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प्रजातंत्र... इंदौर... 24 अक्टूबर 2018







Comments

  1. शानदार प्रस्तुति प्रभु जी

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  2. नीरज भाई आपके आखिरी लाइन से हताशा झलक रही है।जायज भी है।लेकिन ऐसे आयोजनों से परिवर्तन की शुरुआत तो होती ही है।किसी न किसी में तो अंकुर फूटेगा।

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