जब से मेरठ-सहारनपुर रेलवे लाइन बिजली वाली हुई है और इस पर बिजली वाले इंजन, बिजली वाली ट्रेनें चलने लगी हैं, गोल्डन टेम्पल मेल में डीजल इंजन लगना बंद हो गया है। निजामुद्दीन में इंजनों की अदला-बदली होती थी, तो यहाँ इस ट्रेन के लिए तीस मिनट का ठहराव निर्धारित था, लेकिन अब इसे घटाकर पंद्रह मिनट कर दिया गया है। पहले यह सात बजकर पैंतीस पर निजामुद्दीन से चलती थी, जबकि अब सात बीस पर ही चल देती है। सात बजे मेरी नाईट ड्यूटी समाप्त होती है, तो इन बीस मिनटों में निजामुद्दीन कैसे पहुँचा, यह बात केवल मैं और धीरज ही जानते हैं। धीरज बाइक लेकर वापस चला गया, मैं निजामुद्दीन रह गया। जब फुट ओवर ब्रिज पर तेजी से प्लेटफार्म नंबर एक की और जा रहा था, तो एक गाड़ी की सीटी बजने लगी थी और वह गाड़ी थी - गोल्डन टेम्पल मेल।
आरक्षण चार्ट पर निगाह डाली। मेरे कूपे के सभी यात्री प्रीमियम तत्काल वाले थे। मुझे छोड़कर बाकी सब मथुरा से चढ़ेंगे और मुंबई तक जायेंगे। कल होली थी और मुझे आज का तत्काल आरक्षण कराना था। लेकिन वसंत विहार ससुराल में उनके घर में मेरे एयरटेल के प्राण निकल जाते हैं, इसलिए सराय रोहिल्ला से अहमदाबाद जाने वाली गरीब रथ का तत्काल टिकट बुक करते समय ऐन पेमेंट के टाइम पर ओ.टी.पी. नहीं आया। और जब आधे घंटे बाद ओ.टी.पी. आया, तब तक तत्काल में वेटिंग शुरू हो गयी थी। फिर उसमे प्रीमियम तत्काल का भी विकल्प था, लेकिन जब तक पेमेंट का मामला सुलझा, तब तक वो थर्ड एसी में 2200 रुपये से ऊपर चला गया था। आखिरकार गोल्डन टेम्पल मेल में शयनयान में प्रीमियम तत्काल 1400 रुपये में मिली। मैंने यही हथिया ली।
मेरी 67 नम्बर बर्थ पर एक बच्ची लेटी हुई थी। उसकी दादी नीचे बैठी थीं। वे मथुरा जायेंगे और उन्होंने निजामुद्दीन से मथुरा तक करंट टिकट लिया था। चूँकि मथुरा तक मेरा कूपा खाली ही रहने वाला था, इसलिए उन्हें इसमें ही बैठने दिया गया। दादी अपनी पोती को नीचे उतारने को तैयार थी, लेकिन मैंने मना कर दिया और दूसरी खाली पड़ी बर्थ पर लेट गया।
निजामुद्दीन से चलते ही दो भयंकर हट्टे-कट्टे हिजड़े आ गए। लहज़ा अच्छा था, हालाँकि मैंने पैसे नहीं दिए। लेकिन बराबर वाले कूपे में बीच वाली बर्थ पर एक कम्बल में से दोनों किनारों से दो सिर एक साथ बाहर निकले और हिजड़े से अपने बच्चों के लिए दुआ करने को कहा। इन दोनों महिलाओं ने एक हिजड़े को 100 रुपये दिए और अपने-अपने सिर आगे कर दिए - “लो बाबा, सिर पर हाथ रखकर हमें आशीर्वाद दो।” हिजड़े ने ऐसा ही किया। हिजड़ा बाबा बन गया - हिजड़ा बाबा।
दोनों पंजाबी भाषी महिलाएँ थीं। अच्छे घरों की लग रही थीं। मेरी दिलचस्पी बढ़ गयी। मैं किसी से बात तो नहीं किया करता, लेकिन कान उधर ही लगा दिए। इनमें से एक महिला कई देशों में घूम चुकी थी और दूसरी को बता रही थी कि थाईलैंड, मलेशिया, आस्ट्रेलिया तक ट्रेन से भी जाया जा सकता है। साथ ही यह भी बताया कि यूरोप में नीदरलैंड़, इंग्लैंड़ तक उसकी फलानी सहेली ट्रेन से ही गयी थी। बाद में उनकी बातचीत में एक तीसरा आदमी भी शामिल हो गया और तब पता चला कि अब ये महिलाएँ अमरीका जाने वाली हैं। इन्होने किसी एजेंट को आठ लाख रुपये दिए हैं और टूरिस्ट वीजा के इंटरव्यू और कागजी कार्यवाही के लिए मुंबई जा रही हैं। इनका कोई जानकार टूरिस्ट वीजा पर पिछले चार साल से वहीं है और इन्हें भी ऐसा ही करने को कह रहा है। तीसरे आदमी ने इन्हें अमरीका के वर्तमान हालातों को देखते हुए ऐसा न करने की सलाह दी, लेकिन आठ लाख रुपये खर्च करने के बाद कौन इस सलाह को मानेगा? महिलाओं ने अपने समर्थन के लिए कनाड़ा के किसी नेता द्वारा भारतीयों को 'वीजा ऑन एराइवल' देने संबंधी वीडियो दिखायी। उस तीसरे व्यक्ति ने समझाया कि ‘वीजा ऑन एराइवल’ कनाडा दे रहा है, अमरीका नहीं। पंजाबी वैसे भी ‘कनैड्ड़ा’ और ‘अमरीक्का’ का फ़र्क नहीं समझते, ये दोनों भी इस बात को नहीं समझ पायीं।
अब मैं समझ गया कि ये दोनों हिजड़ों से क्यों आशीर्वाद माँग रही थीं।
मथुरा में मुझे चाय लेनी थी और चाय के साथ कल के बने हुए बासी पकौड़े खाने थे। कल मैं तो वसंत विहार चला गया था और उधर शास्त्री पार्क में धीरज ने पकौड़े बना लिए थे। सारे नहीं खाए गए तो बच गए और इन्हें आज मैं उठा लाया।
एक डेढ़ सौ किलो का आदमी एक टिकट लिए बैठा था। इसके बराबर में दो महिलाएँ खड़ी थीं। मामूली-सी खींचतान चल रही थी। मैंने टिकट पर उड़ती हुई निगाह डाली और कई जानकारियाँ मिल गयीं - मथुरा से बोरीवली आज ही जाने के लिए दो महिलाओं का आर.ए.सी. टिकट था। ‘डेढ़ कुंटली’ कह रहा था कि यह तो आर.ए.सी. टिकट है और इस पर सीट नंबर भी नहीं लिखा है, कहीं और जाओ। महिलाएँ कह रही थीं कि उनका टिकट कन्फर्म हो गया है और इसी डिब्बे में 60 और 68 नंबर वाली सीटें मिली हैं। डेढ़ कुंटली मानने को तैयार नहीं था और इसी बात पर खींचतान हो रही थी। इस विवाद में मैं भी कूद पड़ा और साठ सेकंडों के भीतर पक्का हो गया कि महिलाएँ ठीक कह रही थीं। डेढ़ कुंटली का टिकट माँगा, लेकिन वह आनाकानी करने लगा। बाकी यात्रियों ने उसे भगा दिया और उसे भागना पड़ा। फिर वह कभी नहीं दिखा।
वड़ोदरा में आउटर पर भी ट्रेन नहीं रुकी और सीधे प्लेटफार्म एक पर जाकर ही रुकी। दो पर लोकशक्ति आ गयी। बाकी कहीं कोई ट्रेन नहीं। गोल्डन टेम्पल के जाने के बाद एक पर अवध एक्सप्रेस आयी। आश्चर्यजनक रूप से अवध के जनरल डिब्बों में भीड़ नहीं थी।
अहमदाबाद जाने के लिए पहली ही ट्रेन एक घंटे बाद आने वाली थी - कच्छ एक्सप्रेस। इस दौरान दो वड़ापाव और एक कप चाय पीने के बाद टिकट की लाइन में लग गया। एक गलती कर दी कि अहमदाबाद के लिए मेल एक्सप्रेस का टिकट ले लिया। मुझे याद था कि कच्छ एक्सप्रेस का नंबर 19 से शुरू होता है, लेकिन पिछले ही दिनों इसे सुपरफास्ट का दर्जा दे दिया गया और अब इसका नया नंबर 22955 है। जब उद्घोषणा हुई कि कच्छ सुपरफास्ट एक्सप्रेस आ रही है तो गलती का पता चला। संयोग से इसके पीछे ही सौराष्ट्र जनता आ रही थी। जहाँ कच्छ के जनरल डिब्बे खाली थे, वहीँ सौराष्ट्र जनता के चारों जनरल डिब्बे पूरी तरह भरे थे। अपनी गलती के लिए स्वयं को कोसता हुआ सौराष्ट्र जनता में ही चढ़ लिया। न बेटिकट यात्रा करनी चाहिये और न ही गलत टिकट लेकर। आपके पास जिस ट्रेन का टिकट है, उसी में यात्रा करनी चाहिये।
