19 मार्च, 2017
मैं महेसाणा स्टेशन पर था - “विजापुर का टिकट देना।”
क्लर्क ने दो बार कन्फर्म किया - “बीजापुर? बीजापुर?”
नहीं विजापुर। वी जे एफ। तब उसे कम्प्यूटर में विजापुर स्टेशन मिला और 15 रुपये का टिकट दे दिया।
अंदाज़ा हो गया कि इस मार्ग पर भीड़ नहीं मिलने वाली।
प्लेटफार्म एक पर पहुँचा तो डी.एम.यू. कहीं भी नहीं दिखी। प्लेटफार्म एक खाली था, दो पर वीरमगाम पैसेंजर खड़ी थी। फिर एक मालगाड़ी खड़ी थी। क्या पता उसके उस तरफ डी.एम.यू. खड़ी हो। मैं सीढ़ियों की और बढ़ने लगा। बहुत सारे लोग पैदल पटरियाँ पार कर रहे थे, लेकिन जिस तरह हेलमेट ज़रूरी है, उसी तरह स्टेशन पर सीढियाँ।
तो मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ ही रहा था कि उदघोषणा हुई - “कृपया ध्यान दें। गाडी नंबर अलाना फलाना आबू रोड से महेसाणा आने वाली...” और मुझे याद आ गया कि यही ट्रेन आगे जाएगी। जब तक मैंने आबू रोड और अहमदाबाद के बीच पैसेंजर ट्रेन में यात्रा नहीं की थी तो इस मार्ग पर यात्रा करने के लिए मेरे पास दो ही विकल्प हुआ करते थे - अहमदाबाद से सुबह 6 बजे जोधपुर पैसेंजर या फिर आबू रोड से सुबह 5 बजे यही डी.एम.यू.। बहुत दिनों तक यही उहापोह चलती रही थी - पैसेंजर या डी.एम.यू., अहमदाबाद या आबू रोड, 6 बजे या 5 बजे, उत्तर की और या दक्षिण की और। आख़िरकार अहमदाबाद से ही यात्रा शुरू की थी।
खैर, याद था मुझे। 15 मिनट की देरी से ट्रेन महेसाणा आयी। अब इसका नंबर बदल जायेगा और अब यह आबू रोड़ - महेसाणा डी.एम.यू. की बजाय महेसाणा - अहमदाबाद डी.एम.यू. बन जाएगी।
जगुदन में अहमदाबाद-जोधपुर पैसेंजर का क्रोसिंग था। इसमें WDG4 इंजन लगा था। मैं फोटो तो नहीं ले पाया, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे बैलगाड़ी में हाथी लगा रखा हो।
जगुदन के बाद मीटरगेज की पटरियाँ उखड़ी मिलीं। महेसाणा से जगुदन तक मीटरगेज की पटरियाँ हैं, केवल शोभासन के पास एक फाटक पर इनके ऊपर सड़क बना दी है। इस लाइन को डबल बनाने के लिए कलोल से महेसाणा तक मीटरगेज ट्रेनें पिछले साल ही बंद की गयी थीं। पश्चिम रेलवे की मैं इसीलिए तारीफ़ करता हूँ कि सिंगल लाइन होने के बावजूद भी इतने भारी भरकम ट्रैफिक को समय पर संचालित करते हैं।
मैं आंबलियासन उतर गया। विजापुर जाने वाली मीटर गेज की रेलबस खड़ी थी। अभी इसके चलने में एक घंटा बाकी था, फिर भी इसका इंजन चालू था। दरवाजे बंद थे। बाहर कुछ यात्री अवश्य बैठे थे, अन्दर कोई नहीं था।
दूसरी तरफ बैंगलोर-अजमेर गरीब नवाज़ एक्सप्रेस खड़ी थी। इसकी 'नेम प्लेट' पर लिखा था - ‘जोदपुर - का सं रा बेंगलूरु - अजमेर’। ‘जोदपुर’ की वजह से इसका फोटो ले लिया। ट्रेन दक्षिण-पश्चिम रेलवे की है। अच्छी हिंदी नहीं जानते होंगे, लिख दिया जैसा भी उचित लगा। इसका मैं करूँगा कुछ नहीं, फेसबुक पर लगा दूँगा और सारे रेलविरोधी मित्रों को मटर पनीर जैसा स्वाद मिल जायेगा।
महेसाणा की तरफ से अहमदाबाद राजधानी आयी और तेजी से निकल गयी। तब तक गरीब नवाज़ यहीं खड़ी रही, लेकिन डेमू को आगे भेज दिया गया था। अगले स्टेशन पर डेमू को रोककर राजधानी पास करायी गयी होगी। कोई और रेलवे ज़ोन होता तो राजधानी पालनपुर ही होती, लेकिन डेमू को यहीं रोक देते।
राजधानी के निकलते ही रेलपथ श्रमिकों का दल गिट्टियों पर टूट पड़ा। अपनी विशेष छोटी-सी लोहे की झाड़ू से वे गिट्टियाँ हटाने लगे। मेरी रेलबस का समय हो गया, वे गिट्टियाँ ही खोदते रहे।
रेलबस समय से दो मिनट पहले ही चल पड़ी। सारी सीटों पर धूल जमी थी और बोनट के कवर को तारों से बांधा गया था ताकि वे इधर उधर न हो जाएँ।
