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Showing posts from July, 2018

“मेरा पूर्वोत्तर” - काजीरंगा नेशनल पार्क

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 17 नवंबर 2017 चाउमीन खाकर हम कोहोरा फोरेस्ट ऑफिस के बाहर बैठकर काजीरंगा और कर्बी आंगलोंग के बारे में तमाम तरह की सूचनाएँ पढ़ने में व्यस्त थे, तभी तीन आदमी और आए। यात्री ही लग रहे थे। आते ही पूछा – “क्या आप लोग भी काजीरंगा जाओगे?” मैंने रूखा-सूखा-सा जवाब दिया – “हाँ, जाएँगे।” बोले – “हम भी जाएँगे।” मैंने जेब से मोबाइल निकाला और इस पर नजरें गड़ाकर कहा – “हाँ, ठीक है। जाओ। जाना चाहिए।” बोले – “तो एक काम करते हैं। हम भी तीन और आप भी तीन। मिलकर एक ही सफारी बुक कर लेते हैं। पैसे बच जाएँगे।” और जैसे ही सुनाई पड़ा “पैसे बच जाएँगे”; तुरंत मोबाइल जेब में रखा और सारा रूखा-सूखा-पन त्यागकर सम्मान की मुद्रा में आ गया – “अरे वाह सर, यह तो बहुत बढ़िया बात रहेगी। मजा आ जाएगा। आप लोग कहाँ से आए हैं?” “इंदौर, मध्य प्रदेश से।”

“मेरा पूर्वोत्तर” - माजुली से काजीरंगा की यात्रा

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 17 नवंबर 2017 आज शाम तक हमें गुवाहाटी पहुँचना है। कल हमारी दिल्ली की फ्लाइट है। बीच में काजीरंगा नेशनल पार्क पड़ेगा। देखते हुए चलेंगे। उधर ब्रह्मपुत्र पार करके कुछ ही दूर गोलाघाट में एक मित्र कपिल चौधरी रेलवे में नौकरी करते हैं। कल ही वे उत्तराखंड से घूमकर आए थे। आज जैसे ही उन्हें पता चला कि हम माजुली में हैं और काजीरंगा देखते हुए जाएँगे तो हमारे साथ ही काजीरंगा घूमने का निश्चय कर लिया। तो हम इधर से चल पड़े, वे उधर से चल पड़े। फिर से ब्रह्मपुत्र नाव से पार करनी पड़ेगी। कमलाबाड़ी घाट। बड़ी चहल-पहल थी। ढाबे वाले झाडू वगैरा लगा रहे थे। पहली नाव सात बजे चलेगी। वह पहले उधर से आएगी, तब इधर से जाएगी। समय-सारणी लगी थी। ज्यादातर लोग दैनिक यात्री लग रहे थे। कोई चाय पी रहा था, कोई आराम से बे-खबर बैठा था। बहुत सारी मोटरसाइकिलें भी उधर जाने वाली थीं। जैसे ही उधर से नाव आई और मोटरसाइकिलों का रेला नाव पर चढ़ने लगा तो हमें लगने लगा कि कहीं जगह कम न पड़ जाए और हमारी मोटरसाइकिल यहीं न छूट जाए। लेकिन नाववालों का प्रबंधन देखकर दाँतों तले उंगली दबानी पड़ ग

“मेरा पूर्वोत्तर” - बोगीबील पुल और माजुली तक की यात्रा

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 16 नवंबर 2017 डिब्रुगढ़ से बोगीबील का रास्ता इतना सुनसान था कि हमें एक स्थानीय से पूछना पड़ा। लेकिन जब ब्रह्मपुत्र के किनारे पहुँचे, तो ब्रह्मपुत्र की विशालता और इस पर बन रहे पुल को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। यहाँ आने का एक उद्देश्य यह पुल देखना भी था। 2002 में यह पुल बनना शुरू हुआ था, लेकिन अभी तक भी पूरा नहीं हुआ है। फिलहाल पूरे पूर्वोत्तर में सड़क और रेल बनाने का काम जोर-शोर से चल रहा है, तो उम्मीद है कि एक साल के भीतर यह पुल भी चालू हो जाएगा। चालू होने के बाद लगभग 5 किलोमीटर लंबा यह पुल देश में सबसे लंबा सड़क-सह-रेल पुल होगा। इधर डिब्रुगढ़ और उधर धेमाजी रेल मार्ग से जुड़ जाएँगे। पुल के दोनों किनारों तक रेल की पटरियाँ बिछ चुकी हैं, स्टेशन भी तैयार हो चुके हैं और पुल निर्माण की सारी सामग्री रेल के माध्यम से ही आती है। पुल बनते ही इस पर ट्रेन चलने में कोई समय नहीं लगेगा। “घाट किधर है?” “उधर।”

“मेरा पूर्वोत्तर” - ढोला-सदिया पुल - 9 किलोमीटर लंबा पुल

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 15 नवंबर 2017 सदिया शहर पहले सूतिया राज्य की राजधानी था। यह लोहित और दिबांग के संगम पर बसा हुआ था। एक बार भयानक बाढ़ आई और पूरा शहर समाप्‍त हो गया। उस पुराने शहर के अवशेष अब कहीं नहीं मिलते। या शायद कहीं एकाध अवशेष बचे हों। लेकिन इस स्थान को अभी भी सदिया ही कहते हैं। असम का यही छोटा-सा इलाका है, जो लोहित के उत्‍तर में स्थित है। एक तरफ लोहित और एक तरफ दिबांग व सियांग नदियाँ। बाकी तरफ अरुणाचल, जहाँ के लिए असम वालों को भी इनर लाइन परमिट लेना होता है। इनर लाइन परमिट के लिए भी लोहित पार करके डिब्रुगढ़ जाना पड़ता था। कुल मिलाकर असम के इस क्षेत्र के लोग इस छोटे-से इलाके में ‘बंद’ थे। बरसात में बाढ़ आने पर और भी बंद हो जाते होंगे। लेकिन अब यहाँ 9 किलोमीटर से भी लंबा पुल बन गया है। भारत का सबसे लंबा सड़क पुल। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्‍घाटन किया था। सदिया और सदिया के परे अरुणाचल देखने की उतनी इच्छा नहीं थी, जितनी इस पुल को देखने और इस पर मोटरसाइकिल चलाने की थी। आज वो इच्छा पूरी हो रही थी।

“मेरा पूर्वोत्तर” - गोल्डन पैगोडा, नामसाई, अरुणाचल

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 15 नवंबर 2017 अभी इनकी आरा मशीन में कोई काम नहीं हो रहा था। सभी कई दिनों से बंद थीं। असल में ये जो ‘प्रोडक्ट’ बनाते हैं, उनकी असम में घर बनाने के लिए बड़ी मांग है, तो इनका सारा माल असम में खप जाता है। दो महीनों बाद ‘पीक सीजन’ आएगा। बारिश से पहले सभी अपने-अपने घरों की मरम्मत और निर्माण पूरा कर लेना चाहेंगे। “अरुणाचल में पैदा हुई चाय, असम चाय के नाम से बिकती है या अरुणाचल चाय के नाम से?” “असम चाय के नाम से।” “अरुणाचल चाय के नाम से बिकनी चाहिए।” “कौन करेगा ऐसा? किस अरुणाचली को इतनी समझ है? चाय बागानों के मालिक सब बाहरी हैं। उन्हें क्या पड़ी है कि चाय अरुणाचल के नाम से बिके?”

“मेरा पूर्वोत्तर” - तेजू, परशुराम कुंड और मेदू

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 14 नवंबर 2017 आज का लक्ष्य था परशुराम कुंड देखकर शाम तक तेजू पहुँचना और रात तेजू रुकना। रास्ते में कामलांग वाइल्डलाइफ सेंचुरी है। थोड़ा-बहुत सेंचुरी में घूमेंगे और ‘ग्लाओ लेक’ जाने के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। अभी तक मुझे आलूबारी पुल के खुलने की जानकारी नहीं हुई थी। बल्कि मुझे कुछ पता ही नहीं था कि लोहित नदी पर आलूबारी पुल बनाने जैसा भी कोई काम चल रहा है। मैं सोचा करता था कि तिनसुकिया से तेजू जाने के लिए प्रत्येक गाड़ी को नामसाई, वाकरू, परशुराम कुंड होते हुए ही जाना पड़ेगा। कुछ समय पहले 9 किलोमीटर लंबा धोला-सदिया पुल खुला, तो तेजू की गाड़ियाँ उधर से जाने लगी होंगी - ऐसा मैंने सोचा। नामसाई से आगे एक जगह दूरियाँ लिखी थीं - चौखाम 26 किलोमीटर, परशुराम कुंड 82 किलोमीटर और तेजू 126 किलोमीटर। यानी चौखाम से तेजू 100 किलोमीटर है, लेकिन आलूबारी पुल बनने से पहले। अब यह दूरी केवल 30 किलोमीटर रह गई है। लेकिन हमें तो इस पुल का पता ही नहीं था। शानदार सड़क थी और हम 70-80 की स्पीड़ से दौड़े जा रहे थे। ध्यान था कि वाकरू में कामलांग सेंचुरी के पास

