Skip to main content

जोधपुर- मुनाबाव रेल लाइन

बात पिछले साल अक्टूबर की है। अपनी रेल यात्राओं के सिलसिले को आगे बढाते हुए मैं जोधपुर पहुंच गया। वैसे मुझे जोधपुर में कोई काम था भी नहीं बस जैसलमेर और मुनाबाव तक की लाइनों पर पैसेंजर ट्रेन में घूमना था। जैसलमेर की कहानी फिर कभी सुनाई जायेगी, आज मुनाबाव चलते हैं।
जहां तक मुझे जानकारी है, कुछ साल पहले तक पूरे राजस्थान में मीटर गेज लाइनों का जाल बिछा हुआ था। यहां तक कि राजस्थान के बिल्कुल बीचोंबीच से गुजरने वाली दिल्ली- जयपुर- अजमेर- अहमदाबाद लाइन भी मीटर गेज ही थी। जोधपुर भी पूरी तरह मीटर गेज स्टेशन ही था। आजादी से पहले एक मीटर गेज लाइन यहां से बाडमेर होते हुए हैदराबाद जाती थी। यह हैदराबाद आज पाकिस्तान में है। भारत में किन्हीं भी दो स्टेशनों के नाम एक जैसे नहीं रखे जाते। यही कारण है कि आज आंध्र प्रदेश में जो हैदराबाद है उसके स्टेशन का नाम हैदराबाद डेक्कन है। जबकि 'हैदराबाद' पाकिस्तान में चले गये हैदराबाद का है।

आजादी हुई, बंटवारा हुआ, रेलवे लाइनें भी बंट गईं। इसी जोधपुर- हैदराबाद लाइन पर दो स्टेशन थे- मुनाबाव और खोखरापार। खोखरापार चला गया पाकिस्तान में और मुनाबाव भारत में रह गया। टाइम बदला, मीटर गेज ब्रॉड में बदल गई। मुनाबाव तक भी ब्रॉड गेज की लहर चली और वह भी बडा बन गया। हालांकि पाकिस्तान की तरफ मीटर गेज ही रहा। बाद में सीमा के आरपार थार एक्सप्रेस चलाने की बात आई तो पाकिस्तान अपने यहां की लाइन को भी बडी बनाने लगा और थार एक्सप्रेस चल पडी। इस प्रकार यह लाइन अमृतसर- लाहौर के बाद भारत- पाकिस्तान के बीच दूसरी लाइन बन गई।
अब मेरी बात। मैं जोधपुर में शाम को था। अपने तय कार्यक्रम के अनुसार शाम को बाडमेर जाने वाली पैसेंजर (54813) से सुबह चार बजे तक बाडमेर पहुंच गया। बाडमेर से मुनाबाव के लिये एकमात्र पैसेंजर (54881) सुबह साढे सात बजे चलती है। बाडमेर से चलकर जसाई, खडीन (यह स्टेशन बन्द हो चुका है), भाचभर, रामसर, गागरिया, गडरा रोड, लीलमा, जैसिन्दर होते हुए आखिर में आता है मुनाबाव। मुनाबाव की समुद्र तल से ऊंचाई 79.27 मीटर है।
इनमें गडरा रोड की कहानी कुछ स्पेशल है। जहां भी किसी स्टेशन के नाम के साथ रोड शब्द जुडता है तो इसका मतलब है कि वो स्टेशन उस रोड वाले शहर या गांव से कुछ किलोमीटर दूर है। वहां जाने के लिये यहां से रोड जाती है। जैसे कि बागपत रोड जो बागपत से करीब चार किलोमीटर दूर है, मेडता रोड जो मेडता से 14 किलोमीटर दूर है, आबू रोड जो आबू से करीब तीस किलोमीटर दूर है आदि। तो जी, गडरा रोड भी कुछ ऐसा ही है। यहां से कुछ किलोमीटर दूर गडरा शहर या कस्बा है। लेकिन आज गडरा रोड स्टेशन पर उतरकर कोई भी गडरा नहीं पहुंच सकता। क्योंकि गडरा पाकिस्तान में चला गया है। गडरा रोड स्टेशन और कस्बे के बीच से सीमा रेखा खिंच गई है। नाम का ही गडरा रोड रह गया है। वैसे इसी तरह का एक स्टेशन नेपालगंज रोड भी है। नेपालगंज शहर नेपाल में है जबकि स्टेशन भारत में।
इसी तरह लीलमा की भी अलग कहानी है। अच्छा खासा स्टेशन, बाकायदा गाडी रुकती है, सवारियां चढती हैं लेकिन इसके साथ भी एक पंगा है। बेचारे का जिक्र किसी भी रेलवे साइट में नहीं है। erail.in को ले लो या indiarailinfo.com को, भारतीय रेल की वेबसाइट पर तो कोई मतलब ही नहीं है, इसका कहीं नाम नहीं है। कुछ महीनों पहले जब मैं जाट पहेलियां पूछता था, तो बंटी चोर अस्तित्व में आया था। वो पहेलियों के जवाब जगजाहिर करके पहेलियों का सत्यानाश करता था। उस समय बंटी को धूल चटाने वाला, दिन में तारे दिखाने वाला यह लीलमा ही था।
मुनाबाव सीमावर्ती स्टेशन है तो सेना के जवान भी इसका खूब इस्तेमाल करते हैं। यहां से बॉर्डर दो किलोमीटर दूर है। मेरा मकसद बॉर्डर देखना नहीं था। इसी ट्रेन से वापस चले आना था। लगे हाथों बाडमेर से जोधपुर तक की रेल यात्रा भी कर ली जाये। बाडमेर से चलकर जोधपुर तक ये स्टेशन पडते हैं- उतरलाई, कवास, बनिया सांडा धोरा, बायतु, भीमरलाई, गोल, तिलवाडा, खेड टेम्पल, बालोतरा, जानियाना, पारलू, समदडी जंक्शन, अजीत, मियां का बाडा, दुंदाडा, दूदिया, सतलाना, लूनी जंक्शन, हनवन्त, सालावास, बासनी और भगत की कोठी। आज के लिये इतना ही।











