मैं केरल एक्स में हूँ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि केरल जा रहा हूँ। सुबह चार बजे नागपुर उतरूँगा और पैसेंजर ट्रेन यात्रा आरंभ कर दूँगा। कल क्या करना है, यह तो कल की बात है। तो आज क्यों लिखने लगा? बात ये है कि बीना अभी दूर है और मुझे भूख लगी है। आज पहली बार ऑनलाइन खाना बुक किया। असल में मैंने ग्वालियर से ही खाना बुक करना शुरू कर दिया था, लेकिन मोबाइल को पता चल गया कि अगला खाने की फ़िराक में है। नेट बंद हो गया। सिर्फ टू-जी चल रहा था, वो भी एक के.बी.पी.एस. से भी कम पर। झक मारकर मोबाइल को साइड में रख दिया और नीचे बैठी हिंदू व जैन महिलाओं की बातें सुनने लगा। पता चला कि सोनागिर एक जैन तीर्थ है और जैन साधु यहाँ चातुर्मास करते हैं। कहीं पहाड़ी की ओर इशारा किया और दोनों ने हाथ भी जोड़े।
हाँ, हाथ जोड़ने से याद आया। सुबह सात बजे जब मैं ऑफिस से घर पहुँचा तो देखा कि दीप्ति जगी हुई है। इतनी सुबह वह कभी नहीं जगती। मैं आश्चर्यचकित तो था ही, इतने में संसार का दूसरा आश्चर्य भी घटित हो गया। बोली - “आज हनुमान मंदिर चलेंगे दोनों।” कमरे में गया तो उसने दीया भी जला रखा था और अगरबत्ती भी। मैं समझ गया कि सपना देख रहा हूँ। अभी मैं घर पहुँचा ही नहीं हूँ और ऑफिस में ही लुढ़क गया हूँ। सपने में यह सब दिख रहा है।
लेकिन यह सपना नहीं था। “तो बात क्या है?” “नहीं, कुछ नहीं।” मन कहने लगा - कुछ तो बात है। हम नास्तिक तो नहीं है , लेकिन कभी भी पूजा-पाठ और दीया-बाती नहीं करते। फिर से बोली - “हनुमान मंदिर चलना है।”
मैंने पूछा - “छोटे मंदिर, मझले मंदिर या बड़े मंदिर?”
“कहाँ कहाँ हैं ये?”
“छोटा मंदिर तो वो रहा, पार्क के बगल में, मस्जिद के पीछे। जहाँ चार ईंटें रखी हैं। उनमें एक ईंट हनुमानजी की भी है। मझला मंदिर, इधर आ, बालकनी से दिखेगा। वो रहा। मेट्रो लाइन के बगल में। मेट्रो ट्रेनें जब सुबह डिपो से निकलती हैं, तो उन्हें मंदिर पर ही ऑटोमेटिक सिग्नल मिलता है।”
“और बड़ा मंदिर?”
