इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
13 फरवरी 2013
13 फरवरी 2013
सुबह आठ बजे सोकर उठे। कमरे में गीजर लगा था, दो तो नहा लिये, तीसरे का नहाना जरूरी नहीं था। आज हमें गोवर्धन जाना था, ट्रेन थी दस बजे यानी दो घण्टे बाद। धीरज का पाला अभी तक मेरठ छावनी जैसे छोटे स्टेशनों से ही पडा था, इसलिये अनुभव बढोत्तरी के लिये उसे गोवर्धन के टिकट लेने भेज दिया। पहले तो उसने आनाकानी की, बाद में चला गया।
आधे घण्टे बाद खाली हाथ वापस आया, बोला कि दस बजे कोई ट्रेन ही नहीं है। क्यों? पता नहीं।
पूछताछ पर गये तो पता चला कि यह ट्रेन कुछ दिनों के लिये रद्द है। जरूर इस गाडी को यहां से हटाकर किसी दूसरे रूट पर स्पेशल के तौर पर चला रखा होगा।
अब ट्रेन की प्रतीक्षा करने का कोई अर्थ नहीं बनता था, इसलिये रिक्शा करके बस अड्डे पहुंचे और घण्टे भर बाद ही गोवर्धन।
खाना खाकर परिक्रमा पर चल पडे। गोवर्धन पर्वत यहां की मुख्य सडक के दोनों तरफ एक रीढ की शक्ल में फैला हुआ है। सडक यहां पर्वत को पार भी करती है। इसी ‘दर्रे’ के ऊपर एक मन्दिर बना है। मन्दिर के पास पिताजी और भाई ने जूते उतार दिये, मैं चप्पल पहने था, चप्पलों में ही परिक्रमा करनी थी।
यह परिक्रमा बीस किलोमीटर की है। इसमें पहले गोवर्धन पहाडी के इस तरफ यानी दक्षिण-पश्चिम की तरफ छह किलोमीटर चलकर मोड लेकर उत्तर-पूर्व में छह किलोमीटर चलकर पुनः गोवर्धन कस्बे में पहुंच जाते हैं। मुख्य सडक पार करके यात्रा जारी रहती है और चार किलोमीटर चलकर राधा कुण्ड से फिर मुडकर वापस गोवर्धन पहुंचते हैं। पूरे रास्ते भर पक्की सडक बनी है और सडक के किनारे कच्चा फुटपाथ भी है।
गोवर्धन पर्वत कोई लम्बा-चौडा पहाड नहीं है, यह अरावली श्रंखला के बाहरी छोर पर एक छोटा सा पत्थरों का ढेर मात्र है। पत्थरों का यह ढेर दस किलोमीटर लम्बाई में फैला है, इसी के बीचोंबीच गोवर्धन कस्बा है।
परिक्रमा पथ में लगभग एक किलोमीटर यात्रा राजस्थान के भरतपुर जिले में भी करनी होती है। राजस्थान का स्वागत द्वार मौजूद है, विदा द्वार नहीं।
बन्दरों और गायों की इफरात है यहां। गायों के लिये ठेलियों पर हरी घास भी बिकती है। घासवाले परिक्रमा वालों के गले पडते रहते हैं कि गऊ सेवा कर लो। अगर गऊ सेवा से पुण्य मिलता है, तो ये घासवाले ही क्यों ना इस पुण्य के खुद भागीदार बनें। इन्हें जिन्दगी बीत गई घास बेचते हुए, इनके बच्चे भी इसी पुण्य-क्षेत्र में लग जायेंगे। क्या ऐसा ही होता है पुण्य? अगर हां, तो नहीं चाहिये मुझे ऐसा पुण्य।
भैंस पर तरस आता है। कृष्ण ने गायें चराई हैं, उनकी सेना में भैंसें भी रही होंगी। बिना भैंस के वे यमुना में कूदने का साहस नहीं कर सकते थे। आज भी बहुत से कृष्ण भैंस की पीठ पर पडे रहते हैं और जलयान का आनन्द लेते रहते हैं। गाय यह आनन्द नहीं दिला सकती।
हर मामले में भैंस गाय से आगे है। सर्वविदित है कि भैंस का दूध गाय के मुकाबले ज्यादा पुष्टिदायक होता है। भैंस सीधी भी होती है। आप किसी कटडे को चार डण्डे मारो और एक बैल को चार डण्डे मारो। बैल बदला ले लेगा, कटडा नहीं लेगा। भैंस के साथ यह अन्याय रंगभेद को बढावा देता है।
एक घटना याद आती है। हमारे घर में पहली रोटी गाय के लिये होती है और दूसरी रोटी कुत्ते के लिये। मैं अक्सर गाय की रोटी भैंस को दे देता था। रोज-रोज रोटी देने से गाय की आदत खराब हो गई थी, वह रोटी लेते समय झपट पडती थी, उंगली जख्मी होने का डर रहता था। भैंस नहीं झपटती थी, लेकिन बडी मासूम और हसरत भरी निगाहों से देखती जरूर थी। मैं चुपचाप भैंस सेवा कर देता था। और अगर कभी घर में उत्सव होता, सात गायों को जिमाने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आती तो पडोस की भैंसों का आशीर्वाद भी मुझे मिलता।
वापस परिक्रमा पर आते हैं। कुछ लोग खूब हाथ-पैर चलाकर निराश होकर मन्नत मांग लेते हैं कि भगवान, मेरा यह काम हो जाये तो लोट-लोट कर परिक्रमा करूंगा। काम हो जाता है लेकिन मन्नत की वजह से नहीं बल्कि हाथ-पैर चलाने की वजह से, तो उन्हें लोट-लोट कर परिक्रमा करनी पडती है। इस श्रेणी में पढे-लिखों की संख्या भी काफी रहती है।
माताजी ने भी मेरी नौकरी लगने की मन्नत मांगी थी, लेकिन अच्छा हुआ कि उन्होंने इस काम में मुझे नहीं घसीटा। हालांकि वह मन्नत ज्यादा बडी न होकर किसी मन्दिर में दूध चढाने तक ही सीमित थी।
आगे चलते हैं। राजस्थान से चलकर जब पुनः यूपी में आये यानी सात आठ किलोमीटर की परिक्रमा पूरी हो गई, तो धीरज के पैरों में छाले पडने लगे। जब मैंने उन्हें बताया कि दो चार किलोमीटर आगे हम वहीं पहुंच जायेंगे, जहां से परिक्रमा शुरू की थी, तो बडा खुश हुआ। कहने लगा कि जूते ले लूंगा, बाकी परिक्रमा जूते पहनकर करूंगा।
जब हम पुनः गोवर्धन पहुंचे, तो उसने जूते पहनने का आग्रह किया। भला मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी? पिताजी ने विरोध किया। बेचारे को जूतों की सख्त जरुरत थी, जूते सामने रखे थे लेकिन शेष आठ किलोमीटर उसे बिना जूतों के करने पडे।
एक गांव मिला- चूतड-टेका।
कोल्ड ड्रिंक पीने की इच्छा थी। एक दुकान में घुसे। कांच की तीन बोतलें ले ली। जब पीने को हुआ तो देखा कि उसके मुंह पर जंग लगा हुआ है। और गौर से देखा तो यह बोतल पन्द्रह दिन पहले एक्सपायर हो चुकी थी। दुकान वाले से शिकायत की तो उसने कहा कि पूरे गोवर्धन में ऐसा ही माल आता है। उसके पास सभी बोतलें बीते जमाने की हैं। हमने मिरिंडा की बोतल ली थी, इसके एक्सपायर होने का मतलब है कि इसमें सोडा खत्म हो गया। मीठा पानी ही बचा है। हमने गटक लिया।
मैंने गिनकर उसे छत्तीस रुपये दिये। बोला कि पन्द्रह रुपये की एक बोतल है, पैंतालिस रुपये दो। मैंने मना कर दिया- एक तो तेरे पास मरी हुई बोतल है, बोतल पर प्रिंट बारह रुपये का है, फिर पन्द्रह क्यूं दूं। बोला कि पूरे गोवर्धन में यही रेट है। मैंने कहा कि रेट लिस्ट दिखा। अच्छी खासी बहस हुई। दूसरे दुकानदारों को इस मामले में उदासीन देखकर भी मेरा हौंसला बढा। और पैसे नहीं दूंगा- यह कहकर हम उठकर चलने लगे तो उसने कहा- जाओ भिखमंगों, कोल्ड ड्रिंक पीने की औकात नहीं, चले आते हैं मुंह उठाकर। ऐसी बातों से मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पडता लेकिन पिताजी सुनते ही उबल पडे। उसकी तरफ उंगली करके आंख लाल करके बोले- ओये, जुबान संभाल कर बात कर। मैंने तुरन्त पिताजी की उंगली पकडकर नीचे की और धीरे से कहा- क्यों मारपीट का शंखनाद कर रहे हो? चुपचाप यहां से खिसक लो।
राधा कुण्ड में कुण्ड के किनारे बैठकर मन लग गया। पानी के किनारे मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है। आधे घण्टे तक बैठे रहे।
शाम साढे पांच बजे तक परिक्रमा समाप्त कर ली।
इस परिक्रमा में शुरू से आखिर तक बहुत से मन्दिर, गांव, ताल आदि पडते हैं। सभी का पौराणिक महत्व है। मुझे कोई लगाव नहीं इन पौराणिक बातों से। इसीलिये यहां किसी का भी उल्लेख नहीं किया।
मथुरा स्टेशन पर गये, टिकट लिया तो झेलम एक्सप्रेस खडी थी लेकिन जनरल डिब्बे में खडे होने की भी जगह नहीं मिली। मेरा इरादा शुरू से ही ताज एक्सप्रेस से जाने का था। बाद में जब ताज आई तो इसमें चढ लिये। इसमें सभी डिब्बे सीटिंग के हैं लेकिन आरक्षण होता है। टीटी आता तो पन्द्रह-पन्द्रह रुपये देकर हम भी आरक्षण करा लेते, लेकिन तीनों के पैंतालिस रुपये देने हमारे भाग्य में नहीं लिखे थे।
गोवर्धन शहर में सबसे ऊंची जगह पर बना मन्दिर। यहीं से परिक्रमा शुरू होती है। |
परिक्रमा आरम्भ। |
धीरज और पिताजी |
सामने है राजस्थान का स्वागत द्वार |
राजस्थान में अधिकतम एक किलोमीटर ही चलना होता है। |
यह बन्दर परिक्रमा के राजस्थान वाले हिस्से में मिला। इसका पिछला भाग निष्क्रिय है। इसने स्वयं को अगले पैरों यानी हाथों से इसी तरह चलने के लिये ढाल लिया है। |
गौ सेवा के लिये ठेले पर रखी घास व इर्द गिर्द खडी गायें। |
गोवर्धन पर्वत |
राधा कुण्ड |
परिक्रमा समाप्त। |
मथुरा गोवर्धन यात्रा
1. वृन्दावन यात्रा
2. वृन्दावन से मथुरा मीटर गेज रेल बस यात्रा
3. गोवर्धन परिक्रमा
नीरजभाइ फोटो देखकर बडा मजा आया ।क्योकी नीरज बंदर ,बावा और चकली हे ।
ReplyDeleteराधाकुंड के कछुये को देखा कि नहीं..
ReplyDeleteचलो एक बार फिर से गोवर्धन की यात्रा कर ली.....
ReplyDeleteगोवर्धन यात्रा के बारे में मैंने भी एक लिखा था ....अपने ब्लॉग...पर...
चूतड-टेका पर एक बार चूतड टेकने होते हैं, आपने टेके या नहीं :)
ReplyDeleteप्रणाम
अमित बाबू यहाँ पर घुमक्कड़ अपना पिछवाड़ा नहीं टेका करते। ये चोचले जानबूझ कर बनाये गये है।
Deleteक्या बात... हास्य शैली का भरपूर प्रयोग... मजेदार...
ReplyDeleteगोवेर्धन आज भले ही पत्थरों का एक ढेर होगा आपके लिए लेकिन इसे आज भी पर्वतराज कहते हैं.... एक समय था जब इस पर्वत की छाया वृन्दाबन तक आती थी आदि-काल में... अब ये घाट रहा है रोज एक तिल क बराबर होकर.. और ऐसी मान्यता है जिस दिन ये पूरी तरह से समाप्त हो गया, दुनिया का विनाश हो जाएगा...
मैंने गोवेर्धन पर्वतराज की ९-१० परिक्रमा की हैं.. और हर बार बाबा का अद्भुत प्यार मिला है :)
रेल-गाड़ी सुबह 7 बजे है गोवेर्धन की.. आपकी छूट गयी होगी...वो अलवर जाती है आगे... आपसे मैं कबसे कह रहा हु की गोवेर्धन के 27 किमी आगे लगभग एक रंग महल है डीग नाम के कसबे में राजस्थान में.. हो आइये वहां भी... बहुत शांत जगह और फेमस है...
और जो सबसे पहला चित्र है आपके ब्लॉग पर, इस मंदिर को दानघाटी मंदिर कहते हैं..कृपया एडिट करके इसका नाम दाल दीजिये...
बीच में मुख्य मंदिर का चित्र नहीं मिला मुझे.. वो ही प्रमुख मंदिर है...
ये राजस्थान वाला गेट अभी बना होगा जल्दी ही २०११ तक नहीं था...
कुसुम सरोवर में मछलिया देखि ही होगी आपने बड़ी बड़ी :)
ये एक राजा का महल था... आज भी इसका भवन निर्माण अद्भुत है..
मजा आ गया.. पुराणी यादें तजा हो गयी... आगे भी बहुत परिक्रमा करनी है मुझे बाबा की हमेशा.. :)
धन्यवाद इसे शेयर करने क लिए... :) :)
raadha kund mein ek baar doobte doobte bache hai ham... sundar tasveerein
ReplyDeleteश्रीराम.............
ReplyDeleteनीरज भाई आपने तो हमे घर बैठे श्री-गोवर्धन कि परिक्रमा कारवाई ,धन्यवाद .
शुभ -यात्रा ...........मुकुल -धुळे-MH -18
thanks neeraj
ReplyDelete