पीछे महिला डिब्बा नहीं था, इसलिए आखिरी जनरल डिब्बे में महिलाओं की भरमार थी। गुजरात की ये महिलाएँ भी शेष भारत की महिलाओं से अलग नहीं थीं। एक एक सीट पर केवल दो दो बैठीं और किसी तीसरे को बैठने नहीं दे रही। गैलरी में भी यात्री पड़े सोये हुए थे। बैठने के लालच में थोडा भीतर गया तो ऊपर वाली सीट पर केवल एक बच्चे को लेटा हुआ देखकर उसे थोडा सरकने को कह दिया। नीचे वाली दोनों सीटों पर पाँच महिलाएँ लेटी और बैठी थीं। ये सभी आदिवासी जैसी दिखने वाली और हाथों पर कोहनी से ऊपर तक गोदने गुदवाये हुए थीं। इनके पास ही गैलरी में फर्श पर संभ्रांत परिवारों की दो महिलाएँ बैठी थीं, जो बाद में आदिवासियों के पैरों के नीचे जगह बनाती हुई लेट भी गयीं।
तो जैसे ही मैंने लड़के को सरकने को कहा, पाँचों आदिवासिनियाँ गुजराती में मुझ पर चढ़ गयीं। मुझे समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन मैं चुप ही रहा। उधर दोनों संभ्रांत महिलाएँ मेरे समर्थन में उन्हें गुजराती में कुछ कहने लगीं। यह भी समझ में नहीं आया, लेकिन समझ सब गया। ज़रूर इन आदिवासिनियों ने संभ्रांतनियों को भी बैठने नहीं दिया होगा।
और भाषा न समझने का सुफल यह हुआ कि मैं ऊपर चढ़ गया और आलथी पालथी मारकर बैठ भी गया। ट्रेन चली तो शीतल हवा भी आने लगी और सब महिलाएँ भी चुप हो गयीं। लेकिन उन पाँच महिलाओं के कलेजे पर साँप लोटते स्पष्ट देखे जा सकते थे और इन दो महिलाओं के कलेजे में ठंडक पड़ती भी।
आधी रात दो बजे अहमदाबाद पहुँचा। विमलेश चंद्र जी ने अगले चार घंटों के लिये मेरे लिये पहले ही एक कमरा बुक कर रखा था। वातानुकूलित कमरा था। जो नींद आयी, उसका वर्णन करना असंभव है, इसलिये हम असंभव कार्य नहीं करेंगे। सुबह छह बजे अलार्म बंद किया भी नहीं था कि विमलेश सर का फोन आ गया - मुझे जगाने के लिये। वे अच्छी तरह जानते हैं कि मेरा सुबह जल्दी उठना आसान नहीं है। पिछले साल जब वडोदरा-सूरत की तरफ़ नैरोगेज मार्गों पर यात्रा करने आया था, तब भी विमलेश जी ने ऐसा ही किया था। अगर ट्रेन सुबह चार बजे होती तो ठीक चार बजे फोन आ जाता।
15 मार्च 2017
रणुंज जाने वाली मीटरगेज पैसेंजर के गार्ड साहब के मोबाइल में ओशो का वॉलपेपर देखकर समझ गया कि यात्रा अच्छी कटने वाली है। हालाँकि आने-जाने की 10 घंटे की यात्रा के दौरान ओशो का ज़िक्र भी नहीं हुआ, लेकिन यात्रा वाकई बहुत अच्छी रही। साहब यहीं अहमदाबाद के ही रहने वाले हैं। 28 साल से नौकरी कर रहे हैं। अपनी कहानी बताने लगे कि उन्होंने 14 साल तक क्लर्क की नौकरी की रेलवे में। लेकिन उसमे इतनी आमदनी नहीं थी कि परिवार चलाया जा सके। दो बार डिपार्टमेंटल परीक्षा भी दी, लेकिन गार्ड नहीं बन सके। उस समय अहमदाबाद राजकोट डिवीजन में हुआ करता था। आख़िरकार बड़ी मशक्कतों के बाद तीसरी बार परीक्षा देने के बाद गार्ड बनने में कामयाब रहे। फिर संयोग ऐसा बना कि 18-18, 20-20 घंटे गुड्स गार्ड की ड्यूटी करनी पड़ी। अच्छा ओवरटाईम मिला, अच्छे पैसे इकट्ठे हो गए। तीन बहनों की शादियाँ कर दी। अहमदाबाद में अपना मकान बना लिया। इकलौता लड़का उच्च शिक्षा हासिल कर रहा है। उसकी नौकरी लग जाएगी तो रिटायरमेंट ले लेंगे।
साबरमती में दो स्टेशन हैं। दोनों एक-दूसरे से कम से कम एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं, लेकिन नाम दोनों का एक ही है - साबरमती।
कलोल से हमारी मीटरगेज की ट्रेन बायें मुड़ गयी। कुछ समय पहले तक कलोल से आगे महेसाना तक भी ब्रॉड़ गेज के बराबर में मीटर गेज की ट्रेन चला करती थी, लेकिन इस मार्ग को दोहरा करने के लिये मीटर गेज लाइन बंद करनी पड़ी। उधर हिम्मतनगर लाइन भी गेज परिवर्तन के लिये बंद हो गयी है। गार्ड साहब ने बताया कि उस लाइन पर 18 महीनों का ब्लॉक लिया गया है, लेकिन कार्य इतनी तेजी से चल रहा है कि लगता है जैसे तय समय से पहले ही उस पर ट्रेन चलने लगेगी।
कटोसन रोड़ में ब्रॉड गेज लाइन और इस मीटर गेज लाइन का डायमंड़ क्रॉसिंग है। मुझे इसे देखकर रींगस जंक्शन की याद आ गयी। वहाँ भी हू-ब-हू ऐसा ही ट्रैक ले-आउट है। यहाँ अहमदाबाद से मीटर गेज आती है और रणुंज चली जाती है, वहाँ जयपुर से आती थी और सीकर चली जाती थी। इसी तरह यहाँ महेसाना से ब्रॉड़ गेज आकर वीरमगाम चली जाती है, वहाँ रेवाड़ी से आकर फुलेरा चली जाती थी। हालाँकि अब फिलहाल रींगस में मीटर गेज की ट्रेन गेज परिवर्तन के लिये बंद है।
बेचराजी में माता का कोई बड़ा मंदिर है। हर पूर्णिमा को वहाँ मेला लगता है। इसलिए पूर्णिमा और नवरात्रों में डिब्बे बढ़ाने पड़ते हैं। अन्यथा सात डिब्बों का रेक ही चलता है।
चाणस्मा। यह पहले एक जंक्शन हुआ करता था और तीसरी लाइन हरिज जाती थी। पता नहीं कब और क्यों वह लाइन बंद हुई। अब उस लाइन पर पटरियाँ तक नहीं बची हैं। केवल एक कच्चा रास्ता बचा है। हालाँकि स्थानीय स्तर पर उस लाइन को फिर से पुनर्जीवित कराने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला।
रणुंज में मेरे लिये खाना आ गया। विमलेश जी बड़े चिंतित रहते हैं इस बारे में। उन्होंने इस बारे में गार्ड को भी कह दिया था और स्टेशन मास्टर को भी। टिफिन आ गया। पेट भर गया। पुनः इसी ट्रेन में जाकर जो बैठा तो नींद आ गयी। फिर कब चाणस्मा गया, कब बेचराजी गया और कब कटोसन रोड़ गया, कुछ नहीं पता।
कलोल पहुँचने से थोड़ा पहले मैंने नेट पर हरिद्वार मेल की स्थिति देखी। वह ट्रेन अभी महेसाना से चली थी और कलोल नहीं पहुँची थी। मेरे मन में लालच जाग गया। सोच लिया कि मीटर गेज को कलोल में अलविदा कह दूँगा और हरिद्वार मेल से अहमदाबाद जाऊँगा। इस बहाने गांधीनगर वाले मार्ग पर भी यात्रा कर लूँगा। गांधीनगर और अहमदाबाद के बीच कई ट्रेनें चलती हैं, शांति एक्सप्रेस है, एक-दो लोकल ट्रेनें भी हैं। लेकिन कलोल और गाँधीनगर के बीच में केवल हरिद्वार मेल ही चलती है। वैसे गरीब रथ भी इसी मार्ग से गुजरती है, लेकिन वह रात में गुजरती है और मेरे किसी काम की नहीं। इसलिये मुझे हरिद्वार मेल पकड़नी आवश्यक थी।
