आज मैं सुबह सवेरे ही उठ गया था। इसका कारण था कि आज नाश्ते में पकौड़ियाँ बनवानी थीं, क्योंकि होटल के मालिक रोहन राणा को आलू के पराँठे बनाने नहीं आते। लेकिन सुबह सवेरे आठ बजे जब तक मैं उठा, तब तक पता नहीं किसने गोभी के पराँठे बनाने को कह दिया था। आज एहसास हुआ कि मुझसे पहले उठने वाले लोग भी इस दुनिया में होते हैं। और जब गोभी के पराँठे सामने आए, तो उनमें न गोभी थी और न ही पराँठा था। कतई पापड़ थे, जिनका नाम गोभी-पराँठा पापड़ रख देना चाहिए।
यहाँ से चले तो सीधे पहुँचे चकराता बाजार में। असल में परसों झा साहब ने बताया था कि चकराता बाजार में फलां दुकान पर सबसे अच्छा पहाड़ी राजमा मिलता है, तो ग्रुप की महिलाओं ने खत्म हो जाने तक राजमा खरीद लिया। मुझे एक कोने में बिस्कुट का खुला पैकेट रखा मिल गया, सबको एक-एक बिस्कुट बाँटकर पुण्य कमा लिया।
लेकिन सबसे अच्छा लगा गोल्डन एप्पल। सुनहरा सेब। वाह! एकदम नरम और मीठा।
टाइगर फाल के पास टाइगर लॉज। इसके कमरे अत्यधिक साधारण हैं, लेकिन यहाँ की लोकेशन बिंदास है। हालाँकि ज्यादातर सदस्यों को कमरों के अत्यधिक साधारण होने की शिकायत भी थी, लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं। हाँ, आज इसके मालिक का व्यवहार बहुत खराब रहा। सुबह की करेले की सब्जी रखी थी, उसने ड्राइवरों को जबरदस्ती करके वही सब्जी खिला दी। फिर शाम को हम सबकी इच्छा होने लगी आलू की पकौड़ियाँ खाने की, उसने बेसन न होने का बहाना बना दिया क्योंकि तब हम कम मटर पनीर खाते... और अगले दिन सुबह-सुबह हमारे सामने आलू की पकौड़ियाँ तैयार थीं।
“अंकल जी, बेसन कहाँ से आया?”
“वो जी... मिल गया था थोड़ा-सा।”
और कमरों का किराया जून के पीक सीजन से भी ज्यादा लगाया। तो हमने कान पकड़ लिए कि भविष्य में कभी भी इनके यहाँ नहीं रुकेंगे।
खैर, टाइगर फाल में भयंकर पानी था। भयंकर मतलब वाकई भयंकर। पचास मीटर दूर से ही हम सब भीग गए। और इसके सामने तो खड़ा होना मुश्किल था।
यहीं पुल के बगल वाली दुकान के सामने चार आठ-फुटे मुश्टंडे बैठकर दारू पी रहे थे। सब बाहर के थे। मैं अंदर गया - “भाई जी, यहाँ पर दारू पीना एलाऊ है?”
“अजी क्या करें... ऑफ सीजन है। हमारी भी थोड़ी कमाई हो जाती है।”
“तुम लोग तो पीक सीजन में भी सामने खुले में बैठाकर दारू पिलाते हो।”
“अजी क्या करें... कमाई तो करनी ही है।”
“तो खुले में?... अबे अंदर ही बैठा लो। बाहर मेन रास्ते में बैठाकर तुम ये काम करा रहे हो।”
“अजी क्या करें?”
“अच्छा, नाम बताओ अपना।”
“अजी यह मेरी दुकान नहीं है। किसी और की है।”
“अबे अपना नाम बता। ... पाठक साहब, कैमरा लेकर आना जरा।”
“हाँ जी, कितने पैसे हुए?” दारू पी रहे चार आठ-फुटे मुश्टंडों में एक अंदर आया। अब मेरे खिसकने में ही भलाई थी। हिसाब-किताब करके जब वे आठ-फुटे चले गए, तो मैं फिर से अंदर घुसा।
अंदर कोई भी नहीं। अरे कहाँ गया?
बाहर निकला तो वो पगडंडी पर तेजी से दूर जाता दिखाई पड़ा।
...
