25 जून 2018
कल शाम की बात है...
“देखो भाई जी, हमें कल सुबह नेलांग जाना है और वापसी में आप हमें गंगोत्री ड्रोप करोगे। पैसे कितने लगेंगे?”
“सर जी, धराली से नेलांग का 4000 रुपये का रेट है।”
“लेकिन उत्तरकाशी से उत्तरकाशी तो 3500 रुपये ही लगते हैं।”
“नहीं सर जी, उत्तरकाशी से उत्तरकाशी 6000 रुपये लगते हैं।”
“अच्छा?”
“हाँ जी... और आपको गंगोत्री भी ड्रोप करना है, तो इसका मतलब है कि गाड़ी ज्यादा चलेगी। इसके और ज्यादा पैसे लगेंगे।”
“अच्छा?” इस बार मैंने आँखें भी दिखाईं।
“लेकिन... चलिए, कोई बात नहीं। मैं एडजस्ट कर लूंगा। आपको 4000 रुपये में ही नेलांग घुमाकर गंगोत्री छोड़ दूंगा।”
“अच्छा?”
“नीरज, अगर कल सुबह हर्षिल भी घूमना हो जाए, तो मजा आ जाएगा। कल उस ड्राइवर ने हर्षिल घूमने का सपना धराशायी कर दिया था, लेकिन हर्षिल घूमने की बड़ी तमन्ना है।” संजय जी ने कहा।
“अच्छा सुनो भाई जी, सुबह-सुबह एक चक्कर हमें हर्षिल का भी लगवा देना। सभी को हर्षिल-हर्षिल कहकर यहाँ ले आया हूँ और हर्षिल ही नहीं देख पाए।”
“नहीं जी।”
“500 रुपये और ले लेना।”
“पैसों की बात नहीं है भाई जी। असल में नेलांग की सड़क ठीक नहीं है। काम भी चल रहा है। लेट करेंगे तो बी.आर.ओ. के ट्रक रास्ता जाम कर देंगे। इसलिए सुबह-सुबह नेलांग ही चलना चाहिए।”
और हम सबका हर्षिल जाने का सपना अधूरा रह गया।
आज...
आप सभी गाड़ी में बैठ गए हैं। सभी ने बहुत मामूली-सा नाश्ता किया है, क्योंकि नेलांग दो घंटे का रास्ता है और खराब भी है। किसी एक को भी उल्टी शुरू हो गई, तो सभी को होनी है। उल्टी वालों में मैं भी हूँ।
मोटरसाइकिलें भैरोंघाटी चेकपोस्ट पर छोड़ दी हैं, क्योंकि नेलांग टू-व्हीलर से जाने की अनुमति नहीं है। धराली से कुछ दूर तक मेरी मोटरसाइकिल उमेश गुप्ता जी चलाकर लाए हैं, लेकिन जब वे गंगाजी में कुदाने से बाल-बाल बचे तो उन्होंने समझदारी दिखाते हुए “आप ही चलाइए” कहकर वापस लौटा दी। उन्होंने कभी भी पहाड़ों पर मोटरसाइकिल नहीं चलाई है।
अभी नॉन-स्टॉप नेलांग जाएंगे, लेकिन वापस रुकते-रुकते आएंगे, ताकि अधिक से अधिक खाली रास्ते का फायदा उठाया जा सके।
कितनी दूर है?
भैरोंघाटी से 23 किलोमीटर।
मतलब आधा घंटा?
नहीं रे, दो घंटे...
वो देखिए, गढ़तांग गली... और नेलांग, जादुंग और तिब्बत जाने का पुराना पैदल रास्ता। अब उससे कोई नहीं जाता, सब बंद पड़ा है। लेकिन उसके फोटो लेने के लिए वापसी में रुकेंगे।
ये लो, पहुँच गए हम नेलांग। यह आर्मी का बैरियर है और वह आई.टी.बी.पी. का। हम इन बैरियर से आगे नहीं जाएंगे। इधर आर्मी की बैरक हैं। कोई भी उन बैरक का फोटो नहीं लेगा। इधर दूसरी तरफ के फोटो ले सकते हो।
“उस दिशा में दूर मत जाना, क्योंकि यहाँ बहुत सारे जंगली कुत्ते हैं।” एक फौजी ने बताया।
“जंगली कुत्ते?”
