Skip to main content

हावडा- खडगपुर रेल यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
22 अगस्त 2011, दिन था सोमवार। हावडा से दोपहर बाद दो बजकर आठ मिनट पर खडगपुर लोकल रवाना होती है। मैं हावडा आया था तो बस अपने दिल्ली के कुछ दोस्तों को आश्चर्यचकित करने, अब वे चले गये तो अपना भी चलना हो गया। कोलकाता में जो देखना था, जहां घूमना था, देख लिया। बाकी बचा खुचा फिर कभी देखा जायेगा। अब शुरू होता है अपना वही शौक रेल एडवेंचर।
दोपहर का टाइम था, इसलिये लोकल में इतनी भीड नहीं थी, लेकिन फिर भी मेरी उम्मीद के मुताबिक ही थी। बैठना तो था नहीं, खिडकी पर खडे होना था, खडे हो गये। मुझे फोटू खींचते देख बंगाली समझ भी जाते थे कि महाराज घूमने आया है। मैं बंगालियों को भारत की सबसे बडी घुमक्कड जाति मानता हूं। यही कारण था कि उन्होंने भी अपने घुमक्कड भाई को ज्यादा कुछ नहीं कहा। हां, एक ने हिन्दी में पूछा था कि कैमरा कितने का लिया था। पांच चार स्टेशन निकलने के बाद तो खुद ही जगह मिल जाती थी कि ले, खींच ले फोटू।
फिर भी इस रूट पर फोटू खींचने में मजा नहीं आया। कारण था स्टेशनों की ‘नाम प्लेट’ का गलत दिशा में होना। नाम प्लेट का मुंह रेलवे लाइन की तरफ है और बडी जल्दी स्पीड पकडती लोकल में चढे हुए मुझ जैसे के लिये अचानक पलभर में उसका फोटू खींचना बेहद मुश्किल था। लेकिन फिर भी फोटू खींचे।
खडगपुर पहुंचे। प्लेटफार्म से बाहर निकला तो एक अण्डरपास जाता दिखा जिसके ऊपर एक बोर्ड लगा था- विश्व का सबसे लम्बा प्लेटफार्म (1072.5 मीटर)। यह अण्डरपास इसी सबसे लम्बे प्लेटफार्म पर ले जाकर छोडता है। यह है प्लेटफार्म नम्बर चार जहां एक समय में दो ट्रेनें रुक सकती हैं। मुझे यहां अब पांच घण्टे बिताने थे। रात साढे दस बजे अपनी पुरी वाली गाडी आने वाली थी। हालांकि यह ट्रेन हावडा से ही आती है लेकिन मैंने रेल आवारागर्दी की वजह से खडगपुर तक का रिजर्वेशन कराया था। खडगपुर से खोर्धा रोड तक। खोर्धा रोड तक इसलिये कि वहां से पुरी तक फिर से आवारागर्दी करूंगा।
दस बजे खडगपुर स्टेशन पर पूछताछ काउण्टर पर गया। पूछा कि 12887 कितने बजे आयेगी? उसने बताया तो अपने होश उड गये। उसने कहा कि वो सुबह चार बजे आयेगी। कुछ देर तक तो होश खराब हुए लेकिन जल्द ही संभल गया। असल में खडगपुर- टाटानगर रूट पर रात में ट्रेनें नहीं चला करती नक्सलियों की वजह से। पूछताछ वाले ने यही सोचा कि 12887 टाटा रूट की गाडी है। खैर, थोडी देर बाद घोषणा हुई कि 12887 आ रही है।
खोर्धा रोड जंक्शन पहुंचा। अब मैं उडीसा में था। उडीसा 15वां राज्य बन गया जहां जाट महाराज के कदम पडे। यहां से सुबह सात बजे एक पुरी पैसेंजर (58407) चलती है। नौ बजे तक पुरी जा पहुंचे। अब इच्छा थी जल्दी से जल्दी समुद्र देखने की।



यहां से एक लाइन शालीमार के लिये जाती है।



पांशकुडा से एक लाइन दीघा के लिये जाती है। दीघा के बीच काफी प्रसिद्ध हैं।













अगला भाग: कोणार्क का सूर्य मन्दिर


हावडा पुरी यात्रा
1. कलकत्ता यात्रा- दिल्ली से हावडा
2. कोलकाता यात्रा- कालीघाट मन्दिर, मेट्रो और ट्राम
3. हावडा-खडगपुर रेल यात्रा
4. कोणार्क का सूर्य मन्दिर
5. पुरी यात्रा- जगन्नाथ मन्दिर और समुद्र तट
6. पुरी से बिलासपुर पैसेंजर ट्रेन यात्रा

Comments

  1. चलती का नाम गाड़ी, रुक गया वो पिछाड़ी।

    बोल बाबा मोळड़नाथ की---------जय :)

    ReplyDelete
  2. इस रूट में बहुत बार आना जाना हुआ है ... पुरानी यादें ताज़ा हो गई ... धन्यवाद !