“वो लोहे का पुल पार करके है। लालकिले के पीछे।”
“तो बड़े में ही चलेंगे।”
“रहने दे, आज मंगल है। बहुत भीड़ मिलेगी।”
“कोई ना।”
और जब बड़े मंदिर की आधा किलोमीटर लंबी लाइन में लग चुके, तो दीप्ति की आवाज आयी - “छोटे मंदिर में ही जाना चाहिए था।”
आज का दिन ही अच्छा था। तोरी के छिलके रखे थे, इसके बावजूद भी आलू के पराँठे मिले। साढ़े तीन पराँठे खाकर जब उठा, तभी से पानी पीना शुरू कर दिया। मथुरा तक पानी ही पीता रहा। बहुत सारा पानी पीया। यह पानी भरे हुए पेट मे कहाँ समाया, मुझे नहीं पता। मथुरा के बाद प्यास लगनी बंद हुई और आगरा के बाद भूख लगनी शुरू हुई। एक किलो अमरूद भी थे। चंबल तक वे भी निपटा दिए। मानसून के अमरूद कीड़ेदार होते हैं। खूब नज़रें गड़ाकर खाये, लेकिन यकीन है कि दो-तीन कीड़े खा गया होऊँगा। अमरूद फीके थे, लेकिन कहीं-कहीं खटास भी आ जाती थी। मैं समझ जाता था कि हो गया काम।
चंबल देखना मुझे बड़ा पसंद है। आते भी और जाते भी। बीहड़। मैं कभी इनमे गया नहीं हूँ, लेकिन जाने की बहुत इच्छा है। यह इच्छा केवल तभी होती है, जब मैं रेल से इन्हें देखता हूँ। बाकी कभी याद भी नहीं आती।
तो ग्वालियर तक फिर से भूख लगने लगी। स्मार्ट फोन वाकई स्मार्ट है। यह अच्छी तरह जानता है कि मालिक को भूख बर्दाश्त नहीं, तो मज़ाक के मूड में आ जाता है। मन था कि झाँसी में खाना मंगा लूँगा, लेकिन झाँसी पहुँच गए, नेट ही नहीं चला। वैसे तो समोसे भी बिक रहे थे, लेकिन आज तो ऑनलाइन ही खाना है।
जब ट्रेन झाँसी से चलने ही वाली थी, तभी याद आया वाईफाई। बड़े स्टेशनों पर तो फ्री वाईफाई मिलता है। एम.बी.पी.एस. में स्पीड आने लगी और मैने ऑनलाइन खाना बुक करना शुरू कर दिया। बीना में पनीर रोटी। तभी एक कोने में निगाह गयी - पहली बार वालों को खाना फ्री, लेकिन केवल मोबाइल एप पर। फ्री का लालच आ गया और लगभग पूरी हो चुकी बुकिंग बंद कर दी। एप डाउनलोड करने लगा तो ट्रेन चल पड़ी। ट्रेन चलते ही वाईफाई नदारद और मामला फिर से मोबाइल नेट के कब्जे में। ऐसी आँखें दिखायीं कि इसे समझाने में बबीना आ गया। आखिरकार मोबाइल ने इस गरीबा पर तरस खाकर खाना बुक कर लेने दिया। खाना फ्री तो नहीं था, लेकिन सौ रुपये का डिस्काउंट मिल गया। अब इंतज़ार है बीना आने का। चंबल से चलते-चलते बेतवा भी पार हो गयी। देखते हैं कैसा पनीर आता है। मनमाफ़िक न हुआ तो भोपाल में दोपहर की बनी अपनी आल टाइम फेवरेट पूरी सब्जी ही खा लूँगा।
ट्रेन एक घंटा लेट बीना पहुँची। मुझ पर क्या बीती होगी, आप सोच भी नहीं सकते। पर खाना अच्छा था। पहला अनुभव, अच्छा अनुभव।
...
23 अगस्त 2017
ट्रेन नागपुर समय पर पहुँच गयी, तो मैं प्लेटफार्म पर ही सो गया। दो घंटे सोया, छह बजे उठ गया। नहाकर बाहर निकला। फ्लाईओवर के नीचे कई रेस्टॉरेंट हैं, एक में बेकार-सा पोहा खाया। मुँह का जायका बनाने को कुछ आगे जाकर चाय-समोसे खाये। वापस स्टेशन लौट आया। अमरावती का पैसेंजर ट्रेन का टिकट लिया और प्लेटफार्म नंबर 5 पर अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा करने लगा। ट्रेन नंबर 51260 - नागपुर-वर्धा पैसेंजर।
जबलपुर-अमरावती एक्सप्रेस प्लेटफार्म 2 से 07:30 बजे चली। मुझे चूँकि पैसेंजर से अमरावती जाना था, तो यह गाड़ी अपने किसी काम की नहीं थी। प्लेटफार्म 4 पर इटारसी पैसेंजर खड़ी थी। कोई भीड़ नहीं। चार दिन बाद मुझे इसी से इटारसी जाना है। 5 पर अपनी ट्रेन आने वाली है। 07:45 बजे आकर लगी। प्लेटफार्म पर भी भीड़ नहीं थी, सभी यात्रियों को उनकी मनपसंद सीट मिल गयी। बच्चे खिड़की से अपनी मुंडी निकालकर अलग खुश हो रहे थे। वैसे तो भीड़ होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन आगे हो जाये तो पता नहीं। अजनी में भीड़ नहीं हुई तो गाड़ी अमरावती तक खाली ही जाएगी। हालाँकि परदेसी हूँ, इधर पहली बार आया हूँ। फिर भी भविष्यवाणी करने में क्या जाता है? सच निकल गयी तो भविष्यवक्ता कहलायेंगे, सच न निकली तो दाँत निपोरकर आगे बढ़ लेंगे।
हिंदी में यह ‘नागपुर’ है, जबकि मराठी में ‘नागपूर’। पहले कभी स्टेशन के पीले वाले बोर्ड पर ‘नागपुर’ ऊपर लिखा था, ‘नागपूर’ नीचे। मराठों को लगा कि मराठी की बेइज्जती हो गयी। तो ‘उ-ऊ’ की मात्रा आपस में बदल दी। अब मराठी हिंदी से ऊपर हो गयी। एक मात्रा बदल देने से महाराष्ट्र खुश हो गया। काश! कि देश में भाषाओं के झगड़े ‘पु’ और ‘पू’ की तरह ही हल हो जाते।
अजनी में सिकंदराबाद-रक्सौल स्पेशल क्रॉस हुई। उधर मेरी ट्रेन में बहुत सारे नये-नवेले लोको पायलट नागपुर से चढ़े थे, अजनी में सब उतर गए। उतरे इसलिये क्योंकि यहाँ लोको शेड़ है। आप अगर रेलयात्राएँ करते रहते हैं, तो आपने ‘अजनी’ के इलेक्ट्रिक इंजन अक्सर देखे होंगे। ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है, इंजनों पर लिखा होता है, हिंदी में भी और अंग्रेजी में भी। उत्तर भारत वाले ‘गाज़ियाबाद’, तुगलकाबाद’, ‘लुधियाना’, ‘इज्जतनगर’ के इंजनों को अक्सर देखते हैं। और ई.एम.यू. व डी.एम.यू. ट्रेनें तो सारी की सारी ‘शकूरबस्ती’ की होती हैं। आया याद? कोई बात ना। अब कभी ट्रेन में बैठो, तो इंजन पर पढ़ लेना। होना-हवाना कुछ नहीं है। यह ज़िंदगी में कभी काम नहीं आयेगा, किसी परीक्षा में भी नहीं पूछा जायेगा। लेकिन चूँकि आपको नियमित जाटराम को पढ़ना है, तो बार-बार ऐसा ही कुछ पढ़ने को मिला करेगा। तब काम आया करेगा। हीहीही।
खापरी में नागपुर मेट्रो का काम जोर-शोर से होता दिखा। शोर तो नहीं, लेकिन जोर से। बड़ी दूर तक रेलवे लाइन के साथ-साथ मेट्रो लाइन है। जमीन पर भी। यह नागपुर से काफी दूर है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि यहाँ मेट्रो होगी। पहले ही चरण में। खेतों में। मेट्रो की वजह से यहाँ बहुत कंस्ट्रक्शन होने लगा है। नागपुर के इस तरफ मेट्रो बन रही है, तो उधर कामटी की तरफ भी बन रही होगी।