कलोल पहुँचा तो हरिद्वार मेल एक दो मिनट के अन्तराल से निकल गयी। दुर्योग से इस समय नेट नहीं चला और मुझे इसके निकल जाने का पता भी नहीं चल पाया। सोचता रहा कि यह आने ही वाली होगी। टिकट क्लर्क ने भी आगाह नहीं किया और टिकट भी दे दिया। मैंने सोचा आने वाली है, इस चक्कर में अहमदाबाद जाने वाली मीटरगेज ट्रेन और पाटण डीएमयू छोड़ दी। आधे घंटे बाद भी जब उद्घोषणा नहीं हुई तो खटका हुआ। तब तक मेल साबरमती पहुँच चुकी थी।
बस से अहमदाबाद लौटना पड़ा। रास्ते में मिर्च मंडी मिली। लाल मिर्च के टीले के टीले। आदमी गिर जाये तो मिर्चों में ढूँढ़े से भी न मिले। मैं ‘इमेजिन’ करता रहा - अगर मैं किसी टीले में जा घुसूँ, तो पता नहीं कहाँ-कहाँ मिर्चें लगेंगी और कितने दिन तक लगती रहेंगी।
गीता मंदिर बस अड्डा अच्छा बना है। यहाँ मध्य प्रदेश परिवहन की बस दिखी। आज तक मैंने केवल दो ही स्थानों पर मध्य प्रदेश परिवहन की बसें देखी हैं। एक दिल्ली में सराय काले खाँ बस अड्डे पर और दूसरी यहाँ। काले खाँ पर ग्वालियर डिपो की बस आती हैं और यहाँ शायद इंदौर की थी। मध्य प्रदेश के अंदर मध्य प्रदेश परिवहन की बसें नहीं चलती। राज्य से बाहर कहीं दूर जाने के लिए ही एमपी रोडवेज बचा है।
एक गरीबनी अंगूर और संतरे बेच रही थी। 30 रुपये के आधा किलो थे, लेकिन मुझे उसका व्यवहार इतना पसंद आया कि बिना मोलभाव किये एक किलो ले लिए। वैसे भी गुजराती मृदुभाषी होते हैं।
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निज़ामुद्दीन स्टेशन पर प्लेटफार्म एक की सीढ़ियाँ |
अहमदाबाद में मीटरगेज और ब्रॉड़गेज का डायमंड़ क्रॉसिंग |
साबरमती |
देवसणा स्टेशन |
कटोसन रोड़ से आगे बढ़ते हुए |
कटोसन रोड़ में मीटरगेज और ब्रॉड़गेज का डायमंड़ क्रॉसिंग |
रणुंज स्टेशन |
अगला भाग: गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: जेतलसर से ढसा
1. गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: अहमदाबाद से रणुंज
2. गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: जेतलसर से ढसा
3. गिर फोरेस्ट रेलवे: ढसा से वेरावल
4. गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: जूनागढ़ से देलवाड़ा
5. गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: बोटाद से गांधीग्राम
6. आंबलियासन से विजापुर मीटरगेज रेलबस यात्रा
वाह भाई...
ReplyDeleteकई दिनों बाद विस्तृत वृतान्त पढ़,मन तृप्त हो गया।
समय समय की और मूड़ मूड़ की बात होती है...
Deleteहद हो गयी भई टूरिस्ट वीसा के लिए 8 लाख रुपए एजेंट को दे डाले ? भई इससे एक चौथाई में तो कनाडा का पीआर प्रोसेस हो जाता है बशर्ते आप requirement fulfill करते हैं ।
ReplyDeleteUS के tourist visa के लिए किसी एजेंट की चौखट पर जाने की जरूरत नही है BE VISA के लिए अप्लाई करो और DS160 फॉर्म सही से भरो , visa fee भी 20,000 के नीचे होगी और इन महान महिलाओं ने 8 लाख खर्चे , वाकई दुनिया मे बेवकूफों की कमी नहीं है , एक ढूंढो लाख मिलेंगे।
वैसे Australia और main land Asia के बीच कोई रेल लिंक नहीं है , आपकी सहयात्री महिला फेंक रही है।
हाँ, चिन्मय जी, आपने ठीक कहा...
Deleteपढ़ कर मजा आ गया और हंसी भी आयी मथुरा और वडोदरा में कोच में घटी घटनाओं को पढ़कर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर...
