13 जुलाई 2017
रुद्रप्रयाग में दही समोसे खा रहे थे तो प्लान बदल गया। अब हम पोखरी वाले रास्ते से जाएंगे। उधर दो स्थान दर्शनीय हैं। और दोनों के ही नाम मैं भूल गया था। बाइक उधर ही मोड़ दी। अलकनन्दा पार करके दाहिने मुड़ गए। चढ़ाई शुरू हो गयी। मोबाइल ख़राब था और नक्शा सामानों में कहीं गहरे दबा हुआ था। जगह का नाम याद नहीं आया। कहीं लिखा भी नहीं मिला और किसी से पूछ भी नहीं सकते। बाद में ध्यान आया कि एक जगह तो कोटेश्वर महादेव थी। रुद्रप्रयाग के नज़दीक ही अलकनन्दा के किनारे। कितनी नज़दीक? पता नहीं। कितनी दूर? पता नहीं।
हम चलते रहे। ऊँचाई बढ़ती रही और अलकनंदा गहरी होती चली गयी। दूरियाँ लिखी आ रही थीं - चोपता, पोखरी, गोपेश्वर इतने-इतने किलोमीटर। लेकिन उस मंदिर का जिक्र नही आया। सोच लिया कि पोखरी पहुँचकर पूछूँगा किसी से। शायद पोखरी के बाद है वो मंदिर।
चोपता बडा ही रमणीक स्थान है। साफ मौसम होता तो हिमालयी चोटियाँ दिखतीं। यह तुंगनाथ वाला चोपता नही है। गूगल मैप पर आप तुंगनाथ जाने के लिए चोपता ढूँढ़ते हैं तो अक्सर इसी चोपता को दिखा देता है। दीप्ति भी इसे तुंगनाथ वाला ही समझ बैठी थी। एक साल भी नही हुआ, जब हम वहाँ गये थे। पूछने लगी कि तुंगनाथ का रास्ता कहाँ से जाता है? तब उसे समझाया।
पोखरी से कुछ किमी पहले एक गेस्ट हाउस का नाम था - कार्तिक स्वामी गेस्ट हाउस। मुझे याद आ गया। हमे कार्तिक स्वामी मंदिर ही जाना है। गाँव का नाम लिखा हुआ था - कनकचौरी। कुछ-कुछ लगा कि शायद यहीं से कार्तिक स्वामी का रास्ता जाता है। तो पूछ लेना चाहिए। प्रसाद बेचने वाले बैठे थे। उन्होंने कह दिया कि यहीं से रास्ता जाता है। तीन किलोमीटर पैदल है। दूर एक चोटी भी दिखा दी - वो रहा कार्तिक स्वामी।
मैं बहुत दिनों से यहाँ आने की योजना बना रहा था। लेकिन बरसात में कभी नहीं। कार्तिक स्वामी का मुख्य आकर्षण इसकी हिमालय से नजदीकी है। यहाँ से गढ़वाल हिमालय की सभी चोटियाँ हाथ-भर की दूरी पर दिखती हैं। सर्दियों में यहाँ बर्फ भी पड़ती है। लेकिन रास्ता अक्सर बन्द नही होता। उत्तराखंड में 3000 मीटर की ऊँचाई पर ज्यादा बर्फ नही पड़ती। तो मैं सर्दियों में या उसके आसपास ही आना चाहता था। लेकिन आ गया मानसून में। बारिश तो नही थी, लेकिन बादल थे। एक भी चोटी नही दिख रही थी।
लेकिन तीन किमी का यह रास्ता बहुत खूबसूरत है। जंगल है। रिज के साथ-साथ ऊपर चढ़ता है, इसलिए अपने साथ पानी ले जाना ठीक रहता है। मंदिर भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। हम पहुँचे तो कुछ निर्माण कार्य चल रहा था। यात्री कोई भी नहीं था। और घंटियाँ अनगिनत।
कनकचौरी लगभग 2200 मीटर की ऊँचाई पर है और कार्तिक स्वामी मंदिर 2500 मीटर पर।