गुमगाँव में गीतांजलि आगे निकल गयी। हावड़ा से आती है, मुंबई जाती है। जाओ यार, सब जाओ। हमें तो फिलहाल अमरावती जाना है और रात मुर्तिजापुर में बितानी है। बड़ा आसान लक्ष्य है आज का।
बूटी बोरी में पैसेंजर क्रॉस हुई। कौन-सी पैसेंजर? काजीपेट-नागपुर पैसेंजर।
बाएँ एक पहाड़ी सीरीज दिखी। उसकी तरफ जाती इलेक्ट्रिक रेलवे लाइन भी। उधर ही उमरेड है। उमरेड से होकर नागपुर नागभीड़ नैरोगेज लाइन गुजरती है। रेलवे के नक्शे में बूटी बोरी से उमरेड तक की यह मालगाड़ियों वाली लाइन भी दिखायी गयी है। मैं बहुत दिनों तक परेशान रहा था। इंटरनेट पर इस लाइन पर चलने वाली यात्री ट्रेनें ढूंढ़ा करता। लेकिन कोई ट्रेन चलती हो तो मिले भी। उमरेड में एक बिजलीघर है। उसके लिए कोयला चाहिए। कोयले से लदी तीन मालगाड़ियाँ बूटी बोरी पर खड़ी थीं। जरूरत पड़ते ही इन्हें उमरेड भेज दिया जाएगा।
नागपुर-नागभीड़ नैरोगेज लाइन जब ब्रॉड़गेज में परिवर्तित हो जायेगी, तो क्या पता तब बूटी बोरी से भी कोई यात्री गाड़ी उमरेड़ जाने लगे। मुझे तो अच्छा लगेगा, अगर ऐसी कोई गाड़ी चल पड़ी तो।
एक कुत्ता हड्डियाँ चबा रहा था। बदबू उठ रही थी। उसी के पास हमारा डिब्बा रुक गया। जी मे आया भाग जाऊँ। कुछ सेकंडों में बदबू आनी बंद हो गयी। मैंने सोचा नाक अभ्यस्त हो गयी है। ट्रेन चलने पर ताजी हवा में जाऊँगा, देखूंगा की सुगंध महसूस होगी कि नहीं। लेकिन हवा का रुख फिर से बदला और बदबू नथुनों में फिर से भर गई। कुछ अभ्यस्त वभ्यस्त नहीं हुआ था।
बोरखेड़ी (272.80 मीटर) - ऐसा कैसे हो गया? बूटी बोरी से 100 मीटर नीचे। मैं गूगल मैप की बात नहीं करूंगा। रेलवे कहता है कि गुमगाँव 304 मीटर पर है, बूटी बोरी 373 मीटर पर और बोरखेड़ी 272 मीटर पर। इससे आगे के स्टेशन तो 250 मीटर के दायरे में हैं। भूदृश्य एकदम सपाट ही दिखता है, कोई पहाड़ी-वहाड़ी नहीं। होता होगा कुछ। हम नहीं पड़ते इन चक्करों में।
सिंदी स्टेशन पर काफी भीड़ थी। लेकिन ट्रेन खाली आ रही थी, तो सब आराम से समा गए।
तुलजापुर में मुंबई हावड़ा मेल क्रॉस हुई। इसका हमारी ट्रेन पर तो कोई असर नहीं हुआ, लेकिन एक मालगाड़ी रोक रखी थी। यह मालगाड़ी कहाँ से कहाँ जा रही थी, यह तो नहीं पता; लेकिन इसमें गाजियाबाद का इंजन लगा था।
हावड़ा मेल का भले ही कोई असर न हुआ हो, लेकिन दस मिनट बीतने के बाद भी जब हमारी ट्रेन नहीं चली तो बाहर झाँका। मेन लाइन पर ग्रीन सिग्नल था। और पता है कौन सी ट्रेन थी? मैं बताता हूँ। अरक्कोणम का लाल पीला इंजन इसे खींच रहा था। हिमसागर एक्सप्रेस। हम हिमसागर एक्सप्रेस को ही पढ़-पढ़कर बड़े हुए हैं। भारत की सबसे लंबी दूरी की ट्रेन। हालांकि अब यह सबसे लंबी दूरी वाली नहीं है। इसमें आगे कुछ डिब्बे तिरुनेलवेली के थे, पीछे के डिब्बे कन्याकुमारी के।
