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डायरी के पन्ने- 4

[डायरी के पन्ने हर महीने की पहली और 16 तारीख को छपते हैं।]

16 मार्च 2013
1. सुबह सात बजे मोबाइल की घण्टी बजी तो आंख खुली। मैं वसन्त विहार स्थित तेजपाल जी के यहां था। फोन नटवर का था जो आज पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुंच गया। कई दिनों से हमारी मुलाकात तय थी लेकिन कल जेएनयू से लौटते समय ठण्ड लगने लगी और मैं वसन्त विहार चला गया। मुलाकात को भूल गया। अब मैंने उससे माफी मांगी और नौ बजे तक शास्त्री पार्क पहुंचने का वादा कर दिया। साढे सात बजे जब यहां से चलने लगा तो तेजपाल जी ने रोक दिया कि नाश्ता करके जाना। नाश्ता बनने में चूंकि देर थी, फिर भी अति आग्रह के कारण रुकना पडा और साढे आठ बजे रवाना हो सका। अब साइकिल से निकलता तो दस से ऊपर हो जाते शास्त्री पार्क पहुंचने में इसलिये साइकिल यहीं छोड दी और ऑटो करके हौजखास से मेट्रो पकडकर सवा नौ बजे तक शास्त्री पार्क पहुंच गया।
किसी को अगर आप मिलने का समय देते हैं तो आपको हर हाल में उस समय पर उपस्थित होना ही होना चाहिये। नटवर को आज किसी अन्य मित्र के साथ फिरोजपुर जाना है। डेढ बजे मैं ड्यूटी चला गया और नटवर अपने मित्र के पास कनॉट प्लेस।

17 मार्च 2013
1. आज साइकिल लेने वसन्त विहार जाना था, लेकिन नहीं जा पाया।

19 मार्च 2013
1. पता चला कि बद्रीनाथ तिब्बत स्थित थोलिंग मठ का शाखा मठ था। इसमें स्थित मुख्य प्रतिमा भगवान बुद्ध की है।

