27 सितम्बर 2015
सुबह छह बजे उठे और चाय-बिस्कुट खाकर रुद्रनाथ की ओर चल दिये। रुद्रनाथ यहां से तीन किलोमीटर दूर है। पंचगंगा समुद्र तल से 3660 मीटर पर है जबकि रुद्रनाथ 3510 मीटर पर। जाहिर है कि ढलान है। पंचगंगा ही वो स्थान है जहां मण्डल से आने वाला रास्ता भी मिल जाता है। हमें चूंकि अनुसुईया और मण्डल के रास्ते वापस जाना था, इसलिये रुद्रनाथ जाकर पंचगंगा आना ही पडता, इसलिये अपना सारा सामान यहीं रख दिया। पानी की एक बोतल, ट्रेकिंग पोल लेकर ही चले। अच्छी धूप निकली थी, रेनकोट की कोई आवश्यकता नहीं थी।
करीब एक किलोमीटर बाद लोहे के सरिये को ऐसे ही मोडकर एक द्वार बना रखा है। यहां से रुद्रनाथ के प्रथम दर्शन होते हैं। बडा ही मनोहारी इलाका है यह। दूर दूर तक फैले बुग्याल, कोई जंगल नहीं। हम वृक्ष-रेखा से ऊपर जो थे। रुद्रनाथ के पीछे के पहाडों पर बादल थे, अन्यथा पता नहीं कौन-कौन सी चोटियां दिखतीं।
उत्तराखण्ड में एक बडा ही विलक्षण ट्रेक है- मदमहेश्वर से कल्पेश्वर ट्रेक। यह विलक्षण इसलिये है कि एक तो यह सारा का सारा वृक्ष-रेखा से ऊपर स्थित है, इसलिये शानदार नजारों की कोई कमी नहीं होती। फिर इसमें ग्लेशियर आदि भी पार नहीं करने होते। लेकिन यह प्रसिद्ध ट्रैक नहीं है। इस ट्रैक को करने के लिये हालांकि किसी परमिट की आवश्यकता तो नहीं है लेकिन अपना राशन-पानी साथ लेकर चलना होता है। यानी गाइड-पोर्टर भी लेने होंगे। यह गाइड-पोर्टर का खर्चा काफी ज्यादा हो जाता है। मदमहेश्वर से काचनी ताल, पाण्डव सेरा होते हुए ट्रैक जाता है। पाण्डव सेरा में बताते हैं कि महाभारतकालीन हथियार रखे हैं। इस ट्रैक को मदमहेश्वर-रुद्रनाथ भी किया जा सकता है क्योंकि जब मदमहेश्वर से कल्पेश्वर जायेंगे तो रुद्रनाथ के पीछे के पहाडों से होकर ही जायेंगे। मेरी बडी इच्छा है इस ट्रैक को करने की लेकिन गाइड-पोर्टर के खर्चे की सोचकर पीछे हट जाता हूं।
खैर, सवा आठ बजे रुद्रनाथ (30.519342°, 79.318382°) पहुंचे। आरती चल रही थी। जूते उतारकर मन्दिर में प्रवेश करना पडा। मन्दिर असल में एक गुफा में बना है। गुफा के द्वार के बाहर एक कमरे जैसा बना दिया है। इसी में कई श्रद्धालु बैठे थे। ये सब वही लोग थे, जो आज रात यहीं रुके थे। ज्यादातर बंगाली थे। आरती की प्रक्रिया भी बडी लम्बी है। पुजारी को कई बार अन्दर-बाहर जाना होता है। इस आने-जाने की प्रक्रिया में उसे किसी का भी अपने रास्ते में आना मंजूर नहीं। इसलिये अन्दर शान्ति से बैठे भक्तों को पहले बाहर भेजा। सभी बाहर आ गये। इसके बाद भी किसी को शान्ति से नहीं बैठने दिया गया। पुजारी कभी अपने पुजारी-कक्ष में जाता तो सहायक उसके बीच में बैठे लोगों को हटा देता, फिर पुजारी मन्दिर के पीछे जाता तो उस पथ पर बैठे लोगों को हटाया जाता। और यहां श्रद्धालु भी ज्यादा नहीं थे। अधिक से अधिक 20 रहे होंगे। आसानी से उनके बीच से निकलकर आया-जाया जा सकता था।
