ऐसे में रुड़की से बर्फीली चोटियों वाला वह फोटो मुझे
संदेहास्पद भी लग रहा था और सच्चा भी लग रहा था। रुड़की से सीधे 25 किलोमीटर दूर
शिवालिक की निचली पहाड़ियाँ हैं और 50 किलोमीटर दूर नरेंद्रनगर की मध्यम पहाड़ियाँ
हैं और 130 किलोमीटर दूर महाहिमालय की बर्फीली चोटियाँ हैं। मुझे साफ मौसम में 25
किलोमीटर और 50 किलोमीटर दूर तक दिखने का भरोसा तो था, लेकिन 130 किलोमीटर का
भरोसा नहीं था। इसके बावजूद भी मन का एक कोना कह रहा था कि रुड़की से महाहिमालय की
वे चोटियाँ अवश्य दिखती होंगी।
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Photo Source:
Saurabh Bhatia |
फिर एक दिन एक फेसबुक ग्रुप में बढ़नी स्टेशन का फोटो देखा... यह स्टेशन यूपी में
गोरखपुर के पास है। इस फोटो में एक ट्रेन
खड़ी थी और उसके पीछे बैकग्राउंड में नेपाल हिमालय के धौलागिरी और अन्नपूर्णा शिखर
दिख रहे थे। बढ़नी से धौलागिरी शिखर की सीधी दूरी 150 किलोमीटर है।
और फरवरी 2018 में जब हम असम में भूपेन हजारिका सेतु पर खड़े थे, तो उत्तर में
अरुणाचल की बर्फीली चोटियाँ दिख रही थीं। अरुणाचल में बर्फीली चोटियाँ केवल
तिब्बत सीमा के पास हैं और हमारे व उनके बीच का सीधा फासला कम से कम 150 किलोमीटर
था। लेकिन लोहित नदी पर बने पुल से चोटियाँ बहुत नजदीक दिखाई पड़ रही थीं।
और फिर अचानक शोर मचा कि जालंधर से हिमालय की चोटियाँ दिख रही हैं। सोशल मीडिया
और मेनस्ट्रीम मीडिया पागल हो गया। एक ही फोटो हजारों जगहों पर शेयर किया जाने
लगा। दो दिन बाद सब शोर शांत हो गया।
पिछले दिनों सहारनपुर चर्चा में आ गया। मीडिया और सोशल मीडिया में खूब डिस्कशन
हुआ। बहुत सारे लोगों ने सहारनपुर से हिमालयी चोटियाँ दिखने को फेक बताया।
लेकिन सभी ने एक बात जरूर कही... कि लॉकडाउन के कारण वातावरण इतना साफ हो गया है
कि मैदानी शहरों से पहाड़ दिखने लगे हैं। उन शहरों के बुजुर्गों और बहुत सारे
लोगों ने बताया कि उन्हें जिंदगी में पहली बार यह नजारा देखने को मिला है। ऐसे
में सहारनपुर के रहने वाले
राजीव उपाध्याय यायावर
जी का यह लेख बहुत उल्लेखनीय है...
बात केवल दृष्टि और दृष्टिकोण की है...पिछले कई दिनों से कई अलग-अलग शहरों से लिए गए पर्वतों के चित्र चर्चा का विषय हैं। मेरे गृह जनपद सहारनपुर के भी कुछ चित्र आजकल चर्चा में हैं। कोई बता रहा है कि 100 वर्ष पश्चात ऐसा दृश्य दिख रहा है, कोई 50 वर्ष पश्चात। कोई विलक्षण कह रहा है तो कोई चमत्कार।सच तो यह है कि ऐसा नहीं है। प्यारे मित्रों, यह चित्र मैंने 18 जनवरी 2014 को अपने गाँव सौराना, सहारनपुर में अपने घर की छत से ही खींचा था। आज से छह वर्ष पहले। प्रत्येक वर्ष कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब सहारनपुर से हिमालय की अनुपम पर्वतीय श्रृंखला ऐसे ही दिखाई पड़ती है। जिस दिन वर्षा होने के पश्चात पूरे आकाश में धूप खिल जाए, उस दिन अपनी छत पर चढ़कर उत्तर दिशा की ओर पर्वत श्रृंखला को देखिएगा।वास्तविकता तो यह है कि भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा की दुनिया में हम ‘देखना’ ही भूल गए हैं। हम अपनी ‘दृष्टि’ ही खो बैठे हैं। यदि आप अपनी ‘दृष्टि’ फिर से पाना चाहते हैं तो आज शाम को अपने घर की छत पर चढ़कर डूबते सूरज को देखिएगा। आप देखेंगे कि रक्तिम सूरज कितना बड़ा और सुंदर दिखता है। आपको लगेगा कि शायद यह भी पहली बार हो रहा है। मौसम खुले तो रात को छत पर लेटकर तारों को निहारिएगा, आप उनमें भी खो जाएंगे। आपको लगेगा यह तो केवल मेरे बचपन में ऐसा दिखता था।किंतु ऐसा नहीं है। बस आज आपके पास समय है। आप वह सब कुछ देख पा रहे हैं, जो वर्षों से आपके निकट होते हुए भी बिल्कुल अनदिखा था। जिनके पास कुछ समय होता भी है, तो उनके पास संतोष नहीं होता। सम्भवतः कुछ लोगों ने तो अपने बच्चों को भी इतनी निकटता से पहली बार देखा हो। मैं आठ वर्ष समाचार-पत्रों में रहा तो मुझे यह बात कचौटती रही कि मैं संध्या के समय रक्तिम सूर्यदेव के दर्शन नहीं कर पाया। पर क्या इन आठ वर्षों में सूर्य छिपा ही न होगा? नहीं! प्रतिदिन ऐसा होता था, केवल मैं देख ही नहीं पाया था। जब मुझे अवसर मिला तो मैंने सैंकड़ों चित्र खींच डाले।बात केवल दृष्टि की है। क्या पता यह संकटकाल कितने पाठ हमें पढ़ाने आया हो। हमें स्वयं को जानने का अवसर देने आया हो। हमें प्रकृति की निकटता और प्रकृति का महत्व बताने आया हो। दृष्टि खुलेगी तो दृष्टिकोण बदलेगा। दृष्टिकोण बदलेगा तो प्रकृति का पत्ता-पत्ता अनुपम दिखाई देगा...