20 मार्च 2013
1. नाइट ड्यूटी से निपटकर घर जाने की बजाय मेट्रो पकडी और वसन्त विहार पहुंच गया। साइकिल की बडी कमी महसूस हो रही है। तेजपाल जी घर पर ही थे और ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। मेरे जाने के दस मिनट बाद निकल भी गये। उनके निकलते ही उनके लडके हर्षित ने साइकिल की चाबी मांगी और चलाने की इच्छा जाहिर की। मैंने चाबी दे दी। सोचा कि दो चार घण्टे यहीं सो लेता हूं, हर्षित मन भरकर साइकिल भी चला लेगा और मेरी रात्रि सेवा की थकान भी दूर हो जायेगी। आखिर यहां से शास्त्री पार्क करीब पच्चीस किलोमीटर है और डेढ घण्टे लगते हैं।
बारह बजे आंख खुली। आंख तो हालांकि अच्छी तरह लगी ही नहीं थी। इनके घर के पीछे कुछ तोडफोड कार्य चल रहा था, इसलिये बडी जोर जोर की ठोक-पीट की आवाज आने से नींद आई नहीं और भागी भी नहीं। साइकिल लेकर चला तो घण्टे भर में ही पन्द्रह किलोमीटर चलकर इण्डिया गेट पहुंच गया। यहां एक कार की हल्की सी साइड पिछले पहिये पर लग गई। यह इतनी हल्की थी कि मैंने इसे तूल नहीं दिया। लेकिन इसके बाद साइकिल बडी भारी चलने लगी। सबसे पहले दिमाग में आया कि इतने दिन से साइकिल वसन्त विहार में थी तो गिर गिरा पडी होगी और डिस्क ब्रेक का सन्तुलन बिगड गया होगा। तभी ध्यान आया कि आधी दूरी बडी आसानी से तय हुई, अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि ब्रेक गडबड कर रहे हैं।
याद आ गया कि कार की साइड लगी थी जिससे डिस्क ब्रेक बिगड गये। आखिर के पांच छह किलोमीटर किस तरह खींचकर लाया, मैं ही जानता हूं। आते ही पिछला ब्रेक खोल दिया। अब साइकिल अगले ब्रेक के भरोसे ही चल रही है। पिछला डिस्क निकलवाकर उसके स्थान पर साधारण ब्रेक लगवाऊंगा।
2. कभी कभी अक्सर ग्रह नक्षत्र अपनी चाल बदल देते हैं। मेरे भी ग्रहों ने उल्टा-पुल्टा चलना शुरू कर दिया और बिना वजह मैं तनाव में आ गया। लग रहा था कि मन में कुछ बात है, जो कचोट रही है। वैसे तो बिना वजह कुछ नहीं होता, इस तनाव की भी एक वजह थी जिसे लिखने का मन नही कर रहा है। उपयुक्त समय आने पर बता दूंगा।
तनाव से मुक्ति के लिये ध्यान लगाया तो कानों में आवाज आई- साइकिल से मत जा, बस से ही चला जा। इसे चमत्कार या फिजूल बात नहीं मानना चाहिये, ध्यान लगाने पर ऐसा अक्सर होता रहता है। मैंने ध्यान लगाया था किस परेशानी से बचने के लिये था लेकिन निर्देश मिल कहां के रहे हैं! वैसे भी पांच छह किलोमीटर अति मुश्किल साइकिल चलाने से पैर दुखने लगे थे, शायद उसी की वजह से यह निर्देश मिला हो। आराम-तलब शरीर आराम ही चाहता है, इसलिये इस आदेश का तुरन्त पालन किया गया और नटवर को सूचना दे दी कि बस से ही चलेंगे। नटवर ने सुनते ही कहा कि भगवान ने मेरी सुन ली।
असल में मैं और नटवर हिमाचल के दौरे की योजना काफी दिनों से बना रहे थे। मेरी जिद थी कि साइकिल से जाऊंगा, नटवर का कहना था कि बस से चलेंगे। मेरी जिद को देखने हुए नटवर ने साइकिल का इंतजाम करने की कोशिशें भी शुरू कर दी थीं, लेकिन वो कभी भी साइकिल के लिये राजी नहीं था। अचानक मेरा यह अप्रत्याशित विचार सुनकर उसे भगवान को धन्यवाद देना ही था।

21 मार्च 2013
1. नाइट ड्यूटी करते ही शाहदरा से सुबह छह बजे वाली ट्रेन पकडी और सीधा मेरठ। कई दिन हो गये थे गांव गये हुए। कल सायंकालीन ड्यूटी है तो आज दिनभर और पूरी रात घर पर रहूंगा।
2. घर में कुछ निर्माण कार्य होना है लेकिन ईंटें बहुत महंगी हैं- 4800 रुपये प्रति हजार। अप्रैल में भट्टे चलेंगे तो ईंटों के दाम गिरेंगे। तब निर्माण कार्य छेडेंगे।

22 मार्च 2013
1. बस से दिल्ली लौट आया। मेरठ शहर में पानी की पाइप लाइन बिछने के कारण दिल्ली जाने वाली बसें बाइपास से जाती हैं, तो इससे मेरा भला हो जाता है। बुरी बात ये है कि उस समय कोई ट्रेन नहीं है जो दो बजे तक दिल्ली पहुंचा दे। हालांकि ग्यारह बजे एक ट्रेन है जिसके लिये दस बजे घर से निकलना पडता है। मैं ग्यारह बजे ही घर से निकलता हूं। दो बजे तक शास्त्री पार्क पहुंच गया। साथ में तीन किलो शक्कर भी लाया।

23 मार्च 2013
1. तरुण गोयल से बात हुई। उन्होंने पिछले साल अप्रैल में स्थानीय लोगों के साथ रोहतांग दर्रे को पैदल पार किया था, जबकि इसके खुलने में अभी हप्तों की देरी थी। रोहतांग दर्रा अक्सर मई में खुलता है। पता चला कि इस बार भी उनका इरादा रोहतांग पार करने का है। उन्होंने बताया कि अभी हिमाचल में मौसम खराब है। अगले दो दिनों में मौसम खुलने के आसार हैं। मौसम ठीक होते ही स्थानीय लोग दर्रे को पार करना शुरू कर देंगे।
मेरा भी मन डोलने लगा है इस बात को सुनकर। हालांकि नटवर और प्रशान्त के साथ अप्रैल के शुरू में करसोग घाटी भ्रमण की बात पक्की हो चुकी है। प्रशान्त ने कह रखा है कि पैदल पहाड की चढाई बस की बात नहीं है, लेकिन कोशिश करके देखूंगा। नटवर पहाड पर पहली बार चढने जा रहा है। अगर करसोग रद्द करके मैं रोहतांग जाने लगा तो किसी भी हालत में नटवर को मनाली से आगे नहीं बढने दूंगा। नटवर मुझे गालियां देगा। गालियां मंजूर।

25 मार्च 2013
1. विपिन गौड से बात हुई। वे हमारे साथ लगभग दो साल पहले श्रीखण्ड महादेव की यात्रा पर गये थे। पता चला कि इस बार इनका इरादा साइकिल से लद्दाख जाने का है। कुछ दिन पहले तक मेरा भी यही इरादा हुआ करता था, लेकिन अब मैं अपने इस इरादे से पीछे हटने लगा हूं। गौड साहब ने पूछा कि मैं कब जाऊंगा। मैंने मना कर दिया तो उकसाने लगे। उकसावे में आकर मैंने कह तो दिया लेकिन साथ ही यह भी जोड दिया कि आप अपनी तैयारी करते रहना, मेरा हिसाब बनेगा तो चल पडूंगा। नहीं बनेगा तो नहीं जाऊंगा।
वैसे अभी भी मेरा इरादा साइकिल चलाने का कतई नहीं है। दिवाली पर बोनस मिला था, तो पता नहीं कौन से नक्षत्र खराब थे कि चौदह हजार लगाकर यह साइकिल ले ली। साइकिल क्या ले ली, सफेद हाथी पाल लिया। एक दो यात्राओं में ही इतना अनुभव हो गया है कि अगली यात्रा के लिये मन नहीं करता।
गौड साहब के साथ कुछ महीनों पहले एक दुर्घटना हो गई थी। उनके एक पैर में भयंकर चोट आई। कई दिनों तक बिस्तर पर भी रहे। अब इनका साइकिल से लद्दाख जाना वाकई काबिले सलाम है।
2. रात दस बजे तरुण गोयल साहब का सन्देश आया कि टांडी और केलांग में डेढ फीट बर्फ गिरी है और रोहतांग पर तीन चार फीट। अगले चार पांच दिनों तक मौसम खुलने के आसार भी नहीं हैं। रोहतांग यात्रा अप्रैल के पहले सप्ताह के बाद ही शुरू हो पायेगी। यह समाचार सुनकर मैंने इरादा बना लिया कि रोहतांग नहीं जाऊंगा, करसोग ही चला जाता हूं। कम से कम नटवर की गालियों से तो बच जाऊंगा।