    ReplyDelete
  3. शानदार प्रस्तुति |
    बहुत-बहुत आभार ||

    ReplyDelete
  4. खोरदा रोड में हम कार्य कर चुके हैं।

    ReplyDelete
  5. वाकई घुमक्कड़ी में बंगाली बिरादरी भी काफी आगे है. आपका रेल एडवेंचर आपको एक विशिष्ट पहचान दिलवाएगा. कैमरों में बंगाल की खूबसूरती को भी बखूबी कैद किया है.

    ReplyDelete
  6. "कलकत्ता " ( जब गये थे तो यही नाम था ) कोई खास नहीं लगा राष्ट्रिय संग्रहालय अच्छा लगा पर पूरी बहुत ही अच्छी जगह है |

    ReplyDelete
  7. नीरज बाबू glacier देखने नहीं गए क्या ?

    ReplyDelete
  8. भागम भाग दे दना-दन।

    ReplyDelete
  9. वैसे सही है बंगाली घुमक्कड़ होते है।

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर विवरण ज़नाब। कृपया हमारे मेल पर अपनी जन्मतिथि बताने की कृपा करेंगे तो हम आभारी होंगे और आपका पूरा परिचय सहित आपके यात्रा-वृत्तान्तों का सन्दर्भ शोध-प्रबन्ध में दे सकेंगे।-सादर

    ReplyDelete
  11. भाई इस ब्लॉग का नाम हावडा से पूरी होना चइहिये था......
    बाकी जाट की मर्जी.....

    ReplyDelete
  12. अरे ताऊ ग्लेशियर दिखा दे, नहीं तो मैं स्वर्गरोहिणी दिखा दूंगा

    ReplyDelete
  13. खड़गपुर सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन हैं --यह कभी करोडपति वाले सीरयल से पता चला था आज तुमने दिखा भी दिया --जय हो बंगाली बाबुओ की ....

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

घुमक्कड पत्रिका- 1

1. सम्पादकीय 2. लेख A. घुमक्कडी क्या है और कैसे घुमक्कडी करें? B. असली जीटी रोड 3. यात्रा-वृत्तान्त A. रानीखेत-बिनसर यात्रा B. सावन में ज्योतिर्लिंग ओमकारेश्वर की परिक्रमा व दर्शन 4. ब्लॉग अपडेट

ओशो चर्चा

हमारे यहां एक त्यागी जी हैं। वैसे तो बडे बुद्धिमान, ज्ञानी हैं; उम्र भी काफी है लेकिन सब दिखावटी। एक दिन ओशो की चर्चा चल पडी। बाकी कोई बोले इससे पहले ही त्यागी जी बोल पडे- ओशो जैसा मादर... आदमी नहीं हुआ कभी। एक नम्बर का अय्याश आदमी। उसके लिये रोज दुनियाभर से कुंवाई लडकियां मंगाई जाती थीं। मैंने पूछा- त्यागी जी, आपने कहां पढा ये सब? कभी पढा है ओशो साहित्य या सुने हैं कभी उसके प्रवचन? तुरन्त एक गाली निकली मुंह से- मैं क्यों पढूंगा ऐसे आदमी को? तो फिर आपको कैसे पता कि वो अय्याश था? या बस अपने जैसों से ही सुनी-सुनाई बातें नमक-मिर्च लगाकर बता रहे हो? चर्चा आगे बढे, इससे पहले बता दूं कि मैं ओशो का अनुयायी नहीं हूं। न मैं उसकी पूजा करता हूं और न ही किसी ओशो आश्रम में जाता हूं। जाने की इच्छा भी नहीं है। लेकिन जब उसे पढता हूं तो लगता है कि उसने जो भी प्रवचन दिये, सब खास मेरे ही लिये दिये हैं।

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...