वैसे हिमसागर बड़ा प्यारा नाम है।
फिर सेलू रोड व वरुड़ पर ऐसी कोई बात नहीं हुई कि लिखा जाये।
सेवाग्राम पर बिजली के सभी खंभों पर लिखा था -WRE, अक्सर स्टेशन पर यार्ड में उस स्टेशन का कोड़ और फिर चार अंकों की एक संख्या लिखी होती है। लेकिन सेवाग्राम पर इसका कोड़ SGM न लिखकर WRE लिखा मिला। तो क्या इसका मतलब वर्धा ईस्ट है। वैसे भी बहुत समय पहले सेवाग्राम स्टेशन का नाम वर्धा ईस्ट ही था। गौरतलब है कि 1867 में नागपुर में ट्रेन पहुँच गयी थी। उसी दौरान वर्धा स्टेशन भी बना। फिर बाद में जब वर्धा-काज़ीपेट लाइन बनी, तो दिल्ली और चेन्नई भी रेलमार्ग से जुड़ गये। लेकिन दिल्ली से चेन्नई जाने के लिये वर्धा में इंजन इधर से उधर करने पड़ते थे। और आप जानते ही हैं कि इस काम में आधा घंटा लग ही जाता है। जब ट्रेनें बढ़ गयीं तो वर्धा बाईपास बनाने की आवश्यकता महसूस हुई, ताकि वर्धा स्टेशन पर इंजन न बदलने पड़ें। तब 1985 में वर्धा ईस्ट स्टेशन बनाया गया। अब उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाली ट्रेनों को वर्धा नहीं जाना पड़ता था, ये वर्धा ईस्ट से ही दक्षिण की ओर मुड़ जाती थीं। आगे चलकर इसी वर्धा ईस्ट का नाम सेवाग्राम कर दिया गया। वर्धा ईस्ट का कोड़ WRE था, सेवाग्राम का कोड़ SGM है। सभी कार्यों में SGM ही प्रयुक्त होता है, पता नहीं क्यों अभी भी बिजली के खंभों पर WRE ही लिखा है।
वर्धा में गाड़ी का नंबर बदल गया और नाम भी। अभी तक तो यह नागपुर-वर्धा पैसेंजर थी और नंबर था 51260, लेकिन अब वर्धा-अमरावती पैसेंजर बन गयी है और नंबर हो गया है 51262. वैसे तो बीस मिनट का ठहराव है, लेकिन दो-तीन मिनट ही रुकी। इतने यात्री उतरे कि फुट ओवर ब्रिज पर जाम लग गया। ट्रेन फिर से खाली हो गयी। मेरी भविष्यवाणी सच ही निकली।
वर्धा अब मेरे पैसेंजर नक्शे में जुड़ गया है। इसके साथ ही दक्षिण की ओर यात्रा करने का मार्ग भी खुल गया। मैं अभी तक इस मार्ग से दक्षिण में इसलिए नहीं जा पा रहा था क्योंकि वर्धा मेरे नक्शे में नहीं जुड़ा था और वर्धा से पैसेंजर ट्रेन सुबह ही चलती है। अब जब भी कभी यहाँ से दक्षिण की तरफ पैसेंजर यात्रा करनी होगी, दिल्ली से सीधे सेवाग्राम आकर ही उतरूँगा।
चारों ओर हरियाली। खेतों में कौन-सी फसल है, मुझे नहीं पता। लोगों से बात करनी, पूछताछ करनी मुझे नहीं आती। मैं बस देखता रहता हूँ।
पुलगाँव में प्लेटफार्म खचाखच भरा था। मैं घबरा गया कि मेरी भविष्यवाणी तो गयी। लेकिन जब देखा कि पूरा डिब्बा खाली हो गया और चढ़ने वाले यात्री खाली डिब्बे में ऐसे समा गए जैसे सब्जी में नमक, तो बड़ी राहत मिली।
पुलगाँव से नैरोगेज की एक लाइन अरवी तक जाती थी। बहुत समय से यह बंद है। इसकी एक झलक पाने को मैं दरवाजे पर खड़ा-खड़ा उचकता रहा, लेकिन एक भी झलक नहीं मिली। सो सैड।
पुलगाँव के बाद तलनी, धामनगाँव, दीपोरी, चांदूर, मालखेड़, टिमटाला और फिर बड़नेरा जंक्शन हैं।