26 मार्च 2013
1. सुबह सात बजे ड्यूटी पहुंचा। प्रातःकालीन सेवा करने वाले सभी कर्मचारियों के मस्तक पर पीत तिलक लगा देखकर पता चल गया कि यह कल की चेतावनी है। आज होली है और कल दुल्हैंडी। पीत तिलक का कर्ता धर्ता चन्द्रप्रकाश था। देखते ही होली मुबारक कहते हुए मुझे भी तिलकधारी बना दिया।
2. मार्च में मैंने एक भी अवकाश नहीं लिया। साप्ताहिक अवकाश भी नहीं। ये सारे के सारे अवकाश अप्रैल आते ही इकट्ठे लूंगा। आठ दिन की छुट्टियां बन जायेंगी। अप्रैल साल का एक ऐसा मनहूस महीना होता है कि उत्तरी मैदानों से लेकर कन्याकुमारी तक गर्मी परेशान करती है, हरियाली न्यूनतम रहती है और पहाडों के ऊंचे इलाके बर्फ की वजह से बन्द रहते हैं। दो हजार मीटर से ऊपर जाने पर अच्छा लगता है लेकिन तीन हजार मीटर तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है- बर्फ की वजह से। मई से ट्रैकिंग यथावत शुरू हो जायेगी।
सोच रहा हूं कि अप्रैल की आठ छुट्टियों में नेपाल चला जाऊं। नटवर को नेपाल के लिये सूचित कर दिया। उसने खुश होते हुए कहा कि हमारे पंडितजी ने भविष्यवाणी की है कि मैं अगले महीने विदेश यात्रा करूंगा। उनकी भविष्यवाणी सत्य होती जा रही है। इधर मेरा पण्डितों और भविष्यवाणियों पर कतई विश्वास नहीं है। भविष्यवाणी की बात सुनते ही दिमाग खराब हो गया और ठान लिया कि बेटा नटवर, मेरे रहते अब जाकर दिखाना तू विदेश।
सीधे मना करने की बजाय मैंने कहा कि भाई, ट्रेन देख। जिस गाडी में भी आरक्षण मिल जायेगा, उसी से निकल पडेंगे। महाराज ने दो मिनट में ही जवाब दिया कि दिल्ली से गोरखपुर के लिये दो गाडियों में जगह खाली है। मेरा दिमाग फिर खराब कि बिहार रूट पर हफ्ते भर के भीतर, वो भी होली के तुरन्त बाद ऐसी कौन सी गाडियां हैं, जिनमें जगह खाली है। उसने बताई दोनों स्पेशल गाडियां। स्पेशल यानी जो बिहारियों के लिये चलाई जाती हैं और बिहारी ही उनमें यात्रा करना पसन्द नहीं करते। मैंने तुरन्त कहा कि भूल जा इन गाडियो को। अगर दो तारीख को इनका चलना निर्धारित है तो ये तीन तारीख को चलेंगी। मैंने बोला तो झूठ ही था लेकिन पण्डितजी को झूठा बनाने के लिये कुछ भी करूंगा।
सोच लिया है कि नटवर के पण्डत के लिये करसोग ही जाऊंगा। नटवर को विदेश नहीं जाने दूंगा। वैसे नेपाल जाने के लिये मेरी योजना थी नेपालगंज के रास्ते। बरेली से दो तारीख की शाम को चलने वाली गोकुल एक्सप्रेस में सात शायिकाएं खाली थीं। नानपारा उतरकर नेपालगंज है ही कितना दूर? और दिल्ली से बरेली है कितना दूर?
3. यहां मेट्रो के स्टाफ क्वार्टरों में भी होली की धूम है। हमारे ही क्वार्टर के नीचे होलिका दहन की तैयारी हो चुकी है। डीजे भी है। शाम आठ बजे डीजे ने चीखना शुरू किया। अब साढे ग्यारह बज गये हैं। तभी से लगातार चीखता जा रहा है। शुरूआत में छोटे छोटे बच्चे नाच रहे थे, अब बडी बडी ‘नृत्यांगनाएं’ भी उछल-कूद कर रही हैं। समझ में नहीं आता कि इस कानफोडू संगीत का क्या मतलब? अगर ध्वनि-तीव्रता कुछ कम हो जाती तो अच्छा भी लगता। सुबह छह बजे से ड्यूटी है, भयंकर संगीतज्ञों की वजह से नींद मीलों दूर है।
और हां, अभी भी होलिका दहन नहीं हुआ है। सारा भारत होली फूंक-फांककर सो चुका है, ये लोग पता नहीं कब फूंकेंगे और कब सोयेंगे। हां, याद आया। इन फूंकने वालों की कल छुट्टी है।

27 मार्च 2013
1. छह बजे आंख खुली। आज दुल्हैंडी है यानी सरकारी कार्यों के लिये आज होली है। भारत के दो महान त्यौहारों में से एक। आंख मलता मलता बालकनी में गया। सामने सूरज निकलता दिखाई दिया। वो भी होली के रंगों में लाल-पीला हो चुका था। इधर हमारे लाल-पीले होने में अभी घण्टे भर की देर है, सूरज महाराज निकलने से पहले ही रंगीन हो गये।
2. सात बजे ऑफिस पहुंचा। जाते ही रात्रिसेवकों ने रंग दिया। वे गये तो प्रातःसेवक आ गये, फिर रंगा गया। कुछ केले, अंगूर व नमकीन भी आ गये। रंग का दौर पन्द्रह मिनट ही चला, उसके बाद खाने का दौर शुरू हुआ। एक आदर्श देशप्रेमी का दायित्व निर्वाह करते हुए मैंने घोषणा कर दी कि आज शुष्क होली खेली जायेगी। सभी आदर्श देशप्रेमी निकले। पानी की एक बूंद बर्बाद हुए बिना होली मनी। हां, बाद में मुंह धोने के लिये पानी जरूर आवश्यक था।
3. यूथ हॉस्टल की एक मेल आई जिसमें याद दिलाया गया था कि भाई, पहली मई को सौरकुण्डी पास की ट्रेकिंग में आ जाना। इस ट्रेकिंग के साढे तीन हजार रुपये जा चुके हैं। चार दिन का ट्रैक और ग्यारह दिन लगेंगे। इस प्रकार यह समय की भारी बर्बादी है। हालांकि मुझे सरकारी कर्मचारी होने के नाते स्पेशल छुट्टियां मिलेंगी लेकिन फिर भी है तो समय की बर्बादी ही। उधर मेरी दूसरी राय यह है कि मैं एकान्तप्रेमी घुमक्कड हूं। अगर इस ट्रेक पर जाऊंगा तो चालीस लोगों के साथ एक टीम लीडर के निर्देश पर चलना पडेगा। यूथ हॉस्टल के ट्रेक बिल्कुल नौसिखियों के लिये होते हैं। दो ट्रेक करने वाले को टीम लीडर बना दिया जाता है। इस प्रकार जो भी टीम लीडर या कैम्प लीडर होगा, वो मुझसे कम अनुभवी ही होगा। कम अनुभवी लोगों की उंगलियों पर नाचना मेरे बस की बात नहीं। होली के बाद इस ट्रेक को रद्द कराऊंगा। अठारह सौ रुपये का नुकसान जरूर होगा, लेकिन कम से कम सात दिन तो बच जायेंगे। ग्यारह दिन का ट्रेक है, अपने बल पर चार दिन में कर सकता हूं।
बाकी आलस जिन्दाबाद। देखते हैं कि होली के बाद आलस महाराज रद्द कराने का काम करने देते हैं या नहीं।

28 मार्च 2013
1. दस्त लग गये। घर से कुछ दिन पहले जो शक्कर लाया था, उसे दूध में घोलकर पीने लगा, दस्त लगने ही थे। अस्पताल जाने की कोई आवश्यकता नहीं, शक्कर लेना कम कर दूंगा। वैसे दूध में नीचे जो अधघुली शक्कर बच जाती है, उसे चम्मच से खाने का आनन्द ही अलग है।
2. ‘कादम्बिनी’ से राजीव कटारा जी का फोन आया। उनका आग्रह था कि मैं ‘कादम्बिनी’ के मई अंक के लिये एक लेख लिखूं। मई अंक पर्यटन विशेषांक बनने जा रहा है। उनके आग्रह को तुरन्त मानते हुए रूपकुण्ड यात्रा लिखकर भेज दी। इस साल सितम्बर में नन्दा देवी राजजात यात्रा होने जा रही है, तो रूपकुण्ड से बेहतर और क्या हो सकता है?
3. अप्रैल में आठ दिन की छुट्टियां लेनी ही लेनी पडेंगी। सोच रहा हूं कि चार-चार दिन के दो खण्डों में लूं। कभी दिमाग में आता है कि आठ दिन की इकट्ठी ही ले लूं।

29 मार्च 2013
1. कौरवी बोली यानी मेरठ के आसपास बोली जाने वाली बोली हिन्दी की मूल बोली है। भाषा-मर्मज्ञों ने इस बात को स्वीकार किया है। मेरठी होने के कारण मुझे भी इस बात का गर्व महसूस हो रहा है।
2. मौसम अच्छा रहा। दिन में तो सोता रहा, शायद बारिश भी हुई हो। अप्रैल आने वाला है, दिल्ली में इस महीने में बडी भयंकर गर्मी होना शुरू हो जाती है। लेकिन अभी भी मौसम फरवरी वाला ही है।
3. आज आठ दिन की छुट्टियां लगा दीं। चूंकि मैंने मार्च में एक भी छुट्टी नहीं ली, यहां तक कि साप्ताहिक अवकाश भी नहीं, इसलिये वे सारे के सारे अवकाश अप्रैल में लेना मेरा हक बनता है। छुट्टी पत्र पर जाने का स्थान मण्डी दिखाया।

30 मार्च 2013
1. सुबह सुबह अखबार में देखा कि हिमाचल में जलवृष्टि, ओलावृष्टि और हिमवृष्टि जोरों पर है। ऐसे में यात्रा बडी मुश्किल होती जा रही है। मैं अप्रैल को यात्रा की दृष्टि से मनहूस महीना कहता हूं। इसका कारण यही है कि 2000 मीटर से लेकर 2500 मीटर तक के बीच में ही घुमक्कडी की जा सकती है। 2000 से कम पर गर्मी लगती है और 2500 से ज्यादा पर बर्फ मिलने लगती है, रास्ता बन्द रहता है। अगर यात्राओं में मौसम के अनुकूल न चला जाये, तो यात्रा का आनन्द कम हो जाता है।
2. सहकर्मी संजय यादव को 7 से 14 अप्रैल तक छुट्टियां लेनी हैं, उधर मेरी छुट्टियां 3 से 10 अप्रैल तक की हैं। यानी 7 से 10 तक की छुट्टियां हम दोनों की हैं। मुझे छुट्टियां मिलनी ज्यादा जरूरी हैं क्योंकि मैंने पूरे मार्च भर कार्य किया है। अगर मेरा साप्ताहिक अवकाश रद्द होता है तो महीने भर के अन्दर मुझे उसके बदले छुट्टी लेनी पडेगी। मेरे मार्च के अवकाश रद्द न हों, इसलिये अप्रैल में मुझे छुट्टियां लेनी ही लेनी हैं। मेरी छुट्टियों के कारण संजय की छुट्टियां खटाई में पडने लगीं तो उन्होंने आग्रह किया कि भाई, मुझे बेहद आवश्यक काम के लिये छुट्टियां लेनी हैं। कुछ दया कर।
मैंने दया कर दी और अपनी आखिरी चार छुट्टियां पन्द्रह दिन आगे खिसका दीं। अब मैं 3 से 6 अप्रैल की छुट्टियां लूंगा। बाकी चार छुट्टियां अप्रैल के आखिरी पखवाडे में। हिमाचल में आठ दिन बिताने भारी लग रहे थे, अब चार-चार दिन दो बार बिताने उतने भारी नहीं होंगे।

31 मार्च 2013
1. सुबह ही दरवाजे पर डट गया। हर महीने के अन्तिम इतवार को दैनिक जागरण का यात्रा परिशिष्ट निकलता है। मैंने 14 मार्च को इसके लिये एक लेख भेजा था। हमारे यहां वैसे तो रोज दैनिक जागरण ही आता है, लेकिन अखबार वाला कभी कभी दूसरे अखबार भी दे जाता है। आज वो दूसरा अखबार न डाल कर चला जाये, इसलिये दरवाजे पर डटना पडा। आधे घण्टे बाद जब अखबार आया तो निराश होना पडा। मेरा लेख इसमें नहीं छपा था। लेख की गुणवत्ता कमजोर थी, ऐसा नहीं है बल्कि यह लेटलतीफी का पुरस्कार था। मुझे महीने के शुरू में ही लेख भेज देना था लेकिन जिसका मन्त्र ही ‘आज करे सो काल कर’ हो, उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है? अगले महीने की प्रतीक्षा शुरू हो गई है।
2. नटवर का फोन आया। उसने यात्रा का रूट पूछा। मैंने बता दिया लेकिन रूट से क्या होता है? आप नक्शे में देखकर मार्ग का अनुमान लगा लोगे बस। लेकिन असली चीज है मौसम। मैंने सलाह दी कि घोर सर्दियों में पहनने लायक गर्म कपडे और रेनकोट जरूर ले लेना। राजस्थानी के लिये रेनकोट आश्चर्य की चीज होती है, नटवर ने भी आश्चर्य किया। मैंने जोर दिया, तब जाकर वो रेनकोट के लिये राजी हुआ।
कल मैंने उससे स्लीपिंग बैग के लिये मना कर दिया था, लेकिन आज सहमति दे दी। जंजैहली से चलकर गिरते पडते बर्फ से होकर जब शिकारी देवी पहुंचेंगे तो आगे कमरुनाग के लिये कूच करने की हिम्मत नहीं बचेगी। इसलिये मन्दिर की धर्मशाला में स्लीपिंग बैग जीवनदायी सिद्ध होगा। मुझे उम्मीद है कि शिकारी देवी के आसपास रहने की सुविधाओं के बावजूद भी हमें सुविधाएं नहीं सकेंगीं। कारण मौसम और बर्फ।
3. सिद्धान्त की एक मिस्ड काल आई। सिद्धान्त मेरे साथ दो साल पहले केदारनाथ गया था और मैराथन धावक है। मिस्ड काल का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि वो शिकारी देवी चलना चाह रहा हो। अगर ऐसा है तो हमारी धीमी चाल की वजह से उसके लिये और उसकी तेज चाल की वजह से हमारे लिये परेशानी वाली बात होगी। अगर वो जाना ही चाहता है तो मेरे पास मना करने का कोई कारण भी नहीं है। इसलिये मिस्ड काल का मैंने कोई जवाब नहीं दिया। क्षमा करना सिद्धान्त भाई।

डायरी के पन्ने-3 | डायरी के पन्ने- 5

Comments

  1. सिद्धांत को साथ ले जाना चाहिए था ,वह आपकी गति से चल सकता था ..

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  2. डायरी बहुत कुछ कहती है, लिखे रहिये।

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  3. ओ दूर के मुसाफिर ! कभी हम को भी साथ ले ले !!!

    बद्रीनाथ के बारे मे आप को राहुल जी को पढ़ के पता लगा होगा ! ये भी पता लगा होगा की उत्तरकाशी भी तिब्बती साम्राज्य मे शामिल था, या बौद्ध धर्म के प्रभाव मे था। वहाँ दत्तात्रेय मंदिर मे भगवान दत्तात्रेय के रूप मे पूजी जाने वाली मूर्ति दरअसल पद्मासन बुद्ध की थी, जो अब दिल्ली के म्यूजियम मे है। 'धरासू' का नाम 'दारशुंग' और 'ज्ञानसू' का 'गियान्शुंग' हुआ करता था ! वर्तमान 'उप्पू' गाँव(टिहरी गढ़वाल) तक उनकी सीमा थी ! बाद मे माधो सिंह भण्डारी ने तिब्बत विजय की थी, भारत के इतिहास मे पहली बार किसी ने तिब्बत को हराया था। उनका सीमा निर्धारण पत्थर आज भी वहाँ है ! आज भी गढ़वाल मे किसी पर यदि भूटिया भूत लगता है तो भूत भागने वाले के मंत्रों मे होता है, "त्वे माधो सिंह भण्डारी की आण पड़े" !
    कहावत है, "एक सिंग रण मा, एक सिंग बण मा, एक सिंग गाय का !
    एक सिंग माधो सिंग, तू सिंग काय का !"

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब