इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
27 अप्रैल 2013
सुबह सराहन में साढे पांच बजे उठा और अविलम्ब बैग उठाकर बस अड्डे की ओर चल दिया। तीन बसें खडी थीं, लेकिन चलने के लिये तैयार कोई नहीं दिखी। एक से पूछा कि कितने बजे बस जायेगी, उसने बताया कि अभी पांच मिनट पहले चण्डीगढ की बस गई है। अगली बस साढे छह बजे रामपुर वाली जायेगी।
चाय की एक दुकान खुल गई थी, चाय पी और साढे छह बजे वाली बस की प्रतीक्षा करने लगा।
बिना किसी खास बात के आठ बजे तक रामपुर पहुंच गया। यहां से शिमला की बसों की भला क्या कमी? परांठे खाये। नारकण्डा की एक बस खडी थी। मैंने उससे पूछा कि यह बस नारकण्डा कितने बजे पहुंचेगी तो उसने बताया कि पौने बारह बजे। साथ ही उसने यह भी बताया कि हम थानाधार, कोटगढ के रास्ते जायेंगे इसलिये सीधे रास्ते से जाने वाली बस के मुकाबले आधा घण्टा विलम्ब से पहुंचेंगे। बस के कंडक्टर ने ही सलाह दी कि पीछे पीछे सीधे रास्ते वाली बस आ रही है, आप उससे चले जाना। मैं उसकी यह सलाह सुनकर नतमस्तक रह गया।
खैर, दूसरी बस आयी। यह शिमला वाली बस थी। नारकण्डा उतरने का सवाल ही नहीं था। एक बजे तक शिमला के नये बस अड्डे पहुंच गया। मन में आया कि आज रेल से कालका चलते हैं। ढाई बजे कालका वाली पैसेंजर चलती है, उसी से चलता हूं। नये बस अड्डे से पुराने बस अड्डे तक बसें चलती हैं, रास्ते में शिमला रेलवे स्टेशन पडा। कालका का टिकट तीस रुपये का मिला जनरल डिब्बे का।
यह शिमला-कालका के बीच चलने वाली एकमात्र पैसेंजर ट्रेन है। दो ट्रेनें एक्सप्रेस हैं और बाकी पूरी तरह आरक्षित। इस पैसेंजर में एक डिब्बा प्रथम श्रेणी का भी था, दो जनरल डिब्बों को आरक्षित कर दिया था, एक डिब्बा महिलाओं के लिये आरक्षित था। बचे तीन जनरल डिब्बे, जब तक मैं पहुंचा सभी सीटें भर चुकी थीं।
दो बजे के आसपास कालका से आने वाली रेल बस आई, उसके आधे घण्टे बाद शिवालिक डीलक्स एक्सप्रेस। ये दोनों गाडियां अपने निर्धारित समय से करीब तीन घण्टे लेट आई थीं, इसका अर्थ था कि बडी लाइन की हावडा- कालका मेल चार घण्टे के करीब लेट आई थी।
ढाई बजे पैसेंजर चल पडी। मैं चार साल पहले इस लाइन पर यात्रा कर चुका हूं, लेकिन तब मुझे यात्रा करने का शऊर नहीं आता था। रात भर दिल्ली से चलकर कालका पहुंचा था। किसी तरह एक्सप्रेस गाडी में सीट मिल गई थी, सोलन तक जगा भी रहा था, उसके बाद नींद शिमला पहुंचकर ही खुली थी। आज ऐसा नहीं था।
गाडी में भीड नहीं थी, हालांकि सभी सीटें भरी थीं। फिर भी मुझे बैठने के लिये एक सीट मिल गई। पता चला कि मेरे बराबर वाले यात्री तारादेवी उतरेंगे। तारादेवी में मुझे खिडकी वाली सीट मिल गई, जो कालका तक अपनी ही रही।
हिमाचल में दो रूटों पर टॉय ट्रेन चलती हैं- कालका शिमला और कांगडा में। कांगडा वाली ट्रेनों में कोई आरक्षण नहीं होता, सभी ट्रेनें समय पर चलती हैं, इसलिये भयंकर भीड रहती है। उसके उलट शिमला वाली ट्रेनों में आरक्षण होता है, ट्रेनें समय पर नहीं चलतीं, इसलिये केवल पर्यटक या गिने-चुने दैनिक यात्री ही इनका प्रयोग करते हैं। शिमला वाली लाइन विश्व विरासत हैं, फिर भी समय पर नहीं चलतीं। इसका कुछ विशेष कारण है।
इस रूट पर कालका से सुबह चार बजे पैसेंजर रवाना होती है। यह हमेशा समय पर निकल जाती है। इसके बाद छह बजे के आसपास शिवालिक डीलक्स, रेलबस और एक्सप्रेस गाडी हावडा से आने वाली बडी लाइन की कालका मेल पर निर्भर होती हैं। बडी गाडी समय पर आयेगी तो छोटी ट्रेनें भी समय पर चलेंगी, वह चार घण्टे लेट आयेगी तो छोटी भी चार घण्टे लेट चलेंगी। ऐसे में कैसे ये गाडियां स्थानीय दैनिक यात्रियों के काम आ सकती हैं?
