मिज़ोरम यात्रा के दौरान जब मैं और सचिन अलग अलग हुए तो अपना टैंट मैंने सचिन को दे दिया था ताकि जरुरत पडने पर काम आ सके। सचिन ने मुम्बई से आइजॉल की यात्रा वायुयान से की थी और वह वापस भी वायु मार्ग से ही जायेगा। उसके पास पहले ही फ्री लिमिट से ज्यादा सामान था इसलिये साढे तीन किलो के टैंट को मुम्बई ले जाने के लिये एक हजार रुपये मैंने सचिन को दे दिये थे। आखिर टैंट न होने से मेरा फायदा भी तो था, मुझे चम्फाई से दिल्ली तक साढे तीन किलो कम सामान ढोना पडा।
अब वह टैंट दिल्ली वापस लाना था। आज के दौर में मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों में सामान पहुंचाने के लिये द्रुतगामी साधन मौजूद हैं लेकिन मैंने इसे स्वयं लाने का फैसला किया। मेरा मकसद पैसेंजर ट्रेन यात्रा करना भी था। गुजरात में मैंने केवल राजकोट से ओखा और अहमदाबाद से उदयपुर मार्ग पर ही पैसेंजर यात्रा कर रखी है। इस बार अहमदाबाद को मुम्बई से जोडना था, साथ ही रतलाम को वडोदरा से भी। फाइनल कार्यक्रम इस प्रकार बना- पहले दिन वीरमगाम से सूरत, दूसरे दिन सूरत से वसई रोड और दिवा तथा तीसरे दिन वडोदरा से शामगढ।
दिल्ली सराय रोहिल्ला से पोरबन्दर एक्सप्रेस में बैठकर मैं रवाना हुआ। शयनयान में सीट आरक्षित थी। रात को ड्यूटी की थी, ट्रेन में चढते ही नींद आ गई। आंख खुली तो गाडी अजमेर से आगे निकल चुकी थी। आबू रोड की रबडी खाने के लिये रात दस बजे तक जगा रहा। यह रबडी मुझे स्वादिष्ट लगती है लेकिन कमी यह है कि होती बहुत महंगी है। तीस रुपये की जरा सी।
तो जी, इसी क्रम में ट्रेन ने सुबह चार बजे वीरमगाम उतार दिया। मुझे इस रूट का भरोसा होता है, तभी चार बजे का अलार्म लगाया था। अलार्म बजा तो ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी हुई थी। यह वीरमगाम था।
सीधे प्रतीक्षालय में गया और सो गया। साढे छह बजे आंख खुली। नहाने की आवश्यकता महसूस हुई, नहा लिया। दिल्ली की तरह यहां सर्दी नहीं थी। मेरी ट्रेन यानी वीरमगाम-वलसाड पैसेंजर साढे सात बजे चलती है। सूरत का टिकट लिया। वैसे तो वलसाड भी जा सकता था लेकिन मैं इस तरह की पैसेंजर यात्राओं में अन्धेरे में चलना पसन्द नहीं करता। वीरमगाम से सूरत की दूरी 294 किलोमीटर है और यह ट्रेन इस दूरी को साढे ग्यारह घण्टे में तय करती है। वीरमगाम समुद्र तल से 30.708 मीटर की ऊंचाई पर है।
ट्रेन का मुआयना किया तो पाया कि इसमें प्रथम श्रेणी का भी एक डिब्बा लगा था। इसमें बिल्कुल भी भीड नहीं थी, बाकी सभी डिब्बे भर चुके थे। प्रथम श्रेणी वाले डिब्बे में बैठने की हिम्मत नहीं पडी। हालांकि इसमें आरक्षण नहीं होता लेकिन जिस तरह मुम्बई लोकल में अनारक्षित प्रथम श्रेणी के डिब्बे होते हैं, सोचा शायद यहां भी ऐसा ही हो। नॉन-एसी प्रथम श्रेणी (FC) आजकल विलुप्ति की कगार पर है।
मैं रोलिंग स्टॉक की तकनीकी जानकारियां अक्सर नहीं लिखता हूं। रोलिंग स्टॉक अर्थात इंजन और डिब्बे। लेकिन पिछले दिनों कुछ ‘बडे’ रेल-यात्रियों के वृत्तान्त पढे तो उनमें यात्रा कम और रोलिंग स्टॉक की स्पेसिफिकेशन ज्यादा लिखी मिली। सोचा कि मुझे भी इन चीजों का समावेश अपने यहां कर लेना चाहिये। शुरूआत की इंजन से। इसमें आबू रोड का WDM2#17717 इंजन लगा था। इन चीजों का अध्ययन करते रहने से कभी-कभी बडी मजेदार बातें सामने आ जाती हैं। जैसे कि कुछ समय पहले मैंने अण्डाल के इंजन को शाहदरा स्टेशन पर शामली पैसेंजर ले जाते देखा था। कहां पूर्वी रेलवे का अण्डाल और कहां उत्तर रेलवे में शामली?
