इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।
राजस्थान में रेत के टीबे बहुत हैं। एकवचन टीबा हुआ और उस का स्त्रीलिंग टीबी।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteवैसे दिनेशराय द्विवेदी ने अच्छा समझाया
कुछ दिनों में मीटरगेज नहीं दिखेगा, सब एक जैसा।
ReplyDeleteई केइसा नाम है भैया :-)
ReplyDeleteइस स्टेशन का नाम पढ कर तो अजीब सा लगा... लेकिन दिनेश जी ने सही समझाया, लेकिन यह मीटर गेज क्या चीज होती हे? शायद दो लाईनो के बीच के फ़ांसले को मीटर गेज कहते होंगे ना ?
ReplyDeleteTB रेलवे स्टेशन...सुनकर कित्ता अजीब लगता है.
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'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
अरे वह । ऐसे स्टेशन भी है हमारे हिंदुस्तान मे
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की शुभकामनाए