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नैना देवी से फुरसत पाकर मैं वापस नंगल जाने लगा तो रास्ते में भाखडा बांध पडता है। मैं वही उतर गया। सतलुज नदी पर बना है गोविन्द सागर और इस पर है भाखडा बांध। निकट ही भाखडा गांव है जिसके नाम पर बांध को यह नाम मिला। इस बार बडा शानदार मानसून आया था इसलिये गोविन्द सागर ऊपर तक भर गया था। पानी इतना ज्यादा था कि बांध के चारों आपातकालीन गेट खोल दिये गये थे और चारों गेट फुल भरकर चल रहे थे।
अक्सर भाखडा-नंगल को एक ही माना जाता है। लेकिन ये दो अलग-अलग बांध हैं और लगभग बीस किलोमीटर का फासला है। नंगल बांध पंजाब में है और भाखडा हिमाचल प्रदेश में। यह बांध एशिया में दूसरा सबसे बडा बांध (ऊंचाई 225.55 मीटर) है। पहले स्थान पर टिहरी बांध (261 मीटर) है। इसका निर्माण कार्य 17 नवम्बर 1955 को भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने शुरू किया था। उन्होनें इसे उन्नतिशील भारत का नया तीर्थ कहा था।
इस तरफ से उस तरफ नाव व मोटर बोट द्वारा होता है।
बोट की प्रतीक्षा में बैठी सवारियां
आधे घण्टे बाद एक बोट उधर से भरकर आ गयी। अब यह इधर से सवारियां भरकर ले जायेगी।
भाखडा बांध के पास नेहरू की प्रतिमा
जब मैं नेहरू की इस प्रतिमा का फोटू खींच रहा था तो सुरक्षाकर्मियों ने तुरन्त टोक दिया कि यहां फोटू खींचना सख्त मना है। मैनें प्रार्थना की कि भाई, एक फोटू बांध का और खींचूंगा। बडी दूर से आया हूं। बोला कि नहीं। असल में बांध के चारों आपातकालीन फाटक खोल दिये गये थे। इसमें से पानी बडे शानदार तरीके से नीचे गिर रहा था। मैं उसी का फोटू खींचना चाहता था।
मैंने नीचे जाती सतलुज को देखा। सामने बायें से एक छोटी सी नदी इसमें मिल रही थी। नदी के उस तरफ एक सडक दिखाई दी। गौर से देखा तो पता चला कि यह तो नंगल जाने वाली वही सडक है जिस पर मैं खडा हूं। मैने चलना शुरू कर दिया। करीब तीन किलोमीटर के बाद मैं उस स्थान पर पहुंचा। यहां से बांध का बडा ही शानदार दृश्य दिख रहा था। मैंने तुरन्त फोटू खींच लिया।
आनन्द आ गया इसे खींचकर। इसके लिये ही तो मैं तीन किलोमीटर से पैदल यहां आया था। अगर थोडा आ और आगे चला जाऊं तो और अच्छा चित्र आयेगा। कुछ आगे जाकर ऊपर से नीचे तक पूरा बांध दिखने लगा। जैसे ही कैमरा निकाला, एक पुलिस वाले ने आवाज लगाई कि ओये, फोटू मत खींच।
चूंकि यहां से पूरा बांध दिखता है और आने-जाने वाले यहां रुककर इसका फोटू खींचते है, इसलिये इस जगह पर एक पुलिस वाले की ड्यूटी लगी होती है। मैंने उसकी आज्ञा का पालन किया और वहां से चुपचाप आगे निकल लिया। थोडी देर बाद फिर से बांध का शानदार नजारा दिखा तो फिर फोटू खींचने की इच्छा जागी। अबकी बार अच्छी तरह तसल्ली कर ली कि यहां किसी पुलिस वाले की ड्यूटी नहीं है। ले फोटू ही फोटू। दे दनादन फोटू ही फोटू।
यहां से देखने में लग रहा है कि दो गेट है लेकिन वास्तव में ये चार गेट हैं। चारों से गरजता हुआ पानी गिर रहा है। दूसरी ओर पंजाब की तरफ जाती सतलुज दिख रही है।
अरे यह क्या??????
रेल का डिब्बा? सतलुज के दाहिने किनारे रेल की पटरी बिछी हुई है और एक डिब्बा भी खडा है। यह क्या मामला है? भारतीय रेल के अनुसार, हिमाचल में केवल तीन स्थानों पर ही रेल लाइन है- कालका-शिमला, पठानकोट-जोगिन्दर नगर और नंगल डैम-ऊना-चुरारू टकराला। नंगल डैम वाली लाइन सीधे ऊना चली जाती है और यहां से कम से कम बीस किलोमीटर दूर है। नंगल डैम स्टेशन कोई जंक्शन भी नहीं है। फिर यहां रेल कैसे?
हां, यह हो सकता है कि जब बांध निर्माण का काम चल रहा था तो सीमेंट-कंक्रीट और भारी मशीनरी लाने के लिये यहां तक रेल लाइन बिछाई गयी हो। अब चूंकि इसकी कोई जरुरत नहीं है तो इसे भारतीय रेल के नक्शे से हटा दिया गया है। यह उसी समय का डिब्बा खडा हुआ है। लेकिन डिब्बे और पटरियों पर साफ-सफाई? इतनी सफाई तो दिल्ली वाले रेल संग्रहालय में भी नहीं है, जबकि वहां दुनिया आती है देखने। यहां कोई नहीं आता, और लाइन बन्द भी है; फिर भी इतनी सफाई?
थोडा आगे चला तो एक पुलिस वाला और दिखा। उससे पूछा कि भाई, इस लाइन पर कोई ट्रेन भी चलती है क्या? यह प्रश्न मेरी जानकारी के हिसाब से मूर्खतापूर्ण था। मैंने सोचा कि इसके जवाब में वो मेरी तरफ पुलिसिया स्टाइल में देखेगा और कहेगा कि हां, राजधानी एक्सप्रेस चलती है। लेकिन जब उसने जवाब दिया तो चौंकने की बारी मेरी थी- “हां, चलती है।” “कहां जाती है? कितने बजे जाती है?”
बोला कि- “अभी साढे तीन बजे हैं। यहां से चार बजे चलती है और सीधे नंगल जाती है। यहां से सीधे चले जाओ, आगे नदी पर एक पुल है। उसी पुल से यह गाडी चार दस के आसपास गुजरती है। पुल पार करते ही ओलिंडा में रुकती भी है।”
मैं पिछले पांच किलोमीटर से पैदल चल रहा था। थक भी गया था। लेकिन उसकी यह बात सुनते ही थकान खत्म हो गयी। पैर तेजी से पुल की तरफ बढने लगे। यह सतलुज पर बना रोड-रेल पुल है। इसी के पास ओलिंडा नामक स्टेशन है।
असल में यह लाइन बनी तो तभी थी जब बांध का निर्माण कार्य चल रहा था। निर्माण पूरा हो गया तो यह कर्मचारियों को नंगल से लाने-ले जाने के काम आने लगी। आज भी यह भाखडा बांध के कर्मचारियों के लिये ही चलती है। रास्ते में कई स्टेशन पडते हैं जहां से कर्मचारियों के साथ-साथ अन्य सवारियां भी सफर करती हैं। इस ट्रेन में सफर करने के लिये किसी टिकट की जरुरत नहीं है। ना ही इसमें टीटी होते हैं। नंगल में बस अड्डे के पास एक नहर है। नहर के दूसरी तरफ नंगल टाउनशिप नामक स्टेशन है। यह इसी नंगल भाखडा रेल का आखिरी या यूं कहिये शुरूआती स्टेशन है।
और हां, आम सवारियों को ओलिंडा से आगे भाखडा बांध जाने की अनुमति नहीं है। यह गाडी नंगल टाउनशिप स्टेशन से दिन में दो बार चलती है- सुबह सात बजे और दोपहर बाद तीन बजे।
लेबरहट स्टेशन
नंगल टाउनशिप स्टेशन
निर्मला कपिला जी, जिनके यहां मैं अपने नंगल प्रवास के दौरान एक दिन रुका था। भाखडा रेल के बारे में इनका कहना है-
“ये स्टेशन भाखडा रेलवे लाईन पर है। इस रेल की एक खासियत है कि इसमे कोई टी टी आदि नही होता । नंगल और भाखडा के साथ लगते गाँवों के लिये ये मुफ्त का वरदान है। वैसे ये भाखडा के मुलाजिमों को ले जाने आने के लिये बनी है। इसमे हर तरह के मनोरंजन के लिये डिब्बे अलग अलग हैं। एक मे रोज़ भजन कीरतन होता है, किसी मे ग्र्वाणी का कीर्तन, किसी मे ताश खेली जाती है और औरतों के लिये अलग से डिब्बा होता है। जिस को जो पसंद है उसी डिब्बे मे चढ जाता है। और कुछ वैसे तुम जैसे मुसाफिरों के लिये भी बिलकुल मुफ्त है, किसी के लिये कोई टिकट नही लेना पडता। ये अपनी तरह की अकेली अनोखी रेल है।”
नैना देवी यात्रा समाप्त।
नैना देवी यात्रा
1. नैना देवी
2. भाखडा बांध और भाखडा रेल
bahut dino baad post lagai.....ghumaakar jaat......fotu bahut badiya lage...
ReplyDeleteआज कुछ भ्रम दूर कर दिये आपने। अथाह जल देख कर एक विचित्र सी अनुभूति दौड़ जाती है मन में। निर्मला कपिला जी का रेल डब्बों की जीवन्तता के बारे में दिया वक्तव्य बिल्कुल सही है। लगता है शीघ्र मनोरंजन कर लगाना पड़ेगा।
ReplyDeleteचित्र और निर्मला जी से मिल कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteसुंदर और ज्ञान वर्धक पोस्ट
ReplyDeleteमजा आया..
ReplyDeleteबैठे बिठाए दुनिया दर्शन करनी हो तो इस बलोग पर आ जाना चाहिए |आभार
ReplyDeleteफोकट की रेल! पढ़कर ही आनंद आ गया। अब बैठने पर कैसा लगेगा? इस के लिए तो वहीं जाना पड़ेगा।
ReplyDeleteआपकी बिना टिकट की रेल यात्रा और हमारी भाखरा नंगल यात्रा.
ReplyDelete.......बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
भाई जी आनन्द आ गया...आपके भाखरा के चित्र बहुत ही बढ़िया लगे...और नयी रेल लाइन खोजी उसके लिए भी बधाई...तुसी ग्रेट हो जी...
ReplyDeleteनीरज
Great !!:))
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी जी, रेलवे के बारे सुन कर हेरनगी हुयी, कभी मोका मिला तो जरुर जायेगे यहां भी. धन्यवाद
ReplyDeleteडैम पर जाते हुए एक जोकरई और होती है, वह है रजिस्ट्रेशन. शुरू में ही कुछ बाबू लोग कुर्सियों पर टिकाए पड़े मिलते हैं जो बड़ी शान ने कुछ कुछ नाम पता जैसा पूछ कर रजिस्टर में भर कर एहसान जताते हैं कि जाओ डैम देखो क्या याद करोगे कि जाने दिया तुम्हें.
ReplyDeleteकुछ दूरी पर एक ठुल्ला भी डंडा घुमाता हुआ आपकी कार की तलाशी लेने की एक्टिंग करता हुआ कैमरे के बारे में यूं पूछता है कि आप TNT लेकर डैम फोड़ने जा रहे हो ? उसकी हिम्मत यह कहने की भी हो जाती है कि कैमरा रख जाओ वापसी में ले लेना.
दूसरी तरफ लोकल और नैनादेवी को जाने वाली सार्वजनिक परिवहन की बसें धड़धड़ाती चली जाती हैं, उसमें भले ही कोई विस्फोट बांध दे तो भी कोई बात नहीं. इस डैम के फोटो तो हम स्कूल की किताबों तक के समय से देखते आ रहे हैं. फिर अब तो गूगलअर्थ का ज़माना है....
पर इस भाखड़ा डैम बोर्ड के बाबुओं को कौन ठाली समझाए. जनता का पैसा है, इसी तरह के कबाड़ियों की तन्ख्वाहों में झोंके पड़े हैं.
कहाँ कहा घूम के आ जाते हो. और इतना ख़ूबसूरत वर्णन करते हो कि गुस्सा ज्यादा आता है.... तुम्हारे किस्मती होने पर. बहरलाल ऐसे ही घूमते रहो और पोस्ट में तो हम घूम ही लेगे.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , मगर मेरे भाई ये बतावो नौकरी कब करते हो ?
ReplyDeleteइस पोस्ट को तो देखा ही नही। कानो मे मेरे नाम की गूँज सुनाई दी तो भागी आयी। सही जानकारी है। आशीर्वाद।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी और चित्र भी बहुत अच्छे लगे.
ReplyDeleteबेहतरीन विवरण। पानी गिरने का दृश्य सही में अद्बुत है।
ReplyDeleteNeeraj ji , please remove the photo graphs of DAM site these are illegal. This is security lapse. Billions may suffer severely or die from hunger if dam is damaged in enemy action
ReplyDeleteNeeraj Bhai,
ReplyDeleteMaine 17 saal Bhakra Dam pr Naukri ki thi. Purani Yadden Taza ho Gai. AApne itna accha likha maan khush ho gaya. Aap ke blog pr ek yogdan ka link hai. Pr aapne likha hi nahin kitna yogdan dena hota hai. Kher mere teen chote bhai hain. Aap bhi un jaise hi ho. AAp ki ek puri yatra meri tarf se. Yatra ka vivran aur jane ki tarikh likh bhejna. Aur kharcha bi. AAp ko yatra pr bhej kar khushi hogi. My email is : Surinder.Sharma@worleyparsons.com
आपके द्वारा लिखा हर एक विवरण हमेशा लाजवाब होता है
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