साढ़े बारह बजे ट्रेन बड़नेरा पहुँची। यह आउटर पर खड़ी रही, उधर से भुसावल-नरखेड़ पैसेंजर निकल गयी। मैं तीन दिन बाद उसी ट्रेन में होऊँगा। बडनेरा में मेरी ट्रेन एकदम खाली हो गयी। पूरे डिब्बे में तीन-चार ही यात्री बचे। ट्रेन यहाँ से दो बजे चलेगी। बडनेरा से अमरावती तक खूब साधन मिलते होंगे। तो कोई क्यों डेढ़ घंटे यहाँ प्रतीक्षा करेगा? सब मेरे जैसे बावले थोड़े ही होते हैं। जिन्हें जल्दी थी, वो चले गए।
आसमान में बादल हैं। काले बादल का एक विशाल टुकड़ा ट्रेन के एकदम ऊपर है। एकदम गोल घेरे में। जैसे पूर्वोत्तर में बारिश से बचने को बाँस की विशाल टोपी लगा लेते हैं। लग रहा है कि बादलों ने ट्रेन को टोपी पहना दी। लेकिन बारिश से बचने को नहीं, बल्कि भीगने को।
सो गया। ट्रेन हिली तो आँख खुली। देखा कि दो बज चुके थे और ट्रेन अमरावती की ओर चल रही थी। सिंगल लाइन है और इलेक्ट्रिक है। अमरावती स्टेशन पर कुछ भी खाने को नहीं मिला। भूख लग रही थी। पहले तो सोचा कि बस अड्डे जाता हूँ। कुछ खा भी लूँगा और बस से मुर्तिजापुर जाऊँगा। लेकिन फिर सोचा कि जल्दी जाकर करना भी क्या है। आराम से ट्रेन से जाऊँगा। सवा तीन बजे यही ट्रेन वापस चलेगी और बडनेरा से पाँच बजे ट्रेन है। साढ़े पाँच तक, छह बजे तक मुर्तिजापुर पहुँच जाऊँगा।
बगल में अमरावती-जबलपुर एक्सप्रेस खड़ी थी और सवा तीन बजे तिरुपति-अमरावती एक्सप्रेस भी आ गयी। सुना है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी यहीं की रहने वाली हैं। तो उनके समय में अमरावती में लंबी दूरी की ट्रेनें आने लगीं, अन्यथा बड़नेरा से लोकल ट्रेनें ही चलती थीं। इनमें तिरुपति एक्सप्रेस और मुंबई एक्सप्रेस तो हैं ही, जबलपुर-नागपुर एक्सप्रेस को अमरावती तक बढ़ाया गया और सूरत-भुसावल-पैसेंजर को भी अमरावती तक बढ़ाया गया। वैसे अब सूरत-अमरावती पैसेंजर को एक्सप्रेस का दर्जा मिल गया है।
और यह क्या? तिरुपति एक्सप्रेस में गूटी का WDP-4D इंजन? यानी डीजल इंजन? तो क्या यह ट्रेन विजयवाड़ा, बलारशाह के रास्ते नहीं आती? पहले मैं यही सोचता था कि विद्युतीकृत तेज मार्ग से आती होगी। लेकिन अब पता चला है कि यह तिरुपति से धर्मावरम, काचेगुड़ा, नांदेड़, अकोला के रास्ते आती है।
बडनेरा में मेरे पास एक घंटा था। तो आती-जाती ट्रेनों को देखने के अलावा कोई काम नहीं था। मुंबई की तरफ से गीतांजलि एक्सप्रेस आयी। ऐसा लगता है इसमें पूरे 24 डिब्बे होंगे। बड़ी लंबी ट्रेन थी। फुट ओवर ब्रिज पर खड़ा होकर देखने लगा तो बड़ी दूर तक नज़रें फेंकनी पड़ रही थीं। उधर न्यू कटनी के इंजन के साथ छोटी-सी मालगाड़ी आकर रुक गयी। 16:20 बजे जब गीतांजलि चली गयी, उसके बाद ही नागपुर पैसेंजर को भेजा गया। बेचारी पहले तो अमरावती में ही लेट हो गयी, तिरुपति एक्सप्रेस के चक्कर में। बाकी लेट यहाँ हो गयी। लगता है मुझे ही कभी रेलमंत्री बनना पड़ेगा।
