साल 2017 के लिये हमने योजना बनायी थी कि इसमें चार लंबी छुट्टियाँ लूंगा और उन चार यात्राओं पर ही फोकस करूंगा। उनकी अच्छी तैयारी करूंगा और शानदार तरीके से उन्हें लिखूंगा। इसी सिलसिले में तय हुआ कि जनवरी में अंडमान यात्रा और अप्रैल में गोईचा-ला ट्रैक करेंगे। फिर जुलाई में कोई ट्रैक करेंगे और फिर सितंबर में। लेकिन सब तितर-बितर होता चला गया और बाकी सालों की तरह ही इस साल भी बेतरतीब तरीके से यात्राएँ हुईं।
आइये, शुरू करते हैं इस साल की यात्राओं का संक्षिप्त परिचय:
बरसूड़ी अर्थात हमारे मित्र बीनू कुकरेती का गाँव। जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड। कई अन्य मित्र भी उनके गाँव जा रहे थे। एक दिन पहले ही मुझे पता चला और हम भी लटक लिये सबके साथ।
दिल्ली से पहले गये कोलकाता। एक-दो दर्शनीय स्थान देखे, किसन बाहेती जी के यहाँ रुके और उड़ गये अंडमान के लिये। यह दीप्ति की पहली हवाई यात्रा थी। अंडमान में पोर्ट ब्लेयर के अलावा हैवलॉक और नील द्वीप तो देखे ही, किराये पर मोटरसाइकिल लेकर माउंट हैरियट और वंडूर भी हो आये।
अचानक जब पता चला कि गुजरात में मीटरगेज की कई लाइनें गेज परिवर्तन के लिये बंद हो गयी हैं तो मुझे तुरंत निकलना पड़ा बाकी बची हुई लाइनों पर यात्रा करने के लिये। बंद हो चुकी लाइनें थीं - अहमदाबाद से खेड़ब्रह्म और महेसाणा से तारंगा हिल। जबकि पाँच दिनों में मैंने जिन लाइनों पर यात्रा की, वे थीं - अहमदाबाद-रणुंज, जेतलसर-ढसा, ढसा-वेरावल, जूनागढ़-देलवाड़ा, बोटाद-गांधीग्राम और आंबलियासन-विजापुर। आज जब आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, तो इनमें से रणुंज और बोटाद वाली मीटरगेज लाइनें गेज परिवर्तन के लिये बंद हो चुकी हैं।
अप्रैल का महीना था, मैं और रणविजय थे, रणविजय की कार थी और चार दिनों की छुट्टियाँ थीं। यह समय हमने व्यतीत किया उत्तरकाशी घूमते हुए, चौरंगीखाल घूमते हुए और रैथल गाँव घूमते हुए।
13 अप्रैल अर्थात बैसाखी। पंजाब में फिरोजपुर से हुसैनीवाला तक रेलवे लाइन है और इस पर साल में केवल एक ही दिन ट्रेन चलती है। बैसाखी वाले दिन। हुसैनीवाला एकदम पाकिस्तान सीमा पर है। आज़ादी से पहले यहाँ से होकर ट्रेनें लाहौर जाया करती थीं। सतलुज नदी पर एक पुल था, जिसके अब केवल पिलर ही बचे हैं। आज के दिन यहाँ मेला लगता है और आप स्वयं को उस दौर में खड़े पाते हैं, जब पाकिस्तान जैसा मुल्क कहीं नहीं था।
गर्मियों में मैं अमूमन पैसेंजर ट्रेन यात्राएँ नहीं किया करता, लेकिन इस मार्ग पर करनी पड़ी। खबर आयी कि धनबाद से चंद्रपुरा की लाइन कोयले की खदानों में आग लगने के कारण हमेशा के लिये बंद हो रही है, तो मुझे तुरंत इस पर यात्रा करने के लिये निकलना पड़ा और धनबाद से राँची तक की पैसेंजर ट्रेन यात्रा कर ली। 15 मई से यह लाइन बंद हो गयी और इस पर चलने वाली कई ट्रेनें भी बंद हुईं, कईयों के मार्ग बदले गये और कई शॉर्ट टर्मिनेटिड भी हुईं। फिलहाल धनबाद-चंद्रपुरा लाइने (डी.सी. लाइन) पर धनबाद से कुसुंडा और फुलवारीटांड से चंद्रपुरा तक ट्रेनें चल रही हैं। कुसुंडा और फुलवारीटांड के बीच ट्रेनों का संचालन पूरी तरह बंद है।
1 मई को ख़बर मिली कि छत्तीसगढ़ की एकमात्र नैरोगेज की ट्रेन अब तेलीबांधा की बजाय केंद्री से चला करेगी। यह सुनते ही मुझे फिर से दौड़ना पड़ा। स्थानीय निवासी सुनील पांडेय जी कार लेकर आ गये और बंद हो चुके स्टेशन देखने के बाद केंद्री से राजिम और अभनपुर से धमतरी तक की ट्रेन यात्रा कर ली। यात्रा में साथ दिया अभनपुर के राजा ललित शर्मा जी ने।
मैं, रणविजय और नरेंद्र निकले तो थे मोटरसाइकिल से चांशल पास जाने के लिये, लेकिन हिमाचल-उत्तराखंड़ के दूर-दराज के गाँवों की यात्रा करते हुए लौट आये। उत्तराखंड़ में त्यूणी, हनोल, मोरी, पुरोला होते हुए हम पहुँचे जानकीचट्टी, यमुनोत्री जाने के इरादे से। लेकिन बिना यमुनोत्री गये ही लौट आये। क्योंकि खरसाली गाँव हमें यमुनोत्री से भी प्यारा लगा।
जून का महीना अर्थात ट्रैकिंग का महीना। और ट्रैकिंग उस स्थान की होनी चाहिये, जिसके आसपास भी हम कभी न गये हों। पिथौरागढ़ में सुदूर धारचूला से भी आगे पंचचूली बेस कैंप। मोटर-मार्ग बन जाने के कारण हमें ट्रैकिंग ज्यादा तो नहीं करनी पड़ी, लेकिन एक सप्ताह की इन छुट्टियों में आनंद आ गया।
जुलाई का महीना, मानसून का महीना। और मानसून में हमारे हिमालय की ऊँचाइयों पर खिलते हैं फूल। फूलों की घाटी कभी नहीं गये थे, तो इस बार हो आये। एक सप्ताह की यात्रा थी, घूमे भी बहुत; लेकिन प्यासे रह गये। बहुत सारे फूल अगस्त की प्रतीक्षा करते हैं। हम पंद्रह दिन पहले चले गये थे। लेकिन जुलाई में जितना भी हाथ लगा, अलौकिक था।
मानसून का समय ट्रेन यात्राओं के लिये भी सर्वोत्तम होता है। यकीन न हो, तो जाना कभी नर्मदा के दक्षिण में। और इसमें अगर नैरोगेज की ट्रेन भी शामिल हो जाये, तो कहना ही क्या! वो नैरोगेज की ट्रेन थी शकुंतला रेलवे, जिसे आज़ादी के समय भारत सरकार राष्ट्रीयकृत करना भूल गयी। नागपुर से सूरत तक पैसेंजर ट्रेन यात्रा और मुर्तिजापुर से अचलपुर तक शकुंतला रेलवे में यात्रा की।
12. पँवालीकांठा ट्रैक
सितंबर अर्थात ट्रैकिंग का सर्वोत्तम महीना। इस बार हमने चुना भारत के सबसे बड़े बुग्यालों में से एक पँवालीकांठा बुग्याल को। मीलों फैले बुग्याल पर पैदल चलना, ठंडी हवा, धूप-छाँव, चरवाहों की छानियों में रुकना...
अभी तक इसे ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं किया है।
13. गरतांग गली, नेलांग यात्रा
तिलक सोनी भाई का धन्यवाद कि हमें इस यात्रा में शामिल होने का मौका मिला। नेलांग घाटी तीन-चार साल पहले आम नागरिकों के लिये प्रतिबंधित थी। अभी भी केवल 23 किलोमीटर ही खुली है, वो भी कई तरह के प्रतिबंधों से युक्त। लेकिन हमारे लिये तो इतना ही अचंभित कर देने वाला था।
इसका प्रकाशन ब्लॉग पर जनवरी में 15 और 22 तारीख़ को होगा।
14. अरुणाचल आसाम बाइक यात्रा
नवंबर में जाना हुआ अरुणाचल। ट्रेन से मोटरसाइकिल गुवाहाटी भेज दी और खुद वायुमार्ग से चले गये। गुवाहाटी से लीडो, जागुन होते हुए अरुणाचल में प्रवेश किया। नामदफा नेशनल पार्क में दो रातें व्यतीत कीं। फिर कहाँ-कहाँ हम बाइक से घूमते रहे, स्वयं हमें भी याद नहीं। हाँ, माजुली और काजीरंगा देखना नहीं भूले।
रेलयात्राएँ
इस साल कुल 16461 किलोमीटर की रेलयात्राएँ कीं, जिनमें से 2555 किलोमीटर पैसेंजर ट्रेनों में, 1150 किलोमीटर मेल/एक्सप्रेस में और 12756 किलोमीटर सुपरफास्ट ट्रेनों में हुईं। गुजरात, झारखंड और महाराष्ट्र के बहुत सारे स्टेशनों के फोटो मेरे खजाने में जुड़े और इस समय मेरे पास 3135 स्टेशनों के बोर्ड के फोटो संग्रहीत हैं। किसी भी तरह का रिकार्ड बनाने की इच्छा नहीं है, लेकिन जब एक-एक स्टेशन जुड़ते जाते हैं, तो बड़ा अच्छा लगता है।
आगामी साल
अभी हमारी बाइक गुवाहाटी में ही खड़ी है। फरवरी में दोबारा उधर जायेंगे और मेघालय घूमते हुए बाइक से ही दिल्ली तक आयेंगे। उतनी छुट्टियाँ तो नहीं मिलेंगी कि त्रिपुरा या नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम तक चले जाएँ, लेकिन जो भी छुट्टियाँ मिलेंगी, उनमें अधिक से अधिक घूमने का प्रयत्न करेंगे।
इस साल के लिये एक योजना और बनायी है - सप्ताहांतों में दो-दो, तीन-तीन दिनों के लिये अपने मित्रों को हिमालय के खूबसूरत गाँवों का भ्रमण कराना। फिलहाल 25 से 28 जनवरी तक उत्तरकाशी के पास एक गाँव में कुछ मित्रों को ले जा रहे हैं। आगामी समय में इस तरह के कुछ और गाँवों का भी चयन करेंगे। इस तरह के लेटेस्ट अपडेट्स के लिये ब्लॉग पर और फेसबुक पेज पर आते रहिए।
बाकी 2018 के लिये कोई बड़ी योजना नहीं है।
पुस्तक प्रकाशन
2017 में तीन किताबें प्रकाशित हुईं - हमसफ़र एवरेस्ट, पैडल पैडल और सुनो लद्दाख। इनमें सुनो लद्दाख तो मेरी पहली किताब ‘लद्दाख में पैदल यात्राएँ’ का ही नया संस्करण है। कुछ और किताबों की रूपरेखा भी मन में चल रही है, लेकिन अभी तक उनमें कोई हाथ नहीं लगाया है। 2018 में शायद ही कोई किताब प्रकाशित हो। अगर प्रकाशित हुई भी, तो सितंबर-अक्टूबर के बाद ही प्रकाशित होगी।
अच्छा लेखा जोखा और मिली जुली यात्रा।
ReplyDeleteबढिया रहा लेखा जोखा व साल 2017
ReplyDeleteबस ऐसे ही घूमते रहिए, आनंद लेते रहिए और हमलोग को भी देते रहिए
ReplyDelete“हमसफ़र एवरेस्ट” का किंडल एडिसन उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद
शानदार
ReplyDeleteजबदस्त
ज़िंदाबाद