Comments

  1. पक्के घुमक्कड़ |
    बधाई ||

    ReplyDelete
  2. :)
    Aap Banjar mein rukiye, Shoja mein mat rukiye, wahan hotel thode se mehenge bhi hain aur doosra banjar rukne ka alag hi maja hai wahan jaake/rukke aapko aisa lagega ki jaise aap koi alien hain aur sab log aap hi ko ghorenge, mera do baar ka experience hai. ;)
    Aur raghupur fort jaana jarur, aap jaise experienced aadmi ko sirf ek ghanta lagega chadhne mein, agar kismat achhi hui to Pin Trek ke darshan ho jaaenge, kismat-dhoop.
    Jai Srikhand Mahadev!

    ReplyDelete
  3. bhai is side to mujhko b le chalte.. aur jab border 2 km dur hi tha tab to aapne trip ka satyanash sa kar diya.. are pakistan waalo ko b jaat bhai k darshan ho jaate.
    mujhe b is side m pakistan ka border dekhna h, b.ed karne ke liye jodhpur ja raha hu sayad waha tak b pauch jau.
    vaise b.ed karne ke liye kon sa jila thik rahega? jodhpur, bikaner, udaipur (in 3no main govt college h) baki pvt to kahi se b ho jayegi.
    please suggest.. :)

    ReplyDelete
  4. नीरज भाई मान गए आप को आप भी इतनी अच्छी जानकारी कैसे प्राप्त कर लेते हो और हम तक पंहुचा देते हो ये शहर पहले भारत में था अब पाकिस्तान मे चला गया वगैरा -वगैरा .....और सभी स्टेशन का फोटो भी लेते हो .. धन्यवाद् ...

    ReplyDelete
  5. बटवारे ने ट्रेन का प्रवाह भी रोक दिया था।

    ReplyDelete
  6. रोचकता और जानकारी का अनूठा संगम होती हैं आपकी पोस्ट्स.

    ReplyDelete
  7. मुनाबाब के बारे में जान कर अच्छा लगा। जोधपुर तो आना जाना रहता है। बाड़मेर भी हो आए हैं। लेकिन बस से, ट्रेन से नहीं।

    ReplyDelete
  8. Neeraj ji, is jaankari ke liye aapka dhanyavad..

    Maine bhi kuch likhane prayas kiya hain, samay mile to gaur karna...

    http://www.ghumakkar.com/2011/07/14/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%86%E0%A4%AC%E0%A5%82-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A1-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%B9%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%85%E0%A4%AE/

    dhanyavad

    ReplyDelete
  9. शायद इसी लाईन पर एक स्टेशन है जहाँ फ़ाटक पर कोई कर्मचारी तैनात नहीं है और फ़ाटक से पहले ट्रेन को रोककर ट्रेन का गार्ड जाकर फ़ाटक गिराता है, फ़िर फ़ाटक पार करके ट्रेन रुकती है। गार्ड साहब फ़ाटक खोलते हैं और उसके बाद कहीं ट्रेन चलती है। पढ़ा था कभी, अब मालूम नहीं व्यवस्था बदल गई है या वैसे ही है।

    ReplyDelete
  10. बहुत सही...घूमते रहो....

    ReplyDelete
  11. चित्रों ने पूरी यात्रा बयाँ कर दी | हमारे यंहा भी अभी तक मीटर गेज लाइन ही है|

    ReplyDelete
  12. just try fastest pnr status cheking at railway123.com

    ReplyDelete
  13. Bhai Sahab, Main Bhi Dec 2015 main is Route ko karne ki yojna banai hai aap se Anurodh kripya batayen ko kya kisi prakar ki permission to nahi leni padti hai Munabao ke liye. Sarju Prasad Mishra sarjuprasadmishra@gmail.com

    ReplyDelete
    Replies
    1. नहीं सरजू प्रसाद जी, मुनाबाव जाने के लिये किसी परमिशन की जरुरत नहीं है। बस ट्रेन का टिकट लो और बैठ जाओ। पैसेंजर ट्रेन है और सभी जनरल डिब्बे हैं। भीड नहीं होती।

      Delete
  14. nice in info thanks for sharing this post

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब