[डायरी के पन्ने हर महीने की पहली व सोलह तारीख को छपते हैं।]
1 अगस्त 2013, गुरूवार
1. डायरी के पन्ने छपे तो आशीष लाल साहब ने बडी भावपूर्ण बात कह दी- जब कोई बीमार हो जाता है तो उसे देखने जाना ही बहुत महत्वपूर्ण होता है। जो करेगा वो तो डॉक्टर करेगा। आज उत्तराखण्ड घायल है नीरज, तुझे भी उसे देखने जाना चाहिये। बात अन्दर तक प्रविष्ट हो गई। सोच लिया कि गोवा के नाम की इन छुट्टियों में उत्तराखण्ड जाऊंगा। आशीष साहब के फेसबुक पेज पर गया तो वहां जाकर एक और दुविधा में पड गया। उनके यहां दूधसागर का जबरदस्त फोटो लगा था। यह फोटो देखकर दूधसागर देखने की चाह होने लगी।
पिछले साल भी सितम्बर में गोवा व दूधसागर का कार्यक्रम बनाया था जो ऐन वक्त पर रद्द हो गया और मैं रूपकुण्ड चला गया। इस बार भी शायद ऐसा ही होगा।
डॉक्टर करण से बात की। वे पिछले दिनों पिथौरागढ गये थे अपनी सेवाएं देने। अब फिर जाने का इरादा है उनका। कहने लगे- यार, लुगाई ना जाने दे रही। फिर भी मैं तुझे कल तक पक्का बता दूंगा कि जाऊंगा या नहीं। मैंने तय कर लिया कि अगर डॉक्टर साहब गये तो मैं भी जाऊंगा, नहीं तो नहीं। आखिरकार रात तक उनका उत्तर आ गया कि वे नहीं जा पायेंगे। उनकी मनाही के साथ मेरी भी मनाही हो गई।
2. तरुण गोयल साहब ने बताया कि हिमाचल में किन्नर कैलाश यात्रा इस साल नहीं होगी। स्थानीय देवता ने आदेश निकाला है कि कोई भी किन्नर कैलाश नहीं जायेगा। कारण बताया कि लोग वहां जाकर गन्दगी फैलाते हैं और गैर-जिम्मेदाराना ढंग से जाते हैं। मुझे डर है कि कहीं देवता अगले साल भी यह आदेश न निकाल दे।
सन्दीप पंवार साहब भी वहां जाने की फिराक में थे। उन्हें भी पता चल गया कि ग्रामीण किसी को भी आगे नहीं जाने दे रहे। कारण देवता ही है।
2 अगस्त 2013, शुक्रवार
1. कांवड यात्रा जोरों पर है। मैं चार बार हरिद्वार से मेरठ व एक बार हरिद्वार से पुरा महादेव तक कांवड ला चुका हूं, तो मेरा इस यात्रा के प्रति विशेष लगाव होना लाजिमी है। आखिरी बार 2009 में गया था, उसके बाद शिवजी के बडे बडे और दुर्गम स्थानों पर जाने लगा तो ठेठ मैदान में होने वाली इस यात्रा में रस खत्म हो गया। घर से धीरज गया है।
3 अगस्त 2013, शनिवार
1. शंकर राजाराम श्रीखण्ड महादेव और मणिमहेश की यात्रा सफलतापूर्वक करके लौट आये। उनकी चेन्नई की ट्रेन छह तारीख को है, तो उनकी मेजबानी का मौका मेरे ही पास रहने वाला है। वे 63 साल के हैं। उन्होंने कई ट्रेक किये हैं। श्रीखण्ड महादेव की यात्रा को वे बेहद कठिन की श्रेणी में रख रहे हैं।
4 अगस्त 2013, रविवार
1. बाल बहुत बढ गये थे। काम तमाम करा आया। साथ ही शेविंग भी। कुल पचास रुपये लगे। शंकर साहब भी साथ गये थे, मात्र पचास रुपये में बालों की कटिंग और शेविंग? बताया कि चेन्नई में तो कम से कम डेढ सौ रुपये लगते।
2. कमल कान्त ने झेलम एक्सप्रेस में नई दिल्ली से पाचोरा तक का तत्काल आरक्षण सफलतापूर्वक करा लिया। अब मुझे मंगला लक्षद्वीप का निजामुद्दीन से भुसावल का आरक्षण रद्द कराना है। झेलम से जाने का एक फायदा होगा कि हमें रात दो बजे न उठकर अब सुबह छह बजे उठना है। रात खराब होने से बच जायेगी।
5 अगस्त 2013, सोमवार
1. शंकर साहब को अपने एक मित्र से मिलने वसन्त विहार जाना था। जब मैं सात बजे नाइट ड्यूटी करके लौटा, तब तक वे नहा-धोकर जाने के लिये तैयार हो चुके थे। एक समस्या आई। पिछले दिनों गैस खत्म हो गई थी। एक मित्र से मांगकर काम चला रहे थे। मित्र साहब अपना सिलेण्डर वापस ले गये। सुबह सुबह शंकर साहब के लिये चाय भी नहीं बन सकी। ठण्डे दूध में ही चीनी घोलकर पीना पडा।
6 अगस्त 2013, मंगलवार
1. एक रेल यात्रा शुरू। शंकर साहब की ट्रेन दूरोन्तो एक्सप्रेस दोपहर बाद निजामुद्दीन से है। मेरी झेलम एक्सप्रेस नई दिल्ली से। झेलम जम्मू से आती है, दो घण्टे लेट आई। मैं इस बारे में पहले से ही चौकस था, इसलिये जब ट्रेन सोनीपत से निकल चुकी, तो हम अपने अपने स्टेशनों के लिये निकले। नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर हम अलग अलग हो गये। वे जंगपुरा मेट्रो से ऑटो पकडेंगे निजामुद्दीन के लिये।
रास्ते में फरीदाबाद से मेरे साथ कमल कान्त भी हो लिये। बाकी कहानी बाद में विस्तार से।
7 अगस्त 2013, बुधवार
1. गाडी दो घण्टे लेट जलगांव पहुंची। वैसे तो पाचोरा उतरने की योजना थी, लेकिन वहां से नैरो गेज की गाडी छूट सकती थी, इसलिये यहीं उतर गये। प्रशान्त भी मिल गया। बस से अजन्ता गुफा देखने चले गये। वापसी में जामनेर से पाचोरा की नैरो गेज की ट्रेन का आनन्द लिया। विस्तार से बाद में बताऊंगा।
8 अगस्त 2013, गुरूवार
1. कल्याण उतरे और लोकल पकडकर दीवा जा पहुंचे। यहां से सुबह छह बीस पर कोंकण रेलवे की मडगांव जाने वाली पैसेंजर चलती है। कोंकण रेलवे के मडगांव तक के खण्ड का आनन्द लिया। वैसे तो आज सिन्धुदुर्ग उतरना था लेकिन कुछ कारणों से यहां न उतरकर गोवा ही चले गये। विस्तार से बाद में।
9 अगस्त 2013, शुक्रवार
1. आज का पूरा दिन गोवा के नाम। मैंने कल ही तय कर लिया था कि आज कुछ नहीं करना है। सिर्फ कमरे में पडे रहना है। आज सुबह प्रशान्त और कमल गोवा घूमने निकल गये। मुझे एक बार उठाया जब वे बाहर निकल रहे थे कि कुण्डी लगा ले। मेरी आंख ग्यारह बजे खुली। पहले तो सोचा कि कुछ खा-पीकर पुनः कमरे पर ही आ जाऊंगा और कुछ लिख विख लूंगा। फिर सोचा कि सवा एक बजे वाली वास्को पैसेंजर से वास्को जाया जाये और मडगांव-वास्को रूट को पैसेंजर ट्रेन से देखा जाये। उधर से वापस मडगांव गोवा एक्सप्रेस से आ जाऊंगा। कल दूधसागर जाना ही है।
ऐसा ही किया और चार बजे तक वास्को घूमकर वापस कमरे पर आ गया।
गोवा वैसे तो घोर पर्यटक स्थल है। लेकिन मेरा यहां सिर दुख रहा है। जिधर भी निकल जाओ, हर आदमी मुंह फाडे आपकी जेब की तरफ देख रहा होता है। आप जितनी जेब ढीली करोगे, सामने वाला उतना ही आपकी गुलामी करेगा। उसकी गुलामी और जी-हजूरी देखकर ही पर्यटक खुश हो जाते हैं। कल जब हम कमरा ढूंढ रहे थे और पांच सौ के कमरे को महंगा जानकर जब मोलभाव कर रहे थे, कमरे की कमियां निकाल रहे थे तो टैक्सी वाले ने कहा- “भाईसाहब, आपको अगर अच्छा कमरा चाहिये तो ज्यादा पैसे खर्च करने पडेंगे। जेब से पैसे निकालो और मैं आपको टनाटन कमरा दिलाऊंगा। पैसे आप निकाल नहीं रहे हो, तो अच्छी चीज कैसे मिल सकती है?”
यही वो बात है जिसकी वजह से मुझे पर्यटक स्थल अच्छे नहीं लगते। एक बात और, समुद्र पर्यटकों के केन्द्र हैं और पहाड घुमक्कडों के। समुद्र तटों पर बीच होते हैं, जहां पर्यटकों की सुविधा के लिये, उनके मनोरंजन के लिये तरह तरह के इन्तजाम किये जाते हैं। पर्यटक पैसे फेंकते जाते हैं और खुश होते जाते हैं। मैं ठहरा घुमक्कड। पैसे फेंकने नहीं जानता, इसलिये ऐसी जगहों पर खुश होना भी नहीं जानता। पिछले दो दिन मेरे थे, आज का दिन कमल के नाम और और अगले सभी दिन फिर मेरे होने वाले हैं, इसलिये मुझे गोवा आकर और यहां बीच वगैर न देखकर कोई दुख नहीं है।
10 अगस्त 2013, शनिवार
1. आज का दिन दूधसागर के नाम था। ट्रेन से कुलेम और वहां से दूधसागर तक पैदल गये। इसे देखकर वहीं से शाम को ट्रेन पकडी और शिमोगा के लिये कूच कर गये। विस्तार से बाद में।
11 अगस्त 2013, रविवार
1. जोग प्रपात देखने गये। रविवार होने के कारण काफी भीड थी, फिर भी आनन्द आ गया। रात शिमोगा में रुके। आज पांच मिनट के लिये प्रवीण पाण्डेय साहब से भी मिलना हुआ। विस्तार से बाद में।
12 अगस्त 2013, सोमवार
1. आज का दिन ट्रेन यात्रा के नाम रहा। शिमोगा से अरसीकेरे व हासन के रास्ते मंगलौर तक ट्रेन यात्रा की। हासन-मंगलौर रूट भी एक शानदार रूट है। विस्तार से बाद में। रात मंगलौर में रुके।
13 अगस्त 2013, मंगलवार
1. कोंकण रेलवे का मुम्बई-मडगांव खण्ड तो पहले देख लिया था, आज बचा हुआ यानी मंगलौर-मडगांव खण्ड देखना शुरू किया। रास्ते में गोकर्ण रोड पर उतर गये और गोकर्ण चले गये। विस्तार से बाद में।
14 अगस्त 2013, बुधवार
1. आज शाम पौने चार बजे मडगांव से हमारा गोवा एक्सप्रेस से दिल्ली वापसी का आरक्षण था। गोकर्ण से पैसेंजर से मडगांव आये और अपनी गोवा एक्सप्रेस में सवार हो गये। विस्तार से बाद में।
15 अगस्त 2013, गुरूवार
1. आज स्वतन्त्रता दिवस है। पिछले साल इस दिन मैं कन्याकुमारी में था और आज पूरा दिन गोवा एक्सप्रेस में।
एक मित्र मिले। बातचीत होने लगी तो बातों का रुख फाइनेंशियल जिन्दगी की ओर चला गया। मैंने कहा कि मैं सिर्फ आज में जीता हूं। कल की कोई चिन्ता नहीं करता। सुबह उठकर भगवान को धन्यवाद देता हूं कि तूने एक दिन और दे दिया मुझे। फिर उस एक दिन का आनन्द मनाता हूं। अगले दिन का भरोसा नहीं है कि मिलेगा या नहीं। जब मिल जाता हूं तो बडा खुश होता हूं और फिर आनन्द मनाना शुरू कर देता हूं। इसलिये बचत के बारे में नहीं सोचता। पैसे बच गये तो ठीक, नहीं बचे तो भी ठीक। भविष्य को खुशहाल बनाने के लिये मैं अपने वर्तमान की खुशहाली नहीं छीन सकता।
उन्होंने कहा कि यह गलत प्रवृत्ति है। कुछ बचत भी करनी चाहिये ताकि भविष्य में काम आ सके। बूढा होने पर काम आ सके, मरने पर परिजनों के काम आ सके। मैंने विरोध किया कि जीते-जी हम तंगी में जीएं ताकि मरने के बाद दूसरे खुश रहें। ना, यह मेरा स्वभाव नहीं है।
अब उन्होंने ऐसा उदाहरण दिया जिसे सुनकर मुझे उनसे कहना पडा- मुझे क्रोध आने लगा है। इससे पहले कि मैं कुछ कह दूं, आप यहां से उठकर अपने डिब्बे में जाइये। मुझे और वाद-विवाद नहीं करना।
उन्होंने कहा कि मान लो तुम्हारे दोनों हाथ कट जायें, तो तुम कैसे जीओगे? कैसे खाना खाओगे, कैसे अखबार, किताबें पढोगे, कैसे घुमक्कडी करोगे? तब तुम्हारे इंश्योरेंस काम आयेंगे, बचत काम आयेगी। मैंने कहा कि हम इतने अच्छे, सुन्दर, सुडौल शरीर के मालिक हैं, इससे आनन्द मनाना छोडकर उस दिन का इन्तजार क्यों करें जब हमारे हाथ कटेंगे? और अगर जिन्दगी भर हाथ न कटें तो हमारे सारे अरमानों पर पानी फिर जायेगा। तब हम कहेंगे कि अपनी हाथ कटी जिन्दगी के लिये इतनी बचत की थी, इतने बीमे किये थे, सब बेकार हो गये। ...
... मैं एक साधु हूं। साधु की तुम्हारे मन में क्या इमेज है? कि वो दीन दुनिया से दूर रहता है, कोई मतलब नहीं होता उसे दुनिया और उसके मामलों से। बस, वही मैं हूं। दुनिया कहां जा रही है, क्यों जा रही है, उसे कोई मतलब नहीं। उसे तो बस अपनी राह ही चलना है।
डायरी के पन्ने-10 | डायरी के पन्ने-12
Aapki Dudhsagar trekking ka intezar
ReplyDeleteAAJ INTEZAR THA LEH SE AGE KI YATRA KARNE KA..
ReplyDeleteAaj dayri auq leh panno ka intjar tha le
ReplyDeletekin abhi ek ka intjar rhega
... मैं एक साधु हूं। साधु की तुम्हारे मन में क्या इमेज
ReplyDeleteहै? कि वो दीन दुनिया से दूर रहता है, कोई मतलब
नहीं होता उसे दुनिया और उसके मामलों से। बस,
वही मैं हूं। दुनिया कहां जा रही है, क्यों जा रही है,
उसे कोई मतलब नहीं। उसे तो बस अपनी राह
ही चलना है।
(वाह नीरज जी कया बात कही है आपने।लेकिन शादी हो जाने के बाद आपके ये विचार जलद ही बदल जाएगे जब आप बीबी,बचचो के बारे जयादा फिकृमनद हो जाओगे तब आपको भविशय के बारे मे सोचना ही पडेगा।)
Ab apse bhi jhagda hone ki sambhavna hai...
DeleteAesa nahi he sachin bhai , samay hamare pas unke har kam karva leta he .hamari javabdari sirf bibi bachche hi nahi he . Samaj me aaye he to samaj ko bhi kuch dena padata he . Neeraj bhai to vishvmanav he sabaki fikramand karte he. Me jab unke ghar gaya tha to 1 bar me aakele bahar nikal gaya to meri bhi fikar karte muje phone kar ke bole jaha tum ho vahi rahen me aa raha hu. Sadhu huae to kya javabdari puri uski to 2 javabdari banti he . And by the way NEERAJBHAI supar HERO he sabko sambhal lenge.
Deleteसचिन साहब, आप मेरे विचार बदलवाने के पीछे क्यों पडे हैं? अगर शादी के बाद इतने खूबसूरत विचार बदल जायेंगे तो शादी क्यों करें?
Deleteलीक-लीक गाड़ी चले..लीके चले कपूत..! तीन शख्स उलटा चले..साधू--सिंह--सपूत.
ReplyDelete.............अब उन्होंने ऐसा उदाहरण दिया जिसे सुनकर मुझे उनसे कहना पडा- मुझे क्रोध आने लगा है।
ReplyDeleteठण्ड रखा करो प्रभु जी !! बहुतेरे मिलेंगे !! सबके अपने -अपने विचार !!
आपसे मिलकर पिछले वर्ष का दुख धुल गया। हम तो सोचे बैठे थे कि जोग फॉल्स में साथ में घूमेंगे और बैठकर भोजन भी करेंगे। पाँच मिनट ही लिखा था पर मिल कर आनन्द आ गया। आपकी यात्रा तकनीक पर लिख रहा हूँ।
ReplyDeleteएक भौगोलिक शिखरों के घुमक्कड और दूसरे मानसिक शिखरों के घुमक्कड
ReplyDeleteदोनों ब्लॉगिंग के सिरमौर मिले, क्या बात है, वाह!
आपके विचार, आपकी सोच सही है और दूसरों की अपनी जगह सही
लेकिन दूसरे जब थोपते हैं, तब गुस्सा आ ही जाता है और तुम तो वैसे भी जाट हो :-)
आज कुंआ खोदो लेकिन पानी मत पीना, चाहे कितनी भी प्यास लगे। कल पीयेंगे कहीं कल कुंआ खोदने की ताकत ना बची तो?
ऐसे विचार मुझे भी नापसन्द हैं।
प्रणाम
मैं एक साधु हूं। साधु की तुम्हारे मन में क्या इमेज है? कि वो दीन दुनिया से दूर रहता है, कोई मतलब नहीं होता उसे दुनिया और उसके मामलों से। बस, वही मैं हूं। दुनिया कहां जा रही है, क्यों जा रही है, उसे कोई मतलब नहीं। उसे तो बस अपनी राह ही चलना है।
ReplyDeletejai ho
Neeraj ji I like your site very much.
ReplyDeleteनीरज भाई सभी के विचार अलग-अलग होते है आपने अपनी बात सभी के साथ बाटी इसलिए मेने भी अपने विचार आपके सामने रखे।सहमत होना या असहमत ये तो आपके ऊपर है।लकिन मै अपनी बात कहूं तो मुझे शादी के बाद ही जिममेदारी का अहसास हुआ।बाकी आप से या आप के विचारो से कोई मतभेद नही है। वैसे भी हम तो आप के फैन है नीरज भाई।
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