हां तो, पिछली बार आपने पढा कि मैं रेवाडी से अलवर पहुंच गया। अलवर से बांदीकुई जाना था। ट्रेन थी मथुरा-बांदीकुई पैसेंजर। वैसे तो मुझे कोई काम-धाम नहीं था, लेकिन रेल एडवेंचर का आनन्द लेना था। मेरा तरीका यही है कि किसी भी रूट पर सुबह के समय किसी भी पैसेंजर ट्रेन में बैठ जाओ, वो हर एक स्टेशन पर रुकती है, स्टेशन का नाम लिख लेता हूं, ऊंचाई भी लिख लेता हूं, फोटो भी खींच लेता हूं। हर बार किसी नये रूट पर ही जाता हूं। आज रेवाडी-बांदीकुई रूट पर निकला था। अलवर तक तो पहुंच गया था, अब आगे जाना है।
अलवर से चले तो वातावरण में गर्मी बहुत बढ गयी थी। चारों तरफ ठेठ राजस्थानी ग्रामीण सवारियां। मैं फोटो खींचता तो पीछे कैमरे को बडे ही कौतुहल से देखते। एक बार तो मुझे भी अजीब सा लगा कि ये सोच रहे होंगे कि मैं फोटो क्यों खींच रहा हूं। जब किसी ने नहीं टोका तो और हौसला बढ गया। खैर, महवा पहुंचे।
महवा के बाद आता है मालाखेडा। राजस्थानी धरा का एक और स्टेशन। यहां और इससे आगे ढिगावडा स्टेशन पर पेड वगैरा थे, तो कुछ लोगों ने अपने अस्थायी घर भी बना लिये थे।
ये लोग यहीं पर रहते हैं और इनके बच्चे भी यही खेलते-कूदते रहते हैं। इन्हे खैर खतरा तो है क्योंकि यहां बीसियों गाडियां एक्सप्रेस हैं। लेकिन जिन्दगी है, वो भी चलती रहती है।
इसके बाद आता है राजगढ। राजगढ अलवर-बांदीकुई खण्ड का सबसे बडा स्टेशन है। यहां एक किला भी है। मेरा एक दोस्त है चुन्नीलाल मीणा, वो राजगढ का ही रहने वाला है। मार दूंगा किसी दिन राजगढ का चक्कर और फिर आपको किला भी दिखाऊंगा।
राजगढ के बाद सुरेर गोठ, बसवा और गुल्लाना स्टेशन आते हैं। फिर है बांदीकुई जंक्शन।
यहां से एक लाइन तो जयपुर चली जाती है, एक जाती है आगरा और तीसरी वही अपनी अलवर-रेवाडी वाली। यह स्टेशन कुछ साल पहले तक मीटर गेज स्टेशन था, लेकिन अब पूरी तरह से ब्रॉड गेज है। मथुरा-बांदीकुई पैसेंजर यही पर अपनी सेवा खत्म कर देती है। बारह बजे के आसपास का समय था। एक डेढ बजे के करीब एक और पैसेंजर चलती है यहां से आगरा के लिये। गर्मी की वजह से शरीर में खाज मार रही थी। सबसे पहले सुलभ शौचालय वाले ढूंढे, आसानी से मिल गये। दस रुपये में नहाने का काम हो गया। नहाते ही दिमाग में ताजगी सी चढ गयी।
बांदीकुई के बारे में एक बार कुछ पढा था। पहले राजो-महाराजों के जमाने में बन्दियों को रखने के लिये यहां छोटे कुएं थे। छोटा कुआं यानी कुई। बस जी, नाम पड गया बांदीकुई।
अब तक आगरा जाने वाली पैसेंजर भी आ गयी। यह एक डीएमयू है जिसमें डीजल के तीन इंजन लगे होते हैं। यह बिल्कुल ईएमयू की ही तरह काम करती है। इसका लुक मस्त लगा।
ये है आगरा-बांदीकुई खण्ड पर चलने वाली डीएमयू। है ना शानदार लुक? एकदम बुलेट ट्रेन सी लग रही है। लेकिन पता है कि इसकी औकात क्या है? यह एक पैसेंजर ट्रेन है। टिकट मैने आगरा तक का ले लिया था। चल पडे भई। बांदीकुई के बाद पहला स्टेशन आता है श्री घासी नगर। यह भरी दोपहरी में एक वीरान सा स्टेशन लग रहा था।
श्री घासी नगर के बाद है बिवाई और फिर भजेडा। ये लीजिये भजेडा का फोटो देखिये।ओहो, ये कौन आ गया बीच में? कुछ लोगों को होती है ना खिडकी में खडे होने की। यह उसी का नमूना है। मजा नहीं आया? तो ये लो भजेडा के बाद भूडा देखिये।