बल्लभ सिंह नेगी कनकचौरी में दुकान लगाते हैं। प्रसाद, चाय, बिस्कुट आदि बेचते हैं। शायद उनका नाम बलम सिंह नेगी हो। मैंने दो बार पूछा। मुझे बल्लभ और बलम दोनो ही सुनायी दिए। तीसरी बार नही पूछा। यहीं के रहने वाले हैं। दो बच्चे हैं। लड़का बारहवीं में और लड़की ग्यारहवीं में पढ़ती है। कनकचौरी में इंटर कॉलेज है। इसके बाद कहाँ? ग्रेजुएशन के लिए कहाँ जाना पड़ेगा? उत्तर सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई। डिग्री कॉलेज पोखरी में है। दो साल पहले ही बना है। उससे पहले रुद्रप्रयाग, श्रीनगर या देहरादून जाना पड़ता था। अब बच्चे रोज कॉलेज आना-जाना कर लेते हैं। 15 किमी ही है। पहले गाँव-घर छोड़ना पड़ता था।
उन्हें शिकायत थी कि इतना पढ़ने के बाद भी नौकरी नही है। मैंने समझाया - नौकरी कहीं भी नही है, लेकिन पढ़ लेने से दरवाजे खुल जाते हैं। रास्ता मिल जाता है। बच्चों को हतोत्साहित मत करना कि नौकरी नही है। ये सच्चाई है कि एक वैकेंसी के लिए लाख आवेदन आते हैं। तो उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना। और प्राइवेट सेक्टर में भी बहुत नौकरियाँ हैं। नौकरी का अर्थ केवल सरकारी नौकरी नही होता। कोशिश करते रहो, न मिले तो निराश भी मत होना।
हम यहीं से ऊपर ही ऊपर गोपेश्वर जाना चाहते थे, जो लगभग 70 किमी दूर था। एक नया रास्ता देखने को मिलेगा। लेकिन बाइक में पेट्रोल कम था। 40 किमी तक जा सकती थी, 70 किमी नही। नज़दीकी पेट्रोल पंप कर्णप्रयाग में था। 40 किमी दूर। लेकिन पोखरी में भी पेट्रोल मिल जाएगा। महंगा और खुला। हम तैयार थे दो लीटर लेने को। लेकिन नेगी साहब ने बताया कि पोखरी से गोपेश्वर की सड़क बहुत खराब है। इतनी खराब कि अब बसें भी नही चलतीं। बारिश के मौसम में उधर मत जाओ। हमे बात समझ आ गयी और कर्णप्रयाग आ गए। पूरा रास्ता उतराई वाला है, तो पेट्रोल नही लगा। कर्णप्रयाग आने के बाद भी बाइक 40 किमी और चल सकती थी।
गोलगप्पे दिखें और हम न खाएँ, असम्भव है। यही किताबों की एक दुकान थी। इनमे एक किताब ‘हिमालय का कब्रिस्तान’ पसंद आ गयी। रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की भी दो पुस्तकें रखीं थीं। इनमे से एक को लेने का मन था। लेकिन रमेश जी एक कवि भी हैं। क्या पता ये कविताएँ हों। मुझे कविताएँ पसंद नही। तो मैं इन किताबों को खोलकर देखना चाहता था। एक महीन पन्नी में पैक थीं। एक रुपये की भी पन्नी नही लगती इसमें और कोई सील या ठप्पा भी नही लगा होता। दुकान वाला अपने आप भी इसे लगा सकता था। या मैं भी लगा देता। लेकिन उसने इसे खोलने से मना कर दिया। इसका फोटो ले लिया। बाद में ऑनलाइन मँगा लूंगा।
चमोली पहुँचे तो सात बजे चुके थे। अंधेरे में बाइक नही चलाऊंगा। यहीं रुकेंगे। बद्री केदार मंदिर समिति वालों का विश्राम गृह है। 200 रुपये का कमरा।
“वो महिला तुम्हारी कौन है? पक्का पत्नी ही है ना? आधार कार्ड देना पड़ेगा। दिल्ली क्यों छोड़कर आये आधार कार्ड? वोटर कार्ड और डी.एल. पर तुम्हारी पत्नी का नाम तो है ना?”
“तुम्हारे यहाँ कमरा नही लेना। गो टू हेल। भाड़ में जाओ।” बगल में एक होटल था। 300 का कमरा। लेकिन लड़का अभी बाहर गया था। “दुकान छोड़कर कमरा दिखाने नही जा सकता। आप दूसरी जगह ट्राई कर लीजिए। बात न बने तो आ जाना। तब तक लड़का भी आ जायेगा।”
सयाना लॉज - असल में यह एक क्लिनिक है। ऊपर कमरे और नीचे भी कमरे। बीच मे यानी सड़क के लेवल में क्लिनिक। अस्पताल। सभी अच्छे कमरे। गीजर, टी.वी. वाला 700 का और सिंपल वाला 500 का। आखिरकार गीजर, टी.वी. वाला ही 500 का मिल गया। हमें टी.वी. की जरूरत नही थी, लेकिन गीजर की जरूरत थी।
दिन की शुरूआत आलू के परांठों से ही होनी ठीक रहती है... |
जय अलकनंदा |
रुद्रप्रयाग में समोसे खा लेने चाहिये... |
रुद्रप्रयाग-पोखरी मार्ग |
चोपता गाँव |
कार्तिक स्वामी का पैदल रास्ता |
कार्तिक स्वामी मंदिर इस रिज के आख़िर में बना है... |
कार्तिक स्वामी मंदिर |
मंदाकिनी घाटी के ऊपर लटके और बरसने को तैयार बादल |
पोखरी |
पोखरी के पास सीढ़ीदार खेत |
पोखरी-कर्णप्रयाग मार्ग |
पोखरी मार्ग से दिखता कर्णप्रयाग... बायें से आती अलकनंदा, सामने से आती पिंडर... |
सयाना लॉज व हॉस्पिटल, चमोली |
अगला भाग: गोविंदघाट से घांघरिया ट्रैकिंग
1. चलो फूलों की घाटी!
2. कार्तिक स्वामी मंदिर
3. गोविंदघाट से घांघरिया ट्रैकिंग
4. यात्रा श्री हेमकुंड साहिब की
5. फूलों की घाटी
6. फूलों की घाटी के कुछ फोटो व जानकारी
7. फूलों की घाटी से वापसी और प्रेम फ़कीरा
8. ऋषिकेश से दिल्ली काँवड़ियों के साथ-साथ
रोचक और सूचनाप्रद ! चोपता , अगर आप क्लियर नहीं करते तो मैं तुंगनाथ वाला ही समझता ! एक बार हो चूका है , तपोवन के लिए निकला था और उस तपोवन की जगह जोशीमठ के पास वाले तपोवन गाँव में पहुँच गया था !!
ReplyDeleteमुझे भी लगा, अभी हाल ही में तो गए थे फिर से चोपता पहुँच गए
ReplyDeleteसीढ़िदार खेत चाय के बाग़ानों की तरह दिख रहा है
बढ़िया घुमक्कड़ी। चित्र भी सुन्दर हैं।
ReplyDeleteAs always.
ReplyDeleteSir,
ReplyDeleteUseful information given in a interesting way.
Thanks for giving name of hotel/lodge which help us in our tour.
Regards
S.P.Singh
Very Nice photos.
ReplyDeletePhoto achchhi khichi hai sir ji
ReplyDeleteChaudhey sahab bike ride m kya Kya vastuey ley jaani aavashak hai.jaise bike k liye kapdhey barsaati or jungle k janwaro sey bachney key liye spl auzar Etc etc... Kripya jaankaari Sanjha karey... Ek travel tips with bike ki full instructions mill jaati tou kripa hogi..
ReplyDeleteबाइक यात्रा में जंगल के जानवरों का कोई डर नहीं होता... रेनकोट अच्छा होता है... बाइक ठीक कंडीशन में होनी चाहिये... आपका इस पर अच्छा कंट्रोल होना चाहिये... ट्यूबलेस टायर सर्वोत्तम होते हैं...
Deleteऔर जेब में मनी मनी...
चित्र ओर विवरण शानदार
ReplyDeleteJab bhi udas hota hun aapka blog padh leta hun
ReplyDeletePhir se energy aa jati hai...