नवम्बर 2015 के पहले सप्ताह में जब पता चला कि सतपुडा नैरो गेज हमेशा के लिये बन्द होने जा रही है तो मन बेचैन हो गया। बेचैन इसलिये हो गया कि इस रेल नेटवर्क के काफी हिस्से पर मैंने अभी तक यात्रा नहीं की थी। लगभग पांच साल पहले मार्च 2011 में मैंने छिन्दवाडा से नैनपुर और बालाघाट से जबलपुर तक की यात्रा की थी। छिन्दवाडा से नागपुर और नैनपुर से मण्डला फोर्ट की लाइन अभी भी मेरी अनदेखी बची हुई थी। अब जब यह बन्द होने लगी तो अपने स्तर पर कुछ खोजबीन और की तो पाया कि यह लाइन असल में 31 अक्टूबर 2015 को ही बन्द हो जानी थी लेकिन इसे एक महीने तक के लिये बढा दिया गया है। एक महीने तक बढाने का अर्थ था कि मेरे लिये इसमें यात्रा करने का आखिरी मौका आखिरी सांसें गिन रहा है। 16 नवम्बर को दिल्ली से निकलने की योजना बन गई। कानपुर में रहने वाले मित्र आनन्द शेखावत को पता चला तो वे भी चलने को राजी हो गये। सभी आवश्यक आरक्षण और रिटायरिंग रूम की भी बुकिंग हो गई।
लेकिन जब 16 नवम्बर को नई दिल्ली केरल एक्सप्रेस पकडने गया तो छठ के कारण अन्दर से बाहर तक बिल्कुल ठसाठस भरे नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन में ऐसा फंसा कि केरल एक्सप्रेस छूट गई। इससे मुझे नागपुर तक जाना था। वैसे तो इसके बाद भी बहुत सारी नागपुर जाने वाली ट्रेनें थीं लेकिन मैं लम्बी दूरी की खासकर रात में बिना आरक्षण के यात्राएं नहीं किया करता। वापस घर लौट आया और आनन्द को सारी वास्तुस्थिति बता दी। उसका भी झांसी से आरक्षण था और वह कानपुर से चल चुका था। उसने पूछा- अब क्या करूं? मैंने कहा- तुम होकर आओ और वापस आकर अपने वृत्तान्त सुनाना। आनन्द चला गया। अगले ही दिन फोन आ गया- भाई, नागभीड वाली ट्रेन में तो भारी भीड थी। मैं तो तीन-चार स्टेशनों तक ही गया और उसके बाद आगे की यात्रा रद्द करके बस से नागपुर लौट आया। फिर इतवारी स्टेशन के कुछ फोटो भी दिखाये जहां वास्तव में काफी भीड थी। अगले दिन फिर फोन आ गया कि उसने बालाघाट से नैनपुर की यात्रा करते समय भीड के कारण ट्रेन बीच में कहीं छोड दी और बस से नैनपुर पहुंचा।
इन वृत्तान्तों ने मुझे डरा दिया। मुझे स्टेशन बोर्डों के फोटो भी खींचने होते हैं। सिंगल लाइन पर स्टेशन बोर्ड पता नहीं किस तरफ आ जायें और भीड के कारण बार-बार एक दरवाजे से हटकर दूसरे दरवाजे पर पहुंचना आसान नहीं होता। मैंने अब अगले सप्ताह की योजना बनाई। गूगल मैप के सैटेलाइट मोड में देखा कि किस स्टेशन पर किस तरफ प्लेटफार्म है ताकि यात्रा के समय पहले ही इधर से उधर जाने को तैयार रहूं। मैं एक भी स्टेशन का बोर्ड नहीं छोडना चाहता था।
22 नवम्बर 2015, दिन रविवार
दोपहर बारह बजे के आसपास सराय रोहिल्ला से पातालकोट एक्सप्रेस चलती है। इसमें छिन्दवाडा तक का आरक्षण करा रखा था। समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गया तो ट्रेन प्लेटफार्म पर खडी थी। यह उत्तर रेलवे की फिरोजपुर डिवीजन की ट्रेन है। ट्रेन नम्बर 14626 फिरोजपुर छावनी से इंटरसिटी एक्सप्रेस बनकर सराय रोहिल्ला के लिये चलती है और दोपहर पौने बारह बजे तक सराय रोहिल्ला आ जाती है। फिर यही डिब्बे पातालकोट एक्सप्रेस (14624) बनकर दोपहर बारह बजकर बीस मिनट पर सराय रोहिल्ला से प्रस्थान करते हैं और अगले दिन सुबह पौने दस बजे छिन्दवाडा पहुंचते हैं। आधा घण्टा छिन्दवाडा में रुककर सवा दस बजे यह ट्रेन वापस चल देती है और अगली सुबह साढे पांच बजे सराय रोहिल्ला आती है। फिर यह इंटरसिटी एक्सप्रेस (14625) बनकर सुबह पौने सात बजे अपने घर फिरोजपुर चली जाती है। गौर से देखें तो पायेंगे कि दोनों ट्रेनों के नम्बर 146 से शुरू होते हैं। इसमें 1 का अर्थ है कि एक्सप्रेस गाडी है और 46 का अर्थ है कि उत्तर रेलवे की फिरोजपुर डिवीजन की गाडी है। अगर भारत भर में किसी भी ट्रेन का नम्बर 046, 146, 246, 546, 646 या 746 से शुरू होता हो, तो समझना कि फिरोजपुर डिवीजन की ट्रेन है। फिरोजपुर डिवीजन की ट्रेन होने का यह अर्थ नहीं है कि ट्रेन फिरोजपुर अवश्य जाती है। अमृतसर और जम्मू तवी भी फिरोजपुर डिवीजन में ही स्थित हैं। तो ज्यादा सम्भावना इस बात की है कि वो ट्रेन अमृतसर भी जा सकती है और जम्मू तवी भी।
तो जी, ठीक समय पर पातालकोट एक्सप्रेस चल पडी और कुछ ही देर में सफदरजंग पहुंच गई। दिल्ली रिंग रेलवे की पूरी लाइन दया बस्ती से ओखला तक गन्दी स्लम से घिरी हुई है। ऐसे में साफ-सुथरा सफदरजंग स्टेशन अचम्भित भी कर देता है। इन स्लम को देखकर आपको हैरानी भी होगी। एक-एक झुग्गी पर कई-कई डिश एंटीना लगे मिलेंगे। ये रेलवे लाइन के इतने नजदीक हैं कि अगर कोई अपनी झुग्गी के अन्दर बैठकर बाहर थूके तो वो रेलवे लाइन पर गिरेगा। जाहिर है कि सब रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से जमे बैठे हैं। ऐसे में अगर रेलवे अपनी जमीन खाली करने को कार्यवाही करे तो दिल्ली की राजनीति गर्मा जाती है।
सफदरजंग से चलते ही मैं तो अपनी ऊपर वाली बर्थ पर गया और सो गया। नाइट ड्यूटी की थी। फिर पता नहीं कहां आंख खुली, कहां कुछ खाया और कहां दोबारा सोया।
झांसी से चले तो गाडी दो घण्टे लेट हो गई थी। मुझे आमला उतरना था। मैंने सोचा कि गाडी कम से कम एक घण्टा तो कवर कर ही लेगी, इसलिये गाडी के आमला पहुंचने के एक घण्टे बाद का अर्थात सात बजे का अलार्म लगा लिया। सुबह साढे पांच बजे अपने-आप आंख खुल गई। गाडी कहीं रुकी हुई थी। उतरकर देखा तो यह घोडा डोंगरी स्टेशन था। ट्रेन अभी भी पौने दो घण्टे की देरी से चल रही थी। घोडा डोंगरी से ट्रेन चली और मैं फिर जाकर सो गया। फिर ठीक साढे छह बजे आंख खुली। ट्रेन रुकी हुई थी और बाहर ‘चाय-चाय’ की आवाजें आ रही थीं। सोचा कि बैतूल होगा। फिर भी झांककर देखा तो होश उड गये। यह आमला स्टेशन था। ट्रेन का यहां का प्रस्थान समय साढे छह बजे था और साढे छह बज चुके थे। फटाफट सारा सामान उठाया और बाहर निकलने को दौड लगा दी। प्लेटफार्म पर पहुंचकर देखा तो पीला सिग्नल जला हुआ था। पीला सिग्नल अर्थात ट्रेन को चल पडने का आदेश।