“मेरा पूर्वोत्तर” - नामदफा से नामसाई तक

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 13 नवंबर 2017 गूगल मैप में नो-दिहिंग नदी के उस तरफ एक सड़क दिख रही थी। पूछताछ से पता चला कि वहाँ सड़क है, लेकिन घना जंगल भी है। हमें अब परशुराम कुंड जाना था और वह सड़क इस समय सर्वोत्तम थी। यहाँ से उसकी सीधी दूरी बमुश्किल एक किलोमीटर थी। लेकिन देबान रेस्ट हाउस नदी से तकरीबन पचास मीटर ऊपर किनारे पर स्थित है। और किनारा एकदम खड़ा है। नीचे उतरने के लिये ऊँची-ऊँची सीढ़ियाँ बनी हैं। किसी भी हालत में मोटरसाइकिल नीचे नदी तक नहीं उतर सकती थी। अगर यह नदी तक उतर भी जाती, तो हम नाव से इसे उस पार पहुँचा देते। फिर दूसरे किनारे पर ऊपर चढ़ाने में उससे भी ज्यादा समस्या आती। अच्छा, हम क्यों ऐसा करना चाह रहे थे? क्योंकि नदी के उस पार से परशुराम कुंड केवल 65 किलोमीटर दूर था। लेकिन अगर मियाओ, बोरदुमसा से होकर जाते हैं, तो यह 180 किलोमीटर होगा। सलाह मिली कि मियाओ में नावघाट से नदी पार हो जाएगी और आप इसी सड़क पर आ सकते हो। यानी 25 किलोमीटर नदी के इस तरफ मियाओ जाना और फिर पार करके उतना ही दूसरी तरफ आना - कुल मिलाकर 50 किलोमीटर होगा। और यह सारा रास्ता खराब ही

“मेरा पूर्वोत्तर” - नामदफा नेशनल पार्क

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 12 नवंबर 2017 हमारे उठते ही चाय आ गई और एक फोरेस्ट गार्ड भी आ गया - “आज आप लोग कहाँ घूमने जाएँगे?” “हमें तो इधर का कुछ भी नहीं पता।” “उधर पाँच किलोमीटर आगे एक व्यू पॉइंट है। बाकी सभी लोग उधर ही जा रहे हैं।” “उधर मतलब विजयनगर वाली सड़क की तरफ?” “हाँ जी, हमें उस सड़क पर ही चलना होगा। बहुत तरह की चिड़ियाँ मिलेंगी और तमाम तरह की तितलियाँ भी।” “फिलहाल उस तरफ जाने की इच्छा नहीं है। नदी के दूसरी तरफ भी कोई रास्ता है क्या?” “हाँ जी, उधर हल्दीबाड़ी है।” “तो हम उधर ही चलेंगे।” पानी, बिस्कुट और कैमरे लेकर हम नदी की ओर चल दिए। एक मल्लाह भी साथ था। नाव इस तरफ ही बँधी थी। एकदम पारदर्शी पानी और उस पर नाव से नदी पार करने में आनंद आ गया।

“मेरा पूर्वोत्तर” - अरुणाचल में प्रवेश

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 11 नवंबर 2017 “हम जब लौटेंगे तो हमें परशुराम कुंड की तरफ जाना है, लेकिन गूगल मैप पर मियाओ के पास नो-दिहिंग के उस पार से एक सड़क जाती दिख भी रही है; और समस्या ये है कि नो-दिहिंग पर कोई पुल नहीं है। इसे पार कैसे करेंगे? नहीं तो फिर वापस जागुन होते हुए ही डिगबोई और फिर बोरदुमसा वाला रास्ता लेना होगा, जो कि बहुत ज्यादा लंबा पड़ेगा।” गीताली ने उत्तर दिया - “नहीं, आपको डिगबोई जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमारे घर के पीछे ही दिहिंग नदी बहती है। उसके उस तरफ अरुणाचल है और एक सड़क भी सीधे बोरदुमसा जाती है।” “इसे पार कैसे करेंगे?” “हो जाएगा सब।” तो सुबह नौ बजे जागुन से निकल पड़े। ‘फिर आना’, ‘दो दिन रुकना’ समेत ढेरों आशीर्वाद भी मिले। गीताली की माताजी और भतीजे पुचकू समेत सभी हमें बाहर तक छोड़ने आए। हम अभिभूत हो गए, इतने सुदूर में ऐसा प्यार पाकर!