इसके चलने से पहले बान्द्रा-भावनगर एक्सप्रेस (12971) आई। इसमें रतलाम का WDM3D#11482 इंजन लगा था। रतलाम का इंजन है तो अहमदाबाद में लगा होगा। वैसे वटवा और साबरमती में भी लोको-शेड हैं, वहां का इंजन भी लगाया जा सकता था। बान्द्रा से अहमदाबाद तक यह विद्युत-शक्ति से आई होगी, वडोदरा शेड का इंजन लगा होगा।
वीरमगाम से चलकर जखवाडा, विरोचन नगर, छारोडी, वासना ईयावा, सानन्द, गोराघूमा, आम्बली रोड, चांदलोडिया, साबरमती और फिर अहमदाबाद जंक्शन है। आम्बली रोड में एक मालगाडी क्रॉस हुई। इसमें सिलीगुडी का WDG4#12817 लगा था। मालगाडी कांडला जा रही होगी। देश के धुर पश्चिम में कांडला में सिलीगुडी अर्थात धुर पूर्व का इंजन। रेलवे भी कहां से कहां इंजन भेज देता है? जल्दी ही इसे नियमित चेकिंग के लिये सिलीगुडी भेजना पडेगा। कभी-कभी तो इंजन खो भी जाते होंगे। ढूंढ मचती होगी। कहां है सिलीगुडी का WDG4? किस-किस से पूछोगे? आकाशवाणी थोडे ही हो जायेगी कि कांडला में खडा है। वो तो कांडला वालों की ईमानदारी है कि समय पर वापस भेज दें, नहीं तो इसे कहीं और भी भेज सकते हैं। जैसे उत्तर रेलवे ने उस दिन अण्डाल का इंजन शामली पैसेंजर में लगा दिया था।
आम्बली रोड पर मुज़फ़्फ़रपुर-पोरबन्दर एक्सप्रेस भी निकली। पता है यह ट्रेन अभी तक कितनी दूरी तय कर चुकी है? दो हजार किलोमीटर से भी ज्यादा। और लेट? एक मिनट भी नहीं। इसे ठीक समय पर चलाने के लिये पहले तो गोरखपुर से लखनऊ तक पूर्वोत्तर रेलवे जिम्मेवार है, फिर दिल्ली के बाद उत्तर-पश्चिम रेलवे और आबू रोड के बाद पश्चिम रेलवे। उत्तर-पश्चिम और पश्चिम रेलवे की दोनों दिल्ली-मुम्बई लाइनें बडी व्यस्त लाइनें हैं, फिर भी ट्रेनें समय पर चलती हैं। सीखो, इलाहाबाद डिवीजन वालों, कुछ सीखो इनसे।
मुज़फ़्फ़रपुर-पोरबन्दर एक्सप्रेस के निकलने के बाद पुणे-भुज आ गई। सनसनाती हुई निकल गई।
चांदलोडिया में मुख्य लाइन आ मिलती है अर्थात जयपुर-अहमदाबाद लाइन। इसका अहमदाबाद के आसपास कुछ हिस्सा विद्युतीकृत है। अब मैं अपनी शेष यात्रा विद्युतीकृत मार्ग पर पूरी करूंगा। हालांकि इंजन अहमदाबाद में बदला जायेगा। यहां जबलपुर-सोमनाथ एक्सप्रेस क्रॉस हुई।
साबरमती में मीटर गेज लाइन भी दिख जाती है। यह लाइन अहमदाबाद से महेसाना जाती है। 70 किलोमीटर लम्बी यह मीटर गेज की लाइन ब्रॉड गेज के समान्तर चलती है। साबरमती में इन्दौर-गांधीनगर एक्सप्रेस भी गुजरी। गांधीनगर स्टेशन नया बना है। एक गांधीनगर जयपुर के पास है जिसका नाम ‘गांधीनगर जयपुर’ है जबकि इस गांधीनगर का नाम ‘गांधीनगर कैपिटल’ है। आखिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर ही तो है।
