आगरा यात्रा शुरू होती है दिल्ली से, हमेशा की तरह। सुबह सात बजे के करीब निजामुद्दीन से ताज एक्सप्रेस चलती है। आगरा जाना था, बीस मार्च को नाइट ड्यूटी से सुलटकर आया था। सभी को लगता होगा कि बन्दा हमेशा नाइट ड्यूटी करके ही घूमने निकलता है तो रात को खूब सोना मिल जाता होगा। हकीकत में ऐसा नहीं है। हालत ये हो जाती है कि जब सुबह छह बजे ड्यूटी छोडकर घर जाता हूं तो खाने पीने की भी सुध नहीं रहती, तुरन्त सो जाता हूं। बात चल रही थी निजामुद्दीन पर ताज एक्सप्रेस की। अगर मैं ताज ना पकडता तो इस समय गहरी नींद में सो रहा होता। रिजर्वेशन नहीं था। तीन घण्टे का ही तो सफर होता है इस ट्रेन से आगरा तक का। सारी गाडी जनरल डिब्बों के साथ आरक्षित सीटिंग वाली होती है जिसमें अनारक्षित लोग पन्द्रह रुपये अतिरिक्त देकर अपना आरक्षण ट्रेन के अन्दर भी करा सकते हैं। मैं इसी चक्कर में था कि पन्द्रह रुपये दे दूंगा। स्टेशन पर जाते ही सबसे पहले तो खुद ही देखा कि कौन सी सीटें खाली हैं। बारह के बारह डिब्बे छान मारे, किसी में एक भी सीट खाली नहीं थी। हर डिब्बे के सामने चार्ट चिपका होता है। अब किस माई के लाल में हिम्मत है कि मु
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग