उस दिन तारीख थी 26 जुलाई 2010. मुझे उदयपुर जाना था। कोई रिजर्वेशन नहीं था। दसेक दिन पहले ही अमरनाथ से आया था। जल्दबाजी इतनी कि कोई योजना भी नहीं बनी। सोचा कि किसी तरह 27 की सुबह तक उदयपुर पहुंच जाऊंगा। दिन भर घूमकर शाम सात-शाढे सात बजे तक वापस कोटा चला जाऊंगा। कोटा से वापसी का रिजर्वेशन कराया मेवाड एक्सप्रेस का। यह वैसे तो उदयपुर से ही आती है और कोटा आधी रात को पहुंचती है। अच्छा, इस दौरान दिनेशराय द्विवेदी जी से भी मिलने की चिट्ठी लिख दी।
छब्बीस की सुबह को निजामुद्दीन से ताज एक्सप्रेस पकडी। मथुरा उतर गया। एक दोस्त का तकादा था। उससे सुलटने में दिनभर लग गया। रात को साढे नौ बजे फिर स्टेशन पर पहुंचा। पता चला कि उदयपुर जाने वाली मेवाड एक्सप्रेस अभी-अभी निकली है। मन परेशान तो हुआ लेकिन मायूस नहीं। पीछे ही मालवा एक्सप्रेस आ रही थी। इन्दौर जाती है। सोचा कि इससे कोटा चला जाता हूं। कोटा से उदयपुर के लिये कोई ना कोई गाडी मिल ही जायेगी। हां, उस समय मेरा अन्दाजा था कि कोटा से उदयपुर की दूरी सौ किलोमीटर के लगभग होगी।
मालवा के जनरल डिब्बे में ज्यादा भीड नहीं थी। रात के सफर की वजह से मैंने अपना वही परम्परागत तरीका अपनाया। टांड पर दूसरों के सामान इधर-उधर किये और अपने लेटने की जगह बना ली। लेट गया। नीचे वाले से बोल दिया कि भाई, जब कोटा आ जाये, उठा देना। उसने हामी भर दी।
ना तो कोटा आना था, ना ही आया। सुबह साढे पांच के बाद आंख खुली। गाडी किसी स्टेशन पर खडी थी। मैंने उसी नीचे वाले से पूछा कि भाई, कौन सा स्टेशन है। बोला कि सोते रहो। अभी कोटा नहीं आया है। फिर पूछा कि यार, कोटा नहीं है तो कौन सा स्टेशन है। बोला कि बीना है।
बीना?????
तुरन्त मैं नीचे ‘गिर’ पडा। चप्पल पहनी, बैग उठाया और गाडी से बाहर कूद पडा। गाडी चलने लगी थी। कहां कोटा, कहां बीना। टिकट घर के पास समय सारणी में देखा तो पाया कि मालवा एक्सप्रेस तो यही से जाती है। यानी कोटा से नहीं जाती है। सिर पकडकर बैठ गया। हो गया उदयपुर टूर का सत्यानाश। हो गया द्विवेदी जी से भी मिलना-मिलाना।
तभी ध्यान आया कि यहां से कोटा के लिये एक लाइन भी जाती है। दस बजे के करीब बीना-कोटा पैसेंजर चलती है। टिकट लिया और शाम सात बजे तक कोटा पहुंच गया। जाते ही द्विवेदी जी से मिला। और अन्त में तय कार्यक्रम के अनुसार मेवाड एक्सप्रेस पकडी और सीधे दिल्ली।
हालांकि उदयपुर तो नहीं जा पाया लेकिन बीना-कोटा रूट पर पैसेंजर ट्रेन में मजा आ गया। आप भी लीजिये:
उन दिनों मानसून पूरे चरम पर था।
जय मानसून
इस स्टेशन के बारे में एक बार जाट पहेली में पूछा गया था।
जय मानसून
दिनेशराय द्विवेदी
मैं इनका नाम भूल गया हूं। दिनेश जी, बताना जरा इनके बारे में।
अमरनाथ यात्रा के दौरान चेहरा और हथेली के पीछे का हिस्सा बरफ और धूप से जल गया था। घर आकर एक-दो दिन बाद ही जली त्वचा सूखी पपडी के रूप में उतरने लगी। और कई दिन तक उतरती रही थी। इसी कारण मेरा चेहरा भद्दा सा लग रहा है। द्विवेदी जी को भी लग रहा होगा कि पता नहीं ससुरा, आज नहाया है भी कि नहीं। वैसे मैं बीना से नहा कर ही चला था।
इस घुमक्कड़ी के क्या कहने ..
ReplyDeleteअंत भला सो .. आखिर कोटा पहुँचे तो और फिर सबसे बड़ी बात द्विवेदी जी से मुलाकात
सुन्दर यात्रा वृत्तांत
अरे वाह हमारे नीरज घुमक्कड़... मालवा और कोटा बहुत सही
ReplyDeleteउदयपुर तो कभी कार्यक्रम बनाया जा सकता है पर शायद बीना का बनता या ना बनता सो इस बहाने बीना ही हो आये !
ReplyDeleteबेटा लगता है तुम्हें अब कुछ आराम की जरूरत है। तस्वीरें अच्छी लगी। शुभकामनायें।
ReplyDeleteजाना था जापान पहुँच गए चीन...
ReplyDeleteलगे रहो..
अरे!
ReplyDeleteमहेन्द्र नेह का नाम भूल गए आप, अब लगा दीजिए। इन का तो एक कविता संग्रह भी आप के पास होगा?
घुम्मकड़ी आदमी को क्या क्या बना देती है | आपको भी एक बेहतरीन फोटोग्राफर बना रही है |
ReplyDeleteबीना से कोटा के मध्य कम गाड़ियाँ चलती हैं, यह पूरा क्षेत्र प्राकृतिक सुन्दरता से भरा है।
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर लगता है जैसे हमने स्वयं ने भारत के विभिन्न भागो की यात्रा कर ली हो .... बहुत ही अच्छा ब्लॉग है ये उन लोगो के लिए जी यात्राये करते रहते है ..आपके ब्कोग के द्वारा अपने देश को जानने का मौका मिलता है
आप की पहेली भी अच्छी होती है बस एक शिकायत है आप की पहेली से वि ये कि आप अपना जवाब नयी पहेली में ही देते है ... अब देखिये आप कि पहेली का जवाब देने के बाद भी अभी तक ये नहीं पता कि हमने सही जवाब दिया है या गलत ...
आप से निवेदन है कि पहेली का सही जवाब समय खत्म होने बाद जब आप सभी टिप्पणिय सार्वजानिक करते है तभी एक टिप्पणी के रूप में लिख दे .... अंक सूचि आप आराम से अगली पहेली के समय प्रकाशित कर दे ... और कृपया पिछली पहेली का उत्तर भी बता दे
आशा है कि आप इस सुझाव पर गौर जरुर करेंगे
नीरज जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर लगता है जैसे हमने स्वयं ने भारत के विभिन्न भागो की यात्रा कर ली हो .... बहुत ही अच्छा ब्लॉग है ये उन लोगो के लिए जी यात्राये करते रहते है ..आपके ब्कोग के द्वारा अपने देश को जानने का मौका मिलता है
आप की पहेली भी अच्छी होती है बस एक शिकायत है आप की पहेली से वि ये कि आप अपना जवाब नयी पहेली में ही देते है ... अब देखिये आप कि पहेली का जवाब देने के बाद भी अभी तक ये नहीं पता कि हमने सही जवाब दिया है या गलत ...
आप से निवेदन है कि पहेली का सही जवाब समय खत्म होने बाद जब आप सभी टिप्पणिय सार्वजानिक करते है तभी एक टिप्पणी के रूप में लिख दे .... अंक सूचि आप आराम से अगली पहेली के समय प्रकाशित कर दे ... और कृपया पिछली पहेली का उत्तर भी बता दे
आशा है कि आप इस सुझाव पर गौर जरुर करेंगे
फोटो जोरदार है भाई...ये कोटा बीना का चक्कर छोडो...दिल्ली से जयपुर की यात्रा करो और आनंद उठाओ...खाने का भी और घूमने का भी...निराशा नहीं होगी ये पक्की बात है.
ReplyDeleteनीरज