Deleteनीरज भैया आपके अन्य संस्मरणों से कहीं अधिक मज़ा रेल यात्रा के संस्मरण पढ़ने में है , diamond crossing के लिए नागपुर भुसावल मशहूर है , कभी समय मिले तो मुम्बई कोलकाता रेल मार्ग पर यात्रा जरूर कीजिएगा ।
ReplyDeleteनागपुर का डायमंड़ क्रॉसिंग प्रसिद्ध है, भुसावल वाले की जानकारी नहीं थी...
Deleteभुसावल का डायमंड क्रॉसिंग, स्टेशन के पास में बना है। इसमें भुसावल-नागपुर रुट की दोहरी मेन लाइन जाती है तथा एक सिंगल लाइन जो भुसावल लोको वर्कशॉप में जाती है। वह इस मेन डबल लाइन को क्रॉस करती है जिससे यहां दो डायमंड क्रॉसिंग बनती है।
Deleteदिल्ली में भी डायमंड क्रॉसिंग है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। शायद वह इसलिए कि यह डायमंड क्रॉसिंग मेन रेल लाइन के बजाय यार्ड में बना है। यह नई दिल्ली से दिल्ली जाने वाली रेल लाइन पर यार्ड में बना है। वह भी एक नहीं बल्कि कुल 6 डायमंड क्रॉसिंग हैं।
Deleteहाँ जी, दिल्ली वाला डायमंड क्रॉसिंग मैंने देखा है... लेकिन यह तो मेनलाइन पर ही बना है... जो लाइन आगे सराय रोहिल्ला की तरफ़ जाती है, उसे क्रॉस करता हुआ यह डायमंड़ क्रॉसिंग है...
Deleteबहुत बढ़िया लेख नीरज भाई ! ये लाइन बड़ी मस्त लिखी "यह भी समझ में नहीं आया, लेकिन समझ सब गया"।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई...
Deleteएक और शानदार रेल यात्रा। कुछ नए अति गरीब स्टेशनों के बोर्ड देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मजेदार यात्रा। हां पर गूगल के अनुसार एशिया से कोई रेल लिंक ऑस्ट्रेलिया नहीं जाती। हा हा हा
ReplyDeleteहाँ जी, आस्ट्रेलिया एक द्वीप है और इसका किसी भी अन्य देश व द्वीप के साथ रेल संपर्क नहीं है...
DeleteNice travel description Neeraj ji.Thx.
ReplyDeleteआनंद आ गया यह post पढ़ के नीरज भाई !!!
ReplyDeleteबिलकुल ऐसा लगा आप के साथ ही है, बहुत बहुत शुक्रिया अपने तज़ुर्बे साँझा करने के लिए
ऐसे ही घूमते रहिये और हमें भी घूमते रहिये
Good Luck !!!
Thheth bhasha me likha gaya lekh. 'Aadivasiniyan', 'Gareebni' aise shabd jo lagbhag ham sabhi aam bhasha me prayog karte hain.
ReplyDeleteSafar me kaise-kaise log milte hain aur kya-kya ghatnaye hoti hain, aapne bakhubi likha hai.
Ek bat aur, is lekh me Neeraj Ji ki shailly thodi badli hui si lag rahi hai. Acha laga.
अगर गुजराती बोल पाते आप तब शायद उन आदिवासिनियों से पंगा लेना महंगा पड़ जाता ! कभी कभी सिडी बनके हलवा खाने में ही फायदा रहता है !! मजेदार यात्रा रही
ReplyDeleteरोचक वृत्तांत... औरतों के साथ बहस से तो काफी दूर रहता हूँ और फिर गाँव की औरतें तो खुर्राट होती हैं.... आपको गुजराती नहीं आती इसीलिए सस्ते में छूट गये :-p :-p वैसे ये डायमंड क्रासिंग की क्या विशेषता होती है?
ReplyDeleteभाई ये डायमडं क्रॉसिंग क्या है
ReplyDeleteजब दो लाइने इक दुसरे ट्रेक को क्रौस करती है
Deleteधन्यवाद।।
Deleteभाई साब आप इस बात को रेल्वे डिपार्टमैंट तक पहोचाते, तो पेसेन्जर को अपने ट्रैन को पकडने मे बहोत उपयोगी साबित होगा, जैसे कि जनरल टीक्कट पर अगले दो ट्रैन का प्लेटफार्म नंबर और ट्रैन नंबर लिखा होना चाहिए, तो पेसेन्जर को कभी पूछताछ बारी पर जाने की जरुरत ना रहेगी.
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