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बात ये है कि फरवरी से अप्रैल तक मौसम अमूमन साफ ही रहता है। और अगर किसी दिन बारिश हो जाए, तो बारिश के बाद यह इतना साफ हो जाता है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। बारिश के बाद एक-दो दिनों तक आप हिमालय के समांतर बहुत सारी मैदानी जगहों से हिमालय की चोटियाँ भी देख सकते हैं... अमृतसर, जालंधर, होशियारपुर, लुधियाना, अंबाला, सहारनपुर, रुड़की, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, सीतापुर, लखीमपुर, गोंडा, बलरामपुर, गोरखपुर, उत्तर बिहार की लगभग सभी जगह, उत्तर बंगाल और असम...
मई और जून में उत्तर भारत में धूल भरी पछुआ हवाएँ चलती हैं, इसलिए दृश्यता बहुत कम हो जाती है। जुलाई से अक्टूबर तक मानसून रहता है। नवंबर से जनवरी तक कोहरे का प्रकोप रहता है। इसलिए पूरे साल में केवल फरवरी से अप्रैल के केवल कुछ दिन ही इन नजारों के लिए आदर्श होते हैं।
दूसरी बात, ये बर्फीली चोटियाँ 100-150 किलोमीटर दूर होती हैं, इसलिए 6000-8000 मीटर ऊँचाई होने के बावजूद भी ये एकदम क्षितिज में दिखती हैं। सामान्य इंसान पहली बात तो क्षितिज में नजरें गड़ाकर देखेगा ही नहीं... और अगर देख भी लेगा तो इन सफेद चोटियों को बादल समझ लेगा। यही कारण है कि लोगों की उम्र हो जाती है इन चोटियों को देखते-देखते और वे समझ ही नहीं पाते। आज जब जालंधर और सहारनपुर के निवासियों को मीडिया में वायरल हुई तस्वीरें देखने को मिल रही हैं, तो उन्हें पता चल रहा है।
लेकिन इन्हीं निवासियों में कुछ लोग राजीव उपाध्याय और सौरभ भाटिया जैसे भी होते हैं, जो जानते हैं कि किस दिन उनके कैमरे में क्या कैद होने वाला है...
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इस ग्राफ को मैंने गूगल मैप और एक्सल शीट की सहायता से बनाया है। इससे पता चल रहा है कि सहारनपुर से अत्यधिक साफ मौसम में बंदरपूँछ शिखर दिख सकता है... सहारनपुर समुद्र तल से 275 मीटर की ऊँचाई पर है और यहाँ से सीधे उत्तर-पूर्व में यमुनोत्री के ऊपर बंदरपूँछ शिखर दिखाई दे रहा है... इस चोटी की ऊँचाई 6000 मीटर से ज्यादा है। अगर साफ मौसम में देखेंगे, तो एकदम क्षितिज में होने के कारण भले ही शिवालिक की पहाड़ियाँ न दिखें, लेकिन मसूरी की बसावट और नागटिब्बा का बुग्याल अवश्य देखने को मिल जाएगा... फिर अगर गौर से देखेंगे, तो इन हरी-भरी पहाड़ियों के एकदम ऊपर एक सफेद लेयर दिखेगी, जो महा-हिमालय की है। सहारनपुर से बंदरपूँछ और चौखंबा तक की कई चोटियाँ दिखाई देती हैं।
यह ठीक है कि लॉकडाउन की वजह से वातावरण बहुत साफ हुआ है, लेकिन यह क्षेत्र पहले भी साफ ही रहा करता था। पश्चिम से पूरब तक हिमालय के समांतर इस पूरी पट्टी में कोई बड़ा शहर नहीं है, कोई बड़ा औद्योगिक शहर नहीं है और भरपूर जंगल है।
अगर आप इस मैदानी पट्टी में रहते हैं या ऊपर बताए शहरों के आसपास रहते हैं और अगले साल फरवरी से अप्रैल तक बारिश के जस्ट बाद उत्तर की ओर देखना... क्या पता आपको भी ‘कुछ’ दिख जाए...
बेहतरीन जानकारी
ReplyDeleteIt is true that we have forgotten to give time to overselves. Nature is still beautiful after all our wrongdoings.
ReplyDeleteबहुत ही जबरदस्त नीरजजी!!!! बहुत मज़ा आया इसे पढ़ने में! राजीव जी ने भी बहुत सुन्दर लिखा है, बहुत मिठास है उनके शब्दों में!
ReplyDeleteWell said👍👍
Deleteबिलकुल सही.
ReplyDeleteपठानकोट कैण्ट रेलवे स्टेशन से बर्फ से आच्छादित दिखने वाली पर्वत श्रृंखला धौलाधार है क्या❓
हाँ जी, वे धौलाधार हैं...
ReplyDeleteThanks
Deleteधूप में निकलो घटाओ में नहाकर देखो
ReplyDeleteज़िन्दगी क्या है, किताबों को हटाकर देखो
सही कहा नीरज अंबाला से काफी बार बारिश के बाद चोटियों के दर्शन आराम से हो जाते हैं बचपन से देखता रहा हूं
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