इसके बाद साबरमती नदी को पार करके अहमदाबाद में प्रवेश कर जाते हैं। रेलवे पुल से साबरमती पर बना सडक पुल और उसके पार ऊंची-ऊंची इमारतें अच्छी लगती हैं। अहमदाबाद स्टेशन पर प्रवेश करते हुए मीटर गेज की हिम्मतनगर पैसेंजर जाती दिखी। इसमें साबरमती का YDM4#6280 इंजन लगा था।
अहमदाबाद स्टेशन 52.5 मीटर की ऊंचाई पर है। मेरी ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर 5 पर रुकी। अब इसका डीजल इंजन हटाकर इलेक्ट्रिक इंजन लगाया जायेगा जो वलसाड का WCAM1#21843 था। प्लेटफार्म 6 पर हरिद्वार मेल खडी थी। यह यहां से दस बजकर पांच मिनट पर रवाना होगी। हमारे यहां आते ही प्लेतफार्म 4 पर खडी अजमेर इण्टरसिटी चली गई। अजमेर इण्टरसिटी में आबू रोड का WDM3A#14029 लगा था। इस ट्रेन के जाते ही इसी प्लेटफार्म पर पोरबन्दर-सिकन्दराबाद एक्सप्रेस आ गई। इसमें वटवा का WDG3A#13515 लगा था। अहमदाबाद में जरूर बिजली वाला इंजन लगा होगा।
ज्यादातर मित्रों को इंजन की कोडिंग नहीं मालूम होगी। चलिये, बता देता हूं। इनमें जो पहला अक्षर होता है वो बताता है कि इंजन किस गेज पर चलने वाला है- ब्रॉड गेज के लिये W, मीटर गेज के लिये Y और नैरो गेज के लिये Z अक्षर का इस्तेमाल होता है। दूसरा अक्षर बताता है कि इसकी पावर का स्त्रोत क्या है- डीजल के लिये D, एसी करंट के लिये A लिखा जाता है। कुछ इंजन एसी और डीसी दोनों के लिये बनाये जाते हैं जिनके लिये CA लिखा जाता है। जैसे हमारी ट्रेन में अहमदाबाद से WCAM1 लगाया गया जिसका मतलब है कि यह एसी में भी चलेगा और डीसी में भी। पूरे भारत में वैसे तो 25000 वोल्ट एसी का इस्तेमाल होता है लेकिन मुम्बई में डीसी करंट चलता है जिसके लिये इस तरह के इंजन काम आते हैं। कोडिंग में तीसरा अक्षर होता है कि यह किस तरह की ट्रेन को खींचने के लिये डिजाइन किया गया है- यात्री गाडियों के लिये P, मालगाडियों के लिये G, दोनों के लिये M, यार्ड में शंटिंग के लिये S. हालांकि अपवाद जमकर चलते हैं। यात्री गाडियों में अक्सर मालगाडियों वाले इंजन भी लगे मिलते हैं जैसे यहीं अहमदाबाद में पोरबन्दर-सिकन्दराबाद एक्सप्रेस में WDG3A लगा था। इससे ज्यादा जानकारी इंजनों के बारे में मुझे नहीं है। जितनी थी, बता दी।
अहमदाबाद से आगे मणिनगर, वटवा, गेरतपुर, बारेजडी नांदेज, कनीज, नेनपुर, महेमदावाद खेडा रोड, गोठाज, नडियाद जंक्शन, उत्तरसंडा, कणजरी बोरियावी जंक्शन, आणंद जंक्शन, वडोद, अडास रोड, वासद जंक्शन, नन्देसरी, रनोली, बाजवा और वडोदरा जंक्शन आते हैं।
गोठाज में एक शादी थी, बैण्ड बज रहा था, गाना चल रहा था- छोरा गंगा किनारे वाला। वैसे तो गुजरात में जमकर हिन्दी बोली जाती है लेकिन गुजराती लिपि और भाषा अलग होने के कारण यह अहिन्दीभाषी प्रदेश ही है। इस तरह के प्रदेशों में मुझे हिन्दी सुनते हुए बेहद आनन्द मिलता है। वैसे भी देशभर में हिन्दी के प्रसार की जिम्मेदारी दो विभागों पर ही है- हिन्दी सिनेमा और भारतीय रेलवे।
नडियाद एक जंक्शन है। यहां से एक ब्रॉड गेज लाइन मोडासा जाती है और एक नैरो गेज लाइन पेटलाद होते हुए भादरन। यहां हावडा-अहमदाबाद एक्सप्रेस और इसके तुरन्त बाद मुम्बई-अहमदाबाद शताब्दी एक्सप्रेस निकलीं।
कणजरी बोरियावी जंक्शन से एक लाइन वडतल स्वामीनारायण जाती है। इसके बाद आणन्द जंक्शन से एक लाइन खम्भात जाती है तो एक लाइन गोधरा। आणन्द-गोधरा लाइन विद्युतीकृत है। इस लाइन पर दिनभर में चार-पांच पैसेंजर ट्रेनें ही चलती हैं। एक्सप्रेस ट्रेन एक भी नहीं। जबकि आणन्द से गोधरा के लिये कई एक्सप्रेस ट्रेनें हैं, सभी वडोदरा होकर चलती हैं। वडोदरा में इन सभी का इंजन बदला जाता है। इस अति व्यस्त स्टेशन से अगर दो-तीन ट्रेनें हटाकर आणन्द-गोधरा सीधी लाइन पर चलाई जायें तो कुछ लोड कम होगा। खैर, यह बात पश्चिम रेलवे ने अवश्य सोची होगी। लेकिन जरूर कुछ तकनीकी मामला है, तभी तो ऐसा होता है।
वासद भी एक जंक्शन है जहां से एक लाइन कथाना जाती है। इसके बाद वडोदरा जंक्शन पर प्रवेश करने से पहले रतलाम से आने वाली लाइन भी मिल जाती है। रानोली में मुम्बई-अहमदाबाद गुजरात एक्सप्रेस और बाजवा में वलसाड-वीरमगाम पैसेंजर मिली।
वडोदरा में गाडी ज्यादा देर नहीं ठहरी। आधिकारिक रूप से पांच मिनट का ठहराव है, दस मिनट के करीब रुकी रही, फिर चल पडी। ज्यादा भीड भी नहीं थी। लेकिन जैसे जैसे अब दिन ढलता जायेगा, लग रहा है कि भीड भी बढती जायेगी। मुम्बई-अहमदाबाद बेल्ट भारत के उन गिने-चुने इलाकों में से है जहां औद्योगिक उन्नति तो है ही, लोगों में साक्षरता, समृद्धि और जागरुकता भी है। इस तरह लोकल ट्रेनों में यात्रा करने से यह सब साफ दिखता है।
वडोदरा से निकले ही थे कि दूसरी लाइन पर तूतीकोरिन-ओखा विवेक एक्सप्रेस आ गई। तूतीकोरिन तमिलनाडु में है। वडोदरा के बाद विश्वामित्री, वरनामा, इटोला, काशीपुरा सरार, मियागाम करजन जंक्शन, लाकोद्रा देथाण, पालेज, वरेडिया, नबीपुर, चावज, भरुच जंक्शन, अंकलेश्वर जंक्शन, संजाली, पानोली, हथुरण, कोसंबा जंक्शन, कीम, कुडसद, सायण, गोठनगाम, कोसाड, उत्राण और फिर सूरत स्टेशन आते हैं।
विश्वामित्री में पहली बार गन्ने के खेत दिखे। यहां से बडी लाइन को एक नैरो गेज की लाइन पुल के द्वारा काटती है। इस इलाके में पहले नैरो गेज का अच्छा नेटवर्क था, अब ज्यादातर को बदल दिया गया है। फिर भी प्रतापनगर- जम्बुसर नैरो गेज लाइन अभी भी चालू है। प्रतापनगर से उधर दभोई और आगे छोटा उदेपुर तक वडोदरा से बडी लाइन से जुडे हैं। इसी तरह मियागाम करजन में भी नैरो गेज है। यहां से दभोई और मोती कोरल व चोरन्दा के लिये नैरो गेज की लाइन है। मियागाम में मुम्बई-फिरोजपुर जनता एक्सप्रेस निकली। इसके बाद वरेडिया में चेन्नई-अहमदाबाद नवजीवन एक्सप्रेस निकली। चावज में एक ‘दोगली’ ट्रेन दिखी। इसमें कुछ डिब्बे तो राजधानी के लगे थे, कुछ दूरोन्तो के। पता नहीं यह राजधानी थी या दूरोन्तो।
भरुच पहुंचे। ट्रेन कुछ खाली हुई, कुछ और भरी। ज्यादातर भरी ही। यहां अमृतसर जाने वाली पश्चिम एक्सप्रेस जाती मिली। भरुच से चले तो नर्मदा नदी पार करनी होती है। नर्मदा अर्थात मध्य भारत की सबसे पवित्र नदी। कोई नदी पार करनी हो और लोग सिक्के न फेंके? असम्भव। और नर्मदा के सम्मान में तो दोगुने सिक्के फेंके जाते हैं। नर्मदा पार करके अंकलेश्वर जंक्शन स्टेशन है। यहां से एक लाइन राजपीपला जाती है। पहले यह लाइन नैरो गेज थी, अब ब्रॉड गेज में बदली जा चुकी है। अंकलेश्वर में बान्द्रा-सराय गरीब रथ जाती दिखी। भारत परिक्रमा के दौरान मैंने इस ट्रेन से बोरीवली से अहमदाबाद तक की यात्रा की थी। तब इंजन खराब हो जाने के कारण अंकलेश्वर पर ही दो घण्टे खडी रही थी। लेकिन मैं उस समय तेज बुखार में था, पूरे समय बिस्तर पर पडा ही रहा, बाहर जाकर झांका तक नहीं।
पानोली में मुम्बई जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस गुजरी। हमारी ट्रेन को मेन लाइन पर खडा कर दिया था, शताब्दी धीरे धीरे बराबर वाली तीसरी लाइन से पास हुई। यह एक विचित्र घटना थी क्योंकि इस तरह के मामलों में रुकने वाली ट्रेन को बराबर वाली लाइन पर खडा किया जाता है और शताब्दी जैसी गाडियां मेन लाइन से बिना ब्रेक लगाये गुजर जाती हैं। हथुरण में एक लोकल ट्रेन क्रॉस हुई। यह सूरत-वडोदरा मेमू (69109) थी।
कोसम्बा जंक्शन फिर से नैरो गेज वाला है। यहां अभी भी नैरो गेज की ट्रेन चलती है। यह ट्रेन उमरपाडा जाती है। 62 किलोमीटर की दूरी को यह सवा चार घण्टे में तय करती है। इसके बाद कीम स्टेशन पर थे कि बान्द्रा से जोधपुर जाने वाली सूर्यनगरी एक्सप्रेस निकल गई। सायण पर काफी देर तक खडे रहे। पहले तो जम्मू से बान्द्रा जाने वाली विवेक एक्सप्रेस पास हुई, फिर मुम्बई-अहमदाबाद कर्णावती एक्सप्रेस क्रॉस हुई। कर्णावती के जाते ही पीछे पीछे डबल डेकर आ गई। गोठनगाम में सूरत-वडोदरा मेमू (69111) क्रॉस हुई। फिर कोसाड में भिलाड-वडोदरा एक्सप्रेस निकली।
सूरत से पहला स्टेशन उत्राण है। यहां मुज़फ़्फ़रपुर-सूरत एक्सप्रेस पास हुई। आहा! मिली एक ट्रेन... लेट। दो घण्टे लेट थी यह। यह अपनी यात्रा के शुरूआती चरण में ही लेट हो गई होगी। पश्चिम रेलवे इसे पिछले 500 किलोमीटर से संभाल रहा है, उससे पहले 1600 किलोमीटर में ही यह लेट हुई होगी। मेरी श्रद्धा पश्चिम और उत्तर-पश्चिम रेलवे पर बहुत ज्यादा है।
ठीक सात बजे सूरत पहुंच गये। यहां भयंकर भीड इंतजार कर रही थी। इस समय तक अन्धेरा हो गया था, मुझे उतरना था, उतर गया। देखा कि तिरुनेलवेली-हापा एक्सप्रेस खडी है। जब तक स्टेशन छोडा, तब तक बान्द्रा-भुज एक्सप्रेस भी प्लेटफार्म 1 पर आ गई थी।
अब बारी थी कमरा लेने की। स्टेशन पर ही विश्रामालय में गया तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि पांच सौ किलोमीटर से ज्यादा यात्रा करने पर ही यह सुविधा मिलती है। मेरी यात्रा 300 किलोमीटर की भी नहीं थी। इसलिये बाहर जाना पडा। सूरत एक प्रमुख व्यापारिक नगर है। यहां रुकने की कोई समस्या नहीं थी और न ही खाने की।
गिने-चुने अपवादों को छोडकर आज ज्यादातर मित्र यह वृत्तान्त पढकर पक गये होंगे। मैं समझता हूं। अगली कुछ पोस्ट और इसी तरह की मिलेंगी। लेकिन... भारत को नजदीक से देखना है तो उसकी लोकल ट्रेनों में यात्रा कीजिये।
साबरमती नदी |
अहमदाबाद में ब्रॉड गेज और मीटर गेज की डायमण्ड क्रॉसिंग |
मीटर गेज की हिम्मतनगर पैसेंजर अहमदाबाद से रवाना होती हुई |
मियागाम करजन पर नैरो गेज के डिब्बे। |
अगला भाग: सूरत से मुम्बई पैसेंजर ट्रेन यात्रा
गुजरात मुम्बई ट्रेन यात्रा
1. वीरमगाम से सूरत पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. सूरत से मुम्बई पैसेंजर ट्रेन यात्रा
3. वडोदरा से रतलाम पैसेंजर ट्रेन यात्रा
मुझे तो पकाउ नहीं लगा बल्कि काफ़ी उपयोगी जानकारी मिली रेलों के और इन्जन के बारे में।
ReplyDeleteबेहतरीन वृतांत
ReplyDeleteaap jaha yatra per jane wale hai usaki jankari pahle de diya kare jisase ki aap ke chahne wale aap se aa kar mil sake.vimlesh chandra
ReplyDeleteनही नीरज भाई यात्रावृतांत पकाऊ नही ,रोचक और जानकारी भरा था ,अब तो हम भी ट्रेन का इंजन देखकर उसके बारे मे जान सकगे। आपकी लेखन शैली मुझे बहुत अच्छी लगती है।
ReplyDelete"यह रबडी मुझे स्वादिष्ट लगती है लेकिन कमी यह है कि होती बहुत महंगी है। तीस रुपये की जरा सी।"
"सीखो, इलाहाबाद डिवीजन वालों, कुछ सीखो इनसे।"
"आहा! मिली एक ट्रेन... लेट। दो घण्टे लेट थी यह।"
आपका लेखन निरंतर धारदार बनता जा रहा है। सच कहा है आपने यदि भारत को नजदीकी से देखना और जानना है तो पैसेंजर ट्रेन यात्रा एक बेहतर विकल्प है। लेकिन पैसेंजर ट्रेन यात्रा बहुत संयमित वयक्ति ही कर सकता है ,और हम जैसे लोगों मे आप जैसा सयम कहाँ।
थोडा सम्मान पश्चिम-मध्य रेलवे को भी दे दीजिये जो उत्तर रेलवे के द्वारा लेट किये जाने पर भी पश्चिम रेलवे तक ट्रेनों को सही समय पर पहुँचा ही देता है...
ReplyDeleteयह तकनीकी पहलुओं को उजागर करने वाला एक उत्कृष्ट लेख है....
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