2 अक्टूबर 2018
तय था कि सुबह ठीक सात बजे यहाँ से चल देंगे, क्योंकि रात तक दिल्ली भी पहुँचना था। लेकिन 06:53 बजे जब सब नहाना-धोना कर रहे थे, मैं बिना नहाए ही नाश्ता कर रहा था और 07:00 बजे जब सब नहाना-धोना ही कर रहे थे, मैं बचा-कुचा नाश्ता लेकर बस में बैठा था और बस स्टार्ट थी और चल भी पड़ी थी। फिर 07:30 बजे जब सब नाश्ता कर रहे थे, मैं नहा रहा था।
टाइगर फाल से लाखामंडल का रास्ता बेहद खूबसूरत है। हम इस रास्ते की तारीफ पहले भी कर चुके हैं, आज फिर कर रहे हैं। सभी को बता दिया कि आप अब लाखामंडल जाने के लिए नहीं बैठे हैं, बल्कि इस खूबसूरत रास्ते को एंजोय करने भी बैठे हैं। कहीं फूल खिले थे, कहीं छोटे-छोटे गाँव थे, मोड थे, चढ़ाई थी, ढलान था और हरियाली थी...
“ये हरियाली और ये रास्ते...”
अचानक हिमालय दिखा। बस रुक गई और सबने दौड़ लगा दी... हिमालय को अपनी पसंद की जगह से देखने के लिए। ये यमुनोत्री की तरफ की चोटियाँ थीं। नाम पता नहीं। लेकिन चार दिनों की यात्रा का सबसे खूबसूरत हिस्सा हम अब जी रहे थे।
तो लाखामंडल पहुँचे। सड़क से थोड़ा ऊपर कुछ गुफाएँ हैं। हमने पहले कभी ये गुफाएँ नहीं देखी थीं, लेकिन आज देखने चल दिए। एक गुफा में तबेला बना हुआ था और गाएँ-भैंसे बंधी थीं। कुछ दूर दूसरी गुफा काफी बड़ी थी और एक साधु महाराज का डेरा भी था। बाबा ने अच्छी सफाई कर रखी थी।
दोपहर हो चुकी थी। लाखामंडल मंदिर में ज्यादा समय नहीं लगाया। यहीं हल्का-फुल्का कुछ खाया। हल्का-फुल्का इसलिए क्योंकि अभी भी तीन घंटे का पहाड़ी रास्ता बाकी था और सब के सब उल्टी करने के मूड में थे। लेकिन मुझे मुजफ्फरनगर गणपति ढाबे पर आलू के पराँठे खाने थे, इसलिए भी पेट खाली रखना था।
रात आठ बजे जिस समय नोनी घी में डुबोकर पराँठे का पहला कौर मुँह में डाला, तो सुबह से भूखा रहना वसूल हो गया।
यात्रा समाप्त...
टाइगर लॉज से सामने का नजारा |
डॉ. स्वप्निल गर्ग जी... |
और सबसे एक्टिव सदस्य श्री श्री राज कुमार सुनेजा जी... |
ये हरियाली और ये रास्ते... |
टाइगर फाल के पास हमारी मंडली... |
टाइगर फाल की ओर बढ़ते कदम |
टाइगर फाल के आसपास धान के खेत... |
और भयंकर गर्जना करता हुआ टाइगर फाल... स्क्रीन पर कान लगाइए... गर्जना सुनाई देगी... |
लॉज की छत में एक चिड़िया का बसेरा... |
हम अपने साथ टैंट भी ले गए थे... निशांत ने टैंट में सोने की इच्छा जताई... छत पर टैंट लगा दिया... और तमाम हिदायतें भी दीं... क्या पता अगले को नींद में चलने की आदत हो?... |
टाइगर फाल से लाखामंडल की सड़क |
जब हिमालय दिखा तो गर्ग साब और सुनेजा साब नाचने लगे... |
निशांत खुराना विद... |
लाखामंडल गुफा में तबेला... |
लाखामंडल की मुख्य गुफा... |
गुफा से दिखता लाखामंडल |
यमुना पुल के पास एक विशाल जलप्रपात के नीचे आराम फरमा रही गुज्जरों की भैंसें... |
भैंसें और इंद्रधनुष... |
1. एक यात्रा लोखंडी और मोइला बुग्याल की
2. टाइगर फाल और लाखामंडल की यात्रा
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजबरदस्त
ReplyDeleteजबरदस्त ����
ReplyDeleteढेर सारे फ़ोटो देख मज़ा आ गया..
ReplyDeleteपरांठे के अलावा भी आप कुछ खाते हो क्या ������
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