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20 फरवरी थी और दिन था बृहस्पतिवार। वडोदरा से सुबह सवा सात बजे कोटा पैसेंजर चलती है। इसे स्थानीय तौर पर पार्सल पैसेंजर भी कहते हैं। मुझे अपने पैसेंजर नक्शे में रतलाम से वडोदरा को जोडना था। दिल्ली से रतलाम तक मैंने कई टुकडों में पैसेंजर यात्रा कर रखी है। दिन शामगढ में छिपेगा तो टिकट शामगढ तक का ले लिया। कोटा से निजामुद्दीन तक का मेरा आरक्षण मेवाड एक्सप्रेस में था। शामगढ से कोटा तक इंटरसिटी से जाऊंगा।
पार्सल पैसेंजर प्लेटफार्म नम्बर पांच पर खडी थी। प्लेटफार्म चार से सात बजकर पांच मिनट पर वडोदरा-भिलाड एक्सप्रेस (19114) रवाना हो गई। प्लेटफार्म एक पर भुज-बान्द्रा एक्सप्रेस (19116) थी।
साढे सात बजे यानी पन्द्रह मिनट की देरी से पार्सल पैसेंजर रवाना हुई। प्लेटफार्म से निकलते ही गाडी रुक गई। वडोदरा इतना बडा स्टेशन है कि यहां कई ‘आउटर’ हैं। असल में अहमदाबाद की तरफ से डबल डेकर आ रही थी, इसलिये इस ट्रेन को रुकना पडा। डबल डेकर चली गई, उसके बाद जयपुर-बान्द्रा (12980) गई, तब यह आगे बढी। इसी दौरान उदयपुर-बान्द्रा (22902) निकली। यहां तक गाडी काफी लेट हो चुकी थी। छायापुरी आधे घण्टे की देरी से पहुंची।
वडोदरा से रतलाम तक स्टेशन हैं- वडोदरा जंक्शन, छायापुरी, पिलोल, अलिन्द्रा रोड, समलाया जंक्शन, लोटना, चांपानेर रोड, बाकरोल, डेरोल, बहेरिया रोड, खरसालिया, गोधरा जंक्शन, कानसुधी, चंचेलाव, सन्त रोड, पिपलोद, लीमखेडा, मंगल महुडी, उसरा, जेकोट, रेंटीआ, दाहोद, धामरडा, बोरडी, अनास, नाहरगढ, मेघनगर, थांदला रोड, बजरंगगढ, पंच पिपलिया, अमरगढ, बामनिया, भैरोंगढ, रावटी, बिलडी, मोरवनी और रतलाम जंक्शन।
समलाया कहने को तो एक जंक्शन है लेकिन आज के समय में यहां से कोई भी तीसरी लाइन नहीं है। किसी जमाने में यहां से नैरो गेज की लाइनें दभोई और तुम्बा रोड तक जाती थीं। अब वे उखड चुकी हैं और नई लाइन बनेगी भी नहीं। अब भी गूगल मैप के सैटेलाइट व्यू में उन लाइनों के अवशेष दिखाई देते हैं।
पन्द्रह मिनट की देरी से गाडी गोधरा पहुंची। गोधरा वही जगह है जहां 2002 में साबरमती ट्रेन में आग लगाई गई थी। बहुत यात्री जिन्दा जल गये थे। मानवता के दुश्मन हथियारों से लैस होकर ट्रेन के बाहर खडे थे। जो भी कोई ट्रेन से कूदकर बचने की कोशिश करता, मार दिया जाता। इस घटना के प्रतिशोध में गुजरात में दंगे भडक उठे। आज तक उन दंगों की आग ज्यों की त्यों है। करीब बीस मिनट ट्रेन यहां खडी रही। मैं उस सूने पडे स्टेशन पर यही सोचता रहा कि कैसी बीती होगी उस पर जिन्हें ट्रेन में ही जिन्दा जला दिया गया। बाद में पता चला कि जले हुए वे डिब्बे आज भी गोधरा स्टेशन पर खडे हैं। अगर उस समय पता होता तो एक झलक मैं भी ले लेता उनकी।