मुझे यह अच्छा नहीं लगा। पुजारी अकेला ही आरती में लगा पडा था। सभी बाहर थे। किसी से भी उसका सामंजस्य नहीं था। रोज यही प्रक्रिया चलती होगी, तो सहायक को सब पता था। सहायक सग्गर का रहने वाला था। मन नहीं लगा तो मैं वापस मुड लिया। सहायक ने रोक लिया- बस, दस मिनट और लगेंगे। फिर जब सभी को मन्दिर में अन्दर जाने की अनुमति मिली तो पुजारी ने फरमान सुनाया कि कोई भी मैट्रेस पर खडा नहीं होगा। जबकि मन्दिर के एक कोने में काफी सारी मैट्रेस उसी साइज की काटी हुई रखी थीं कि एक आदमी आराम से उन पर बैठ सके। फर्श बर्फ जैसा ठण्डा था। नंगे पैर खडा होना मुश्किल था। भला क्या औचित्य था ऐसे फरमान का? खैर, यह पुजारी की सल्तनत थी। यहां आये हो तो उसके फरमान मानने तो पडेंगे ही। पता नहीं ये पुजारी लोग अपनी सल्तनत में आये लोगों से कब भ्रातृ-भाव स्थापित करेंगे और उनसे हंसना-बोलना शुरू करेंगे? सब बडे मन्दिरों का यही हाल है।
हां, तिलक लगाते समय पुजारी ने पूरे माथे पर चन्दन का लेप कर दिया।
फिर भी रुद्रनाथ जीवन में कम से कम एक बार अवश्य जाना चाहिये। इसकी हिमालय में स्थिति इसे बेहद विशिष्ट बनाती है। जितना ऊपर आते जाते हैं, जी खुश होता चला जाता है। यहां कई धर्मशालाएं हैं। धर्मशाला मतलब खाली कमरे। आप अगर स्लीपिंग बैग लाये हो तो इनमें फ्री में सो सकते हो। एक दुकान भी थी। वहां बंगालियों के लिये परांठे बन रहे थे, इसलिये हमारे लिये फिलहाल कुछ नहीं बन सकता था। सबसे अच्छी बात यह थी कि यहां एक शौचालय भी था। अन्यथा पूरे रास्ते कहीं भी शौचालय नहीं मिला, खुले में ही बैठना पडता था। शायद पनार में भी शौचालय हो।
साढे दस बजे तक वापस पंचगंगा आ गये। यहां मुम्बई की महिलाओं का ग्रुप और एक गुजराती ग्रुप भी आ गया था। मुम्बई वाले रात ल्वीटी बुग्याल में रुके थे जबकि गुजराती पनार में। ज्यादातर खच्चरों पर थे। हम तो कहकर गये थे कि आलू-सोयाबीन की एकदम सूखी सब्जी और दही चाहिये। अब आये तो सब खाना तैयार मिला। भूखे थे, टूट पडे। आनन्द आ गया, तृप्त हो गये।
गुजरातियों में चर्चा चल पडी कि गुजराती किस तरह के टूरिस्ट होते हैं। गुजराती अक्सर व्यापारी हैं और अच्छे पैसे वाले होते हैं। पैसे वाले हैं तो सुविधाएं भी चाहिये। तो मुम्बई वालों और गुजरातियों में फर्क ये निकला कि गुजराती पैसा खूब खर्च कर देंगे लेकिन उन्हें सुविधाएं चाहिये। जहां सुविधाएं नहीं मिलेंगी, वहां गुजराती जाना पसन्द नहीं करेगा। फिर बंगालियों की भी बडी तारीफ हुई। बंगालियों की तो मैं भी बहुत तारीफ करता हूं। भारत की नम्बर एक घुमक्कड कौम होती है बंगाली।
11 बजते-बजते रात रुद्रनाथ रुके बंगाली भी आ गये। ये भी अनुसुईया, मण्डल के रास्ते वापस जायेंगे। इनके साथ गाइड भी था। हालांकि रास्ता बना हुआ है, गाइड की कोई जरुरत नहीं होती लेकिन अगर उम्रदराज यात्री हों तो गाइड काम आ जाया करते हैं।
सवा ग्यारह बजे यहां से चल दिये।
पंचगंगा बुग्याल |
पंचगंगा में हमारा रात का ठिकाना |
पंचगंगा से रुद्रनाथ की ओर जाता रास्ता |
रुद्रनाथ के प्रथम दर्शन |
रुद्रनाथ |
वापस पंचगंगा की ओर |
पंचगंगा में रुकने-खाने का एकमात्र ठिकाना |
अगला भाग: रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
आज सुवह चेक किया तो पोस्ट नही दिखी , अभी दिखी तो तुरंत पढ़ लिया , वाकई में बड़ा मनोहारी दृश्य है, आनंद आ गया ,ठण्ड कैसी थी उस समय फोटो से तो लग रहा है की ज़बरदस्त थी
ReplyDeleteअच्छी धुप निकली थी, इसलिए ठण्ड नहीं थी.