हां, यह ठीक है। खिडकी भी सुनसान पडी है और स्टेशन भी। अरे हां, करणपुरा तो रह ही गया। चलो, रह गया तो रह गया। वैसे बता दूं कि भजेडा और भूडा के बीच में है करणपुरा। तो भूडा की बात चल रही थी। भूडा अलवर जिले में है। यह अलवर जिला भी काफी बडा है। बांदीकुई दौसा में है। बांदीकुई से पहले अलवर, बांदीकुई के बाद अलवर। अजीब बात है। इसके बाद एक टीला आता है जिसे थोडा सा काटकर रेल पटरी बिछाई गयी है।
फिर आता है एक बडे से नाम वाला स्टेशन मण्डावर महुवा रोड। खबर है कि यह दौसा जिले में है।
अब जिस स्टेशन को मैं दिखाने जा रहा हूं, इसे पहचानिये। पहचान गये तो ठीक नहीं तो मुझे ही बताना पडेगा।
ये वो छवि है जिसके लिये मैं पैसेंजर ट्रेनों में घूमता हूं। छोटे-छोटे गुमनाम से स्टेशन, देहाती स्थानीय लोग, खेत, जंगल, गांव, फाटक। जी खुश हो जाता है। हां, तो पहचाना क्या? नहीं पहचान पाये?
मुझे ही बताना पडेगा। ये है दांतिया। यह वही स्टेशन है जिसे हमने जाट पहेली- 2 में पूछा था और राज भाटिया के अलावा कोई भी नहीं बता पाया था।
दांतिया और खेडली के बीच में कई नजारे देखने को मिले। इनमें से एक को तो आप देख ही सकते हैं।तलछेरा बरौलीरान, है ना अजीब सा नाम?
किसी पहेली में इसे भी पूछूंगा। तो उत्तर अभी से तैयार कर लीजिये, उत्तर होगा कि तलछेरा बरौलीरान स्टेशन बांदीकुई-आगरा खण्ड पर है। आगे चलें? चलो। आगे है नदबई, पपरेरा और हेलक।
भरतपुर के बाद आगरा की ओर चलें तो पहला ही स्टेशन आता है नोह बछामदी। फिर है इकरन, इकरन पर तो धूप से परेशान कौवा बैठा है। देखना जरा गौर से कौवा ही है ना।
यह नीचे वाला फोटो या तो इकरन का है या इससे आगे चिकसाना का।
पूरा मजा है जी रेल एडवेंचर में। बहुत कुछ देखने को मिलता है। ये बात वातानुकूलित राजधानी, शताब्दी या किसी दूसरी सुपरफास्ट में नहीं है। हां, चिकसाना राजस्थान का आखिरी स्टेशन है। इसके बाद शुरू होता है उत्तर प्रदेश का आगरा जिला और पहला ही स्टेशन है अछनेरा जंक्शन। यहां से एक लाइन मथुरा भी जाती है। यह कुछ महीनों पहले तक मीटर गेज थी, अब ब्रॉड गेज में बदली जा रही है। अछनेरा का फोटो नहीं है मेरे पास।
रायभा पार करके बिचपुरी है जो आगरा शहर में ही है। बिचपुरी से आगे बढते ही एक और लाइन दाहिने से आकर इसी में मिल जाती है। यह लाइन बयाना से आती है। फिर एक पुल है। ऊपर भी रेल, नीचे भी रेल। ऊपर तो है दिल्ली-आगरा-भोपाल वाली लाइन और नीचे है बांदीकुई-टूण्डला लाइन। आगरा छावनी स्टेशन दिल्ली-भोपाल लाइन पर है। मुझे आगरा छावनी जाने के लिये ईदगाह आगरा जंक्शन पर उतरना पडेगा।
यहां तक आते-आते शाम हो गयी थी। छावनी तक के लिये टम्पू चलते हैं। पांच पांच रुपये में छोड देते हैं। सीधे छावनी पहुंचा, दिल्ली का टिकट लिया, ट्रेन हाथ आयी झेलम एक्सप्रेस। मजे से स्लीपर वाले डिब्बे में सोता आया, जनरल का टिकट होने के बावजूद भी।
हां, अब मेरी लिस्ट में कुल 1049 स्टेशन हो गये हैं। जल्दी ही आपको इसी तरह के किसी नये रूट पर ले जाऊंगा। यहां पर आप अपनी पसन्द का खण्ड भी लिख सकते हैं। समय मिलते ही चला जाऊंगा।
अथ श्री रेवाडी-अलवर-बांदीकुई-आगरा रेल एडवेंचर कथा।
फ़ोटुएं बहुत बढिया हैं
ReplyDeleteइस रुट पर मै बहुत पहले 1993 में भरतपुर गया था।तब मेरे धोरे कैमरा नही था।
मजा आ गया
जय हो जाट की
जय हो...