परसों मैंने वीरमगाम से सूरत तक ट्रेन यात्रा की थी, कल सूरत से मुम्बई तक। दो दिनों में जो गुजरात देखा, आज उससे बिल्कुल विपरीत गुजरात देख रहा हूं। वह आधुनिक, औद्योगिक गुजरात था, आज जिस इलाके से मैं गुजर रहा हूं, वह मुख्यतः आदिवासी गुजरात है। उस गुजरात में चकाचक कपडे पहने छात्र-छात्राएं और दैनिक यात्री थे जबकि इस गुजरात में अपने परम्परागत परिधान में भील आदिवासी थे जो अपनी रोजमर्रा की जरुरतों जैसे लकडी और यहां तक कि पशुधन को भी ट्रेन में यातायात करा रहे थे। उस गुजरात में ट्रेन भरी हुई थी, इस गुजरात में बिल्कुल खाली है। वैसे गुजरात अपने पडोसी राज्यों राजस्थान और मध्य प्रदेश की तरह मुख्यतः आदिवासी प्रदेश ही है। बस अहमदाबाद-मुम्बई बेल्ट ही कुछ अलग है।
वडोदरा की समुद्र तल से ऊंचाई 36 मीटर है, गोधरा 119 मीटर पर, दाहोद 312 मीटर पर और रतलाम 494 मीटर पर है। इससे साफ जाहिर होता है कि जैसे जैसे वडोदरा से दूर होते जा रहे हैं, समुद्र तल से ऊंचाई भी बढती जा रही है। यही मालवा के पठार की चढाई है। यह चढाई पश्चिमी घाट वाली चढाईयों की तरह विकट तो नहीं है, लेकिन फिर भी यहां छोटी छोटी पहाडियां व ऊंचे-नीचे टीले जरूर दिख जाते हैं।
दाहोद बीस मिनट की देरी से यानी ग्यारह बजकर चालीस मिनट पर पहुंचे। लग रहा था कि शीघ्र ही चल देगी, लेकिन जब पन्द्रह मिनट हो गये, आधा घण्टा हो गया और ट्रेन नहीं चली तो नीचे उतर गया। देखा कि ट्रेन में इंजन ही नहीं लगा है। यानी पार्सल नाम सार्थक हो रहा है। आगे कोई मालडिब्बा लगा होगा, उसे किसी यार्ड में पहुंचाने गया होगा। आखिरकार इंजन आया और ट्रेन पूरे एक घण्टे यहां खडी रहकर आगे चली।
इस लाइन पर गुजरात का आखिरी स्टेशन अनास है। इससे कुछ आगे इसी नाम की नदी है जिसे पार करते ही मध्य प्रदेश में प्रवेश कर जाते हैं। मध्य भारत की अन्य नदियों की तरह यह भी गहरी घाटी में बहती है। पुल काफी ऊंचा है। ठीक पुल पर ट्रेन रुक गई। किसी ने इसकी चेन खींच दी थी। ट्रेन रुकते ही बडी संख्या में यात्री नीचे उतर गये। रेल के इस पुल पर रेलिंग नहीं थी। अगर ट्रेन हो तो पुल पर खडे भी नहीं हो सकते। कर्मचारियों की सुविधा के लिये पुल पर थोडी थोडी दूरी पर खडे होने की जगह बना रखी है। तो जैसे ही ट्रेन रुकी, काफी सवारियां उतरीं और बमुश्किल उस खडे होने वाली जगह पर पहुंची व ट्रेन के आगे बढने का इंतजार करने लगीं। बिना ट्रेन के आगे बढे वे अपनी जगह से नहीं हिल सकते थे। यही समस्या गार्ड के सामने थी। जब तक वह उस चेन तक जाकर उसे ठीक नहीं करेगा, तब तक ट्रेन आगे नहीं बढ सकती। वह भी बेचारा जान हथेली पर लेकर बडी मुश्किल से आगे बढा और आखिरकार काफी देर बाद खींची गई चेन ठीक हुई। ट्रेन ने पुल पार किया, फिर रुकी, गार्ड अपने डिब्बे में चढा और तब गाडी आगे बढी।
मध्य प्रदेश में ऐसा खतरनाक स्वागत!
मध्य प्रदेश का पहला स्टेशन मिला- नाहरगढ। हालांकि अब यह स्टेशन बन्द है लेकिन इसकी इमारत है जिस पर झाडियां उगी पडी हैं। वैसे मध्य प्रदेश का पहला चालू स्टेशन है मेघनगर।
अनास स्टेशन पर एक बुजुर्ग महिला अपनी बकरी को लेकर चढीं। पहले तो बकरी ने ट्रेन में चढने से साफ इंकार कर दिया लेकिन तीन चार लोगों की ताकत के आगे उसकी एक न चली। जैसे ही उसने ट्रेन में प्रवेश किया, उसके गले से भयंकर आवाज निकली जैसे उस पर जानलेवा वार होने वाला हो। सभी यात्री हंसने लगे। लोगों को हंसते देख बकरी भी संयत हुई और फिर तो उसने डिब्बे को ही अपना ठिकाना मान लिया। बुढिया कुछ घास भी लिये हुए थी। मस्त होकर बकरी ने घास खाई और हगना-मूतना भी किया। इसी तरह जब बामनिया में उतरने की बारी आई तो पुनः बकरी ने मना कर दिया। लेकिन उतरना तो था ही।
अमरगढ स्टेशन पर सवा दो बजे पहुंचे। यहां वडोदरा की तरफ से पहली ट्रेन पास हुई- बान्द्रा-रामनगर एक्सप्रेस (19061)। इस गाडी को शुरू हुए ज्यादा दिन नहीं हुए। लेकिन इसका रूट बडा खराब है। बान्द्रा से मथुरा तक तो यह ठीक आती है बल्कि कासगंज तक ठीक है, फिर उसके बाद कानपुर जाती है, फिर लखनऊ, फिर बरेली, रामपुर, लालकुआं, काशीपुर और फिर रामनगर। कासगंज से बरेली की 100 किलोमीटर की दूरी यह कानपुर, लखनऊ का चक्कर लगाकर 550 किलोमीटर कर देती है। इसका रूट बिल्कुल U की तरह है। हालांकि यह स्थिति ज्यादा दिन नहीं चलेगी। कासगंज से बरेली के बीच गेज परिवर्तन का काम पूरा होने को है। फिर इस ट्रेन को भी कासगंज से सीधे बरेली भेज दिया करेंगे।
वापस मध्य प्रदेश चलते हैं। भैरोंगढ में माही नदी पार की। इसका पानी इस समय रुका हुआ था। कोई बहाव नहीं।
चार बजे रतलाम पहुंचे, पूरे डेढ घण्टे लेट। गाडी दो मिनट से ज्यादा नहीं रुकी और आगे बढ चली। फिर तो यह धडाधड चलती गई और शामगढ तक पहुंचते पहुंचते इसने एक घण्टा कवर कर लिया। इसकी वर्तमान गति को देखते हुए एक बार तो मन में आया कि कोटा तक इसी से चलता हूं। लेकिन स्वराज एक्सप्रेस को निकालने के लिये ट्रेन यहां पन्द्रह मिनट रुक गई और मैं भी यही उतर गया। क्या पता आगे भी कोई ट्रेन इसी तरह पास हो जाये? रात दस बजे इसके कोटा पहुंचने का टाइम है, ज्यादा लेट हो गई तो क्या पता मेवाड एक्सप्रेस न निकल जाये। इससे अच्छा है इंटरसिटी पकडना। उसका ज्यादा भरोसा है।
इसी दौरान पश्चिम एक्सप्रेस भी निकल गई। तय समय पर इंटरसिटी आई। साधारण डिब्बों में भीड तो नहीं थी लेकिन बैठने की जगह भी नहीं थी। ट्रेन इन्दौर से आती है और निजामुद्दीन जाती है। जिस कूपे में मैं बैठने के इरादे से गया तो एकबारगी तो उन्होंने खिसकने से मना कर दिया लेकिन थोडा कडक आवाज और कोटा उतरने की बात सुनकर वे तुरन्त खिसक गये और मेरे बैठने की जगह बन गई। वे बोली से मेरठ की तरफ के लग रहे थे, मैंने पूछा नहीं। उन्होंने मुझे कोटा-निवासी समझ लिया यानी लोकल यात्री। लोकल यात्रियों का इतना दबदबा तो होता ही है।
कोटा उतरकर जब तक कुछ खाया, तब तक मेवाड एक्सप्रेस आ गई। एक बार लेटा तो निजामुद्दीन पहुंचकर ही उठा।
खरसालिया स्टेशन |
गोधरा में प्रवेश |
गोधरा स्टेशन |
जेकोट स्टेशन पर |
जेकोट से चढाया गया सामान रेंटीआ में उतार लिया गया। |
रेंटीआ स्टेशन |
दाहोद स्टेशन पर लुधियाना का रंग-बिरंगा WAG-7#27278 |
अनास स्टेशन पर बकरी की रेलयात्रा |
अनास पुल पर |
अनास पुल |
अनास नदी |
अमरगढ से गुजरती बान्द्रा-रामनगर एक्सप्रेस। |
रतलाम जंक्शन |
गुजरात मुम्बई ट्रेन यात्रा
1. वीरमगाम से सूरत पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. सूरत से मुम्बई पैसेंजर ट्रेन यात्रा
3. वडोदरा से रतलाम पैसेंजर ट्रेन यात्रा
Neeraj ji, Photos ki locations bahut hi shaandar hai, kamaal !
ReplyDeleteThanks.
अच्छी लिखावट के साथ अच्छे फोटो ।
ReplyDeleteShaandaar yatra.. Dahod mera nanihaal hai neerajji.
ReplyDeleteDahod ka photo dekh ker bahut accha laga..
kamaal hai , hamare yahan se gujre aur hame pata bhi na chala... pata rahta to mithayi hii baandh dete... dubara aao is taraf...
ReplyDeleteNice article with beautiful photos.
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