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27 नवम्बर 2014
छह बजे तक चकराता से निकल लेना था लेकिन चारों सोते रह गये और सात बजे उठे। अत्यधिक ठण्डे पानी में हाथ भिगोकर मुंह पर लगाया- मुंह धुल गया। सवा सात बजे तक चकराता से निकल पडे। होटल वाले ने हमें सचेत किया कि रास्ते में ब्लैक आइस मिलेगी, सावधानी से चलना। ब्लैक आइस से मुझे बहुत डर लगता है। यह दिखती नहीं है और मोटरसाइकिल इस पर फिसलकर गिर जाती है। खैर आधे-पौने घण्टे की बात है, सहिया तक ऊंचाई काफी कम हो जायेगी, ब्लैक आइस का खतरा भी टल जायेगा।
लेकिन हर जगह यह नहीं मिलती। यह ज्यादातर ऐसे मोडों पर होती है जहां अन्धेरा और लगभग पूरे दिन छाया रहती हो। ऐसी कई जगहों पर प्रशासन ने चेतावनी बोर्ड भी लगा रखे हैं कि मोड पर बर्फ जमने का खतरा है, सावधानी से चलें। खैर, सावधानी से चलते रहे और कोई नुकसान नहीं हुआ।
नौ बजे कालसी पहुंच गये। बडा सुकून मिला कि अब पर्वतीय मार्ग समाप्त हो गया है। मैदानी मार्ग शुरू हो गया है। आधा घण्टा यहां रुके, नाश्ता किया, सचिन और दीपक ने शिलालेख देखा। साढे नौ बजे यहां से रवाना हो गये। पौंटा साहिब में मिलने की बात तय हुई लेकिन सचिन ऐसा भागा कि फिर कभी नहीं मिला।
यहां मैंने टंकी फिर फुल करवाई। इससे पहले चम्बा के पास भरवाई थी। तब से अब तक 267 किलोमीटर चली है, यह सारा रास्ता पहाडी था। यहां 5.89 लीटर पेट्रोल डला। इस तरह पहाडी मार्ग पर 45 किलोमीटर प्रति घण्टे का औसत आया।
हरबर्टपुर से दाहिने मुड गया। बाकी तीनों मुझसे आगे ही थे। कुछ ही आगे आसन बैराज है। यहां आसन नदी पर एक बांध बनाया गया है। बांध के बाद यह नदी यमुना में जा मिलती है। बांध की वजह से काफी इलाके में पानी ही पानी दिखता है। इस वजह से यहां देशी-विदेशी पक्षी भी काफी आते हैं। इसलिये सरकार ने इसे पक्षी अभयारण्य बना दिया है- आसन पक्षी अभयारण्य। सडक पर ही खडे होकर दो-चार फोटो खींचे और आगे बढ चला।
यमुना नदी पार करते ही हम उत्तराखण्ड छोडकर हिमाचल में प्रवेश कर जाते हैं। प्रवेश करते ही पौंटा साहिब है। यहां बडा प्रसिद्ध गुरुद्वारा भी है। कुछ ही देर पहले कालसी से चलते समय गुरुद्वारे पर ही मिलने की बात तय हुई थी, इसलिये मैं मुख्य सडक छोडकर गुरुद्वारे की तरफ चला गया। बाइक खडी करके अरुण को फोन किया तो पता चला कि वह पौंटा साहिब से तीन-चार किलोमीटर आगे है। सचिन को फोन किया तो वो यहां से बीस किलोमीटर आगे निकल चुका था।
मैं गुरुद्वारे में रुका हुआ हूं, यह सुनकर अरुण व दीपक भी आ गये। उन्होंने एक नजर गुरुद्वारे पर मारी और फिर सभी आगे बढने को तैयार हो गये।
पौंटा साहिब में नाहन मोड तक तो ट्रैफिक था, लेकिन जैसे ही यमुनानगर की तरफ मुडे, ट्रैफिक गायब हो गया। और सडक भी बेहद शानदार बनी है। जल्दी ही हम शिवालिक की पहाडियों पर मोड दर मोड आगे बढ रहे थे। जहां इन पहाडियों का उच्चतम स्थान है, वही हिमाचल और हरियाणा की सीमा है। पहाडियां समाप्त होने के बाद चारों तरफ घोर जंगल है और उसमें से बिल्कुल नाक की सीध में सडक। कोई ट्रैफिक नहीं और बाइक आराम से अस्सी की रफ्तार से दौड रही थी। इस वजह से अरुण व दीपक मुझसे काफी पीछे हो गये। रास्ते में मैं एकाध जगह कुछ देर के लिये रुका भी लेकिन आखिरकार उनका इंतजार किया जगाधरी पहुंचकर।
जगाधरी में मैं उनका इंतजार करता रहा, करता रहा। पौन घण्टा हो गया। फोन किया तो नहीं मिला। चूंकि जगाधरी शहर में फोन न मिलने का सवाल ही नहीं था, इसलिये यही सोचता रहा कि वे अभी पीछे जंगल में ही हैं। पौन घण्टे बाद धीरे धीरे आगे बढने लगा। एक किलोमीटर चलने के बाद सडक किनारे गोलगप्पे का ठेला दिखा, मैं रुक गया। एक बार फिर फोन किया। इस बार मिल गया। पता चला कि वे जगाधरी और यमुनानगर से भी आठ दस किलोमीटर आगे निकल गये हैं। एक बार तो दिमाग भन्ना गया कि उन्होंने इतने बडे शहर में प्रवेश करने पर भी सम्पर्क करने की कोशिश नहीं की। मैंने कहा कि तुम मुझसे आठ-दस किलोमीटर आगे हो, पूरा रास्ता बेहद ट्रैफिक वाला है। अगर आप अलविदा करना चाहो तो कर लो। अरुण ने कहा कि अभी अलविदा नहीं करेंगे, तू आ जा, हम यहीं रुककर प्रतीक्षा कर रहे हैं।
यमुनानगर से भी बडी आगे वे मिले। सचिन का कोई पता नहीं। लाडवा के पास एक ढाबे में रुक गये। भूख लग रही थी। भरपेट खाना खाया। सचिन को फोन किया तो वो करनाल पहुंचने वाला था। लाडवा से करनाल जाने के दो रास्ते हैं- एक तो सीधा इन्द्री होते हुए और एक थोडा लम्बा पीपली होते हुए। मुझे पीपली से दिल्ली की सडक का पक्का पता था कि शानदार है, लेकिन इन्द्री वाली का नहीं पता था। ढाबे वाले ने बताया कि एक नम्बर की सडक है वह।
लाडवा से बायें मुड गये और इन्द्री वाली सडक पकड ली। दूरी चालीस किलोमीटर है, पौन घण्टा लगा। तीन बजे हम करनाल में थे। यहीं हमने एक दूसरे से विदा ली। अरुण और दीपक यहां से शामली जायेंगे और वहां से बडौत। मैं चाहता था कि वे सोनीपत के पास बहालगढ से बडौत जायें। भले ही रास्ता कुछ लम्बा हो लेकिन बहालगढ तक एक नम्बर की सडक है, फिर बस यमुना पार करनी है खराब सडक से। लेकिन वे नहीं माने। उधर सचिन शामली के पास अपने घर पहुंच चुका था।
अब मैं जीटी रोड पर था। आठ लेन की यह सडक है। पर्याप्त चौडी होने के कारण ट्रैफिक का कोई पता ही नहीं चल रहा था। बाइक की रफ्तार कब नब्बे तक पहुंच जाती थी, पता ही नहीं चलता था। लेकिन मुझे हर पन्द्रह-बीस मिनट में रुकना पडता था। कारण था कि लगातार चार दिनों से बाइक चलाते रहने से पिछवाडा दुखने लगा था। हर थोडी थोडी देर में आराम करना पडता।
शाम पौने छह बजे जब दिन ढलने ही वाला था, मैं शास्त्री पार्क पहुंच चुका था। इस यात्रा में लगभग 940 किलोमीटर बाइक चली।
समाप्त।
लाक्षागृह-लाखामण्डल बाइक यात्रा
1. लाक्षागृह, बरनावा
2. मोटरसाइकिल यात्रा- ऋषिकेश, नीलकण्ठ और कद्दूखाल
3. लाखामण्डल
4. लाखामण्डल से चकराता- एक खतरनाक सफर
5. चकराता से दिल्ली मोटरसाइकिल यात्रा
Vah Neeraj bhai aab aap bike master bhi ban gaye . me kitne sales se bike chalata hu par kabhi 70 up nahi huaa . badhate chalo . all the best .
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश भाई...
Deletesaandaar photo saandaar waapsi
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
DeleteNeeraj Bhai, Bike par yatra karne se samaya bhi bachta hai aur anand bhi aata hai lekin Ye bahut Risky hai. Aap bhartiya railway\ public bus ki sewa ka labh uthaye. Usme aapko local sah yatrio se bhi ghul milne ka awsar milta hai.
ReplyDeleteपंवार साहब, मैंने आज तक किया ही क्या है? ट्रेनों और बसों में ही सफर किया है। यह मेरी पहली बाइक यात्रा थी। बाकियों के मुकाबले इसमें खतरा जरूर है लेकिन वही बात कि समय भी बचता है और आनन्द भी आता है।
DeleteTheek hai bhai, lekin drive safe.
Deleteशानदार यात्रा वर्णन नीरज भाई, फोटो भी ग़ज़ब के आए है....
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब...
Deleteतो याञा आखिरकार अच्छी विवरणता के साथ खत्म हुई
ReplyDeleteहां जी, सर बिल्कुल।
DeleteShandar yatra rahi .bahut maja aaya Neeraj bhai.kabhi to hum bhi saath honge aapke.mann main vishwas hai.
ReplyDeleteओ हो हो...
Deleteहमको है विश्वास... हम होंगे कामयाब...
बहुत खूब..... यात्रा वर्णन अच्छा लगा अरु फोटो भी
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता भाई...
DeleteNeeraj ek baar valley of flowers bhi jaiye......Anurag
ReplyDeleteजी साहब जी, बिल्कुल जाऊंगा। बिल्कुल... बिल्कुल...
Deleteयात्रा तो अच्छी तरह संपन्न हुई लेकिन मेरी उत्सुकता आपके विवाह प्रकरण में बनी हुई है।
ReplyDeleteकेवल आपकी ही नहीं, मेरी भी उत्सुकता मेरे विवाह प्रकरण में है।
Deleteएकदम मस्त रही आपकी ये पहली बाइक यात्रा। मज़ा आ गया भाई। धन्यवाद!
ReplyDeleteपहली यात्रा मे ही लगभग 1000km यात्रा कर डाली आगे के लिए अच्छा है..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत यात्रा...
शानदार सफर पहली मोटर साईकिल का --- मैं होती तो पौटा साहेब में गुरु को माथा टेककर लंगर का स्वाद भी चखती \
ReplyDeleteWah mast tour tha main bhi adventure ka soukeen hoon kabhi hame b guhmao
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