ReplyDeleteजलन हो रही है तुमसे.. सोच रहा हूँ ऐसे तुम भारत भ्रमण करोगे तो कितना मजा आएगा पढने में...
बाँदीकुई में मेंहदीपुर बालाजी का मंदिर भी है कभी मौका लगे तो जाना जरूर. एक अच्छी पोस्ट बन सकती है.
ReplyDeleteबिना टिकट कुछ अधिक ही घुमा दिया है। अब टी टी पकड़ेगा तो?
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मुझे तो सभी स्टेशन एक जैसे ही दिखते हैं जी, बस नाम का फर्क है।
ReplyDeleteकेवल दिल्ली के दया बस्ती स्टेशन को छोडकर, जहां प्लेटफार्म पर ही मदरसा चलता है, प्लेटफार्म पर ही खाट बिछी है, प्लेटफार्म पर ही खुले में शौचालय, घर, दुकान सब है।
राम-राम जी
रेवाडी-अलवर-बांदीकुई-आगरा रेल खंड जिन्दाबाद
ReplyDeleteBadhiyaa,
ReplyDeleteसारा का सारा याद आ गया । ब्रॉड गेज में यह खण्ड मेरे आगरा के वरिष्ठ परिचालन प्रबन्धक के कार्यकाल में खुला था । लगभग हर स्टेशन पर दो बार से अधिक जाना हुआ था । बहुत ही सुखद यादें हैं । जब सरसों निकली हो तब जाईयेगा ।
ReplyDeleteपोस्ट देखकर बस यही निकलता है
ReplyDeleteINCREDIBLE INDIA
घुमाये जा छोरे, हम तो बैठे बैठे घुमक्कड़ी कर रहे हैं। तुम्हारा बिन्दास स्टाईल बहुत पसंद है। सीधी बात नो बकवास। अपने को तो खुद कभी अकेले जाना हो तो हम भी पैसेंजर ट्रेन पसंद करते हैं, भीड़ न हो तो देश और देश के लोगों से परिचय होता है, भीड़ हो तो कहीं ताश पार्टी ज्वायन कर लेते हैं। बाकी यार सिर्फ़ स्टेशन गिनते, देखते बोर नहीं हो जाते हो। कभी अचानक किसी स्टेशन पर उतर कर वो जगह घूमो और बताओ तो और मजा आये।
ReplyDeleteआभार।
आपके यात्रा वृत्तान्तों को कोई जवाब नही है!
ReplyDeleteसुन्दर!
रे भाई बांदी कुई से जैपर क्यूँ ना आ गया....??? आगरा जाने की के जल्दी पड़ी थी ? अगली बार ऐसी गलती मन्ने करना...वैसे इस यात्रा में भोत मज़ा आया भोत माने भोत ही ज्यादा...तेरी जय जय कार रहा हूँ... घूमता रह अर घुमाता रह..
ReplyDeleteनीरज
मजेदार भाई दिल को करता है कि हम भी ऎसे ही घुमे... लेकिन अब सेहत ओर आदते साथ नही देगी, मस्त लगी आप की यह रेल यात्रा राम राम
ReplyDeleteसारी ही यादों का ताजा कर दिया, बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तस्वीरें हैं .
ReplyDeleteऔर विवरण भी.
सारी ही यादों का ताजा कर दिया, बढिया प्रस्तुति।
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