पांच दिनों की पैसेंजर ट्रेन यात्रा आमला से ही शुरू होने वाली है। आज मैं उस मार्ग पर यात्रा करूंगा जहां पौने पांच साल पहले कर चुका था। इसका कारण है कि आमला से सिवनी तक के बीच में कुछ स्टेशनों के फोटो तब मैं नहीं ले पाया था। वो काम आज करूंगा। छिन्दवाडा तक का आरक्षण इसलिये कराया ताकि छिन्दवाडा स्टेशन पर डोरमेट्री बुक करा सकूं। भले ही आमला से छिन्दवाडा तक मेरा पातालकोट एक्सप्रेस में आरक्षण था लेकिन मुझे फिर भी पैसेंजर ट्रेन का टिकट लेना पडेगा। आरक्षित टिकट केवल उसी ट्रेन में ही वैलिड था, किसी दूसरी ट्रेन में नहीं।
डेढ घण्टे आमला में प्रतीक्षा की। कुछ गाडियां इधर से उधर गईं, ज्यादा उजाला न होने के कारण मैं उनका नाम नहीं जान सका। एक ट्रेन जो सात बजकर सात मिनट पर आकर रुकी और दो मिनट बाद ही चल पडी, उसे ही पहचान सका। यह थी निजामुद्दीन से भुसावल जाने वाली गोण्डवाना एक्सप्रेस (12406) - पूरे एक घण्टे की देरी से चल रही थी। निजामुद्दीन से भुसावल जाने के लिये यह आमला, नागपुर वाला मार्ग परम्परागत मार्ग नहीं है। असल में दो गोण्डवाना एक्सप्रेस चलती हैं। सप्ताह में पांच दिन रायगढ और दो दिन भुसावल। शायद यह भुसावल वाली ट्रेन पहले कभी वर्धा तक चलती हो और बाद में इसे भुसावल तक बढा दिया हो।
ठीक आठ बजे छिन्दवाडा पैसेंजर ( 51253) चल पडी। सतपुडा का इलाका होने के कारण यहां छोटी-छोटी पहाडियां हैं। भू-दृश्य अच्छा लगता है। मानसून में यहां की खूबसूरती फटकर बिखरती है। छोटे-छोटे स्टेशन हैं और भीड बिल्कुल नहीं- लालावाडी, जम्बाडा, बारछी रोड, बोरधई, बरेलीपार, नवेगांव, मडकाढाना, हिरदागढ, जुन्नारदेव, पालाचौरी, इकलेहरा, परासिया, खिरसाडोह, गांगीवाडा टाउन और छिन्दवाडा जंक्शन। जुन्नारदेव स्टेशन पर यह ट्रेन आधा घण्टा खडी रही। छिन्दवाडा की तरफ से बैतूल पैसेंजर (59396) आई, तब यह आगे बढी।
चलिये, थोडा सा लेक्चर दे देता हूं। मेरी ट्रेन यानी आमला से छिन्दवाडा जाने वाली पैसेंजर का नम्बर था 51253 और छिन्दवाडा से आकर बैतूल जाने वाली ट्रेन का नम्बर था 59396। आपको ट्रेन नम्बर पढने आते हैं तो समझ गये होंगे लेकिन अगर नहीं आते तो समझा देता हूं। दोनों ट्रेनों का पहला अंक 5 है। इसका अर्थ है कि ये पैसेंजर ट्रेनें हैं, इनमें आगे एक इंजन लगा है और उसके पीछे कई डिब्बे हैं। यह डीजल इंजन भी हो सकता है और इलेक्ट्रिक इंजन भी। कुछ ईएमयू होती हैं जिनमें डिब्बे के अन्दर ही इंजन फिट होता है। इसी तरह डीएमयू होती हैं। ईएमयू का नम्बर 6 से शुरू होता है और डीएमयू का 7 से। ईएमयू बिजली से चलती है और डीएमयू डीजल से। तो जाहिर है कि ये दोनों ट्रेनें न ईएमयू है, न डीएमयू। परम्परागत पैसेंजर ट्रेन है- आगे एक इंजन और पीछे कई डिब्बे। अब आते हैं दूसरे अंक पर। एक ट्रेन का दूसरा अंक 1 है और दूसरी का 9 है। 1 का अर्थ है कि यह मध्य रेलवे या पश्चिम-मध्य रेलवे की ट्रेन है और 9 का अर्थ है कि यह पश्चिम रेलवे की ट्रेन है। मध्य रेलवे वाली ट्रेन का तीसरा अंक है 2, इसका अर्थ है कि यह नागपुर डिवीजन की ट्रेन है। उधर पश्चिम रेलवे वाली ट्रेन का तीसरा अंक है 3, इसका अर्थ हुआ कि यह रतलाम डिवीजन की ट्रेन है। चूंकि आमला और छिन्दवाडा तक के सभी स्टेशन मध्य रेलवे की नागपुर डिवीजन में आते हैं, इसलिये 51 से शुरू होने वाली ट्रेन के लिये यह घर की बात है। लेकिन रतलाम डिवीजन वाली ट्रेन यहां कैसे आ जाती है? यह अवश्य सोचने वाली बात है। इसका उत्तर है पेंच वैली पैसेंजर (59385/86)। पेंच वैली पैसेंजर इन्दौर से चलती है और सुबह तक छिन्दवाडा आ जाती है। इन्दौर रतलाम डिवीजन में आता है। छिन्दवाडा से इसे चूंकि रात को वापस इन्दौर जाना होता है तो दिन भर में यह एक चक्कर छिन्दवाडा से बैतूल का लगा आती है। अब वही पेंच वैली पैसेंजर के डिब्बे बैतूल का चक्कर लगाने जा रहे थे। इनमें एक शयनयान डिब्बे पर लिखा था - छिन्दवाडा-अमृतसर। यह एक डिब्बा छिन्दवाडा से पेंच वैली पैसेंजर के साथ जुडकर आमला तक जाता है और इससे अलग हो जाता है। फिर आमला में इसे बिलासपुर से आने वाली छत्तीसगढ एक्सप्रेस में जोड देते हैं और उसके साथ यह अमृतसर तक घूमकर आता है। यह एक डिब्बा एक लिंक ट्रेन के तौर पर काम करता है और इसमें ऑनलाइन आरक्षण भी होता है। आप नेट पर अमृतसर से छिन्दवाडा की ट्रेनें सर्च करेंगे तो एक ही ट्रेन दिखाई देगी। वह ट्रेन यही एक डिब्बा है।
रेलवे वाकई कमाल की चीज है। मन लगा रहता है।
चलिये, जुन्नारदेव से आगे बढते हैं। आधे घण्टे ट्रेन यहां रुकी और मैंने आपको अच्छा-खासा लेक्चर सुना दिया। लेक्चर से बचना है तो दुआ कीजिये कि ट्रेन अब किसी भी स्टेशन पर ज्यादा न रुके। लेकिन आपकी दुआओं से थोडे ही कुछ होता है? वो जमाना गया जब दुआ करने को हाथ उठता था और काम हो जाता था। अब वो बात नहीं रही। परासिया में ट्रेन आधे घण्टे के लिये फिर खडी हो गई। अबकी बार छिन्दवाडा से आने वाली पातालकोट एक्सप्रेस आई। यह वही ट्रेन थी जो मैंने आमला में छोड दी थी। इसकी पूरी कहानी पहले सुना चुका हूं, इसलिये अब दोहराने की जरुरत नहीं। अन्यथा आप जानते ही हैं कि पातालकोट एक्सप्रेस की कितनी लम्बी कहानी आपने ऊपर पढी है। चलिये, आगे बढते हैं। आपकी दुआ काम कर गई।
11 बजकर 57 मिनट पर ट्रेन छिन्दवाडा जंक्शन पहुंच गई। अपने निर्धारित समय से 3 मिनट पहले। कौन कहता है कि हमारी ट्रेनें समय पर नहीं चलतीं? बल्कि समय से पहले भी चलती हैं। साक्षात देखना है तो एक दिन के लिये मध्य रेलवे आओ।
यही ट्रेन 51256 बनकर 12 बजकर 35 मिनट पर जुन्नारदेव चली गई।
अब मुझे सिवनी जाने के लिये नैरो गेज की ट्रेन (58853) पकडनी थी। ट्रेन प्लेटफार्म पर लगी खडी थी। काफी समय से जबलपुर-नैनपुर लाइन बन्द है, तो अब कोई भी नैरो गेज की ट्रेन जबलपुर नहीं जा रही। इस वजह से इसमें भीड भी कम ही थी। 12 बजकर 45 मिनट पर ट्रेन ने सीटी बजाई और चल पडी।
इसका नम्बर है 58853। इसमें 5 का अर्थ तो आपको पता ही है। 8 का क्या अर्थ है? यह आपके लिये होमवर्क है। सारे नम्बरों के अर्थ मैं तो नहीं बताऊंगा ना?
पहला स्टेशन मिला घाट-परासिया। पिछली बार जब मैं इधर आया था, तो मुझे यह स्टेशन नहीं मिला था। ट्रेन यहां नहीं रुकी। मैंने सैटेलाइट से देखकर अन्दाजा लगाया था कि यहां स्टेशन है, इसलिये इसी की तरफ वाली खिडकी पर खडा हुआ। पहले कभी ट्रेनें यहां रुकती होंगीं, अब नहीं रुकतीं। पांच साल पहले भी नहीं रुकती थीं। रुकती तो मुझे पता चल ही जाता। तब मैं दूसरी खिडकी पर था, ट्रेन नहीं रुकी थी और मुझे इसका पता भी नहीं चला था। इसके बाद उमरिया-ईसरा, झिलीमिली के बाद मरकाहांडी उदादौन है। पांच साल पहले इसका नाम केवल ‘मरकाहांडी’ ही था। ‘उदादौन’ बाद में लगाया। फिर चौरई, काराबोह, कपुरधा, समसवाडा, पीपरडाही, मातृधाम और फिर सिवनी है। सिवनी से नैनपुर तक के सभी स्टेशनों के फोटो मेरे पास पहले से ही थे, इसलिये आगे जाने की जरुरत नहीं। मैं यहीं उतर गया और बस पकडकर वापस छिन्दवाडा आ गया।
छिन्दवाडा में पहले से ही एक डोरमेट्री बुक कर रखी थी। इसकी अवधि रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक थी। फिर भी मैं शाम छह बजे ही काउंटर पर पहुंच गया। उन्होंने आसानी से मान लिया और एक चाबी मुझे पकडा दी। पहली मंजिल पर जिस कमरे में वो चाबी लगी, उसे खोला तो वो बिल्कुल खाली मिला। खाली मतलब खाली। न कोई फर्नीचर, न कुछ। मैं वापस काउण्टर पर गया, सारी बात बताई तो उसके होश उड गये - चोरी तो नहीं हो गया? बताया कि यह सब नया बना है। हम भी कभी ऊपर नहीं गये। रुकने वाले आते, तो नीचे से ही सारी कागजी कार्यवाही करके चाबी पकडा देते। पहली बार ऊपर जाकर देखा। कमरे में कुछ भी नहीं था। कहां गया इतना महंगा फर्नीचर? इस कमरे में चार बिस्तर थे यानी चार डोरमेट्री थी। अब कुछ भी नहीं। माथे से मसीना चूने लगा। स्टेशन मैनेजर के पास गया- सर, यूं यूं हो गया। मैनेजर ने कहा- बैठो, पानी वानी पीओ, रीलैक्स हो जाओ। यह चाबी और ताला गडबडी फैलाते हैं। यह चाबी दो तालों में लग जाती है। वो कमरा तो पहले से ही खाली है। उसके सामने वाला कमरा खोलो। वहां सबकुछ है।
ये कम फोटो की शिकायत कौन कर रहा है? कोई फोटो की शिकायत नहीं करेगा।
अगला भाग: सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी बार- छिन्दवाडा से नागपुर
1. सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी यात्रा-1
2. सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी बार- छिन्दवाडा से नागपुर
3. सतपुडा नैरो गेज में आखिरी बार-2
4. जबलपुर से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा
1. सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी यात्रा-1
2. सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी बार- छिन्दवाडा से नागपुर
3. सतपुडा नैरो गेज में आखिरी बार-2
4. जबलपुर से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा
Extremely well written post, full of information.
ReplyDeleteDil khush ho gaya.
Khirsadoh waali photo bahut pasand aayi.
धन्यवाद भाई जी...
Delete""कौन कहता है कि हमारी ट्रेनें समय पर नहीं चलतीं? बल्कि समय से पहले भी चलती हैं। साक्षात देखना है तो एक दिन के लिये मध्य रेलवे आओ।""
ReplyDeleteसही कहा नीरज आपने, ऐसा लगता है ट्रेन लेट का चक्कर इधर नार्थ में ही ज्यादा है मध्य प्रदेश के निचे सब सही चलता है।
हाँ भाई, आपने ठीक कहा.