“हाँ जी। वे समूह में रहते हैं और इस निर्जन स्थान में किसी भी इंसान को मार डालने की ताकत रखते हैं। इनमें से कुछ कुत्ते तो दिन में हमारे ही साथ रहते हैं, साथ खाते भी हैं; लेकिन रात में जंगली बन जाते हैं। इसलिए खासकर रात के समय बहुत सावधानी से रहना पड़ता है। आप उधर उस दिशा में मत जाना। वापस जाओ, तो रास्ते में भी देख-भालकर ही रुकना।”
और यह सुनते ही उमेश व अजय दोनों उसी दिशा में चल दिए, जिधर जाने से मना किया गया था। उन्होंने शायद उल्टा सुन लिया था। आवाज लगाकर उन्हें वापस बुलाया गया। उन्हें अच्छा तो नहीं लगा, क्योंकि वे दूर एकांत में फोटोग्राफी करना चाहते थे।
धूप नहीं थी और ठंड भयंकर थी। बच्चों को यह अच्छी नहीं लग रही थी। गाड़ी में ही बैठे रहे। ग्रुप फोटो के लिए जबरदस्ती बुलाया गया।
यह देखिए, यहाँ एक मेमोरियल बना है। यहाँ एक ग्लेशियर है। एक बार तीन फौजी यहाँ पानी लेने आए थे, तो हिमस्खलन हो गया और तीनों में से कोई भी नहीं बचा। बाद में यहाँ यह मेमोरियल बना दिया। यहाँ पानी की बोतलें रखी जाती हैं; यह मानते हुए कि वे तीनों प्यासे थे और पानी लाने जा रहे थे।
अगर मौसम साफ होता, तो यहाँ से सामने श्रीकंठ पर्वत बड़ा शानदार दिखता।
और वो देखिए... गढ़तांग गली। अब रुककर जी-भरकर इसे निहारिए और फोटो खींचिए। सीधा खड़ा पहाड़ किस तरह काटा गया है और पैदल व खच्चरों के लिए आने-जाने का रास्ता बनाया गया है। तिलक सोनी कहते हैं कि इसे काटने के लिए अफगानिस्तान से पठान लोगों को बुलाया गया था, क्योंकि वे इस तरह के रास्ते बनाने में माहिर होते हैं।
और अब हम पहुँच गए गंगोत्री... यहाँ मंदिर में दर्शन करेंगे और सूर्यकुंड भी देखेंगे। गंगोत्री में आप मंदिर भले ही न जाओ, लेकिन सूर्यकुंड जरूर देखना चाहिए। इसमें सम्मोहन शक्ति है।
“और मैं गंगाजी में नहाऊँगा।”
“कौन? कौन बोला? कौन नहाएगा?”
अजय जी ने मुस्कुराते हुए हाथ ऊपर उठाया।
और जब वे अपने ऊपर दे बाल्टी, दे बाल्टी उड़ेले जा रहे थे, तो बाकी सभी लोग ठंड से काँपते हुए उनकी वीडियो बना रहे थे।
और अब अंधेरा हो चुका है। हम बस स्टैंड जाकर यह देखेंगे कि सुबह चार बजे कौन-सी बस जाएगी। जाएगी भी या नहीं जाएगी। अगर जाएगी, तो अब तक आ चुकी होगी। क्योंकि बाकी सभी मित्रों का उस बस में आरक्षण था।
“सर, कौन-सी सीट है आपकी?” कंडक्टर ने पूछा।
“ये रही।”
“ओहो, सर जी। ये सीटें तो मैंने अभी-अभी किसी को एलॉट कर दी हैं। लेकिन कोई बात नहीं, सब हो जाएगा। आप सुबह समय पर आ जाना।”
और सब के सब सुबह कब गए, हमें कुछ नहीं पता।
हम दोनों और अमित राणा मोटरसाइकिलों पर चल पड़े। चिन्यालीसौड़ से हमेशा की तरह सुवाखोली वाली सड़क पकड़ ली और देहरादून के ट्रैफिक में घुस गए। देहरादून में किस-किस गली से निकले, अब न हमें याद है, न अमित को और न ही गूगल मैप को। अमित ने बताया कि छुटमलपुर से आगे गागलहेड़ी के बाद मुजफ्फरनगर तक शानदार फोर-लेन सड़क है, जो नई बनी है।
गागलहेड़ी से मुजफ्फरनगर पहुँचने में एक घंटा ही लगा।
नेलांग |
मेमोरियल |
नेलांग का रास्ता |
गढ़तांग (गरतांग) गली |
पिछले साल यहाँ थोड़ा नया निर्माण हुआ था और आगे जाने के लिए रोक लगाई गई थी। अब वो सारा नया निर्माण गायब है। |
गंगोत्री स्थित सूर्यकुंड |
संजय जी सपरिवार @ गंगोत्री |
इस यात्रा के साथी संजय जी ने अपने अनुभव अपने ब्लॉग में लिखे हैं... आप यहाँ क्लिक करके इसे भी पढ़ सकते हैं...
1. गंगनानी में नहाना, ड्राइवर से अनबन और मार्कंडेय मंदिर
2. धराली सातताल ट्रैक, गुफा और झौपड़ी में बचा-कुचा भोजन
3. नेलांग यात्रा और गंगोत्री भ्रमण
बहुत बढ़िया यात्रा
ReplyDeleteयात्रा बढ़िया पर लिखने की शैली नहीं। पुरानी पोस्ट का लेखन उत्तम होता था।
ReplyDeleteराधे राधे आनंद आ गया
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