14 जुलाई 2014 वैसे तो जब भी मुझे निजामुद्दीन जाना होता है तो मैं अपने यहां से एक घण्टे पहले निकलता हूं। लेकिन आज देर हो गई। फिर भी एक जानकार के लिये पौन घण्टे में शास्त्री पार्क से निजामुद्दीन पहुंचना कोई मुश्किल नहीं है। भला हो राष्ट्रमण्डल खेलों का कि कश्मीरी गेट से इन्द्रप्रस्थ तक यमुना के किनारे किनारे नई सडक बन गई अन्यथा राजघाट की लालबत्ती पर ही बीस-पच्चीस मिनट लग जाते। अब कश्मीरी गेट से काले खां तक कोई भी लालबत्ती नहीं है। बस एक बार कश्मीरी गेट से चलती है और सीधे काले खां जाकर ही रुकती है। ट्रेन चलने से दस मिनट पहले मैं निजामुद्दीन पहुंच चुका था। मेरी बर्थ कन्फर्म नहीं हुई थी लेकिन आरएसी मिल गई थी। यानी एक ही बर्थ पर दो आदमी बैठेंगे। जब टिकट बुक किया था तो वेटिंग थी। वेटिंग टिकट लेना सट्टा खेलने के बराबर होता है। जीत गये तो जीत गये और हार गये तो हार गये। इस तरह आरएसी सीट मेरे लिये जीत के ही बराबर थी। टीटीई ईमानदार निकला तो क्या पता कि मथुरा-आगरा तक पक्की बर्थ भी मिल जाये।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग
शानदार प्रस्तुति प्रभु जी
ReplyDeleteनीरज भाई आपके आखिरी लाइन से हताशा झलक रही है।जायज भी है।लेकिन ऐसे आयोजनों से परिवर्तन की शुरुआत तो होती ही है।किसी न किसी में तो अंकुर फूटेगा।
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