Deleteहाँ भाई कोई नहीं करेगा कम फोटो की शिकायत...
ReplyDeleteबड़ी मुश्किल से ब्लॉग की गाड़ी पटरी पर आ रही है...
कम फोटो की पोस्ट भी चलेंगी क्या...दौड़ेंगी भी...।
वेसे जब तुम यह ट्रेनों पर लेक्चर देते हो कि...ये ट्रेन यहाँ क्रॉस हुई इसका यह नंबर था..इसका इंजन ऐसा था..यह अब नाम परिवर्तन कर दूसरी जगह जायगी..फिर वापस आयगी और अपने गंतव्य पर पहुचेगी..और भी बहुत कुछ...
बहुत ज्ञानवर्धक होता है...
पर सच कह रहा हूँ सर चकरा जाता है।
धन्यवाद सुमित भाई...
Delete
ReplyDeleteसतपुड़ा के इस "ख़त्म " होते नैरो गेज ट्रैक पर आखिरी यात्रा आपके साथ करना अच्छा लगा ! आपको इतनी जानकारी कहाँ से मिल जाती है मित्र ?
धन्यवाद योगी जी,
Deleteअब जब यही शौक है तो इतनी जानकारियाँ मिल ही जाती हैं...
न तो फोटो कम है न तो मैटर कम है न तो सर चकराया और ट्रेनो का गड़ित भी ठीक से समझ मे आया। आप ट्रेन मे समय पर जाग भी गए और तो और डोरमेट्री भी गायब नहीं मिली यानि सब कुछ अच्छा ही अच्छा।
ReplyDelete""कौन कहता है कि हमारी ट्रेनें समय पर नहीं चलतीं? बल्कि समय से पहले भी चलती हैं। साक्षात देखना है तो एक दिन के लिये मध्य रेलवे आओ।""
ReplyDeleteसही कहा नीरज जी आपने.... क्युकी बेतुल स्टेशन में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस और समता एक्सप्रेस की इटारसी की और से जल्दी आ जाने की वजह से अनेको बार मुझे भी धोका हुआ है.। बहुत ही बढ़िया जानकारी है आपकी।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपातालकोट एक्सप्रेस तो रुला देती है ...एक बार दिल्ली गयी तो कान पकड़ लिए ..अब इस ट्रैन में सफर न बाबा न
ReplyDeleteमित्र बेतुल के आगे आमला स्टेशन से ही 05 km पहले बरसाली स्टेशन भारत के जिओग्राफिकल द्रिस्टीकोण से सेंटर में आता है ,यानि की वो भारत के बिलकुल हि मध्य स्थित रेलवे स्टेशन है ,यहा बाहर एक बोर्ड में यह जानकारी लिखा है आपने देखा क्या ?
ReplyDeleteमित्र बेतुल के आगे आमला स्टेशन से ही 05 km पहले बरसाली स्टेशन भारत के जिओग्राफिकल द्रिस्टीकोण से सेंटर में आता है ,यानि की वो भारत के बिलकुल हि मध्य स्थित रेलवे स्टेशन है ,यहा बाहर एक बोर्ड में यह जानकारी लिखा है आपने देखा क्या ?
ReplyDelete8 number railway zone ko batata hai
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-02-2016) को "नुक्कड़ अनाथ हो गया-अविनाश वाचस्पति को विनम्र श्रद्धांजलि" (चर्चा अंक-2247) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चर्चा मंच परिवार की ओर से अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी ट्रेन के बारे जानकारी गजब की है ।
ReplyDeleteइस तरह रेलवे स्टेशन के बोर्ड का चित्र खीचने का शौख का से और कैसे हुआ आपको ।
अब तक कितने स्टेशन के चित्र कैद कर चुके है ?
ट्रेन का no से ट्रेन की जानकारी वाला आपसे सीखना पड़ेगा ।
अगर पोस्ट में विस्तृत रूप से जानकारी का वर्णन हो तो फ़ोटो कम होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।
👍🏻
वैसे छोटी लाइन के ट्रेने आकर्षित बहुत करती है ........
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