साढ़े पाँच बजे जब शालीमार एक्सप्रेस आयी तो बड़ी भीड़ थी। अगर यात्रा आधे घंटे से ज्यादा होती, तो मैं स्लीपर में चढ़ता। लेकिन अब जनरल में ही चढ़ा रहा।
मुर्तिजापुर में गोदावरी लॉज में 200 रुपये का सिंगल बेड रूम मिल गया। और क्या चाहिए? अच्छी सफाई और अच्छा व्यवहार। नीचे रेस्टोरेंट था। तीन पीढ़ी पहले इनके पुरखे जयपुर से यहाँ आये थे और फिर यहीं बस गए। व्यापारकुशल इंसान था। मीठा बोल-बोल कर इसने मुझे पालक पनीर, पराँठे और दही खिला दिए और 210 रुपये का बिल बनाकर 10 रुपये डिस्काउंट भी दे दिया। लेकिन खाना इतना स्वादिष्ट था कि मैं अभी भी इसकी तारीफ करता हूँ।
अगला भाग: शकुंतला रेलवे - मुर्तिजापुर से अचलपुर
1. नागपुर-अमरावती पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. शकुंतला रेलवे: मुर्तिजापुर से अचलपुर
3. सूरत से भुसावल पैसेंजर ट्रेन यात्रा
4. भुसावल से नरखेड़ पैसेंजर ट्रेन यात्रा
5. नागपुर से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा
अमरावती में अभी भले ही खाना न मिल पाया हो लेकिन जल्दी ही ये बढ़िया और व्यस्त स्टेशन हो जायेगा जब आंध्र की राजधानी बन जाएगा !! मेरे बहुत काम की है ये पोस्ट
ReplyDeleteनहीं योगी भाई... यह महाराष्ट्र वाला अमरावती है, न कि आंध्र वाला अमरावती... यह कभी भी आंध्र प्रदेश की राजधानी नहीं बनेगा...
Deleteबड़ा ही जबरदस्त मौसम है।
ReplyDeleteहर बार की तरह रोचक वर्णन ।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और जानकारी पूर्ण। काफी गहराई से एक एक जानकारी दी गयी है। काफी दिनों बाद रेलवे पोस्ट पढ़ने को मिला। आंध्र प्रदेश वाले अमरावती में भी शायद रेलवे लाइन बन रही है। क्योंकि जहां तक मुझे ध्यान है अमरावती तक रेलवे लाइन बनाने के लिए तत्कालीन रेलवे महाप्रबंधक महोदय को मुख्य मंत्री जी ने इस बारे में पूरा प्रस्ताव ले कर बुलाया था। आगे क्या हुआ पता नहीं।
ReplyDeleteलेकिन मोबाइल को पता चल गया कि अगला खाने की फ़िराक में है। नेट बंद हो गया। :D
ReplyDeleteतो मोबाइल को भी भोजन (चार्जिंग) करा देते नीरज जी
Good journey sir kanji gwalior se gujre to shame boo bat diya kariye station par mil jaunga 9617354205 mai bhi aap ke sath rail yatra par jana chahta hu north east me
ReplyDeleteये पहली बार 100 रुपये डिस्काउंट का खाना हमने भी खाया था अभी कुछ दिन पहले। खाना सच मे बढ़िया था।
ReplyDeleteLike Delhi, most of the north Indian states are shivering with cold. For updates regarding weather, national, international and sports news you can also take help from the Live Now India and get updated news.
ReplyDeleteगहराई से जानकारी दी नीरज जी
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