कुल मिलाकर 20 यात्री और 4 स्टाफ ट्रेन में सवार थे - एक ड्राइवर, एक कंडक्टर, एक गेटमैन और चौथा पता नहीं।
आगे एक फाटक पर रेलबस आते देख स्वविवेक से तीन गाड़ियाँ रुक गयीं। रेलबस फाटक से पहले रुकी। गेटमैन उतरा और फाटक बंद करने चल दिया। साथ ही इन तीन गाड़ियों को भी लाइन पार कर लेने का इशारा कर दिया। आगे भी कई फाटक मिले। सभी से पहले ट्रेन रुकती, गेटमैन बस से उतरकर फाटक बंद करता और बस के पार कर लेने के बाद फाटक खोलकर फिर से आ चढ़ता। इस दौरान कुछ यात्री भी चढ़-उतर जाते।
एक बूढा यात्री ड्राइवर के पास गया। उसके कान में कुछ कहा। ड्राईवर ने आगे एक गाँव के पास बस रोक दी। बूढा उतर गया और बस फिर चल दी।
अगले स्टेशनों से यात्री चढ़ते और कंडक्टर उनके टिकट बनाने लगता। रास्ते में किसी भी स्टेशन पर टिकट काउंटर नहीं है। हाँ, एकाध पर हैं।
गवाडा मालोसन में दो बच्चों ने रुकने का इशारा किया। बस रुकी रही। फिर कुछ दूर पगडण्डी पर एक महिला दौड़ती हुई आती दिखी। उसी ने इन बच्चों को भेज दिया था कि जाओ, बस रुकवाओ जाकर। उसके चढ़ने के बाद ही बस चली।
यह लाइन पूरी तरह 'पैसेंजर फ्रेंडली' है। दिनभर में तीन जोड़ी बसें चलती हैं। मतलब एक ही बस तीन चक्कर लगाती है। सिंगल एक्सल की बोगी है, फिर भी चालीस तक की स्पीड़ से चल रही थी। मुझे सिंगल एक्सल की रेलगाड़ी में चलते हुए डर-सा लगता है। पता नहीं क्यों!
समय से विजापुर पहुँच गये। घंटा भर यहीं रुककर बस फिर से आंबलियासन के लिये चली जायेगी। यहाँ प्लेटफार्म पर ही एक छोटा-सा पेट्रोल पंप है। बल्कि डीजल पंप है। बस में डीजल भरा और यात्रियों के चढ़ने के लिये शेड़ के नीचे जा खड़ी की।
यहाँ से मीटरगेज की एक लाइन कलोल भी गयी है। लेकिन कलोल और गांधीनगर कैपिटल स्टेशन को जोड़ने के लिये कलोल से आदरज मोटी तक इस लाइन का गेज परिवर्तन कर दिया गया। इसलिये काफ़ी समय तक रेलबस आदरज मोटी व विजापुर के बीच ही चलती रही, लेकिन पिछले तीन साल से यह बंद है। फिलहाल इसका गेज परिवर्तन नहीं हो रहा, भविष्य में हो जाये तो अच्छा है।
सीनियर सेक्शन इंजीनियर साहब मिले। महेसाणा के रहने वाले हैं और यहाँ तैनात जे.ई. के छुट्टी चले जाने के कारण उसकी ड्यूटी करने रोज़ बाइक से आना-जाना करते हैं। एक स्टाफ ने सुझाव दिया कि 8 किमी दूर महुडी घूमकर आओ। लेकिन आज तो नहीं जा सकता था, इसलिए मना करना पड़ा। मैंने महुड़ी का नाम पहले कभी नहीं सुना था, लेकिन उन्होंने सुझाव दिया है तो अवश्य ही कोई बात होगी। गूगल पर देखा तो बात सच निकली। बड़ा धार्मिक स्थान है और इसका प्रसाद प्रसिद्ध है।
एस.एस.ई. साहब होटल बंसरी में ले गये। अस्सी रुपये में भरपेट गुजराती भोजन। चार तरह की सब्जियाँ, रोटियाँ, चावल, सलाद और छास। जी भरकर खाओ। आनंद आ गया।
अब मुझे जाना था कलोल। अभी एक ही बजा था और तीन बजे कलोल में हरिद्वार से आने वाली अहमदाबाद मेल आयेगी। चार दिन पहले भी इसे पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन पकड़ नहीं सका था। आज प्रतिज्ञा कर ली कि पकडूँगा ज़रूर। बताया गया कि कलोल की सीधी गाड़ी तो नहीं मिलेगी, लेकिन मानसा से मिल जायेगी। एक जीप में बैठकर मानसा उतर गया। यहाँ बसें भी थीं, लेकिन सब गांधीनगर जाने वाली। एक जीप वाला कलोल जाने को तैयार था। मैं आगे ही बैठ गया और बैठा ही रहा। सवा दो बजे जब मैंने उससे कहा कि मुझे तीन बजे तक कलोल पहुँचना है, तो बोला - चार बज जायेंगे, पाँच भी बज सकते हैं। मैं झट से उतर गया और एक ऑटो वाले से पूछा - कलोल?