इस लाइन का मुख्य आकर्षण सुरंगें हैं, लेकिन ज्यादातर सुरंगें नकली हैं। जहां कहीं भू-स्खलन का खतरा ज्यादा है, वहीं ट्रैक के दोनों तरफ दीवारें खडी करके छत डाल दीं। भू-स्खलन होगा तो मिट्टी पत्थर छत के ऊपर रुक जायेंगे, रेल की पटरी सुरक्षित रहती हैं। असली सुरंगें तो गिनी चुनी ही हैं।
बडोग स्टेशन इस लाइन का दूसरा आकर्षण है। यहां इस लाइन की सबसे लम्बी सुरंग है जो एक किलोमीटर से भी ज्यादा है। सुरंग बिल्कुल सीधी है और दूसरा सिरा दिखाई देता है। कहते हैं कि बडोग नामक अंग्रेज इंजीनियर के ऊपर यह सुरंग बनाने की जिम्मेदारी थी। दोनों तरफ से सुरंगें बनाने का काम शुरू हुआ। लेकिन ये मिल नहीं सकीं। दो सुरंगें बन गईं। एक में आज रेल की लाइन है, दूसरी इस सुरंग से एक किलोमीटर दूर है। मैंने अभी तक उसे नहीं देखा।
बडोग में गाडी दस-पन्द्रह मिनट रुकती है। खाने पीने की चीजें मिल जाती हैं, लेकिन महंगी मिलती हैं।
इसी तरह कोटी की सुरंग भी है। यह बडोग के बाद दूसरी लम्बी सुरंग है, किलोमीटर से ज्यादा लम्बी ही है। दोनों की खास बात है कि दोनों में ही सुरंग से बिल्कुल सटकर स्टेशन है।
कुछ ऊंचे पुल भी आकर्षण रखते हैं। एक पुल तो चार मंजिला है।
साढे आठ बजे तक गाडी कालका पहुंच गई। दिल्ली जाने के लिये पौने बारह बजे चलने वाली हावडा मेल में मेरा आरक्षण चण्डीगढ से था। कालका से वेटिंग चल रही थी, चण्डीगढ से पक्की बर्थ मिल गई थी।
इन तीन घण्टों का सदुपयोग करते हुए मैं कालका में रहने वाले एक रिश्तेदार के यहां चला गया। मेरा अपनी किसी भी रिश्तेदारी में आना-जाना नहीं है। पिताजी का बहुत ज्यादा आना-जाना है। अचानक मेरे वहां पहुंच जाने से उन्हें खुशी तो मिली, साथ ही जिद पर भी अड गये कि कल जाना। मैंने फिर कभी आने की बात करके पीछा छुडाया।
जब भाई मुझे साढे ग्यारह बजे कालका स्टेशन छोडने आये तो मैं टिकट लेने लगा। बोले कि तेरा तो आरक्षण है, फिर क्यों टिकट लेता है? मैंने बताया कि चण्डीगढ से है आरक्षण। चण्डीगढ तक तो टिकट लेना ही पडेगा। बोले कि मत ले टिकट। आधा घण्टा भी नहीं लगेगा चण्डीगढ पहुंचने में, कोई चेक करने नहीं आयेगा। मैंने कहा कि जिसके नाम का मैं खाता-पीता हूं, उसके साथ गद्दारी नहीं कर सकता।
चण्डीगढ में इस गाडी में कुछ डिब्बे और जुडते हैं। मेरा आरक्षण उन्हीं डिब्बों में से एक में था। यह गाडी पहुंची प्लेटफार्म नम्बर एक पर जबकि वे डिब्बे खडे थे चार पर। मैं सीधा चार पर ही पहुंच गया। कब वे डिब्बे गाडी में जुडे, कब गाडी दिल्ली पहुंची, कुछ नहीं पता। सब्जी मण्डी आंख खुली, तुरन्त उतर गया। प्रताप नगर से मेट्रो पकडकर सीधा शास्त्री पार्क।
रेल बस |
शिमला स्टेशन पर नीचे वाली लाइनें कालका जाती हैं, ऊपर साइडिंग और गाडी सफाई विभाग है। |
एक गाडी शिमला जाती मिली। इसमें दो मालडिब्बे लगे थे, इनमें पानी की टंकियां थीं, साथ ही सवारियां भी। |
जनरल डिब्बा खाली पडा है। |
बडोग सुरंग |
कालका शिमला रेल- भाप इंजन से आधुनिक इंजन तक |
बडोग सुरंग मार्ग की सबसे लम्बी सुरंग है, फिर भी इसका दूसरा सिरा दिखता है। |
धर्मपुर स्टेशन |
यह है कोटी स्टेशन और सुरंग |
1. सराहन की ओर
2. सराहन से बशल चोटी तथा बाबाजी
3. सराहन में जानलेवा गलती
4. शिमला-कालका रेल यात्रा
बड़ोग सुरंग के बारे में अभी अभी जानने को मिला, खुले डिब्बो में सवारी करना भी एक अच्छा अनुभव है|
ReplyDeleteबहुत सुंदर सर
Deleteबड़ोग सुरंग की हकीकत, सहसा विश्वास नहीं होता.
ReplyDeleteवाह, सुन्दर चित्र..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
DeleteShreekhand yatra ke samay ham bhi janevale he aapki kripa se ham ja sakenge . Bas jab se shreekhand yatra padhi he tab se 1 hi dhun he .
ReplyDeletegood
ReplyDelete1km. लम्बी सुरंग 3 साल में अँगरेज़ ही बना सकते हैं.. हमारे यहाँ तो 700 मीटर का फ्लाई ओवर बनते बनते 7 साल हो गयी ... आधा बनके चुका है....
ReplyDelete