Deleteबहुत सुन्दर! और साथ में विचार भी सुन्दर हैं!
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deleteआज की पोस्ट सबसे सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteबहुत सुन्दर दृश्य हैं। पुजारी जी द्वारा सुन्दर तिलक किया है। यू टूब पर चन्दन प्रकाश की मदमहेश्वर की वीडियो देखीं , ट्रेक उबड़ खाबड़ है, गाइड -पोर्टर का खर्च भी जरूर है।
ReplyDeleteप्रत्येक ट्रेक ऊबड़-खाबड़ ही होते हैं. लेकिन यहाँ गाइड पोर्टर की कोई आवश्यकता नहीं है.
Deleteअद्भुत खूबसूरती ,बहुत सुंदर |
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी...
Deleteअविस्मरणीय
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज जी...
DeleteThis is again turning out to be another fantastic series.
ReplyDeleteThough last series ( M.P one) was also nice but at times I felt something was missing, or maybe it is the magic of Himalayas which bring out best from you.
Like I said many times before, I would love to travel with you sometime.
Once again thank you.
धन्यवाद सर जी... हिमालय की बात ही कुछ और है...
Deleteबहुत सुंदर! धन्यवाद हमें हिमालय की खूबसूरतवादियों का दर्शन कराने के लिये। अब तो अापसे मिलने अाैर साथ में घूमने का मन है।
ReplyDeleteआपका भी बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteवाकई सुंदर नजारा दिख रहा है, पेड़ रेखा खत्म होने पर दूरदराज तक का नजारा दिखता होगा, सोचकर ही अच्छा लग रहा है, बहुत सुंदर पोस्ट नीरज भाई।
ReplyDeleteवैसे पोर्टर व गाईड कितने पैसे लेते है रोजाना।
Deleteअगर बात करे मदमेश्वर या रूद्रनाथ ट्रैक की।
हाँ सचिन भाई... पेड़ रेखा समाप्त होने पर शानदार नजारा दिखता है...
Deleteगाइड पोर्टर की मुझे कोई जरुरत नहीं पड़ी, इसलिए कभी इसके बारे में सोचा भी नहीं... फिर भी पोर्टर नॉर्मली 500 रुपये प्रतिदिन के लेता है, गाइड ज्यादा लेता है.
Neeraj Ji, Sach main apke posts dekh ke maja a gaya. Aisa lagta hai pura India ghum liye apke saath. Thank you for the hardwork!
ReplyDeleteधन्यवाद रोहित जी...
Deleteनीरज जी इक प्रश्न है।मेरे पास स्प्लैन्डर प्रो 100 सी सी है उससे किस ऊॅचाई तक जाया जा सकता है?
ReplyDeleteनीरज जी, आपसे पहले भी बताया था. 100 सीसी की बाइक से आप कहीं भी जा सकते हैं. यहाँ तक कि खारदुंगला पर भी.
Deleteस्पीति........
Deleteये जगह भले ही औसत उंचाई के हिसाब से खारदुंगला से नीची हो पर 100 सीसी की बाइक के लिऐ टेढी खीर है। केवल उंचाई ही जांकशी का पैमाना नहीं होती।
धन्यवाद
ReplyDeleteme aap ki kafi din se baato ko notice kar raha hu yatra to karte ho hi par ghmand bhi kaafi karte ho, jo ki aap ke hisaab se achha nahi lagta, accha uttrakhand tirashdi me aap ne kya diya, or nepal me aap ne kya diya,
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ReplyDeleteहमारे गुरद्वारों में यह हाल नहीं है तुम अगर हेमकुंड साहेब जाओगे तो वहाँ तुमको कम्बल पीछे मिलेंगे निचे भी और ओढ़ने को भी कोई रोक टॉक नहीं वैसे जगह बहुत ही सुन्दर है
ReplyDeleteहिमालय का जवाब नहीं
ReplyDeleteनीरज जी जवाब आपका भी नहीं
very beautiful i will also want to go rudranath
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