बोला - तीन सवारियाँ होंगी, तभी जाऊँगा और तीस-तीस रुपये लगेंगे।
मैंने कहा - तीन बजे तक कलोल पहुँचा दे, सौ रुपये दूँगा और रास्ते में कोई सवारी मिले तो बैठा लेना, उनके पैसे तुम ही रखना।
उसने समय देखा। ऑटो स्टार्ट किया और खींच दिया। दूरी 28 किलोमीटर है। रास्ते में हर गाँव में तीन-तीन, चार-चार ब्रेकर हैं। फिर भी जब मैं स्टेशन की सीढियाँ चढ़ रहा था तो तीन बजे थे और ट्रेन आधा घंटा लेट भी हो गयी थी।
कलोल से आगे टिटोड़ा स्टेशन है और फिर आदरज मोटी जंक्शन। टिटोड़ा अब बंद हो चुका है। मैं इसे बायीं तरफ़ ढूँढ़ता रहा और प्लेटफार्म दाहिनी तरफ़ से निकल गया। आदरज मोटी से विजापुर जाने वाली मीटरगेज की लाइन ज्यों की त्यों थी और अभी इस पर गेज परिवर्तन का काम शुरू नहीं हुआ था। इसके बाद कोलवड़ा है। यह भी बंद हो चुका है। फिर है गांधीनगर कैपिटल।
पाँच दिवसीय गुजरात मीटरगेज यात्रा समाप्त हो गयी। दिल्ली जाने के लिये आश्रम एक्सप्रेस में आरक्षण था। दो आदमी मिले - एक की बर्थ एस-12 में और दूसरे की एस-13 में। दोनों परेशान। मुझसे कहने लगे कि भाई, आप अकेले हो, उधर एस-13 में चले जाओ। मैंने पूछा - “ऊपर वाली बर्थ है क्या?”
बोले - “पता नहीं।”
फिर पूछा - “बर्थ नम्बर क्या है?”
बोले - “सैंतालिस।”
मैंने आठ का पहाडा याद किया, आठ छक्के अड़तालीस।
- “यह तो साइड लोअर है। इसे तो मैं कभी भी नहीं लूँगा। मुझे केवल मेन ऊपर वाली ही चाहिए। अगर ऊपर वाली है, तो मैं बदल लूँगा, अन्यथा नहीं बदलूँगा।”
दोनों कहीं चले गए। कुछ देर में लौटकर बोले - “भाई, हमारी बर्थ सैंतालिस नहीं है, बल्कि सैंतीस है।”
फिर आठ का पहाडा - आठ पंजे चालीस।
- “नहीं, यह तो मिडल बर्थ है। नहीं बदलूँगा।”
रेलयात्राओं में आठ का पहाडा बड़े काम का है। वो भी केवल नम्मे तक।
और रात भर की बात है। सो जाओ यार अपनी अपनी बर्थ पर। दिल्ली ही तो जाओगे। मैं और दीप्ति जब ऐसी परिस्थिति में होते हैं तो किसी से नहीं बदलते। अपनी अपनी बर्थ पर ही सोते हैं। जनवरी में जब हावड़ा से दिल्ली आ रहे थे तो हमारी बर्थ एक ही डिब्बे में दूर दूर थीं। टी.टी.ई. ने भी कह दिया कि पास पास ही सो जाओ, इन बर्थों पर कोई यात्री नहीं आएगा। फिर भी हम अपनी अपनी पर ही सोये - कोई आ ही गया तो। बेवजह नींद ख़राब करेगा।
समाप्त।
आंबलियासन पर खड़ी रेलबस |
रेलबस के अंदर का नज़ारा... सामने बायें कोने में ड्राइवर की सीट है... |
रेलबस रुकी हुई है... गेटमैन फाटक बंद करने जाता हुआ... |
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आदरज मोटी से ब्रॉड़गेज लाइन गांधीनगर जाती है और मीटरगेज लाइन विजापुर |
1. गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: अहमदाबाद से रणुंज
2. गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: जेतलसर से ढसा
3. गिर फोरेस्ट रेलवे: ढसा से वेरावल
4. गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: जूनागढ़ से देलवाड़ा
5. गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: बोटाद से गांधीग्राम
6. आंबलियासन से विजापुर मीटरगेज रेलबस यात्रा
वाह रेलबस की शायद आपकी पहली यात्रा है , वैसे मैन सुना है कि सेंट्रल रेलवे की भुसावल अकोला लाइन पर एक रेलबस चलती है ।
ReplyDeleteनहीं सर, मेरी यह रेलबस की पहली यात्रा नहीं थी। इससे पहले मथुरा-वृंदावन और मेडता रोड़ - मेडता सिटी मार्ग पर रेलबस में यात्रा कर चुका हूँ।
Deleteऔर भुसावन अकोला मार्ग पर कोई रेलबस नहीं चलती। हाँ, इसी मार्ग पर एक स्टेशन है जलंब जंक्शन। जलंब से खमगाँव तक रेलबस चलती है।
यह पैसेंजर फ्रेंडली रेलबस तो ठीक लगी। शायद तारंगा हिल वाली भी ठीक रही होगी। औदिहार और मेड़ता रोड रेल बस का पता नहीं। लेकिन मथुरा वृन्दावन रेल बस को अनेकों बार बीच रास्ते में यात्रियों द्वारा धक्का दे कर चलाया जाता है। यह पोस्ट भी ठीक ठाक लगा क्योंकि ऐसा लगा कि इस प्लेटफार्म से उस प्लेटफार्म तक घूमने में और गाड़ियों का घालमेल से कुछ कन्फ्यूजन बना रहा।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद सर...
Deleteरेलविरोधी मित्रों को मटर पनीर जैसा स्वाद मिल जायेगा...ज्यबरदस्त :D
ReplyDeleteधन्यवाद सर...
Deleteहमेसा की भांति पढ़ कर मजा आगया, चित्र जानदार लगे
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
Deleteमैं कभी रेल बस में नहीं बैठा हूँ। पता भी नहीं था ऐसा कुछ होता है। वृत्तांत बढ़िया लगा। आपके ब्लॉग से ट्रेन्स के विषय में कई जानकारियाँ मिलती रहती है। ट्रेन में आठ के पहाड़े का क्या राज है? ३७ से बर्थ का पता कैसा लगा??
ReplyDeleteशयनयान और थर्ड एसी (गरीब रथ को छोड़कर) में प्रत्येक कूपे में आठ बर्थ होती हैं... जो क्रमशः लोवर, मिडल, अपर, लोवर, मिडल, अपर, साइड़ लोवर और साइड़ अपर होती हैं। प्रत्येक आठ के बाद फिर से यही चक्र चल जाता है, तो सीट नंबर से बर्थ का पता चल जाता है।
Deleteरेलयात्राओं में आठ का पहाडा बड़े काम का है।
ReplyDelete..
..
गरिब रथ में आपला यह ८ वाला पहाडा नहीं चलेगा ...
सेकंड एसी में भी नहीं।
Deleteहाँ जी, गरीब रथ में 9 का पहाड़ा चलेगा...
Deleteअरे भैया थोडा रोक के चलियो... हा हा हा हा हा हा हा... कमाल है रेल बस..
ReplyDeleteRailbus..
ReplyDeletePahli bar yah naam suna aur photo bhi Delhi.
Kaha se late ho ya gyan Neeraj ji. Future to koi nahi janta, lekin itna kah sakta hu ki ek din bahut aage jaoge.
dekhi*
Deleteरेलबस में यात्रा अपने आप में एक बड़ा अनुभव है क्योंकि भारत में कुछ गिनी चुनी रेलबस ही चलती है। कुछ साल पहले मैं भी मथुरा- वृन्दावन बाली रेलबस में बैठा था । थोड़ा अजीव अनुभव था एक ऐसी बस में बैठने का जो पटरियों पे चलती हो। बहुत अच्छा वृत्तान्त नीरज भाई। अब आगे कौनसी यात्राएं आने बाली है ब्लॉग पे।
ReplyDeleteपिछला सारा पढ़ते पढ़ते यहाँ तक पहुंचा हूँ ! ये जो रेल बस है , ऐसी ही रेल बस की एक पोस्ट आपने मथुरा वृंदावन रेल बस की भी लिखी थी और मैं उसमें बैठने चला गया लेकिन पता नहीं क्यों उस दिन वो गई ही नहीं ! तो ये विजयपुर वाली रेल बस के साथ तो ऐसा कुछ नहीं है ??
ReplyDeleteकुछ मरम्मत के कार्यों के कारण मथुरा वाली रेलबस कुछ समय तक बंद रही थी। विजापुर वाली रेलबस अभी चल रही है। लेकिन जाने से पहले पता करके जाना।
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