Skip to main content

पटनीटॉप में एक घण्टा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
अमरनाथ से लौटते हुए एक रात तो हमने गुजारी सोनमर्ग में, दूसरी रात गुजारी श्रीनगर में। सुबह उठकर श्रीनगर से चल पडे। नाश्ता भी नहीं किया था। नाश्ता व खाना एक साथ किया अनन्तनाग के पास आकर। फिर जवाहर सुरंग भी पार कर ली और कुछ देर में पहुंच गये पटनीटॉप।
पटनीटॉप जम्मू कश्मीर राज्य में जम्मू इलाके का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। यहां हमेशा पर्यटकों की भीड रहती है। ज्यादातर पर्यटक वैष्णों देवी के दर्शन करके यहां आते हैं। जब हम पटनीटॉप पहुंचे, मेरी आंख लगी हुई थी। यहां पहुंचकर सबने मुझे जगाया। बोले कि पटनीटॉप पहुंच गये।
हम पिछले लगभग दस दिनों से उच्च पहाडों में घूम रहे थे। पटनीटॉप पहुंचकर कुछ नया-सा नहीं लगा। हां, अगर मैं सीधा दिल्ली से ही पटनीटॉप जा पहुंचता तो बहुत सुकून मिलता। अच्छा लगता। लेकिन अब वो बात नहीं रह गयी थी। यहां जाडों में बरफ भी पडती है। स्कीइंग भी होती है। गर्मियों में भी मौसम सुहावना बना रहता है। श्रीनगर से भी सुहावना।

SAM_1441
SAM_1442
SAM_1443
SAM_1445
SAM_1446
अमरनाथ यात्रा के मौसम में यहां अत्यधिक भीड हो जाती है। इसलिये गंदगी और प्लास्टिक भी बहुत बढ जाता है।

SAM_1447
SAM_1448
SAM_1454
SAM_1433
यह है पटनीटॉप से कुछ ही दूर बगलिहार बांध। यह चेनाब नदी पर बना है।

पटनीटॉप वैसे बुरी जगह नहीं है। किसी दिन फुर्सत से घूमकर आऊंगा। इस बार तो हबड-धबड में गये थे और चाय-पकौडी खाकर वापस चले आये। गये क्या, रास्ते में पडी, कुछ देर रुक गये।

अमरनाथ यात्रा समाप्त।


अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा

Comments

  1. Lage raho Neeraj Bhai,

    Aur Jai Badri Nath ki

    ReplyDelete
  2. वाह, पिछली बार जम्मू ये थे तो योजना बनी थी। इस बार क्रियान्वयन भी होगा।

    ReplyDelete
  3. किसी जगह को आपके कैमरे की आँख से देखना अलग ही मजा देता है।
    हमें तो पत्नीटॉप बढिया जगह लगी थी, कश्मीर नहीं देखा है ना इसलिये

    प्रणाम

    ReplyDelete
  4. पटनीटॉप, वह भी बिना पटनी आई मीन पत्‍नी के। ऐसा कब चलेगा? :)

    ReplyDelete
  5. पटनीटॉप, वह भी बिना पटनी आई मीन पत्‍नी के। ऐसा कब चलेगा? :)
    ---------
    ब्‍लॉगर पंच बताएं, विजेता किसे बनाएं।

    ReplyDelete
  6. बहुत ख़ूबसूरत जगह है |

    ReplyDelete
  7. अति सुन्दर चित्र ...चित्र वो कह देते हैं जो शब्द नहीं कह पाते ...

    ReplyDelete
  8. नीरज जी नमस्कार, पटनीटॉप वाकई मैं बहुत सुन्दर जगह हैं. मैं खुद यहाँ पांच बार हो कर आया हूँ. चित्र बहुत सुन्दर हैं . धन्यवाद ! घुम्मकरी जिंदाबाद !!!!!!!!!!

    ReplyDelete
  9. घुम्मकरी जिंदाबाद
    घुम्मकरी जिंदाबाद
    घुम्मकरी जिंदाबाद
    घुम्मकरी जिंदाबाद
    घुम्मकरी जिंदाबाद

    ReplyDelete
  10. अभी तक गए नहीं पतनी टाप, भीड़ कि वजह से अच्छी खासी जगह भी बेकार सी लगने लगती है...गन्दगी इतनी बढ़ जाती है के प्राकर्तिक सौंदर्य गौण हो जाता है...
    आपके चित्र बहुत मनभावन हैं...

    नीरज

    ReplyDelete
  11. स्वर्ग से भी ज्यादा खूबसुरत ये तस्वीर है ये कश्मीर है ये कश्मीर है।

    ReplyDelete
  12. bahut maza aaya aap ki yatara amaranathji ki padh ke or photo dekh ke bhi bahut maza aaya... aap ko bahut bahut dhayanawad.. ese sa-vistar yatara ka varanan dene ke liye... bahut maza aaya... aap ka aabhar...

    ReplyDelete
  13. आज ही अमरनाथ यात्रा का पूरा विवरण पढ़ा. बहुत ही शानदार नीरज भाई!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब